वो बंद दरवाजा - 7 Vaidehi Vaishnav द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वो बंद दरवाजा - 7

भाग- 7

अब तक आपने पढ़ा कि जंगल में भटकते हुए स्टूडेंट्स को एक होटल दिखाई देती है।

डरते -डरते सभी लोग धीमी गति से कदम बढ़ाते हुए उस आलीशान सी होटल के नजदीक जाते हैं। होटल के सभी कमरों की बत्ती बुझी हुई थीं। सिर्फ़ लॉबी, रिसेप्शन डेस्क और ऊपरी मंजिल का एक कमरा रोशनी से सराबोर था। मुख्य द्वार खुला हुआ था, पर वहाँ कोई दरबान नहीं था। रिसेप्शन डेस्क भी सुनी ही थी। जिस तरह से होटल अपना हाल बयाँ कर रही थी उसे देखकर किसी का मन गवारा नहीं कर रहा था कि होटल के अंदर पैर रखे।

आदि डरते हुए स्वर में धीमे से बुदबुदाया- "लौट चले क्या ?"

तभी पीछे से लड़खड़ाती हुई बूढ़ी आवाज़ सुनाई दी- "ऐसी तूफानी, घनघोर अँधेरी रात में लौटकर कहाँ जाओगे ?"

सभी ने हैरत से पलटकर देखा तो चेहरे से रंग उड़ गए।

सूर्या चौंकते हुए- " आ...आ..आप..?

आर्यन सवालिया निगाहों से सूर्या को घूरते हुए- " क्या तुम इन बूढ़े बाबा को जानते हों ?"

आदि, आर्यन के कान में फुसफुसाते हुए- " क्या तुम्हें इनकी कदकाठी और पहनावा उस आदमी जैसा नहीं लग रहा, जिसके ऊपर से हमारी गाड़ी निकल गई थीं।"

आर्यन ने गौर से उस बूढ़े शख्स को देखा फिर थूक गटकते हुए कहा- "आदि त..त..तुम ठीक कह रहे हो। यह तो बिल्कुल वैसे ही लग रहे हैं।"

बूढ़ा आदमी हाथ में लालटेन लिए हुए आगे बढ़ा और बोला- "चले आओ बच्चों, बेफिक्र होकर। यहाँ सारे इंतज़ाम है। अब इस ख़राब मौसम में जंगल से निकलना मुश्किल ही होगा।"

सभी लोग एक-दूसरे का चेहरा देखने लगते हैं। सभी भावशून्य थे। किसी की बुद्धि काम नहीं कर रही थी। असमंजस में पड़े सभी जस के तस बूत बने खड़े रहे।

बूढ़ा आदमी होटल के अंदर जा चुका था। लालटेन को रिसेप्शन डेस्क पर रखने के बाद उसे बुझाकर अन्य जगह की बत्ती जलाते हुए उस आदमी ने सीढ़ियों के पास जाकर किसी को पुकारा- "लाली... ओ लाली !"

आवाज सुनते ही सीढ़ियों से धड़धड़ाती हुई उतरकर बेहद खूबसूरत सी एक नवयुवती आई।

"जी बाबा"- मिश्री सी मीठी आवाज़ में लड़कीं ने कहा।

रौनक तो जैसे चुम्बक हो गया था। उसके पैर स्वतः ही उस ओर बढ़ चले, जहाँ वह लड़की खड़ी हुई थी।

बूढ़ा आदमी उस लड़की से आंगतुकों के लिए ठहरने से लेकर भोजन आदि के इंतजाम के विषय में चर्चा कर रहा था और वह लड़की बहुत ही गौर से सारी बातें सुनती हुई हर बात पर हाँ में सिर हिलाकर सहमति जता रही थी।

रौनक उस लड़की को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया। वह उसके गुलाब सी पंखुड़ियों से नाज़ुक सुर्ख होठों को देखकर किसी शराबी सा मदहोश हो उठा। वह कल्पना करने लगा कि इन होठों को चूमने का अवसर कब मिलेगा ?

तभी सूर्या ने रौनक को कोहनी से धक्का दिया जिससे रौनक स्वप्नलोक से बाहर निकल आया। वह लड़की जा चुकी थी। बाकी लोग भी लॉबी में बैठे हुए इंतज़ार कर रहे थे।

सूर्या - "चक्कर क्या है बॉस ?"

रौनक- "चक्कर ही तो चलाना है। वह वाक़ई कमाल की दिखती है"

सूर्या- ओ मिस्टर रोमियो ! मैं उस लड़की की बात नहीं कर रहा। आख़िर माजरा क्या है ? इस इतने बड़े होटल में ये दोनों अकेले क्यों रहते है ? यहाँ कोई और मुसाफिर क्यों नहीं है ?

रौनक- तुम सबके दिमाग न जेम्स बांड हो रखे हैं। सफ़र की थकान और उस पर अजीबोगरीब परिस्थितियों ने तुम लोगों को फ़िल्म डायरेक्टर बना दिया है। हर बात पर सीन क्रिएट कर रहे हो। सोचो! यार, पर्यटन स्थल है। यहाँ क्या जंगल क्या बस्ती…? क्या वीराना, क्या महफ़िल..? जहां पर्यटकों का मन करता होगा वहाँ ठहर जाते होंगे। औऱ अभी तो ऑफ सीजन है इसलिए ज़्यादा भीड़भाड़ नहीं दिख रही। रिलैक्स रहो और मौज करों।

मैं तो चला अपना कमरा देखने...

कहकर रौनक सीढ़ी चढ़कर उस लड़की की तलाश में यहाँ-वहाँ नजरों को घुमाए फुर्ती से ऊपर की ओर जाने लगा।

कौन है वो लड़की और बूढ़ा आदमी ..? जानने के लिए कहानी के साथ बने रहें..