गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 168 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 168

जीवन सूत्र 516 सृजन के साथ-साथ निर्णायक विनाश में भी हैं ईश्वर

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-

कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो

 

लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।

 

ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे

 

येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।(11/32)

इसका अर्थ है:- अपना विराट रूप दिखाते हुए भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा- मैं लोको का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल हूं। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिए तत्पर हुआ हूं।प्रतिपक्षियों की सेना में स्थित जो योद्धा लोग हैं, वे सब तुम्हारे युद्ध न करने पर भी नहीं रहेंगे अर्थात इन सब का नाश हो जाएगा।

जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अमेरिकी परमाणु बम के निर्माण की परियोजना के वैज्ञानिक निदेशक थे। कहा जाता है कि उन्होंने परमाणु बम के एक प्रायोगिक परीक्षण के दौरान गीता के उक्त श्लोक को महसूस किया था। परमाणु बम के प्रयोग के समय यह महसूस होता है जैसे आसमान में हजारों सूर्य एक साथ चमक उठे हों और परमात्मा में भी ऐसी ही;बल्कि इससे कहीं अधिक,अपारशक्ति होती है।

यहां भगवान कृष्ण के कथन से

वर्तमानकाल की किसी परमाणु बम की विभीषिका से कोई भी तुलना उचित नहीं होगी। केवल यह स्मरण रखना सही होगा कि परमाणु बम के निर्माताओं को भी गीता के श्लोक और भगवान कृष्ण याद आते हैं। महाभारतकालीन ब्रह्मास्त्रों के प्रयोग से भी इसी तरह के महाविनाश के चित्रण उपलब्ध होते हैं ।अपने भयंकरतम रूप में विज्ञान अत्यंत विनाशकारी सिद्ध हो सकता है।

खतरनाक वैज्ञानिक प्रयोगों के दुष्परिणाम की ओर महान उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु ने भी अपने उपन्यास मैला आंचल में आगाह किया था।

वास्तव में प्रयोग केवल प्रयोगशाला में ही नहीं होते हैं।स्वयं जीवन प्रयोगों का दूसरा नाम है। इस पर मेरी एक कविता की कुछ पंक्तियां हैं:-

 

जीवन है

एक प्रयोगशाला

जिसमें करता है मनुष्य

प्रयोग तरह-तरह के,

बनाने अपना जीवन

सुखी, शांत और सफल

लेकिन

यहां होते हैं उसके प्रयोग

कई बार असफल

और

रसायनों के मिश्रण से

नहीं तैयार होते

जीवन की समस्याओं के हल;

और हर बार

परिणाम में नहीं मिलते

पहले से तय यौगिक और मिश्रण; इसीलिए

करनी होती है मेहनत, सतत उसे

कि तय यौगिकों

से इतर भी

बनाए जा सकें

अनेक नए यौगिक

सफलता,सुख-शांति और समृद्धि के,

अपनी प्रतिभा,श्रम और बुद्धि से;

इसलिए

जीवन की प्रयोगशाला में

चलते रहते हैं

प्रयोग अनवरत

और

आखिर एक दिन,

जारी प्रयोगों में

प्रेम,सद्भावना और ईश्वरकृपा

के रसायनों के मिश्रण से

तैयार हो ही जाता है,

यौगिक

सफलता का।



(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय