Wo Band Darwaza - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

वो बंद दरवाजा - 10

भाग- 10

अब तक आपने पढ़ा कि सभी लोग होटल के डायनिग हॉल में मौजूद थे व खाने के इंतजार में बैठे हुए थे। तभी आदि को कुछ नज़र आता है...

आदि के ठीक सामने किचन के गेट के पास एक लड़की निर्वस्त्र खड़ी हुई थी। उसके बाल भीगे हुए थे और शरीर जैसे गलने ही वाला हो। उस तरफ़ रोशनी न के बराबर ही थी, अतः ठीक से देख पाना मुश्किल था। लड़कीं का चेहरा- मोहरा भी दिखाई नहीं पड़ रहा था।

रिनी आदि को झकझोरते हुए- आदि ! खाना टेबल पर लग गया है, अब और किस चीज़ की आस में किचन की ओर आंखे फाड़े देख रहे हो..?"

"आदि हकलाते हुए"- वो..वहाँ.....ल..ल..लड़की....

आर्यन हँसते हुए- लो जी एक औऱ बीमार आ गए। 'एक अनार दो बीमार'

हा! हा!हा!

आर्यन की बात सुनकर डायनिग हॉल ठहाकों से गूंज उठा। रौनक़ का चेहरा शर्म से लाल हो रहा था और आदि का डर के मारे खून सुख रहा था।

दरवाज़े के पास अब भी खड़ी वह लड़की आदि के लिए रहस्य बनी हुई थी क्योंकि उसका चेहरा अब भी धुन्दला दिखाई दे रहा था। यह समझना भी मुश्किल ही था कि वह कोई जीवित लड़कीं है या भूत..?

'भूत' की कल्पना मात्र से ही आदि थरथर काँपने लगा। अन्य सभी सामान्य रूप से खाना खा रहे थे। लेकिन आदि की स्थिति असामान्य थी उसके हाथ इस कदर कपकपा रहे थे कि जब उसने छुरी औऱ काँटा उठाकर प्लेट में रखे पास्ता को खाना चाहा तो छुरी औऱ कांटे से प्लेट खड़खड़ा उठी।

रिनी हैरत से आदि के कपकपाते हुए हाथों को देखते हुए- यार ! आदि, इतनी ठंड भी नहीं है ! तेरे हाथ इतने क्यों कांप रहें ?

आर्यन मज़ाकिया लहज़े से- "ये इश्क़ के बुख़ार के लक्षण है।"

रश्मि हँसते हुए- "रौनक़ में तो ऐसे सिम्पटम्स दिखाई नहीं दिए..? लगता है रौनक़ पर लवेरिया का असर कुछ कम हुआ है।"

सभी लोग आदि की हालत को मज़ाक में ही ले रहे थे सिवाय सूर्या के। वह चुपचाप खाना खा रहा था। बीच -बीच में वह नज़र घुमाकर किचन के दरवाज़े की तरफ़ भी देख रहा था।

आदि ने अब उस तरफ़ देखना बन्द कर दिया था। उसने अपना पूरा ध्यान खाने की प्लेट पर केंद्रित कर दिया था।

बाकी लोग हँसी ठिठोली करते रहे।

जब सभी लोग खाना खा चुके तो अपने-अपने रूम की ओर जाने लगे।

सीढ़िया चढ़ते हुए रश्मि ज़ोर से चीखी। उसके चेहरे की रंगत फ़ीकी पड़ गई। वह पीछे की ओर खिसकी तभी उसका पैर फिसल गया। उसके पीछे चल रहे रौनक़ ने उसे संभालते हुए थाम लिया। रश्मि गिरने से तो बच गई पर अब भी डर से उसकी घिग्घी बंधी हुई थीं। वह कुछ भी कह सकने में असमर्थ थी।

रिनी, आदि, आर्यन औऱ सूर्या भी लगभग रौनक़ के पीछे ही चल रहे थे। वह सभी रश्मि को घेरे हुए खड़े हो गए। सभी एक ही सवाल पूछ रहे थे..

"क्या हुआ .."

आदि और सूर्या पहले से ही भयभीत थे। अब रश्मि की दशा ने उनके मन में संदेह पैदा कर दिया। उनका शक भी अब पुख्ता होने लगा था कि हो न हो इस होटल में कोई अदृश्य शक्ति है जिसे साफ़ तौर पर अब तक देखा तो नहीं है पर महसूस बार-बार कर रहे हैं।

सूर्या का मन जासूस बन गया और किसी प्रोफेशनल जासूस की माफ़िक मामले की तहकीकात करने लगा- "लगता है, रश्मि ने सीढ़ी पर भूत देख लिया है! अचानक हँसती- मुस्कुराती हुई वह ऐसे चीखी क्यों ?"

सूर्या का जासूस मन अनुमान लगा ही रहा था कि उस पर विराम रश्मि की बात ने लगा दिया।

रश्मि जब सामान्य हो गई तो बोली- "छिपकली...."

पीछे से बूढ़े बाबा की आवाज आई...

"जंगल के कारण कीट-पतंगे आ जाते है और उन्हीं को अपना भोजन बना लेती है ये छिपकलियां। आप लोग डरे नहीं इनसे।"

कौन थी वह लड़की जिसे आदि ने देखा था..? जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।

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