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आशीर्वाद

आशीर्वाद
रात देर से सोने के कारण सुबह आज आँख जरा सी देर से खुली, और खुली भी क्या बल्कि मोबाइल की घण्टी ने आँखे ज़बरदस्ती खोल दी। मन में खीज हो रही थी कि इतनी सुबह-सुबह कौन है जिसको खुद भी चैन नहीं है। आँखे मसलते हुए मैने मोबाइल उठाया और हैलो बोला, उधर से एक अनजानी सी आवाज आई और कहा आप संदेशजी बोल रहे हैं, मैंने हाँ में उत्तर दिया और पूछ लिया कि आप कौन बाल रही है ? उधर से एक लम्बी सांस लेने के साथ ही आवाज़ आई आप खुद ही पहचानिए। काफी सोचने के बाद भी मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यह फोन किसका है ? मैंने क्षमा मांगते हुए आग्रह किया कि मैं नहीं पहचान पा रहा हूँ आप स्वंय ही अपना परिचय दे दीजिए, चलिए कोई बात नहीं जब आप पहचान ही नहीं रहे हैं तो फिर बात क्या करनी है। उधर से फोन काट दिया गया। मैं बैठा सोचता रहा आखिर ये कौन हो सकती है जो इतनी सुबह-सुबह फोन भी कर रही है और अपना परिचय भी नहीं दे रही है। रह-रहकर जहन में एक ही सवाल आ रहा था आखिर ये कौन थी। पूरा दिन आज यही सवाल आता-जाता रहा लेकिन समझ नहीं आया कि आख़िर किसका फोन था। थककर मैंने यूंही छेड़ने वाला कॉल समझ उसे भूलना ही बेहतर समझा।
इस घटना को मैं लगभग भूल चुका था कि एक दिन दोपहर में फिर वहीं फोन कॉल आया लेकिन इस बार उसने मुझे पहचानने के लिए नहीं कहा बस यही कहा-संदेश तुम सब कुछ भूल चुके हो, यह सच भी है कि हमारे बीच ऐसा कोई रिश्ता या सम्बन्ध नहीं था जिसे तुम याद रख पाते, लेकिन मैं तुम्हें नहीं भूल पाई यह मैं नहीं जानती हूँ कि क्यों ? उस दिन के पहली वाली रात ही आपका पता मुझे फेसबुक से चला और तभी मैंने आगे सर्च किया, कोई कॉन्टेक्ट नम्बर भी नहीं डाल रखा था, खै़र इतने सारे फेसबुक फ्रेण्ड्स को देखकर मैंने सोचा कि तुम अब भी मिलनसार तो हो, बड़े ओहदे पर पहुंँचकर अंहकार तो नहीं आया है। तुम्हारे जिन दोस्तों के कॉन्टेक्ट नम्बर थे उन्हीं से लगातर सम्पर्क कर तुम्हारा नम्बर लिया था और बस मन में आया कि तुमसे बात करूं। सब कुछ सुनकर मैं फिर बोला लेकिन आप बोल कौन रही है ? सॉरी संदेश मैं यह बताना तो भूल ही गई थी कि मैं रागिनी हूँ कुछ याद है कोई बीस-बाईस साल पहले तुम मेरे पापा के जूनियर थे। मैं पापा के पास कभी-कभी तुम्हारे ऑफिस में आया करती थी। तुम एकदम सीधे-सादे आज्ञाकारी जूनियर की तरह खड़े रहते थे। धीरे-धीरे मुझे कुछ याद आने लगा। इसके आगे वो क्या कह रही थी मैं सुन ही नहीं रहा था बस सोच रहा था कि मैं रामरतनजी का जूनियर था। रामरतनजी बड़े वकील थे उनका खासा नाम था। मैं ख़यालों में खोता जा रहा था कि उधर से जोर से हैलो की आवाज़ आई इतनी तेज आवाज सुनकर मेरी तन्द्रा टूटी और मैं एक बार फिर से उससे बात करने लगा, जी - रागिनीजी कहिए आप कैसी है - वो जोर से बोली मैं तुम्हें तुम कहकर बुला रही हूँ और तुम कि रागिनीजी, आप कैसी है? खै़र, छोड़ो इन बातों को यह बताओ ज़िन्दगी कैसी चल रही है, भाभी कैसी है और तुम्हारे बच्चे कितने है। एक साथ ना जाने कितने सवाल दाग दिए उसने। मैं धीरे से बोला अच्छी है, दो बेटियाँ है, बड़ी वाली इंजिनियरिंग करके एम.बीए कर रही है और छोटी वाली एम.बी.बी.एस. कर रही है। आप बताइये आप क्या कर रही है - मै.......मैं क्या बताऊँ, संदेश, कुछ भी तो नहीं कर पाई। तुम्हारी नौकरी दूसरी जगह लग गई थी तुमने वकालत छोड़कर अच्छा ही किया। पापा के बारें में तो शायद तुम्हें मालुम नहीं होगा। मैं अचानक ही चौंक सा गया - क्यों क्या हुआ सर को। संदेश तुमने जब नौकरी ज्वॉईन की थी उसके कुछ महिनों के बाद ही पापा को पैरालाइटिक अटेक आया था। तुम्हें खूब याद करते थे, तुमने भी तो पहली नौकरी छोड़कर कहीं और नौकरी कर ली थी तुम्हारा कोई ठिकाना मालुम नहीं था। और एक दिन..............। उधर से रोने की आवाज आने लगी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैं क्या करूं। ख़ैर, वो बोली पापा के चले जाने के बाद तो जेसे मुसिबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा था। घर में कोई मर्द नहीं था, माँ तो जैसे गूंगी हो गई थी बस हम पाँच बहिने आपस में ही रोती रहती थी। हमारा क्या होगा। यही फिक्र सताती थी। माँ यह हादसा सहन नहीं कर पायी और कोई बीस दिन तक सदमें में रही और एक रात वो सोई तो फिर कभी नहीं उठी। चाचा-ताऊ ने हमारे मकान पर कब्जा कर लिया, पापा बहुत सीधे थे उन्होंने कभी भी अपने भाईयों को अलग नहीं समझा था - इसी कारण खुद के नाम पर कभी कोई जमीन ज़ायदाद नहीं ली थी बस जो कमाया वो भाईयों पर खर्च करते रहे। भाई उनके सीधेपन का फायदा उठाते रहे और अपना घर भरते रहे। जैसे ही वे गए उन्होंने हमें घर से निकाल दिया। इतनी बड़ी दुनियाँ में मैं अपनी चारों बहिनों को लेकर कहाँ जाऊँ ? गली-गली में जवान लड़कियों के लिए भूखे-भेड़ियों की कमी नहीं थी। बस हम पाँचों बहिने वो शहर छोड़कर दूर एक अनजाने से गाँव में चले गए जहाँ हम किसी को नहीं जानते थे और ना ही हमें कोई जानता था। मैंने लोगों के खेतों में काम करना शुरू कर दिया। उसीसे हमारा गुज़ारा चल रहा था। मैं बीच में ही बोला लेकिन आप तो डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही थी, जहाँ तक याद आ रहा है सर ने बताया था कि पी.एम.टी. पास कर लिया था। वो बोली हाँ संदेश यह सच है मैंने एम.बी.बी.एस. फस्ट ईयर पास कर लिया था लेकिन इन हादसों के कारण मैं अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई और बीच में ही छोड़कर बस यूँ ही हम पाँचों बहिने कभी इस गाँव तो कभी उस गाँव भटकने लगे। एक दो जगह मैंने एकाउण्ट्स का और दूसरी नौकरी भी की लेकिन सभी को मेरा काम नहीं बस मेरा शरीर चाहिए था। बुरा मत मानना धीरे-धीरे मुझें पुरूषों से ही नफ़रत हो गई। बहिने भी जैसे-जैसे बड़ी होती गई, अपने-अपने हिसाब से शादी करती गई। मैं बस उनको पालने-पोसने में और उनकी शादी करने में यह भूल गयी कि मेरी भी अपनी कोई चाहत है, मेरी भी अपनी कोई इच्छाएं है। वैसे भी अब इच्छाएं रह ही कहाँ गयी थी। सब कुछ तो पापा के साथ ही खत्म हो गया था। जो कुछ भी बचा था वो एक-एक कर बहिनों के जाने के कारण अकेलापन ही मेरा साथी बनता गया। बहिने भी अब तो इतनी खुदगर्ज़ हो गई है कि उन्हें अब मैं भी पराई सी लगती हूँ। तुम ही बताओं यदि मैं भी उसी समय किसी के साथ घर बसाकर इन चारों को अपने हाल पर छोड़ देती तो क्या होता ? सब लोग मुझें ही दोष देते ना। आज मैं एकदम अकेली हो गई हूँ। उनमें से एक भी यह नहीं सोचती कि हमारी दीदी कैसी होगी ? खै़र संदेश छोड़ो इन सब बातों को, मैं तुमसे एक रॉय लेना चाहती हूँ। मैंने कहा जी बोलिए। यूँ तो मैं तुम्हें अपना दोस्त समझकर रॉय मांग रही हूँ वैसे मैं बहुत ही ज़्यादा टेंशन में हूँ। मैं फिर बोला जी बोलिए आप यदि मुझे इस काबिल समझती है तो बताइये। संदेश मैं पहले भी कह चुकी हूँ कि मुझे आप मत बोलो वैसे भी मैं तुमसे उम्र में छोटी हूँ - उसकी इस बात पर मैं बोला अच्छा बाबा चलो बताओं क्या कहना चाहती हो।
वो थोड़ा सा संकोच कर रही थी लेकिन वो धीरे से बोली संदेश वैसे तो मेरी उम्र चालीस पार हो गई है, लेकिन अब मैं बिल्कुल अकेली रह गयी हूँ। क्या मुझे इस वक़्त शादी कर लेनी चाहिए ? सोचती हूँ लोग क्या कहेंगे। मैं कई दिनों से यह बात सोच रही थी लेकिन किससे रॉय लूं। चारों बहिनों से मैंने बात की थी। वो चारों ही मेरे से नाराज़ हो गई और एक ही सुर में कहा दीदी अपनी उम्र तो देखो। ये उम्र कोई शादी की है। शादी ही करनी थी तो पहले ही क्यों नहीं कर ली। अब तुम्ही बताओ पहले मैं शादी कैसे करती। और मैं शादी कर लेती तो फिर............। ख़ैर, अब उन चारों ने मेरे से बोलना बन्द कर दिया है। मेरा वो कोई फोन नहीं उठाती हैं। उस दिन सुबह मैंने यही रॉय लेने के लिए फोन किया था। मैं सोचने लगा क्या जवाब दूँ इसको। वैसे अकेले कब तक जीवन बिताएगी। चलो जब तक हाथ-पैर साथ दे रहे हैं तब तक तो ठीक है लेकिन बुढ़ापे में क्या होगा ? यही सोचकर मैंने कहा विवाह करने में तो कोई बुराई नहीं है, लेकिन आपकी उम्र का कोई व्यक्ति..........। वो बीच में ही बात काटते हुए बोली - हाँ संदेश एक व्यक्ति है, जिसे पिछले पन्द्रह बरसों से मैं जानती हूँ। उस व्यक्ति की पत्नी का देहान्त अभी सालभर पहले ही लम्बी बीमारी के बाद हो गया था। शादी का प्रस्ताव भी उसकी तरफ से ही आया था। उसके दो बच्चे हैं, वो सरकारी नौकरी में है, अच्छी तनख्वाह मिलती है, सबसे अच्छी बात यह है संदेश कि उसके बच्चे भी मुझे पसन्द करते है। मैं भी चाहती हूँ कि मुझे भी एक घर मिल जाए, बच्चे मिल जाएं और उन बच्चों को माँ।
सारी बातें सुनकर मैं बोला-रागिनीजी आपने बहुत ही अच्छा सोचा है, मेरे हिसाब से आपको यह शादी कर लेनी चाहिए। लेकिन संदेश मेरी चारों बहिने तो सख़्त ऐतराज़ कर रही हैं, वो कहती हैं एक तो विधुर ऊपर से दो बच्चों का बाप......समाज क्या कहेगा ? हमारा तो समाज में निकलना ही मुश्किल हो जाएगा। अब मैं क्या करूं। यही सोचकर मैं पिछले तीन महिनों से उनको कोई भी जवाब नहीं दे पा रही हूँ।
आज ही सुबह दोनों बच्चे मेरे पास आए थे, बच्चे भी अब थोड़े बड़े ही है, समझदार है। दोनों ही बच्चों ने आज खूब ज़िद की है कि आप हमारी मम्मी क्यों नहीं बनती है। इतना कहकर वो रोने लगी। इधर इतनी लम्बी बात चलते मेरे बॉस ने मुझे बुलाया। मैं रागिनी को सॉरी बोलकर बॉस के पास चला गया। दफ़्तर का सारा काम निपटाकर मैं घर के रास्ते में ही था कि रागिनी का फिर से फोन आ गया। इस बार वो बहुत ही सहज और संयत सी बोली- तो बताओ संदेश - तुम्हारी क्या रॉय है ? मुझे यह शादी करनी चाहिए या नहीं।
मैं बड़े सहज भाव से बोला- देखो व्यक्ति को वो काम करना चाहिए जो दिल को ठीक लगे। जिस काम के करने के बाद कोई टीस ना उभरे, कभी पछतावा ना हो। वो बोली इसीलिए तो मैं तुमसे सलाह ले रही हूँ। संदेश- यह सच है कि मुझे पुरूषों से नफ़रत सी हो गई थी लेकिन इस व्यक्ति से मुझे कभी भी नफ़रत नहीं रही और दूसरे तुम हो जिसे मैं...........। क्यों क्या हुआ रूक क्यों गई आप कहिए, अपनी बात पूरी कीजिए ना। नहीं संदेश अब नहीं वो बातें बाइस साल पीछे छूट चुकी है लेकिन आज भी मैं तुम्हें भुला नहीं पाई हूँ। मैं जानती हूँ कि तुम्हारी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं थी लेकिन मैं सचमुच..........। ख़ैर, अब छोड़ो जब तुम यह सलाह दे रहे हो तो अब बताओ क्या मेरी शादी में आओगे............? मेरे दोस्त बनकर , मेरे बड़े बनकर आशीर्वाद दोगे मुझे नई ज़िन्दगी की शुरुआत का ? मैं इस आशीर्वाद के लिए उसे मना नहीं कर पाया।

योगेश कानवा

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