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पेट पर टिकी अक़्ल

अपनी ही धुन में चलना, अपने में ही खोए रहना अपने आसपास क्या हो रहा है शायद उसे जानकारी ही नहीं है। कहने को दुनिया जहान की पूरी जानकारी रखने का दम भरते हैं, क्लिंटन ने लेविंस्की से क्या कहा होगा, ओबामा का अगला कदम क्या होगा, डायना की कार को तेजी से क्यों जा रही थी, डोडी अल फायद कौन था,ना जाने तरह इसी तरह की बातें तरह की बातें। कुछ इसी तरह की जानकारी के साथ हम अपने ज्ञान कुंभ को यदा कदा भरते रहते हैं किंतु ना तो हम अपने भीतर झांक पाते हैं और ना ही अपने आसपास। टेलीविजन के सामने बैठे अंगुलियां रिमोट पर नाचती नाचती रहती हैं और एक मुस्कान चेहरे पर होती है। किस कदर दुनिया को छोटा कर दिया है। 

मुट्ठी में पूरी दुनिया अंगुलियों के इशारे पर। आसान है वाकई बहुत आसान है,और नसीम कुछ इसी प्रकार से सोचता जा रहा था। आज वो एकदम अकेला था। अभी रोहन और नसीम अपने हनीमून पर गोवा गए हुए थे। कन्यादान की रस्म भी तो अरशद अरशद ने ही निभाई थी। वह चलते-चलते कहां पहुंच गया था उसे मालूम नहीं। गोया कि वो जानना भी नहीं चाहता था। वो तो बस अपने अकेलेपन से निज़ात पाने को बस यूं ही आवारगी में निकल पड़ा था। 

अचानक उसकी नज़र सामने भीड़ पर पड़ी उसने सोचा लगता है कोई एक्सीडेंट हो गया है, तभी इतनी भीड़ जमा हो रही जमा हो रही है। चलो मैं भी चल कर देखता हूं। वो धीरे से सामने भीड़ की तरफ बढ़ गया। उसकी उम्मीद के विपरीत वहां का नज़ारा था बिल्कुल अलग कोई एक्सीडेंट नहीं हुआ था। बस एक लड़की बिल्कुल फटे हाल कपड़ों में अपने बदन को छुपाने की नाकाम सी कोशिश करती उम्र कोई सतरह- अट्ठारह साल की। मैल की परतें हाथों और चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी, लगता था कई महीनों से नहाई नहीं है। गाल बिल्कुल फटे से एकदम बंजर आंखें। लोगों के लिए शायद मनोरंजन का पात्र थी वो। सभी उसके चारों ओर घेरा बनाकर खड़े थे,कुछ मनचले उसे छू कर भी छेड़ रहे थे तभी सायरन की अवाज़ के साथ पुलिस वाले भी वहां आ गए थे।

उस लड़की पर झपट पड़े ज़ोर ज़ोर से चिल्लाती रही। कुछ समझ नहीं आ रहा था। धीरे धीरे भीड़ छंट चुकी थी। अरशद चेतना शून्य सा वापस अपने हॉस्टल आ गया लेकिन जहन में वही फटे हाल लड़की,छेड़ते हुए मनचले और और पुलिस। लग रहा था सर फट जाएगा बड़े ही अन मने से उसने खाना खाया और पलंग पर पड़ गया,कब नींद आई मालूम नहीं। गहरी नींद में अक्सर सपने आते हैं अरशद को सपने में दूर अंधकार में एक काली छाया सी नज़र आ रही आ रही नज़र आ रही थी आंखें दहकते अंगारे से चमकते दांत और पूरे स्याह रंग मे लिपटी चादर सी ओ बढी चली आ रही थी। बस आगे और आअति।ठीक अएशद के सामने। हड़बड़ा कर पहले तो उसने आंखें बंद कर ली लेकिन फिर आंखें खोल कर कर उसने देखा और फिर कहा - तुम कौन हो और मुझसे क्या चाहिए। जोर से अट्टहास करने लगी वो और अरशद डर गया था, उसकी तो घिग्गी ही बंध गयी थी।

वह बोली मैं गरीबी की ब्याहता हूं, मेरा कोई रिश्ता अमीरों से नहींहै। मैं अमीरों, गरीबों सबके बीच ही रहती हूं। मैं जहां भी जाती हूं सबको हूं सबको जाती हूं सबको हूं सबको अपने में समेट लेती हूं। मेरा वजूद तुमने आज देखा था ना। मेरे कारण लोग खून के रिश्ते भी भूल जाते हैं विद्रोह कर सकते हैं। वो तो सब ठीक है लेकिन तुम हो कौन और मुझसे क्या चाहिए। मैं कौन हूं अभी भी नहीं समझे तो सुनो मैं हूं मैं भूख हूं भूख। इतना कहकर न जाने कहां गुम हो गई अरशद घबरा कर बैठ कर बैठ गया।पसीने से तरबतर उठकर एक ग्लास पानी ग्लास पानी पिया। सोचने लगा यह कैसा सपना था बहुत ही डरावना। उसकी नींद भी शायद डर कर किसी कोने में छुप कर किसी कोने में छुप कर किसी कोने में छुप डर कर किसी कोने में छुप कर किसी कोने में छुप गई थी।

वह बिस्तर पर पड़ा अब केवल उसी लड़की के बारे लड़की के बारे में सोच रहा था।

अगले दिन वह अपने दफ्तर जा रहा था तभी अचानक वही लड़की नज़र आई। वो सोचने लगा अरे इसे तो कल पुलिस वाले पकड़ कर ले गए थे ये वापस आ गई। चलो पूछता हूं इससे यह कौन है। अरशद उस लड़की की तरफ बढ़ गया उसके सामने जाकर वह खड़ा हुआ तो लड़की डर कर दूर भागने लगी। अरशद ने उससे उससे कहा सुनो मुझसे डरो मत मुझे तुमसे बात करनी है अच्छा बताओ कल तुम्हें पुलिस वाले क्यों पकड़ कर कर कर क्यों पकड़ कर कर पकड़ कर कर ले गए थे। उस लड़की ने उसकी और ऐसे देखा जैसे उसने कोई गुनाह कोई गुनाह ऐसे देखा जैसे उसने कोई गुनाह कोई गुनाह देखा जैसे उसने कोई गुनाह कोई गुनाह कर दिया और वो उपहास उड़ाती सी बोली - बाबूजी हम गरीबों का क्या है कभी पुलिस तो कोई और पकड़ ले जाता है।ये जो पेट की आग है ना साब इसको ठंडा करने के लिए सब कुछ करना पड़ता है। भीख मांगनी पड़ती है दर दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं। तब भी ये आग नहीं बुझती साब। भूख की ज्वाला पेट को जब जलाती हो हड्डियों को गलाती हो और अकल को चलाती हो तो हो तो चलाती हो तो हो तो को चलाती हो तो हो तो कुछ नज़र नहीं आता है साब, कुछ नहीं सूझता। भूख और गरीबी में अक्ल केवल पेट पर टिकी टिकी होती है केवल पेट पर। और जिनके पेट भरे हैं मोटे-मोटे भरे पेट वालों की वालों की की पेट वालों की वालों की की भरे पेट वालों की वालों की की पेट पर नहीं पेट के नीचे टिकी होती है साब। मैं कल दो रोटी चुराकर भागी थी और वह पुलिस वाले यूं तो उजली खाकी वर्दी पहनकर अमीरों के हाथ बिकते हैं और हम जैसों पर टूट पड़ते हैं।

जब भी उनका जी करता है मुझे किसी ना किसी बहाने से उठा ले जाते हैं रात भर नोचते हैं और सुबह दो रोटी देकर धक्का मार देते हैं। कमीने साले ... दिन में मेरे बदन से बदबू आती है उनको और रात में .......। जाओ साब आप जाओ अपना वक्त क्यों खराब कर रहे हो दफ्तर को देर हो रही है और वह फिर बावरी से यूं ही ही आगे चली गई गई। अरशद दिन भर सोचता रहा रहा सोचता रहा रहा रहा हम किस मिट्टी के बने हमें इंसानियत का पाठ पढ़ाने वाले बापू, नानक बुद्ध,महावीर अव क्यों दोबारा अवतार नहीं लेते।

पर वो अवतार क्यों क्यों लें। हम भी तो है ना। वो सोचे जा रहा था बस यूं ही ही बिना कपड़े बदले बिना जूता उतारे उसे नींद आ गई और फिर वही सपना वही भयंकर अट्टहास करती काली छाया,चमकते दांत के साथ स्याह चादर में लिपटी। वो फिर बोली हां मैं भूख हूं,दुनिया के कोने कोने में मेरा वजूद है में मेरा वजूद है। पहले मैं केवल गरीबों के ही रहती थी रहती थी ही रहती थी रहती थी केवल गरीबों के ही रहती थी रहती थी ही रहती थी रहती थी अब तो मैं सब जगह हूं गरीब को पेट की भूख, अमीरों के यहां पैसे की और हवस के मारो के के के यहां तन की भूख बनकर मै हर जगह मौजूद। हां मैं भूख हूं भूख केवल भूख भूख। अगले दिन अरशद का उसी रास्ते से गुजरना हुआ,उस लड़की का वही रूप फिर सामने आया फिर सामने आया आज उसे समझ आ गई थी कि गरीबी के कारण ही सारी की सारी समस्याएं पैदा हो रही। वह कर कुछ भी नहीं सकता था बस केवल उसके प्रति सहानुभूति भी जता सकता था लेकिन तभी उसने निर्णय लिया नहीं, सहानुभूति ही क्यों इसको किसी काम पर लग जा सकता है और वह इसी के साथ उस के लिए काम की तलाश में जुट गया।

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