दूर -दूर तक नीला समन्दर फैला हुआ। वातावरण एकदम शान्त और इस नीरवता को चीरती है एक -एक कर आती समन्दर की लहरें। नीलिमा आज कोस्टा बीच पर एकदम अकेली बैठी है। अपने ही खयालों में खोई सी। बैठी-बैठी साहिल की ओर आती लहरों को देखती जाती है। एक एक कर लहरें साहिल से लगती, वो समझने की कोशिश कर रही थी कि साहिल से लगने वाली लहर को उसके पीछे वाली लहर धकेल रही है या आगे चलने वाली लहर अपने पीछे लहरों का काफिला लेकर चलती है। वो कुछ भी समझ नहीं पा रही थी बस एक टक बस नीले गहरे समन्दर की ओर देखे जा रही थी। वो सोच रही थी सागर का सीना इतना मचलता क्यों है उसके मन की अकुलाहट और मचलन का ही तो बिम्ब है ये लहरें। क्या इसके सीने में भी कुछ अरमान मचलते हैं या फिर अपना गुस्सा दिखाता है इन लहरों के जरिए। कुछ भी समझ पाना संभव न था। वो ख़मोशी से बस समन्दर के किनारे बैठी लहरों को देखती रही।
आमतौर पर नीलिमा कोस्टा बीच की इस जगह पर आकर तभी बैठती थी जब वो किसी दुविधा में होती थी या कोई परेशानी होती थी। ना जाने क्यों उसे यहां एकान्त में आकर बड़ा ही सुकून मिलता था। आज भी वो कोस्टा बीच के इस कोने में अकेली बैठी लहरों का साहिल की चट््टानों से टकराना - टकरा कर चूर चूर होना और दूसरी तहर से टकराने के लिए अपना वजूद खत्म कर रास्ता देने का यह सिलसिला देख रही थी। वो सोचने लगी एक लहर चट्टान से टकराकर अपना अस्तित्व समाप्त कर लेती है कि दूसरों को रास्ता मिल सके या फिर यह भी हो सकता है कि पीछे वाली लहर ही उसे धक्का मारती हो टकराकर ख़त्म करने के लिए इस मुगालते में कि मैं नहीं टकराऊँगी बस ये आगे वाली लहर ही समाप्त हो जाए। समझ नहीं आ रहा है कि कोई त्याग कर रहा है या फिर कोई अपनी जगह बनाने के लिए आगे वाले को धकेल रहा है। लेकिन यह सच है कि लहरों का टकराना और एक ज़ोर की आवाज़ का होना हर बार सोचने पर विवश अवश्य करता है।
वो अपने ही विचारों में मगन, पता ही नहीं चला कब सुरमई सांझ ढलकर गहरी अंधियारी चादर लिए निशा अपना दामन फैला चुकी थी। आसमान में सितारे टिमटिमा रहे थे। दूर किसी चर्च के घण्टे की आवाज़ से अंदाजा हुआ कि नो बज चुके हैं। वो थके क़दमों से वापस अपने फ्लेट की ओर चलने लगी। उसका फ्लेट कोस्टा बीच से करीब ढेड़ किलो मीटर दूर था। सुस्त कदमों से चलती जा रही थी वो ,उसे नहीं मालूम था कि वो कहां चल रही है। अचानक ही एक तेज़ रफ़्तार कार के जोरदार चरमराहट के साथ एक झटके से ठीक उसके पीछे रूकने का उसे हल्का सा भान हुआ। उसकी तन्द्रा तो तब टूटी जब कार में बैठे व्यक्ति ने उसे चिल्लाकर कहा - मैडम मरने का शौक है तो सड़क पर क्यों समन्दर के आगोश में जाओ ना।
वो कुछ न बोली बस चुपचाप एक तरफ हो गई। कार में बैठे व्यक्ति को लगा शायद ज्यादा गुस्सा कर लिया। वो धीरे से अपनी गाड़ी से उतरा, बोला मैडम क्या बात है। आइ एम सॉरी मुझे इस तरह से नहीं बोलना चाहिए था। अपने गुस्से पर काबू रखना चाहिए था। वो कुछ भी नहीं बोली बस ज़मीन की ओर देखती रही। उस अजनबी से एक बार फिर कहा मैडम मे आई हैल्प यू ? उसका फिर भी कोई जबाब नहीं आया। वो चेतना शून्य सी खड़ी थी। उस अजनबी को लगा कि शायद यह महिला किसी बड़ी परेशानी मे है। अचानक ही न जाने उसे क्या सूझा उस व्यक्ति ने उसका कंधा पकड़कर ज़ोर से झिंझोड़ते हुए कहा मैडम व्हाट्स रांग बिद यू?
इस बार उसे उस अजनबी की ओर देखा और अनायास ही दो बड़े से मोती दोनों आंखों से सड़क पर गिर गए। अंधेरा था लेकिन कार की हैड लाइट की रोशनी में उस अजनबी ने उसकी आंखों से गिरते मोतियों को और आंखों की नमी को देख लिया था। उसने साहस कर धीरे से उसका हाथ पकड़ा और कहा - चलिए मैं आपको आपके घर तक छोड़ देता हूँ। हां पहले बता दूं मैं डेविड हूँ एक जगह एक्जिक्यूटिव हूँ और -------। वो आगे कुछ कहना चाह रहा था लेकिन न जाने क्यों रूक गया।
अचानक ही बोली और ----- और क्या ?
और काउंसलर भी हूँ
ओह तो आप काउंसलर भी हैं।
वो बोला - जी
फिर से एक सन्नाटा। वो चाह रही था कि सन्नाटे को तोड़े किन्तु कुछ सोचकर वो यूं ही चुपचाप खड़ा रहा। वो चाह रहा था कि शायद वो कुछ बोलेगी या कि वो अपनी परामर्शी अनुभवी आंखों से उसके दर्द की गहराई को मापना चाहता था। उसने धीरे से एक बार फिर उसके कंधे पर हाथ रखा और अपनी गाड़ी की ओर उसे हल्के से धकेला। नीलिमा हिप्नोटाइज सी बिना कुछ बोले बिना किसी प्रतिरोध के उसकी गाड़ी की ओर चलने लगी। उसे कुछ भी समझ न आ रहा था कि वो क्यों चले जा रही है। बस वो उसकी गाड़ी के पास आकर ठिठक गई। अचानक वो बोली
- नहीं। थैक्यू मिस्टर डेविड, मेरा घर पास ही है अभी चली जाऊँगी।
नो मैडम आई बिल ड्राप यू। देयर विल बी नो प्राबलम। एण्ड बिलिव मी यू विल बी सेफ।
दैट्स नाट मैटर मिस्टर डेविड बट मुझे लगता है कि मैं चली जाऊँगी।
ओह मुझे लगता है कि आपको इस वक़्त मेरी सलाह की ज़रूरत है।
वो ज्यादा कुछ भी न कह पाई चुपचाप से गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर आगे वाली सीट पर बैठ गई। डेविड ने गाड़ी स्टार्ट की और पूछा - विच साइड ?
उसने हाथ के इशारे से ही बताया कि उसे सीधे जाना है। थोड़ी ही देर में गाड़ी नीलिमा के फ्लेट के सामने खड़ी थी। डेविड बोला - मैडम
मेरा नाम नीलिमा है आप नीलिमा कर सकते हैं।
जी नीलिमा जी
नहीं केवल नीलिमा मैं आपसे छोटी हूँ।
ओ.के. नीलिमा, मुझे लगता है आप एक द्वन्द में जी रही हैं। शायद पारिवारिक परेशानी या फिर कोई लव अफेयर का फेलियोर।
वो बोली -बोथ।
ओ.के. विल यू कम टूमारो एट माई आफिस।
उसने अपना कार्ड बढ़ा दिया और हाँ कोई फीस नहीं है मेरी कन्सलटेशन की। मैं शोकिया तौर पर सलाहकार हूँ पेशेवर नहीं।
- ओ. के. मिस्टर डेविड। गुडनाइट
ओ. के. गुडनाइट एण्ड हैव ए स्वीट नाइट।
उसने धीरे से पर्स से फ्लेट की चाबी निकाली अपने फ्लेट में चली गई। पति सो चुका था। शायद पीकर आया था रोज़ाना की तरह और शायद खाकर भी। उसने एक उचटती सी नज़र पति पर डाली, खर्राटे ले रहा था वो। भूख लगी थी लेकिन कुछ भी बनाने का मन नहीं था उसने फ्रिज में देखा, ब्रेड थी और सब्जी बनी रखी थी सुबह की। चार स्लाइस ब्रेड निकार कर ओवन टोस्टर में डाल दिया सब्जी माइक्राोवेव में गरम करके ब्रेड पर लगाई और खा गई।
ये भी क्या ज़िन्दगी है, एक ही बिस्तर पर दो जवां जिस्म अलग अलग दिशा में करवट लिए एक दूसरे से बेख़बर एक दूसरे की इच्छाओं से बेखबर। उसे धीरे धीरे गुलज़ार हुसैन का प्रेम भरा आलिंगन, वो हल्के से बालों को सहलाना याद आने लगा। वो रोमांचित सी होने लगी। अचानक ही ख़्यालों में आज मिला अधेड़ डेविड आ गया। बेहद आकर्ष चेहरा, अनुभवी मगर कुछ शरारती आंखें। वो उसके बारे में सोचने लगी। कौन है ये शख़्स जिसने मुझे मेरे परेशानी से निज़ात दिलवाने का अपने आप ही बीड़ा सा उठाया है। कई दिनों से गुलज़ार हुसैन से भी बात नहीं हो रही थी बल्कि यूं कहें कि गुलज़ार भी नाराज़ था। उसे भी लग रहा था कि निलिमा किसी ओर से साथ अफेयर में है।
अगले दिन वो चुंबकीय आकर्षण में बंधी सीधे डेविड के आफिस चली गई। बहुत ही संजीदा व्यक्तित्व गोरा चिट्टा और आकर्षक। एक बार तो वो उसे देखती ही रही उसकी तंद्रा टूट
- यस नीलिमा जी, हाउ आर यू।
हां - हां एम फाइन
आप अभी भी संयत नहीं है। पहले आप आराम से चेयर पर बैठ जाइए। लीजिये उसने पानी का ग्लास नीलिमा की ओर बढ़ा दिया।
नीलिमा पूरा ग्लास एक सांस में पी गई।
अब बताइए क्या प्राबलम है आपकी।
जी कुछ नहीं।
ओह तो आपको ’’कुछ नहीं ’’ प्राबलम है।
अनायास ही नीलिमा की मुस्कुराहट फूट पड़ी
बल्कि यूूं कहें कि उसे ठहाका सा लगा दिया अचानक ही वो सोचने लगी कितनी मुद्दत बाद आज हंसी आई है। वाकई ये आदमी तो कोई जादूगर लगता है।
डेविड बोला मुझे जो लग रहा है पहले वो सुन लीजिए
- आप अपने पति की आदतों से परेशान हैं, पति से काफी अनबन रहती है। और एक लम्बे अरसे से आपके कोई सम्बन्ध नहीं है। आपकी किसी व्यक्ति से मित्रता है और इन दिनों उसको भी लगता है कि आ उसे चीट कर रही हैं राइट ?
वो इस अनजान जादूगर की ओर अचरज भरी निगाहों से अपलक देखती रही।
मैडम - एम आई राइट ओर नाट
यू आर एब्सोलूटली राइट मिस्टर डेविड बट हाउ डू यू नो आल दिस ?
नीलिमा जी, ऊपर वाले ने एक गिफ्ट दी है किसी के भी दिल में झाँक कर उसके मन की जान लेने की। आपके में यही दुविधा इन दिनो चल रही है।
सॉरी मि. डेविड आधा सच आधा झूठ
वो बोला मतलब
जी पति से अलगाव की बात सही है लेकिन मित्रता वाली बात गलत है।
वैसे मन ही मन वो सोच रही थी कि यार ए बन्दा तो हण्ड्रेड परसेंट सही बोल रहा है। गुलज़ार से इतने अरसे से कोई मुलाकात नहीं होती है, मिलता भी है तो वो आंखें चुराकर चला जाता है कोई बात नहीं करता है। लेकिन परोक्ष उसने इसे स्वीकार नहीं किया।
डेविड बोला - नो प्राबलम, मत बताइए वैसे मुझे पूरा यक़ीन है कि जो मैंने कहा है वो सच है। इतना कर कर वो बड़े ही शालीन तरीके से नीलिमा की आंखों में देखने लगा मानो अपनी कही बात का असर उसकी आंखों में ढूंढ रहा था। नीलिमा ज्यादा देर तक आंखें नहीं मिला पाई और फिर टूट गई। आंखें भर आई थी उसकी वो चाहती थी कि डेविड के कन्धे से अपना सर लगाकर जी भर कर रोये। वो उठी भी थी लेकिन डेविड ने एक कुशल परामर्शदाता की तरह उसकी मन स्थिति समझते हुए उसे वाश रूम की ओर इशारा कर दिया। थोड़ा सा संयत होकर नीलिमा वापस चेयर पे बैठ गई। इस बार थोड़ी सी मुस्कुराहट के साथ। तभी वो बोला -
तो नीलिमा जी मे आई नो द नेम आफ द पर्सन हू इज इन यूवर लाइफ----- आई मीन आपार्ट फ्राम यूअर हसबैण्ड।
नीलिमा कोई जवाब देती उससे पहले ही उसने एक ओर बात कह कर चौंका दिया।
आपकी अंगुलियां देखकर लगता है आप सितार बजाती हैं।
आश्चर्यचकित सी नीलिमा इस अनजाने से जादूगर की ओर देखे जा रही थी अपलक। इस बार उसने हथियार डालते से मन में सोच लिया अब सच ही बोलूंगी। और वो बोली
-जी आप ठीक कह रहे हैं मैं नीलिमा कुलकर्णी हूँ सितार बजाती हूँ लेकिन मुझे कोई पहचान नहीं मिली है मित्रता वाली बात भी आपकी सही है। गुलज़ार हुसैन मेरे मित्र हैं।
वो बोला - केवल मित्र ?
आप जो भी समझें
नहीं आप खुद ही बताइये। वैसे मुझे लगता है वो आपके जीवन में बहुत अहमियत रखता है शायद मित्र से कहीं बहुत अधिक।
- जी
आप खुलकर बता सकती हैं। आपकी बात केवल मेरे तक ही रहेगी। और हां विश्वास कर सकती हैं। आपके साथ कोई चीटिंग नहीं होगी।
जी
थोड़ी देर दोनों मौन रहे। डेविड उसके मौन को समझने की कोशिश कर रहा था। और नीलिमा डेविड पर विश्वास करने या न करने को लेकर असमंजस में थी। कोई घण्टे भर की मुलाकात के बाद नीलिमा अपने घर लौट गई लेकिन डेविड उसके मन मस्तिष्क पर छा चुका था।
उधर गुलज़ार हुसैन को भी लग रहा था कि नीलिमा अब उसके हिसाब से नहीं चलती है। उसने नीलिमा के संगीत कार्यक्रमों में भी कमी करवा दी थी। दरसल नीलिमा संगीत के कुछ कार्यक्रम गुलज़ार के ज़रिये ही हासिल कर पाती थी। इसलिए भी गुलज़ार उसके लिए एक महत्वपूर्ण व्यक्ति था लेकिन इसके अलावा मन ही मन वो बेहद प्यार करने लगी थी गुलज़ार से। वो सब कुछ चाहती थी गुलज़ार के साथ। वैसे भी कुदरती नियम है भूखे को परोसी थाली मिले तो वो खायेगा ही। शायद गुलज़ार और नीलिमा दोनों की ही परस्पर यही स्थिति थी। लेकिन पिछले कोई आठ महीने से गुलज़ार ने नीलिमा से किनारा कर लिया था। पति पहले ही गुलज़ार के कारण नीलिमा से अलग सा रहता था। बस केवल नाम का पति। वो भी मानता था कि नीलिमा अब उसकी नहीं है केवल गुलज़ार की है। इसी कारण से रोज़ाना पीकर आता था। गुलज़ार के प्रेम में अंधी सी नीलिमा शुरू शुरू में तो इसका विरोध करती थी लेकिन धीरे धीरे बेफ़िक्र सी हो गयी थी पति की तरफ से। अब तो कभी कभी गुलज़ार दिन में नीलिमा के पति की अनुपस्थिति में नीलिमा के घर भी आ जाता था। घण्टों घर में रहना खाना और फिर पति के आने के पहले ही चला जाना। गुलज़ार की नाराज़गी के बाद नीलिमा टूट सी गई थी वो चाहती थी कि गुलज़ार उसे वापस मिल जाए। इसी टूटन में उस दिन वो डेविड को मिली थी रात में।
कोई छः महीने की सलाह के बाद अब नीलिमा थोड़ा सा नार्मल होने गली थी डेविड की सलाह के अनुसार ही उसने अपने पति के साथ सम्बन्ध सामान्य कर लिए, एकदम सहज दाम्पत्य सम्बन्ध। वो काफी खुश रहने लगी थी अब लेकिन साथ ही साथ वो गुलज़ार को बहुत याद करती थी। उससे बिछुड़ने की टीस बहुत सालती थी उसको। डेविड ने आज उसे आश्वासन दिया था कि ज़ल्द ही गुलज़ार भी उसे मिल जाएगा लेकिन उसने यह भी हिदायत दी कि कुछ भी हो गुलज़ार उसके पति की जगह कभी नही ले सकता है। आखिर मे केवल पति ही साथ देता है। वैसे न जाने क्यों डेविड को वो बहुत भाने लगी थी। डेविड भी चाहता था कि वो धण्टो उसके साथ रहे। एक सलाहकार होने के साथ साथ डेविड भी एक पुरुष था जिसका मन भी एक सुन्दर जवान औरत के लिए मचलने लगा था , हां नीलिमा के लिए मचलने लगा था उसका भी मन। बहुत नियन्त्रण रखता था वो अपने आप पर लेकिन एक दिन नीलिमा से कह ही दिया था उसने,
- नीलिमा यू आर सो प्रेटी एण्ड आइ लाइक यू, इन्फेक्ट लव यू। व्हाट यू से।
नीलिमा कुछ ना बोली बस उसकी ओर देखती रही। कुछ देर बाद वो जाने लगी लेकिन जाने से पहले डेविड के गाल पर एक किस देकर बोली - आप मुझसे बड़े हैं, मैं भी चाहती हूँ अपने आपको समर्पित करना। आपने मेरे लिए जो कुछ भी किया है उसके सामने मेरा समर्पण कुछ भी नहीं होगा लेकिन मैं आपकी पूजा कर सकती हूँ प्यार नहीं। प्यार केवल गुलज़ार को करती हूँ। हां सच है मैं किसी की पत्नी भी हूँ लेकिन गुलज़ार को ही प्यार करती हूँ यह सच है कि मै अपने पति को भी बहुत चाहती हूँ। आप मुझे माफ कर दीजिए डेविड।
उसकी बातें सुनकर डेविड आत्मग्लानि में डूब गया उधर नीलिमा चली गई थी। लेकिन डेविड अब खोया खोया सा रहने लगा। कोई चार पांच महिने के बाद अचानक ही नीलिमा डेविड के आफिस में आ गई थी डेविड को देखकर उसे बेहद तक़लीफ हुई। हैण्डसम डेविड को ये क्या हो गया था, बेतरतीब सी दाढ़ी उलझे से बाल, जैसे महिनो से कुछ खाया ही न हो। वो आई थी आज डेविड को अपनी खुशी बताने कि गुलज़ार फिर से उसके जीवन में आ गया है लेकिन डेविड की हालत देखकर वो चुप रही। डेविड उसे देखकर एक बार मुस्कराया बोला
- कैसी हो नीलिमा
मैं तो ठीक हूँ लेकिन आप ?
कुछ नहीं नीलिमा मैं ठीक हूँ
नहीं आपको मेरी कसम बताइए ना
अरे नहीं कुछ नहीं बस सब ठीक है
आपने जो मुझे प्यार किया है उसी की कसम सच बताइए
नीलिमा बस मैं कुछ दिनों की खुशियां तलाश रहा था अपने जीवन में
मतलब
कुछ नहीं
वो थोड़ा सा सहज होने का प्रयास करने लगा
हां यह सच है कि मैं भी तुम्हें चाहने लगा था शायद बहुत ज्यादा। तुम मेरे बारे में कुछ नहीं जानती हो, तैं तो तुम्हारे बारे में सब कुछ जानता हूँ।
तो बताओ ना
हां अब तो बता ही दूंगा, वैसे भी अब मेरे पास समय ही कहां है छुपाने के लिए
पहेलियां क्यों बुझा रहे हो बोलो ना
नीलिमा मैंने अपने जीवन में खुशियां नहीं देखी है मेरी भी शादी हुई थी बेहद सुन्दर लड़की से लेकिन पहली ही रात में उसने मुझे कहा था कि वो किसी ओर को चाहती है, वो उसी की अमानत है , घरवालों के दबाव में उसने ज़बरदस्ती शादी कर ली थी मुझसे। उस रात मैं विवाहित होकर भी कुंआरा ही रह गया था। अगले ही दिन मैंने उसे उसके प्रेमी को सौंप दिया था तथा घर वालों को मैंने कह दिया था कि मै उसके साथ नहीं रह सकता हूँ। घर ने निकाल दिया गया था मैं। यहां आकर रहने लगा था अनजान लोग अनजान जगह। अपने दुख को भुलाने के लिए धीरे धीरे मैने लोगों को खुशी देने की ठानी थी तभी पता चला कि
---- वो चुप हो गया
क्या पता चला डेविड बोलोना
क्या बोलूं
मैंने तुम्हें अपने प्यार की कसम दी है
हूँ ----- यही कि मुझे ब्लड कैन्सर है। मैंने इलाज नहीं करवाने का तय कर लिया था। ठीक उसी रात तुम मिली धीरे धीरे ने जाने क्यों तुम्हें देखकर जीने की इच्छा फिर से होने लगी थी लेकिन फिर तुम्हारी कहानी सुनकर एक बार फिर अपनी तक़दीर समझ में आ गई थी। शायद स्त्री जाति मेरी तक़दीर मे ही नहीं है।
नीलिमा न जाने क्यों डेविड को अपनी बांहों में लेने के लिए उठी ही थी कि डेविड कुर्सी सहित ही एक तरफ गिर गया था। वो उसे संभालने के लिए चीख सी पड़ी थी। आफिस के अन्य लोग भी आ गए थे और डेविड ---- वो तो निकल चुका था अनन्त यात्रा पर जहाँ से कभी कोई वापस नहीं आता है।