वो बंद दरवाजा - 8 Vaidehi Vaishnav द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वो बंद दरवाजा - 8

भाग- 8

अब तक आपने पढ़ा कि सभी दोस्त होटल के अंदर आ जाते हैं और वहाँ उन्हें दो लोग दिखते हैं।

रोमियों कहे जाने वाले रौनक पर उस अनजान लड़कीं का जादू इस कदर चला कि वह बिना किसी की परवाह किए हुए उस लड़की का पीछा करते हुए होटल की ऊपरी मंजिल की ओर चला गया।

सूर्या उसे जाते हुए देखता रह गया। वेटिंग एरिया में बैठी रिनी ने इशारे से पूछा -"क्या हुआ ?"

सूर्या कंधे उचकाकर- " पता नहीं, पर यह कन्फर्म है कि अब हम सभी को यहीं रात गुजारनी है।"

आर्यन सोफ़े से उठते हुए- "चलो भाई, अपने-अपने रूम पसन्द कर लो।"

आदि जो कि अब भी किसी गहरी चिंता में डूबा हुआ था, झट से ऐसे बोला मानो न कहता तो भारी नुकसान हो जाता-" न बाबा न ! मैं तो यहाँ रुकने वाला नहीं हूँ।"

रश्मि- "इस भयंकर घने जंगल में कहाँ भटकोगे...? बेहतर है हम सभी यहीं एकसाथ रहते हैं।"

आदि- "नहीं, मुझसे ये न हो पाएगा। कहकर आदि होटल से बाहर चला गया।"

सूर्या उसके पीछे जाने लगा तो रश्मि ने उसे रोकते हुए कहा- "जाने दो उसे ! दो-चार कदम अकेला चलेगा न तो नानी-दादी याद आएगी फिर भागा चला आएगा हमारे पास ही।"

सूर्या- "रश्मि, मुझें भी आदि की बात सही लग रही है। और यहाँ कुछ अजीब सी तरंग आ रही है। सिर भारी सा हुआ जा रहा है और उजाले के बाद भी रोशनी मद्धम सी लग रही है।"

रश्मि के कहने से पहले ही रिनी बीच में बोल पड़ी- " यह सब इसलिए महसूस हो रहा है क्योंकि सफर की थकान ने सिर ही नहीं पूरे शरीर को भारी कर दिया है। चलों रूम में चलकर शॉवर लेते हैं फिर पेट पूजा करेंगे।"

रश्मि- "सूर्या, रिनी बिल्कुल सही कह रही है। तुम ज़्यादा सोच विचार मत करों।"

सूर्या- "हमारे बैग्स तो गाड़ी में ही छूट गए। चलों मैं बैग औऱ आदि को लेकर आता हूँ। तुम लोग जाओ..."

सूर्या जेब से मोबाइल निकलता है औऱ कॉन्टेक्ट लिस्ट से आदि का नम्बर सर्च करके उस पर कॉल कर देता है। 

"आप जिस व्यक्ति से सम्पर्क करना चाहते हैं, वह अभी नेटवर्क कवरेज से बाहर है।"

यह सुनने के बाद सूर्या खीझकर होटल के बाहर निकल गया।

"आदि...आदि.." - पुकारते हुए सूर्या होटल से कुछ दूरी तक आ गया था।

यार कहाँ मर गया साले... अगर सुन रहा है तो मुँह से आवाज़ ही निकाल दें। वैसे ही डर के मारे मेरी तो जान हलक में आ रखी है। तू न सही कह रहा था। वो होटल मुझे भी ठीक नहीं लग रहा था। इसलिए मैं भी बहाने से निकल आया। अब हम दोनों साथ में कही सुरक्षित जगह देखकर गप्पे लड़ाते हुए रात गुजार लेंगे।

सूर्या बोलते ही जा रहा था, यह जाने बिना ही कि आदि उसे सुन भी रहा है या नहीं....

सूर्या ने ज़ोर से आवाज़ लगाई ।

"आदि...."

इस बार सूर्या को बदले में अपना नाम सुनाई दिया। उसी चिरपरिचित आवाज़ में जो गाड़ी में हवा का शोर सुनते समय सुनाई दी थी।

"सूर्या...."

सूर्या का पूरा शरीर सिहर उठा। उसके बढ़ते कदम यकायक ठहर गए। डर के मारे उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था मानो उछलकर बाहर आ जाएगा। पूरा शरीर सुन्न पड़ गया सिर्फ़ कान ही जाग्रत थे।

सूर्या के होश तब फाख्ता हो गए जब उसे अपने पीछे से किसी के आने की आहट सुनाई दी। आहट अगर साधारण होती तो कोई डर नहीं था पर क़दमों की थाप के साथ घुघरूओं कि छन-छन वीरान जंगल की चारों दिशा में गूंजती हुई सूर्या के मन को और अधिक खौफजदा कर रही थी।

तभी किसी ने सूर्या के कंधे पर हाथ रखा औऱ डर से हाथी सा चिंघाड़ता हुआ सूर्या ऐसा चीखा कि उसकी चीख़ सुनसान वातावरण में गूँज उठी।

कौन हैं जिसने सूर्या के कंधे पर हाथ रखा ? जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहें।