जीवन सूत्र 114 115 116 भाग 80
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है: -
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान् मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।4/1।।
इसका अर्थ है,हे अर्जुन!मैंने इस अविनाशी योग को विवस्वान् (सूर्य)से कहा था।इसके बाद सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा।
जीवन सूत्र 114 सूर्य की शक्ति को स्वयं में करें महसूस
भगवान कृष्ण कहते हैं कि उन्होंने सबसे पहले इस योग को सूर्य देव से कहा था।यह हम सब जानते हैं कि सूर्य देव सृष्टि के प्रारंभ से ही विद्यमान है बल्कि यह कहना चाहिए कि सूर्य देव के साथ ही सृष्टि का क्रम शुरू हुआ।बिना सूर्य के हम कुछ नहीं हैं। प्रकाश के बिना धरती पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है और धरती ही क्यों सौर मंडल के अन्य सभी ग्रह, उपग्रह,क्षुद्र ग्रह सभी सूर्य की शक्ति से प्रभावित हैं।
भगवान कृष्ण द्वापर युग के आखिरी कालखंड में कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे।अतः यह विचारणीय प्रश्न उपस्थित होता है कि तब भगवान ने किस तरह लाखों वर्ष पूर्व यह योग मार्ग भगवान सूर्य को बताया होगा।गीता के अनेक श्लोक में भगवान कृष्ण स्वयं परमात्मा के रूप में उपदेश देते हैं। वहीं अनेक श्लोकों में वे एक परामर्शदाता,अर्जुन के शुभचिंतक और योग गुरु के रूप में अर्जुन को समझाते दिखाई देते हैं।जिन श्लोकों में वे भगवान की भूमिका में होते हैं,वहां वे अर्जुन के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए और उनके मत को दृढ़ करने के लिए अपने वास्तविक परमात्मा स्वरुप की घोषणा करते हैं।
वास्तव में भगवान कृष्ण यह बताना चाहते हैं कि युद्ध के शुरू होने के ठीक पूर्व प्रारंभिक श्लोक से उन्होंने अर्जुन को जो समझाना शुरू किया है,वह ज्ञान आदि काल से चला आ रहा है।सृष्टि के प्रारंभ में परमात्मा तत्व के द्वारा सर्वप्रथम सूर्य का निर्माण हुआ।
जीवन सूत्र 115 ज्ञान है प्रकाशयुक्त
अब जरा हम सोचें,अगर प्रथम योगी के समक्ष सूर्य का वह दिव्य प्रकाश नहीं होता तो क्या जीवन संभव होता या योग साधना की प्रथम सीढ़ी पर मानव कदम बढ़ा सकता था?बिल्कुल नहीं।योग साधना के सर्वोच्च चरणों में उसी प्रकाश तत्व के दर्शन होते हैं जैसे सूर्य चमक उठा हो।
जीवन सूत्र 116 अपने ज्ञान का अगली पीढ़ी में करें हस्तांतरण
ऐसी ही अवस्था में वैवस्वत मनु को प्रकाश तत्व अर्थात सूर्य से उस ज्ञान की पहले पहल अनुभूति हुई होगी और जिससे उन्होंने आगे की पीढ़ी में हस्तांतरित किया और जो एक अलग ही परिस्थिति में भगवान कृष्ण अर्जुन को प्रदान कर रहे थे। हम मनुष्य जब योग के मार्ग पर पहला चरण रखते हैं,तब हम भारत की उसी प्राचीन महान योग और दर्शन परंपरा के पथ पर स्वतः ही चलने को अपना भी पहला कदम रख रहे होते हैं।
(श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)
(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय