गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 153 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 153


जीवन सूत्र 451 लक्ष्य प्राप्ति में हड़बड़ी न करें


शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया।

आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत्।।6.25।।

इसका अर्थ है:-शनै: शनै: धैर्ययुक्त बुद्धि के द्वारा योगी संसार से उपरामता (विरक्ति) को प्राप्त करे।मन को परमात्मा में स्थित करके फिर अन्य कुछ भी चिन्तन न करे।

भगवान कृष्ण की इस दिव्य वाणी से हम कार्य को धीरे-धीरे धैर्ययुक्त बुद्धि से संपन्न करने को एक सूत्र के रूप में लेते हैं।


जीवन सूत्र 452 सफलता का शॉर्टकट नहीं होता है



सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता और बात अगर साधना के द्वारा ईश्वर से साक्षात्कार की ओर कदम बढ़ाने की हो,तब तो एक-एक कदम फूंक-फूंककर चलने की जरूरत होती है। यहां केवल बटन दबाया और बिजली का बल्ब प्रकाशित हो गया,ऐसी बात बिल्कुल नहीं है।


जीवन सूत्र 453 परिश्रम से पहुंचा जाता है शीर्ष पर



सार्वजनिक जीवन में हम जिन लोगों को सफलता के शिखर पर देखते हैं,वास्तव में उन लोगों ने एक सुदीर्घ साधना की हुई होती है और तब जाकर उन्हें अपनी मेहनत का उचित फल फल मिलता है।


जीवन सूत्र 454 लक्ष्य से अधिक पथ में है आनंद


हालांकि यह अलग बात है कि लोग अगर शुरुआत किसी कामना से भी करें तो एक दिन साधना के पथ पर धीरे-धीरे आगे बढ़ते- बढ़ते कुछ प्राप्त कर लेने का लक्ष्य गौण हो जाता है और साधना पथ का जो आनंद है वह सर्वोपरि हो जाता है।

सफलता के लिए आवश्यक होता है कड़ी मेहनत,दृढ़ संकल्प,कार्य में एकाग्रता और दुनिया के आकर्षणों के प्रति उदासीनता। अगर बिना मेहनत के अनायास कोई सफलता प्राप्त हो रही है तो इसमें बड़ा हाथ भाग्य का होता है और ऐसी सफलता सिर्फ क्षणिक होती है।


जीवन सूत्र 455 सफलता को बनाए रखना अधिक जरूरी है


बिना पर्याप्त योग्यता अर्जित किए सफल हो जाना एक तरह से भविष्य के लिए खतरे लिए होता है क्योंकि ऐसी सफलता को बर्दाश्त कर पाना भी सबके वश की बात नहीं होती है। साथ ही यह भी सच है कि सफल हो जाना तो ठीक है लेकिन उस सफलता को बनाए रखना उतना ही कठिन है ,इसलिए अभ्यास की आवश्यकता जीवन पथ के हर पग पर है।





(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय