जीवन सूत्र 491 अच्छे कर्मों के फल मिलेंगे
आज नहीं तो कल मिलेंगे
अभ्यास से व वैराग्य से चित्त के विक्षोभ या चंचलता को रोका जा सकता है।
इसका लाभ बताते हुए भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि जिस व्यक्ति ने अपने मन को वश में कर लिया है ऐसे साधक द्वारा योग को प्राप्त होना सरल है। अगर जिसका मन अपने वश में नहीं है उसके लिए योग मार्ग कठिनाई से प्राप्त होने वाला है।
शिव सूत्र 492 योग नहीं है केवल शारीरिक अभ्यास
अर्जुन सोचने लगे, तो प्राणायाम और योग के अभ्यास के लिए मन पर नियंत्रण रखना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा यह केवल शारीरिक अभ्यास बनकर रह जाएगा। अर्जुन के मन में एक और प्रश्न उठा।
सूत्र 493 योग का अंतिम चरण आनंद महासमाधि
वे सोचने लगे कि क्या योग साधना तभी सफल मानी जाएगी जब साधक इसके अंतिम लक्ष्य अर्थात समाधि और फिर उस परमात्मा तत्व की अनुभूति के आनंद को प्राप्त कर ले।अगर मनुष्य वहां तक नहीं पहुंचा तब तो सारी साधना व्यर्थ हो गई। उन्होंने श्रीकृष्ण की ओर देखते हुए कहा।
जीवन सूत्र 494 श्रद्धा के साथ संयम और अभ्यास भी आवश्यक
अर्जुन: प्रभु ऐसी स्थिति में क्या होगा अगर कोई योग मार्ग में श्रद्धा रखता है लेकिन संयम का पालन नहीं कर पाया और योग मार्ग में थोड़ा आगे बढ़ने के बाद वह विचलित हो गया। क्या ऐसे में वह अपना सब कुछ खो देगा?अगर ऐसा हुआ तब तो कोई इस मार्ग पर कदम रखने में संकोच करेगा।
श्री कृष्ण: ऐसी स्थिति में भी मार्ग है अर्जुन!
अर्जुन: जी भगवन! अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह साधक जो ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में चलने के दौरान मोहग्रस्त हो गया है। उसे अपना कोई आश्रय दिखाई नहीं दे रहा है। क्या ऐसा साधक छिन्न-भिन्न बादल की भांति नष्ट - भ्रष्ट हो जाता है? कृपया इस संशय की स्थिति में आप मार्गदर्शन करें क्योंकि आप ही इस संशय को दूर करने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं।
भगवान कृष्ण यह समझ रहे थे कि अर्जुन ने ऐसा प्रश्न क्यों किया है। जिस आत्म दृढ़ता के मार्ग पर अर्जुन चल रहे थे उसमें महाभारत युद्ध शुरू होने के ठीक पूर्व डांवाडोल की स्थिति बन गई। यहां अर्जुन के मन में निर्णायक स्थिति में मार्ग परिवर्तन और पहले के सारे कर्मों के लेखे- जोखे को लेकर अनेक प्रश्न उमड़ - घुमड़ रहे थे।
श्री कृष्ण ने अर्जुन के सिर पर स्नेह से हाथ रखते हुए कहा।
जीवन सूत्र 495 अभी फल ना मिले तो सत्कर्म आगे के लिए संचित रहते हैं
श्री कृष्ण: अर्जुन योग और कर्म के पथ पर आगे बढ़ चुके साधक के संबंध में तुमने अच्छा प्रश्न किया है।अगर वह आत्मउद्धार के अपने साधना पथ और कर्तव्य मार्ग में पूरी तरह सफल नहीं हो पाया तो भी लोक में उसके सद्कर्म नष्ट नहीं होते। इस जन्म के पार आगे की यात्रा में भी वह दुर्गति को प्राप्त नहीं होता।उसके कर्म के फल सुरक्षित और संचित रहते हैं।अच्छे कर्मों का कभी न कभी फल मिलता ही है। तत्काल नहीं तो कभी और।
आज का प्रसंग गीता के अध्याय 6 श्लोक 36 में श्री कृष्ण की वाणी और श्लोक 37 से 39 में अर्जुन के प्रश्न और भगवान श्री कृष्ण द्वारा निम्नलिखित 40 वें श्लोक में दिए गए समाधान पर आधारित है:-
पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते ।
न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ॥(6/40)
हे पार्थ! उस पुरुष का न तो इस लोक में नाश होता है और न परलोक में ही।हे प्रिय, आत्म के उद्धार के लिए अर्थात भगवान की प्राप्ति के लिए कर्म करने वाला कोई भी मनुष्य दुर्गति को प्राप्त नहीं होता।
(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)
(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय