जीवन सूत्र 548 ईश्वर हैं कण-कण से ब्रह्मांड तक
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-
अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम्।
भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च।(13/16)।
ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्।/(13/17)।
इसका अर्थ है:- परमात्मा स्वयं विभाग रहित होते हुए भी सम्पूर्ण प्राणियोंमें विभक्त की तरह स्थित हैं। वे जाननेयोग्य परमात्मा ही सम्पूर्ण प्राणियोंको उत्पन्न करनेवाले, उनका भरण-पोषण करनेवाले और संहार करनेवाले हैं।
जीवन सूत्र 549 सृष्टि के समस्त कार्यों में ईश्वर
वे ज्योतियों की भी ज्योति और अज्ञान तथा अंधकार से परे हैं।वे ज्ञानस्वरूप, ज्ञेय( जिन्हें जाना जा सकता है) और ज्ञान के द्वारा जानने योग्य (ज्ञानगम्य) हैं।वे सभी के हृदय में स्थित हैं।
ईश्वर इस सृष्टि और ब्रह्मांड की सर्वोच्च सत्ता हैं।वे अविभाज्य,संपूर्ण और एकाकार हैं।इसके बाद भी वे सृष्टि के कण-कण में हैं।हर व्यक्ति की आत्मा में स्वयं उपस्थित हैं।इतनी विराट संकल्पना का होने के बाद ईश्वर की हमारे जीवन में भूमिका के बारे में कोई संदेह नहीं रह जाता है।ईश्वर को साकार रूप में पूजने वाले हैं तो निराकार रूप में उनकी आराधना करने वाले लोग भी हैं।सेवाभावी व मृत्यु के मुख से लोगों को बाहर निकाल कर जीवन प्रदान करने वाले चिकित्सकों की लंबी परंपरा, ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति, जीवन रक्षक दवाइयों के आविष्कार,इलाज में नई तकनीकों के प्रयोग के बाद भी मनुष्य प्रयोगशाला में प्राणतत्व को निर्मित नहीं कर सका है।यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां उस परम तत्व की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है, जिसे उपनिषदों में 'नेति' 'नेति' अर्थात न इति न इति कहा गया है। यह मानव जीवन का सौभाग्य है कि इतने विराट स्वरूप वाले परमात्मा स्वयं एक अंश के रूप में मनुष्य के भीतर विराजमान होते हैं।ईश्वर को ज्योतियों की भी ज्योति कहा गया है,अर्थात यह सारा संसार उनसे प्रकाशित है।ज्योतियों को भी उनसे ही प्रकाश मिलता है।
जीवन सूत्र 550 ईश्वर अर्थात उनके स्मरण से ही प्रेरणा और ऊर्जा का संचार
मनुष्य ईश्वरीय शक्ति के स्वयं में एवं अपने आसपास इतनी सशक्त उपस्थिति के बाद भी कभी-कभी निराश हो उठता है। समाज में अनेक तरह की कमी,असुविधाओं और अनियमितताओं को देखने के बाद कभी-कभी उसका विश्वास ईश्वर से उठ जाता है।ईश्वर हैं इतने शक्तिशाली लेकिन मेरी मदद क्यों नहीं करते?यह प्रश्न मनुष्य के मन में अनेक बार उठता है,लेकिन ईश्वर यहां सभी प्राणियों को अर्जुन की ही तरह सबल बनाना चाहते हैं,मानो कहते हैं कि युद्ध लड़ना तुम्हारा काम है।तुम कर्म पथ पर हो और मैं केवल असाधारण स्थितियों में ही हस्तक्षेप करूंगा।पहले स्वयं की ज्योति को तो प्रज्वलित करो।
(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)
(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय