Mujahida - Hakk ki Jung - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 16

भाग 16
वह और शमायरा पूरा दिन साथ रहते थे। अक्सर शमायरा रात को उसके घर पर रूक जाती या वह शमायरा के घर पर। पूरी रात वह अपने शौहर की बातें ही करती। उनकी पसंद-नपसंद, उनके शौक, उनके घर और न जाने क्या-क्या? इसके अलावा वह बाकी सब भूल गयी थी। उसे इतना भी याद नही था कि वह हमारे साथ है।
उसने उसे वह सभी गिफ्ट दिखाये थे जो उसका शौहर उसे भेजता रहता था। एक बार उसने एक पैकेट को सबसे छुपा कर हमें अकेले में दिखाया था। वह उसका हाथ पकड़ कर खींचते हुये अपने कमरें में ले गयी थी। उस वक्त उसका चेहरा बता रहा था वह बहुत खुश है। उसे दिखाने से पहले उसके कमरें का दरवाजा उढ़का दिया था। बड़े ही लजा़ कर उसने उस पैकेट को खोला, जिसे देखते ही वह भी लजा गयी थी और मुँह से निकल पड़ा था- "हाय अल्लाह! ये..?" फिर उसका गाल पकड़ कर कहती- " ओये...होये...कितना रोमांटिक है तेरा शौहर ? बड़ी नसीबों वाली है तू जो इतनी मोहब्बत करने वाला शौहर मिला है।" पहले तो दोनों एक दूसरे के गले लग गयीं थीं फिर उसने शमायरा को खूब छेड़ा था और ऐसी बातें भी की थी जिसे किसी दूसरे के सुनने का डर था। उसने एक कुशन उठा कर शमायरा को खूब मारा था और वह हँस-हँस के लोट-पोट हो गयी थी। कितना धीमें-धीमें हँसे थे वो लोग? दिल में ख़जालत भी थी और उन बातों को बार-बार करने की चाहत भी।
उसमें गहरे सुर्ख रंग की एक रेशमी नाइटी थी। जो मलमल के कपड़े जैसी मुलायम थी। जिसे पहन कर आधे से ज्यादा जिस्म खुला ही रहेगा। छूने से ही हाथों पर चिपक रही थी जैसे हाथों में घुल रही हो, तो पहनने पर लगेगा ही नही कि कुछ पहना भी है? जिसे दिखाते वक्त उसका चेहरे का रंग भी सुर्ख हो गया था बिल्कुल उस नाइटी के माफिक ही। वह भी बिल्कुल वैसे ही ख्याब बुनने लगी थी।
कभी-कभी फिज़ा को उसके इकबाल से जलन होने लगती थी। वह सोचने लगी थी काश! उसकी जिन्दगी में भी इतना रोमांस करने वाला शौहर आयेगा या नही? उसे लगता शमायरा कितनी खुशनसीब है? और हम? पता नही कैसा शौहर होगा हमारे नसीब में? फिज़ा को एक तरफ तो जलन होती थी मगर अगले ही लम्हें में उसे लगने लगता -'ये क्या सोच रही है वो? अपनी ही सहेली से जल रही है? नही-नही..ऐसा नही हो सकता। शमायरा को वह जान से ज्यादा चाहती है और शमायरा भी उसे। फिर वह क्यों ऐसा सोच रही है? ऐसी बातें क्यों उसके जहन में आ रही हैं? नही..फिज़ा इतनी खुदगर्ज नही हो सकती। वो अपनी शमायरा के लिये कुछ भी कर सकती है। उसके अन्दर तमाम सवाल -जवाब मथते रहते और वह खुद ही सही गलत का फैसला कर लेती। ऐसा सिर्फ उसी के साथ नही हो रहा था, ये तो इन्सानी फितरत है। कभी जलन, बेसब्री, कभी अपनापन और कभी किसी के लिये कुछ भी कर गुजरने का जज़बा। आखिर में जीत उसी अहसास की होती है जो ज्यादा मजबूत होता है।

अब सारा दिन शमायरा को एक ही काम रह गया था, बस रात-दिन रियाज़ की बातें करना। उसकी जिन्दगी को , उसकी सोच को और खुद उसको बदलते हुये देखा था उसने। वैसे जब शमायरा रियाज़ की बातें करती थी तो उसे भी वह सब सुनना अच्छा लगता था। उसने भी अपने लिये एक जन्नती दुनिया बसा ली थी। जहाँ से वह उस सुहाने सफर पर निकल जाती थी और वह भी शमायरा के माफिक खोई-खोई सी रहने लगी थी।
उसने सबसे पहले अपने निकाह की खबर शमायरा को ही दी थी। वह तो खुशी से उछलने लगी थी। उसने फिज़ा को खूब छेड़ा था। फोन पर ठिठोली भी की थी। उसका ये सब करना फिज़ा को बहुत अच्छा लगा था। एक शमायरा ही थी जो उसकी सबसे अच्छी सहेली थी जिससे वह दिल की हर बात बेझिझक कर लेती थी। मगर अफसोस कि वह निकाह में शामिल नही हो सकती थी। डाक्टर ने उसे पूरी तरह से बैड रैस्ट करने को कहा था। उसके पलंग के पैरों की तरफ का हिस्सा थोड़ा ऊँचा करवा दिया गया था। ज्यादा चलने-फिरने पर भी पाबंदी थी और खाने-पीने का भी परहेज था। शमायरा हामिला थी अल्ट्रासाउंड से पता लगा था कि बच्चा नीचे की तरफ है। इसीलिये डाक्टर को ये सब करना जरुरी था।
शमायरा ने फिज़ा से वायदा लिया था कि वह निकाह में शरीक तो नही हो सकती मगर पूरा निकाह देख तो सकती है। निकाह पढ़ने तक वह वी.डी.ओ. चैट के जरिये उसे सब दिखाती रहेगी। बुझे मन से उसने हामी भर दी थी। चूकिं फिज़ा को उसकी तबियत की नासाज़ी से बहुत बड़ा झटका लगा था। उसने कभी नही सोचा था कि उसकी सबसे करीबी सहेली उसकी शादी में शरीक नही हो पायेगी और उसे उसके बगैर ही शादी करनी पड़ेगी। लेकिन अल्लाह की मर्जी के आगे किसकी चली है?

देखते-देखते शादी की तारीख़ नजदीक आने लगी थी। शादी की तैयारियाँ जोर शोर से चल रही थी। अमान भी कुछ दिन की छुट्टी लेकर आ गया था। घर में रौनकें बढ़ गयी थी। चहल-पहल देख कर दूर से ही अन्दाजा लगाया जा सकता था कि यह शादी ब्याह वाला घर है। खान साहब ने दीवारों और दरवाजों पर नया पेन्ट करवाया था। इस बार सभी डिजाइनर वाल थीं। कुछ पुराना फर्नीचर भी हटाया गया था। घर बिल्कुल नये लुक में तबदील हो गया था। वैसे तो दावतें-वलीमा के लिये शहर का सबसे शानदार बैंकट लान बुक किया गया था। मगर मेहमानों का आना-जाना तो घर में भी लगा रहेगा और ये एक बहाना भी था इन्टीरियर बदलने का। यही सोच कर काम घर की साग सफाई और इन्टीरियर का काम एक महीने पहले ही शुरू कर दिया गया था।
बनारसी लहँगे, शिफान पर जरी की कढ़ाई वाले सूठ और शाटन के गोटा किनारी लगे शरारे सब कुछ फिज़ा ने अपनी पसंद का लिया गयाथा। हाँ जे़वर जरुर शबीना की जिम्मेदारी थी जिसमें फिज़ा की जरा भी दखलअंदाजी नही थी। उसकी बजह ये भी थी कि उसको इस बाबत कोई जानकारी नही थी और न ही कोई खास शौक ही था। उसे तो बस अपने ख्याबों का शहजादा चाहिये था।सारी खरीदारी पर खान साहब ने किसी भी तरह की कोई रोक-टोक नही लगाई। उन्होने साफ कह दिया था पैसे देख कर कपड़े खरीदने की कोई जरूरत नही, जो भी चीज पसंद आ जाये बेझिझक खरीद लो। दिल मारने की जरुरत नही।
आरिज़ और उसके वालदेन बगैहरा के कपड़े लत्ते का कैश मुमताज खान ने उन्हे पहले ही दे दिया था ताकि वह लोग अपने मुताबिक़ खरीदारी कर सकें। वह जानते थे अक्सर ऐसा होता है जब जहेज़ पसंद न आने पर पूरे खानदान को ताने सुनने पड़ते हैं। इसलिये वह नही चाहते थे कोई भी गिला- शिकवा, शिकायत का मौका दिया जाये।
हर वालदेन चाहते हैं कि वह दुनिया के सबसे उम्दा वालदेन साबित हों और उनकी रानी बेटी राज रहे। यही उन्होने भी किया था, तो कोई बुराई नही थी। बेशक जहेज़ देना और लेना दोनों ही कानूनी तौर पर गुनाह है मगर दुनियावी नजर में यह आपके रसूख का हिस्सा होता है। भले ही जुवान से कोई भी कुछ न माँगे फिर भी चाहत सभी की होती है कि उनकी आने वाली दुल्हन उतना जहेज़ लाये जितना उनके पेट में न समाये और वह अपनी शानोशौकत बढ़ा सकें। सिर उठा कर दूसरे की दौलत पर ऐश कर सकें।
फिज़ा जितनी भी खरीदारी करती थी सारा का सारा सामान वह शमायरा को जरुर दिखाती थी। कभी तस्वीरें खीचं कर वाटस एप के जरिये भेजी जातीं तो कभी वी.डी.ओ. चैट से सारा जहेज़ का सामान उसे दिखाया जाता। इस वक्त उसे शमायरा की तल्खी बहुत खल रही थी।
आज नुसरत जब घर में घुसीं तो बड़ा इतरा रही थीं। यह जताने की कोशिश कर रही थीं, कि उसकी बजह से ही फिज़ा को इतना बेहतरीन रिश्ता मिला है। वैसे तो वह यह कोशिश कई मर्तवा कर चुकी थीं। तारीफ की भूख कहें या गुमान, जो भी हो मगर रिश्तेदार जताने से नही चूकते। और फिर वह तो दोनों तरफ से थीं। एक तरफ देवर तो दूसरी तरफ फिज़ा, दोनों अपने ही थे। कौन जाने वह वहाँ भी अपनी शेखी बघारती हों। क्यों कि उन्हे भी फिज़ा की ज़हनीयत और खूबसूरती पर नाज़ था। खैर जो भी हो आखिर नुसरत थी तो इसी घर की लड़की, और फिर घुटना मुड़ता तो पेट को ही है। नुसरत भले ही ससुराल की तरफ खड़ी हो लेकिन उसकी जान मायके में ही बसती थी।
क्रमश:

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