जीवन सूत्र 446 योग को बना लें अपनी जीवनशैली
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है:-
तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम्।
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा।(6/23)।
इसका अर्थ है:-जिसमें दुःखों के संयोग का ही वियोग है तथा जिसका नाम योग है,उसको जानना चाहिए।यह योग न उकताए हुए अर्थात धैर्य और उत्साहयुक्त चित्त से निश्चयपूर्वक करना चाहिए।
भगवान कृष्ण की इस दिव्य वाणी से हम योग के महत्व और इसे निश्चयपूर्वक करने की आवश्यकता को एक सूत्र के रूप में लेते हैं।
जीवन सूत्र 447 आधुनिक समस्याओं का हल योग में
आज जब मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता, इम्यूनिटी आदि को बढ़ाने की बातें होती हैं,तो स्वस्थ रहने के लिए सर्वप्रथम हमारा ध्यान जाता है,भारत की परंपरागत योग और प्राणायाम की पद्धति की ओर।वैसे योग है भी वैयक्तिक कल्याण और आत्म उन्नति की एक बेहतर तरकीब।योग का अर्थ है जोड़ना।योग केवल कुछ आसन या प्राणायाम का ही नाम नहीं है बल्कि यह स्वयं को स्वयं से जोड़ने की प्रक्रिया है और इसका विस्तार परमात्मा से स्वयं को जोड़ना है।
जीवन सूत्र 448 योग में है वसुधैव कुटुंबकम का संदेश
अपने व्यापक परिप्रेक्ष्य में योग हमें पूरे विश्व को वसुधैव कुटुंबकम की भावना से देखना सिखाता है।योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः अर्थात चित्त की वृत्तियों पर नियंत्रण ही योग है।पतंजलि ऋषि ने अष्टांग योग की अवधारणा हमें दी है। इसके अंतर्गत यम,नियम,आसन,प्राणायाम, प्रत्याहार,धारणा,ध्यान और समाधि शामिल हैं।
जीवन सूत्र 449 एक झटके में ना करें योग
योग एक झटके में की जाने वाली प्रक्रिया नहीं है।यह निरंतर साधना और सतत अभ्यास से ही हासिल हो सकता है।ध्यान भी कोई पलक झपकते ही लग जाने वाली प्रक्रिया नहीं है। पहले हम स्थिर होकर आसन में बैठें।मौन रहकर आत्मा की अतल गहराइयों में उतरने का अभ्यास करें और धीरे-धीरे कई दिनों और संभवतःकई महीनों के अभ्यास के बाद मनुष्य 5 मिनट तक ध्यान लगाने का अभ्यास कर सकता है।भागदौड़ भरे आधुनिक जीवन के तनाव,क्रोध चिंता आदि से मुक्ति पाने के लिए योग के अंतर्गत ध्यान एक अत्यंत प्रभावी उपकरण है। प्राणायाम का अर्थ है- प्राण का आयाम अर्थात प्राण वायु का विस्तार ।
जीवन सूत्र 450 श्वास प्रश्वास की गति पर करें नियंत्रण
यह प्राणवायु श्वास-प्रश्वास की गति के उचित नियंत्रण के माध्यम से हमारे शरीर के प्रत्येक अंग की कोशिकाओं तक पहुंचती है।यह हमारे शरीर के लिए स्वास्थ्य की दृष्टि से विशेष लाभदायक है।भस्त्रिका, कपालभाति,अनुलोम-विलोम प्राणायाम,भ्रामरी आदि कुछ ऐसे प्राणायाम हैं,जिन्हें नियमित आधार पर किया जाना चाहिए।
स्वास्थ्य की दृष्टि से आसनों का भी विशेष महत्व है। हमारे प्राचीन ऋषि-मनीषियों ने ऐसे अनेक आसन विकसित किए हैं जो विशेष रोगों में भी लाभदायक हैं।हां इन आसनों के चुनने में भी सावधानी बरतनी चाहिए और इनका अभ्यास उचित प्रकार से ही किया जाना चाहिए अन्यथा ये फायदेमंद के बदले नुकसानदेह हो सकते हैं।अगर दिन की शुरुआत में ही चंद मिनटों के योगासन और प्राणायाम को अपना लिया जाए तो हम दिन भर स्फूर्तिमान बने रह सकते हैं। भगवान कृष्ण ने भी कहा है- योगः कर्मसु कौशलम् ।आइए हम सब योग से जुड़ें और विश्व मानव बनने की प्रक्रिया में अपना योगदान दें।
(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)
(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय