बेड नम्बर ग्यारह Yogesh Kanava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बेड नम्बर ग्यारह

आज फिर से दोनों माँ बेटियों में तकरार को रही थी, सुबह से ही बेटी ने माँ से कहा था कि नाश्ता कर लो लेकिन मां ने कहा था नहीं बेटा आज तो करवा चौथ है। चाॅंद देखकर ही कुछ खाऊंगी, इस इसी बात पर गुड़िया मां से उलझ पड़ी थी । हर साल यही क्रम करवा चौथ के दिन गुड़िया को अपनी माॅं पर बहुत गुस्सा आता था वो सोच रही थी, आखिर मां किसके लिए इतना कष्ट झेलती है, पूरे दिन भूखे प्यासे रहकर तपस्या करती है, एक ऐसे आदमी के लिए जो बाईस बरस पहले अपनी जवान बीवी को छोड़कर किसी और के साथ भाग गया था। जिसको यह भी ध्यान नहीं रहा कि उसकी एक छह महीने की बेटी भी है। अपनी मौज मस्ती में उसे मां से ज्यादा सुन्दर औरत के साथ रहना शायद ज्यादा भाया था। तभी तो हम दोनों को छोड़कर भाग गया था। माना मां सांवली है, लेकिन मां की जवानी की फोटो तो कोई कम नहीं है, गजब का लावण्य है उस वक्त की मां में। कितने बरसों से मां को समझाती आई हूँ कि उस आदमी को भूलकर अपने आप में मस्त होना सीख लें, लेकिन मां को कभी समझ नहीं आ सकती है मेरी बात, बस इसी बात पर आज फिर से आज फिर से वही तक़रार। मैं जानती हूँ कि माँ नहीं मानेगी और माँ की यही जिद उस आदमी के खिलाफ मेरी नफरत को और पुख्ता करती है। मैं...............मैं सचमुच उस आदमी से नफरत करती हूँ , जिसको मां मेरा बाप बताती है। कौन सा फर्ज निभाया उसने बाप होने का। जब मुझे और मां को सबसे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी तो वो किसी ओर के साथ गुलछर्रे उड़ा रहा था। नहीं मैं उसे अपना बाप स्वीकार नहीं कर सकती हूँ । अपने ही ख्यालों में खोई गुड़िया बड़बड़ाये जा रही थी। ना जाने हिन्दुस्तानी औरतों को कब अक्ल आयेगी, पूरी जिंदगी घुटती है, पिटती है, लेकिन करवा चौथ उसी के लिए रखेगी। उसी के स्वस्थ रहने की कामना, उसी की लंबी उम्र की कामना। पता नहीं, क्यों नहीं समझती है ये औरतें जिसको अपनी पत्नी की परवाह नहीं, अपने बच्चों की परवाह नहीं फिर भी उसी के लिए करवा चौथ का व्रत।

अपने ही ख्यालों में, अपनी ही उधेड़बुन में उलझी सी रही थी गुड़िया, लेकिन अपनी मां का पूरा ध्यान रख रही थी। मां ने पूरे दिन से कुछ भी नहीं पिया था। कह रही थी चाँद देखकर ही पानी पीऊंगी। गुड़िया लाचार थी अपनी मां की ज़िद के आगे।

जब से होश संभाला है तभी से माँ को इसी तरह देखा है। शुरू में अड़ोस-पड़ोस के घरों में झाडू पोंछा करके कमाती थी और मुझे पालती थी धीरे-धीरे मां ने सिलाई सीख ली थी। मुझे याद है आज भी, सिलाई मशीन के लिए पैसे नहीं थे, वो भला हो उस आंटी का जिनके घर में झाडू पोंछा करती थी जिन्होंने अपनी पुरानी कबाड़ सी मशीन मां को दे दी थी। मां बहुत खुश थी उस दिन । पूरे पच्चीस रुपये देकर मां ने उस मशीन को ठीक करवाया था। पच्चीस रुपये ही तो उसे मिलते थे महीने के उस घर से। मां ने मशीन ठीक करवा ली थी अब आस-पास में मां ने कपड़े सिलाई करना शुरू कर दिया था अब माँ झाडू पोंछा केवल उसी सिलाई वाली आंटी के यहीं पर करती थी। आज भी मां ने वो सिलाई मशीन अपने बुटिक में एक कोने में रखी है जिसकी वो रोज़ाना नियम से पूजा करती है। आज सब कुछ है मां का बड़ा बुटिक जिसमें पन्द्रह कारीगर काम करते हैं। कभी-कभी मैं भी चली जाती हूँ । हाउसिंग बोर्ड का टू बी एच के मकान भी तो ले लिया था मां ने । आजकल हम उसी में रहते हैं ।

सूरज अस्ताचल को चला गया था, तारे टिमटिमाने लगे थे। गुड़िया को अपनी मां की चिंता हो रही थी। बढ़ती उम्र में इतनी देर खाली पेट रहना ठीक नहीं है। वैसे भी डाॅक्टर ने भूखे रहने से मना किया था माँ को माइग्रेन की तकलीफ जो है। भूखे रहते ही मां को माइग्रेन का दर्द हो जाता था। मुझे बस यही चिंता सता रही थी। हुआ भी वही चांद निकलने की बात सुनकर मैंने रसोई से ही मां को आवाज लगाई-मां चांद निकल गया है। रसोई से आवाज लगाने पर जब मां का कोई जवाब नहीं आया तो वो कमरे में गई। मां बिस्तर पर पड़े सिर दर्द से बेहाल थी। अचानक ही तेज दर्द शुरू हो गया था। अभी आधा घंटा पहले तो ठीक थी। करवा चौथ होने के कारण डाॅक्टर की लिखी आन सैट के लिए दी दवा मां ने नहीं ली थी बस उसी का परिणाम था माइग्रेन का सीवियर अटैक । ऐसा पहले भी हर बार करवा चौथ के दिन होता आया है, नवरात्रा तो मैंने पहले ही बंद करवा दिये थे, लेकिन करवा चौथ ये व्रत मैं बंद नहीं करवा पाई थी । जल्दी से गैस बंद कर एक टैक्सी बुक कर मां को अस्पताल ले गयी। इमरजेन्सी में डाॅक्टर ने आबजरवेशन वार्ड में भरती करने की सलाह दी। गुड़िया के पास कोई चारा भी न था। आबजरवेशन वार्ड में मां को भरती कर दिया गया। बेड नंबर दस पर मां थी। बेडनम्बर ग्यारह पर एक आदमी लगातार खांसे जा रहा था दमा का अटैक आया था नाक में ऑक्सीजन की नली थी। ड्रिप चल रही थी उसको । नर्स माँ के लिए भी ड्रिप तैयार कर चढाने के लिए लेकर आ गयी थी, वो बोली अम्माजी हाथ सीधा करो ड्रिप लगानी है । तभी मां ने कहा थोड़ा सा रूक जाओ मैं चांद देख कर ही लगवाऊंगी , मैं लगभग गुस्से से चिल्ला पड़ी थी, भाड़ में गया तुम्हारा चांद, इनका तो दिमाग खराब हो चुका है चांद चांद की रट लगा रखी है, यह भी नहीं मालूम कि बिना दवाई के क्या हाल बना लिया खुद का । खुद भी परेशान है और.............। मेरी आवाज़ सुनकर बेड नम्बर ग्यारह का मरीज थोड़ा सा रूककर बोला बेटा इनका करवा चोथ का व्रत है शायद। मां ने जैसे ही आवाज़ सुनी वो चौक पड़ी थी तत्काल करवट बदलकर ग्यारह नम्बर के मरीज की तरफ देखा। आंखों में गुस्सा भी दिखा और आंसू भी, मैं नहीं समझ पाई थी कि क्या हुआ। अचानक ही मां बोली सिस्टर मुझे ड्रिप लगा दो, इंजेक्शन भी लगा दो। मुझे चांद दिख गया है। इधर मां की आँखों में आँसू और उधर ग्यारह नम्बर वाले की आँखों में भी आँसू । मैं ठगी सी देखती रही, ये नज़ारा । पहले तो मुझे समझ नहीं आया, लेकिन कुछ ही पल बाद मुझे लगा जिसको आज तक नहीं देखा, जिसके लिए माँ करवा चौथ का व्रत रखती है शायद ..............शायद यही वो आदमी है जिसके लिए माँ करवा चौथ का व्रत रखती है , शायद वो मेरा बाप............हाँ वही ग्यारह नम्बर बेड वाला मरीज ।