Wo Band Darwaza - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

वो बंद दरवाजा - 11

भाग- 11

अब तक आपने पढ़ा कि रश्मि को सीढ़ी पर छिपकली दिखाई देतीं और वह डर जाती है।

रश्मि छिपकली से ही डरी थी, यह बात सूर्या के गले से नहीं उतर रही थीं। वह तो अब भी यही मान रहा था कि जरूर रश्मि ने कुछ अजीब देखा या महसूस किया है लेकिन बता नहीं रही है।

वहीं आदि भी ठीक सूर्या की तरह ही कल्पना के जहाज पर सवार था। उसके जहन से अब तक वह रहस्यमयी लड़की गई नहीं थीं।

आदि मन ही मन कल्पनाओं की कड़ी जोड़ते हुए- " कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि वह लड़की रश्मि को भी दिखी हो..? आदि का मन ही उसके सन्देह पर प्रश्न करता हुआ- "यदि उसे भी वह लड़कीं दिखी थी तो फिर वह इतनी बड़ी बात बताती। बात को छिपकली के बहाने न छिपाती।"

आदि- "छिपकली से भी कोई इस कदर डरता है क्या ?"

आदि का मन- "जिसको डरना हो वह किसी से भी डर जाता है, फिर क्या छिपकली क्या भूत ?"

आदि अपने ही मन के साथ सवाल-जवाब में उलझा हुआ था। उसे यह भान भी नहीं रहा कि सभी लोग अपने-अपने कमरे में जा चूके है और वह अकेला ही सीढ़ी पर खड़ा हुआ है। उसकी तन्द्रा पानी की बूंदों की टपटप करती आवाज़ से टूटी। इधर-उधर नजर घुमाने पर आदि को रूह कंपा देने वाला खौफनाक दृश्य दिखाई दिया।

सीढ़ी के सबसे अंतिम पड़ाव पर वही रहस्यमयी लड़की खड़ी हुई आदि को टकटकी लगाए देख रही थी। इस बार उसका चेहरा साफ दिखाई दे रहा था। उसके शरीर से रिसती हुई पानी की बूंदे जब फर्श पर गिरती तो ऐसा जान पड़ता जैसे पानी की बूंदे फ़र्श से टकराकर दम तोड़ रहीं हो।

उस लड़की का शरीर झक सफ़ेद था। शरीर में खून का कतरा लेशमात्र भी न था। उसके पूरे शरीर पर कपड़े भी न के बराबर ही थे। बाल भी पानी से तरबतर थे। उसे देखकर यही लगता कि वह नहाते हुए ही आ गई हो।

आदि तो जैसे सम्मोहित हो गया। वह उस लड़की के पीछे चलता हुआ होटल के बैक साइड चला गया।

दुनियादारी से बेखबर अपनी ही धुन में रेल के डिब्बे सा उस लड़की के पीछे चलता हुआ आदि एक बन्द दरवाज़े के सामने रुक गया। इस तरफ़ घुप्प अंधेरा था। लड़की अब कही दिखाई नहीं दे रही थी। आदि उस बन्द दरवाज़े पर लगे धूल खा रहे ताले को एकटक देख रहा था। तभी उसे आहट सुनाई दी। उसे महसूस हुआ कि कोई उसके पीछे खड़ा हुआ है। डर मानो अब सांस लेने पर ऑक्सिजन के साथ ही अंदर चला गया और पूरे शरीर मे फैल गया। आदि का दिमाग तो जंग लगे लोहे की तरह हो गया था। दिमाग ने सूचना का आदान-प्रदान बन्द कर दिया। शरीर बेसुध सा हो गया था। अब यदि भूतपिशाच निकट भी आ जाएं तो आदि बूत बना यूँ खड़ा रहता।

आदि के कंधे पर जब किसी ने हाथ रखा तो आदि का शरीर सिर से पैर तक सिहर उठा। उसके मुँह से आवाज़ न निकल सकी। ऐसे समय ही दूर जंगल से सियारों के रोने की आवाज़ आने लगी। सियारों का रोना जैसे उल्लुओं व चमगादड़ों के लिए ख़तरे का अलर्ट था। उस बन्द दरवाज़े के उस तरफ़ क्या था यह तो आदि को नहीं पता पर उस तरफ़ से उल्लुओं की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी। चमगादड़ भी पँख फड़फड़ाते हुए इधर से उधर ऐसे चक्कर लगाने लगे मानो उस जगह का पहरा दे रहे हो।

यह सब कुछ इतना अधिक डरावना था कि आदि बिना कुछ सोचें समझें गिड़गिड़ाते हुए मिन्नते करने लगा, "प्लीज़ मुझें जाने दो...मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है..? मेरा पीछा छोड़ दो..तुम क्या चाहती हो..?"

बन्द दरवाज़े के पीछे की कहानी जानने के लिए बने रहिए 'वो बन्द दरवाज़ा' के साथ।

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