गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 149 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 149


जीवन सूत्र 434 योग से होंगे दूर दुख और कष्ट


भगवान कृष्ण ने जिस योग मार्ग का प्रतिपादन किया, उसे सामान्य व्यक्ति भी अभ्यास के माध्यम से प्राप्त कर सकता है। अति का निषेध होना चाहिए यह सूत्र वाक्य अर्जुन बचपन से ही सुनते आ रहे थे। आज भगवान श्री कृष्ण ने अपनी वाणी से इसे और स्पष्ट कर दिया।यह योग न तो बहुत खाने वाले का, न बिलकुल न खाने वाले का, न बहुत शयन करने के स्वभाव वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है।

अर्जुन ने कहा," तो इसका अर्थ यह है भगवन कि योग की सफलता के लिए मानसिक प्रयत्न के साथ-साथ शरीर की साधना भी आवश्यक है।"

श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा,"अवश्य! यह शरीर ही तो वह साधन है जिसके माध्यम से आत्म कल्याण के लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है….. यह योग उचित आहार-विहार करने वाले लोगों के लिए है…. यह योग संतुलित होकर कर्म करने वालों के लिए है….. इस योग में वह शक्ति है कि मनुष्य को दुखों से छुटकारा दिला दे।"

पांडव राजकुमार होने के नाते अर्जुन ने हस्तिनापुर आने वाले अनेक ऋषियों से योग की शक्ति का अनुभव किया था।स्वयं गुरु द्रोणाचार्य से पांडवों का परिचय एक कुएं में पड़ी गेंद को अपनी धनुर्विद्या से बाहर निकाल कर किया था। अर्जुन इस तेजस्वी तपस्वी को देखकर पहले ही समझ गए थे कि इनके पास योग से प्राप्त अनेक अलौकिक सिद्धियां हैं, तब ही इनकी धनुर्विद्या इतनी सटीक है।


जीवन सूत्र 435 योग से होता है दुखों का नाश

अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा, आपने योग को दुखों का नाश करने वाला कहा है। ऐसा कैसे संभव है कि योग करने से लोगों के दुख दूर हो जाएंगे।

श्री कृष्ण: योग में दुखों को दूर करने की क्षमता है। सर्वप्रथम तो यह सुख और दुख की प्रचलित अवधारणा को ही बदल कर रख देता है। अगर भौतिक वस्तुओं को हमने सुख का मापदंड मान लिया तो इस धारणा में परिवर्तन आवश्यक है। योग इस दृष्टिकोण में परिवर्तन करता है। दूसरे यह दुख की संभावित स्थिति को अपने पुरुषार्थ से आने के पहले ही रोक देता है। तीसरे दुख के आ जाने पर यह इससे संतुलित होकर और संयत भाव से निकलने की सूझ भी प्रदान करता है।

आज का प्रसंग निम्नलिखित श्लोक पर आधारित था: -

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।

युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।(6/17)

अर्थात उस पुरुष के लिए योग दुखों को दूर करने वाला होता है, जो उपयुक्त आहार और विहार(दिनचर्या) वाला है,उचित उद्यम करने वाला है और यथायोग्य शयन और जागरण करने वाला है।

(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय