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दहक

दहक

फेमिली कोर्ट का कमरा खचाखच भरा था । आज कुल दस केस की सुनवाई थी । इधर नीलोत्पल आखिरी कौशिश करना चाह रहा था अपनी गृृहस्थी को बचाने के लिए लेकिन नीलिमा टस से मस नहीं हो रही थी वो बस एक ही बात कह रही था मुझे तलाक चाहिस बस । नीलोत्पल उसे बार-बार दोनो बच्चियों की दुहाई दे रहा था । बार-बार रिक्वेस्ट कर रहा था कि वेा तलाक न ले उसे जिस तरह की भी आज़ादी चाहिए वो देने को तैयार है । उसे लग रहा था मानेा रिश्तों ज़मीन आज बांझ होती जा रही है । बंजर सी धरा पर सैकड़ों नागफनियों ने अपना सिंर उठाया है और इनके कंटीले दंश नीलोत्पल का वजूद ही ख़त्म कर देना चाहते हों । नीलिमा की नज़र में रिश्ता नपुंसक हो गया था जिसमें किसी तरह से भी वंशवृृद्वि की संभावना नहीं थी । उसे नपुंसक रिश्ते से कहीं गरमाहट नहीं मिल रही थी । वो सोचती थी ऐसे नपुंसक रिष्ते को कांधो पर ढोने से मन ,पीठ और कांधे ही लहुलुहान होंगे । इससे तो अच्छा है उतार फैंको रिश्तों की इस कंटीली जंजीर को और मुक्त गगन में विचरण करने दो उनमुक्त मन मन को । छोटी लड़की मां का साथ दे रही थी लेकिन बड़ी लड़की को अपनी मां से घिन्न हो गई थी । वो बार-बार उस मंज़र को भुलाने की कौशिश करती तो वो घटना उसे और शिद्दत से याद आती थी बल्कि यूं कहें कि सिनेमा की रील की तरह से उसकी आंखों के सामने आ जाती थी। बड़ी लड़की जूही पहले भी गली मौहल्ले में अपने कालेज में और पार्क गलियारे में कई बार दबी जुबान से अपनी मम्मी और शर्मा जी को लेकर बातें सुन चुकी थी । जूही एम.ए. फाइनल में पढ़ रही थी सब समझती थी उसकी भी शादी की चर्चा गाहे बगाहे चल ही जाती थी । एक आधबार तो लड़के वाले घर भी आए थे लेकिन पापा को जचा नही था इसलिए रिश्ता नहीं हो पाया था । आम तौर पर जूही अपनी कालेज से तीन बजे बाद ही आती थी । छोटी रूही का तो शाम तक पता ही नहीं होता था । जब भी उसे जूही समय से घर आने की बात कहती तो मम्मी हमेशा जूही को डांट देती थी खुद तो अपने बाप जैसी हो गयी किसी से मेल मुलाकात नहीं अब इसको भी अपने जैसा ही बनाना चाहती है । कई बार उसे मां की डांट भी इसी कारण पड़ी थी ।
आज कालेज में कोई क्लास नहीं थी सो उसने सोचा वापस घर चलती हूँ । दोपहर के कोई बाराह - साढ़े बारह बजे होंगे । वो घर आई घण्टी पर अंगुली रख ही रही थी कि उसे लगा दरवाजा खुला ही है वो धीरे से दरवाजा खोलकर अन्दर आ गई और मम्मी के कमरे की ओर यह बताने के लिए चली गई कि वो आज ज़ल्दी आ गई है कालेज मे क्लास नहीं थी । मम्मी के बेडरूम का परदा लगा था जैसे ही उसने परदा एक तरफ किया उसे देखकर चक्कर सा आने लगा वो दौड़कर अपने कमरे मे चली गयी । कमरा अन्दर से बन्द कर लिया और रोने लगी । विचारों के सैंकड़ो नाग उसके तन मन से लिपटते से जान पड़े जो घसीट रहे थे एक अंधी खाई में अपनी लपलपाती जीभ से उसे चाटते से । खुले मुंह मे विषदन्त साफ दिख रहे थे दो नुकीले से एक मां और दूसरा शर्मा अंकल । दोनो ही दांतों में इतना विष कि उसका पूरा परिवार विषमय हो जाएगा । रिश्तों के अदृृश्य शरीर को ढसते ये दन्त, बस कुछ ही पलों में रिश्तों का ये शरीर नीला पड़ने लगेगा, सांस धीमी होती जाएगी और --- और फिर धड़कन --- कौन सी घड़कन । मम्मी इस तरह से । उसे लगा धड़कन रिश्तों की नहीं अभी तो उसकी ही रूक जाएगी । उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था । सोचते सोचते उसके दिमाग की नसें फटने सी लगी थी वो औंधे मुंह बिसतर में पड़ गयी, रोती रही तभी उसकी मम्मी बाहर से दरवाजा पीट रही थी चिल्ला रही थी इतनी बड़ी ऊंट सी हो गई है ये भी तमीज नहीं कि मम्मी के बेडरूम में दरवाजा खटखटाकर आया जाता है । जूही ने दरवाज़ा नहीं खोला थक हारकर नीलिमा वापस चली गयी अब नीलिमा को लगा कि बात तो फैलेगी । शर्मा के साथ उसकी बड़ी बेटी ने उन दोनो को प्राकृृतिक अवस्था में देख लिया । अब क्या करे क्या ना करे । नीलिमा को लगा की ये लड़की भी उसके बाप के तरह ही नीलिमा की आज़ादी में बाधक है अगर दरवाला खोल देती तो आज उसका तो काम तमाम कर ही देती लेकिन नीलिमा ऐसा नहीं कर पायी जूही ने दरवाज़ा नहीं खोला । शाम हो आयी थी बाहर रोड़ लाहटे जल चुकी थी । जूही को नीलोत्पल की आवाज़ आयी उसे लगा कि पापा को सब बता दे लेकिन कैसे और क्या बताये । ये कि आज शर्मा अंकल और मम्मी बेडरूम में एकदम --- और कुछ कर रहे थे । अपने पापा से अपनी मम्मी के लिए कैसे बोलती वो लेकिन उसे आज अपनी मम्मी से पूरी तरह से नफ़रत हो गयी थी । वो धीरे-धीरे अपने कमरे से नीचे आयी और पापा के पास आकर चिपटकर बस रोने लगी । नीलिमा यह सब देखकर थोड़ा सा परेशान तो हुई लेकिन थोड़ा संभलकर बोली । अब क्या नया गुल खिलाकर आयी है दोपहर से दरवाज़ा नहीं खोल रही थी । जूही कुछ नहीं बोली बस सुबकती रही अपने पापा के सीने से लगी ।
नीलोत्पल कुछ भी समझ नहीं पाया था लेकिन वो बेटी के सर पर हाथ फेरता रहा । जूही थोड़ा सा संयत होकर मुंह धोकर पापा के लिए पानी का ग्लास लेकर आयी चाय बनाई पापा को बड़े ही प्यार से चाय लाकर दी । शाम के कोई साढ़े सात बजे होंगे तभी बाहर किसी कार के रूकने की आवाज़ आई जूही ने देखा कोई लड़का रूही को कार मे घर छोड़कर गया है जात-जाते रूही के गाल पर किस भी करके गया है । इतनी बेहयाई एक तो मम्मी पर गुस्सा आ रहा था ऊपर से यह रूही वो जोर से चीख पड़ी ये क्या तरीका है छोटी इतनी देर से घर आने का और वो लड़का कौन था । रूही अपनी मम्मी की ओर देखकर ज़ोर से चिल्लाई - व्हाट रबिश । इसके दिमाग में ना कचरा भरा पड़ा है । ही इज माय फ्रेण्ड रोहित --- अण्डरस्टेण्ड । ओर फिर जूही की तरफ होकर बोली समथिंग मोर वान यू आस्क माई ग्राण्डमोम । पैर पटकती रूही अपने कमरे मे चली गई । नीलोत्पल को भी रूही का इस तरह से देर से आना और इस प्रकार जूही से व्यवहार जचा नहीं सो गुस्से से बोले रूही --- वहाट्स राँग बिद यू, वेहर आर यूअर एटिकेटस
रूही भी उतनी ही तेज आवाज़ में बोती थी
-पापा डान्ट इन्टरफियर इन माइ पर्सनल लाइफ, एम फुली मैच्योर गर्ल एण्ड वन मोर थिंग एम एडल्ट नाऊ ।
कहती हुई वो ऊपर अपने कमरे मे चली गई नीलोत्पल की स्थिति ऐसी हो गई थी कि काटो तो खून नहीं । मैने ऐसा कौनसा पाप किया जा आज ये दिन देखना पड़ रहा है । आज पता लगा कि देह की दहक रिश्तों की महक को किस तरह बदमिजाज़ करती है । देह के दहकते अंगारों को रिश्तों की डोर बांध नहीं पा रही है बन्ल्कि वो तो इस आग में जलकर राख होती जा रही है । मां तो मां अब तो बेटी के भी कदम किसी और ही दिशा में जा रहे हैं अब क्या करूं, कैसे संभालूं इन सबको । नीलिमा ने रूही को भी बिल्कुल अपने जैसा ही बना लिया है भीतर का पुरूष जाग गया था आज, विद्रोह कर बैठा था अपने शान्त स्वभाव से - नीलोत्पल ज़ोर से चीखा नीलिमा ।
नीलिमा ने भी आवेश में ही जवाब दिया बहरी नहीं हूँ मैं सब सुनता है मुझे बोलो क्या बोलना है ।
-तुम ने रूही को इतनी छूट दे दी है कि आज वो अपने बाप से भी ------
-बाप बाबा आदम के ज़माने का हो तो कोई क्या करे और फिर मुझ पर क्यों चिल्ला रहे हो । वो अपनी ज़िन्दगी जीना चाह रही है तो ग़लत क्या है । आजकल अगर लड़की के दो चार बाॅय फ्रेण्ड नहीं हो तो । क्या सोशल स्टेट्स रह जाता है उसका । उसने मन ही मन सोचा इससे पहले कि जूही भाण्डा फोड़ दे मैं खुद ही नीलोत्पल को बोल देती हूँ, मौका भी है और ---- फिर वो बोली --
हाँ बोलो ना अब चुप क्यों हो । शर्माजी सही कहते हैं तुम एकदम आउट डेटेड हो । अभी उस दिन मुझे शर्माजी ने हाथ पकड़कर रोड़ क्रास क्या करवाया था तुम्हारी भ्रकुटियां ही तन गयी थी । खुद से तो कुछ होता जाता है नहीं कोई दूसरा मदद करे तो लांछन लगाते हो । शर्माजी का भला हो जो मुझ से मित्रता करली और -----
नीलोत्पल बोला चुप क्यों हो गई बोलोना ।
-हां हां क्या डरती हूँ शर्मा जी मेरे फ्रेण्ड हैं एण्ड आई हैव रिलेशन विद हिम ।
नीलोत्पल को जैसे सांप सूंघ गया था लेकिन बात अभी खत्म नहीं हुई थी वो फिर बोली
- एण्ड मिस्टर आउटडेटेड उर्फ नीलोत्पल बसु आइ कान्ट लिव विद यू, आइ वान्ट डिवोर्स । मै अपनी जिन्दगी जीना चाहती हूँ बस अपने हिसाब से यूं घुट घुट कर नहीं जीना है मुझे ।
अब तो नीलोत्पल के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई थी । जो बात आज तक ढकी थी, दबी थी वो सामने आ गई थी हालांकि जितना हो सकता था नीलोत्पल अपनी तरफ से नीलिमा को हर तरह से संतुष्ट रखने का प्रयास करता था लेकिन अपनी छोटी सी नौकरी से वो जितनी सुविधाएं जुटा सकता था जुटाता था लेकिन नीलिमा को ये सब प्र्याप्त नहीं लगता था । वो धीरे-धीरे इसी कालोनी के शर्माजी की तरफ न जाने किन कारणों से आकर्षित होने लगी थी । एक दिन अनायास ही वो शर्मा के साथ वो सब कर गयी जो प्रायः समाज में वर्जित माना जाता है । बातें फैलने से कब रूकती है । मौहल्ले मे फैली नीलोत्पल के कानो में भी पड़ी थी किन्तु पर कटे परिन्दे की तरह वो फड़फड़ा भी नहीं सकता था सो चुप रहने लगा था । थोड़ी सी दूरी भी बना ली थी उसने इसी का फायदा नीलिमा ने और उठाया । वो पहले से ही जानता था कि शर्मा और नीलिमा के बीच रिलेशनशिप है । कई बार इस पर तकरार भी हो चुकी थी लेकिन हर बार नीलोत्पल को चुप होना पड़ता था । वो सोचता था कि घर में जवान लड़कियां है इन पर क्या असर होगा । बस यही सोचकर वो हर बार चुप हो जाता था लेकिन आज नीलिका ने लड़कियों के सामने ही शर्मा के साथ रिलेशनशिप की बात कह दी और तलाक भी मांग लिया । जूही को लगा कि ऐसी मां का अभी गला घोट दूं लेकिन वो कुछ भी न बोली बस चुप रही । नीलिमा ने अगले ही दिन तलाक की अर्जी फेमिली कोर्ट मे लगा दी थी । रूही को लगता था कि अब वो मम्मी के साथ फ्री रहेगी और ऐश करेगी लेकिन एक दिन फेमिली कोर्ट में सुनवाई के दौरान वकीलों की जिरह हो रही थी नीलिका के वकील ने कहा कि उसकी मुव्वकिल किसी भी बच्चे को अपने साथ नहीं ले जाना चाहती है और ना ही गुज़ारा भत्ता लेना चाहती है बस केवल तलाक चाहिए जिसके लिए सफिसियेन्ट काजेज माननीय न्यायालय को बताए जा चुके हैं । वकील की बात से साफ लग रहा था कि सम्बन्धों का आइना अब दरक चुका है अब शक्ल एक नही अलग अलग ही दिखेगी इधर रूही को ज़बरदस्त झटका लगा उसे पूरी उम्मीद थी कि मम्मी उसे तो अपने साथ ही रखेगी क्योंकि उसे भी फ्रिडम चाहिए थी और मम्मी को भी ----- लेकिन मम्मी ने मुझे क्यों छोड़ने की बात कह दी । वो सोचे जा रही थी इस बात से बेख़बर कि जज साहब ने फैसला सुनाना शुरू कर दिया ।
दोनो पक्षों से बातचीत बेनतीज़ा रहने पर ये अदालत नीलिमा और नीलोत्पल के विवाह विच्छेद को स्वीकार रकती है और अपने-अपने हिसाब से रहने का हक देती है । इन दोनो से दो लड़कियां जूही और रूही अब पिता के संरक्षण में ही रह सकती हैं क्यों कि नीलिमा ने किसी भी बच्चे को साथ रखने से साफ इन्कार कर दिया है । लिहाज़ा ये अदालत दोनो लड़कियों से पूछना चाहती है कि वो पिता के साथ रहना चाहती है या फिर उन्हें नारी निकेतन भेजा जाए । जज साहब की बात जूही ने बड़े ही ध्यान से सुनी और तत्काल बिना कुछ सोच ही जवाब दे दिया - जज साहब मैं हमेशा से ही अपने पापा के साथ रही हूँ मैं पापा के साथ ही रहना चाहती हूँ । रूही के सामने भी अब दो ही विकल्प थे एक पापा के घर में पापा के हिसाब से रहना और दूसरा नारी निकेतन । वो समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या करे तभी जज साहब ने फिर से पूदा - बेटा आपका निर्णय क्या है पापा के साथ जाना है या फिर हम नारी निकेतन भेजें आपको ?
वो चैंक पड़ी थी इस बात से उसकी तन्द्रा लोट आयी थी उसके सामने एक तरफ निरिह से दिख रहे पिता थे दूसरी और स्वार्थ की मुस्कान लिए मां खड़ी थी । आज पहली बार रूही को मां अच्छी नहीं लग रही थी लेकिन वो क्या करे कुछ भी समझ नहीं पा रही थी । एक बार जज साहब ने फिर से पुकारा रूही आपका क्या निर्णय है क्योंकि आप बालिग हैं इसलिए ये अदालत जानना चाहती है कि आपका निर्णय क्या है पापा या नारी निकेतन । बड़े ही असमंजस के बाद उसके मुंह से केवल पापा निकला । अदालत का निर्णय आ गया । आज नीलिमा मुक्ताकाश मे एक उनमुक्त परिंदा थी ना बच्चों का मोह ना पति का बन्धन । वो विजयी मुस्कान के साथ बिना नीलोत्पल या बेटियों की ओर देख अदालत से निकल गयी, सीधी एक होटेल मे रूम बुक करवाकर वहीं ठहर गयी । उसी रात उसने शर्मा को भी होटेल ही बुला लिया था शर्मा कोई दस बजे तक रूका और फिर वापस घर चला गया । नीलिमा ने अब एक वन रूम फ्लेट किराये पे ले लिया था । कुछ महीनो तक तो उसका किराया शर्मा देता रहा फिर उसे भी लगने लगा कि वो कुछ भी काम नहीं करना चाहती है । एक दिन उसने नीलिमा से कहा -
-देखो नीलिमा तुम्हे कुछ काम करना चाहिए इसी तरह से कैसे काम चलेगा ।
नीलिमा बोली
-नहीं डार्लिग इसी तरह से चलेगा और हां अब तुम मुझ से शादी कब कर रहे हो ये बताओ ऐसे ही कब तक रहूँगी मै।
-नीलिमा तुम जानती होना मैं एक शादी शुदा आदमी हूँ, घर परिवार है । हमारी शादी कैसे हो सकती है ।
-व्हाट रबिश, क्यों नहीं हो सकती है । तुम अपनी वाइफ को तलाक दो और मुझसे शादी करो ।
यह बात सुनकर शर्मा को एक बार तो गुस्सा भी आया लेकिन अपने गुस्से को बिल्कुल नियन्त्रण में रखकर वो आराम से बोला देखो नीलिमा ज़िन्दगी पे्रक्टिकल होने से चलती है, व्यक्ति के लिए परिवार बेहद आवश्यक होता है उसके बिना वो कुछ भी नहीं होता है । हां परिवार में कई बार रिश्तों मे ढिलाई आती है या पुरूष का मन उकता जाता है वो कहीं बाहर सुकून की तलाश में इधर-उघर हो जाता है लेकिन वो परिवार को नहीं छोड़ सकता है ।
-फिर मैने भी तो तुम्हारे लिए परिवार को छोड़ा है उसका क्या ?
-देखो नीलिमा मैं नहीं जानता हूँ कि तुम्हारे और तुम्हारे पति के बीच मे क्या ऐसी बात थी कि तुम विलग हुई लेकिन अलग होने का फैसला तुम्हारा ही था मैने कभी भी तुमसे नहीं कहा था ।
इतना कहकर वो नीलिमा के फ्लेट से चला गया । नीलिमा के लिए तो यह वज्रपात से कम नहीं था । उसका तो आसमान ही आज टूट गया था । उसे कुछ भी नहीं सूझा वो तत्काल ही निर्णय कर बैठी - सारे मरद एक ही जैसे होते हैं तन के सौदागर, रूप के सौदागर, इस शर्मा के बच्चे को ज़रूर कोई और मुझसे सुन्दर मिल गई है । इसको तो मैं देख लूंगी । उसे रात को नींद नहीं आयी वो पूरी रात करवटें बदलती रही और सोचती रही कि क्या करेगी अब । फ्लेट का किराया अब शर्मा नहीं देगा, कहां से लाएगी पैसे । सुबह होते होते वो अपना ज़रूरी सामान ले रवाना हो गयी । एक अनजान सी डगर को । अपने मन की शान्ति को तलाशती वो ऋषिकेश जा पहुँची । वहां सन्यासियों, साधुओं के साथ अपने मन की शान्ति को तलाशना चाहा । बहुत जल्दी ही उसे वहां भी लगा कि गई साधु केवल उसके तन के भूखे हैं, वो किसी भी समय मौका देखकर कुछ भी कर सकते हैं । अब तो उसे पूरी मर्द जाति से ही नफ़रत सी होने लगी थी । ऋषिकेश छोड़कर वो गंगोत्री चली गयी कुछ समय बाद वहां भी मन नहीं लगा ना शान्ति मिली । वो बरसों यूं ही भटकती रही वापस नीचे लौट आयी । बनारस के घाटों पर । बनारस के ही एक वृद्धाश्रम मे वो रहने लगी थी । दो व़क्त की रोटी मिल जाती थी बस । वैसे भी उसकी उम्र कोई पचपन के पार की हो चुकी थी । कहावत है कि कर्म का और कंकर का कोई अता पता नहीं होता है । एक कंकर गटर मे बहता है और एक कंकर का शंकर बन जाता है । नीलिमा बस यूं ही वृृद्धाश्रम में बैठी थी । आज कहा गया था कि एक अमीर घराने की बहु आश्रम मे खाना खिलाने को आ रही है । उसके भी मुंह मे पानी आ गया था । बहुत दिनों के बाद दलिया और खिचड़ी के अलावा भी कुछ और मिलेगा । आश्रम की सभी औरतें और बुजुर्ग उसको दिल से आशीष दे रहे थे तभी वो आ गयी । सभी को पंगत मे बैठाकर वो अपने हाथों से खना परोसने लगी । धीरे-धीरे वो सभी को परोस रही थी कि अचानक ही वो ठिठक गयी थी नीलिमा को देखकर । हां अपनी ही मां को देखकर, एक बार तो उसका मन किया मां को सीने से लगा ले लेकिन अगले ही पल मां की करतूतें एक एक कर उसकी आंखों के सामने आने लगी । उसकी आखें सुलगने लगी थी तभी एक आवाज़ ने उसकी तन्द्रा को तोड़ी- बेटी मुझे भी देदे । ये आवाज़ नीलिमा की ही थी शायद वो भी उसे पहचान चुकी थी । जब उसे कोई जवाब नही मिला तो वो बस इतना बोलकर वो वहां से बिना खाना लिए ही उठकर जाने लगी । तभी जूही ने बोला पंगत मे से बिना खाने खाये उठकर जाना अन्न भगवान का अपमान होता है । खाना ले लो, और जूही ने उसके लिए पत्तल लगा दी, उसने ऐसे खाया जैसे बरसों से भूखी हो और अपनी पत्तल को ऐसे पकड़े थी मानो कोई छीन ले जाएगा । खाने के बाद वो चुपचाप चली गयी । ऐसा लगा देह की दहक से भी बड़ी पेट की अगन हो गयी है । इसने किसी को नहीं छोड़ा सब लील जाती है ये अगन --- फिर चाहे यह पेट की हो या देह की । और नीलिमा अभी भी इधर खाने में मगन थी।


योगेश कानवा,

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