गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 121 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 121


जीवन सूत्र 301 सभी रास्ते एक ईश्वर तक जाते हैं


गीता में भगवान श्री कृष्ण ने वीर योद्धा अर्जुन से कहा है:-

सांख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः।

एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम्।।5/4।।

इसका अर्थ है, अज्ञानी लोग सांख्ययोग और कर्मयोगको अलग-अलग फल प्रदान करने वाले कहते हैं, न कि पण्डितजन; क्योंकि इन दोनों में से किसी एक माध्यम में भी अच्छी तरहसे स्थित मनुष्य दोनों के फलरूप में परमात्मा को प्राप्त कर लेता है।

गीता के प्रारंभिक अध्याय में ज्ञान और कर्म की अवधारणा पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और इस पांचवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्मयोग की श्रेष्ठता के संबंध में अपना अभिमत दिया है। भारतीय दर्शन की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह किसी एक मार्ग पर चलने को बाध्य नहीं करता।उपनिषद के उस प्रसिद्ध श्लोक की तरह जिसमें कहा गया है कि टेढ़े- मेढ़े और अलग-अलग रास्तों से चलते हुए भी नदियां आखिर उसी एक समुद्र तक पहुंचती हैं।


सूत्र 302 विचार थोपने के बदले अच्छी बातें बता कर सहमत करें



गीता के श्लोकों में भी ज्ञान, कर्म, भक्ति आदि की अवधारणाओं पर प्रकाश डालते हुए और सभी मार्गों की विशेषताओं से अर्जुन को परिचित कराते हुए भी भगवान श्री कृष्ण ने कोई एक बात दृढ़तापूर्वक उन पर थोपी नहीं है। मैं जो कह रहा हूं वही सत्य है या मैं जैसा कहता हूं, केवल वही करो के स्थान पर भगवान ने अपना व्यक्तिगत मत रखते हुए भी अर्जुन को किसी निर्णय पर पहुंचने के लिए अनेक विकल्प प्रदान किए।

गीता में प्रयुक्त होने वाले सांख्य शब्द का अर्थ ज्ञान से है,जिसकी परिणति सांसारिक कार्यों से संन्यास और ईश्वर से संयोग के रूप में होती है।


जीवन सूत्र 303 साधना के स्तर पर ऊपर उठना


ज्ञान का मार्ग अर्थात साधना के स्तर पर ऊपर उठते हुए अंततः सांसारिक बंधनों से पूर्णरूपेण मुक्त हो जाना और ईश्वर के संदेशों को समझ पाने और उनसे एकाकार होने की क्षमता को प्राप्त कर लेना।इसमें अध्ययन से लेकर यौगिक क्रियाओं और ध्यान-अभ्यास की साधना भी शामिल है।कुल मिलाकर ज्ञान को सरल शब्दों में कहा जाए तो वह है- ईश्वर के स्वरूप को जान लेना।सत्य को जान लेना।


जीवन सूत्र 304 ज्ञान को आचरण में उतारना भी जरूरी है



ईश्वर के स्वरूप को जानने के लिए केवल अध्ययन और पांडित्य प्राप्त करना पर्याप्त नहीं होता बल्कि उसे साथ-साथ आचरण में उतारना भी होता है।साथ-साथ विनम्र और विनीत भी बनना होता है अन्यथा अहंकार मनुष्य के पराभव की पृष्ठभूमि तैयार कर देता है।कर्मयोग का आचरण ज्ञानमार्ग की तुलना में हम जैसे साधारण साधकों के लिए अपेक्षाकृत सरल है,क्योंकि कर्म करते हुए भी अपनी सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और आचरण की पवित्रता के कारण ईश्वर की वही कृपा प्राप्त होती है।


जीवन सूत्र 305 हर फल को प्रसादतुल्य समझें


अगर हम कर्मों को अपने आराध्य की उपासना समझकर करें तो इसका फल,चाहे वह हमारे अनुकूल हो या प्रतिकूल हो,दीर्घकालिक उद्देश्य में हमारे उस आराध्य के प्रसादतुल्य ही होगा।मार्ग चाहे ज्ञान और संन्यास का हो या कर्म का; दोनों अपने अंतिम परिणाम में उस परमसत्ता को ही उपलब्ध कराते हैं।



(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय