फाइल Yogesh Kanava द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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कोई चार बजे होंगे, सरकारी दफ्तरों में प्राय चार बजे ही शाम होने लगती है या यूं कहें कि लोग मान लेते हैं कि शाम हो गई है बस तभी सी अपनी टेबल साफ करने लग जाते हैं । पेंडिग फाइलों को आलमारी में डालकर बस यही जताने का प्रयास होता है कि अब कोई पेंन्डिग काम नहीं है । मेरी टेबल पूरी तरह से फैली हुई है । मैं अपना काम निपटाने मे लगी हूँ, मालूम है इन लोगों को बाॅस भी कुछ नहीं कहेंगे लेकिन इनके हिस्से की भी डांट मुझे ही सुनने को मिलेगी । आज एक पूरी फाईल पढ़कर उस पर अपनी राय देने के लिए बाॅस ने बोला है अभी तक नहीं पढ़ पाई हूँ । क्या करूं बाकी का पेन्डिग ना रह जाए इसलिए पहले वो निकाल रही हूँ । ये सब निपटाकर मैं उस फाइल को भी पूरी करके ही घर जाऊंगी । यही सोचती जा रही थी और टेबल पर पड़ी फाइलों को निका रही थी । एक-एक फाइल देखकर आवश्यक टिप्पणी करके आउट ट्रे में रखती जा रही थी । अब धीरे-धीरे आउट ट्रे में फाइलों का ढेर सा लगने लगा था । सरकारी दफ्तर है चपरासी भी सरकारी तौर तरीके जानता है वो कोई साढ़े पांच बजे के आस पास सारी फाइलें लेने आएगा ताकि बाॅस किसी भी फाइल को ध्यान से नहीं देख पाएं और जो भी काम है उसे जल्दी से निपटाकर वो भी अपने घर चले जाएं । बस यह नियत रहती है ज्यादातर लोगों की लेकिन बाॅस जानते हैं कि जब तक मेरा काम पूरा खत्म नहीं हो जाएगा मैं जाने वाली नहीं हूँ । मेरी इस आदत पर सहकर्मी प्रायः फब्तियां भी कसते रहते हैं - अबकी बार का राष्ट्रीय पुरस्कार बस इसे ही मिलने वाला है । कोई कहता अरे यार इसके भी घर परिवार होता तो पता चलता अब ये ठहरी निपट अकेली घर भी जाकर क्या करेगी इसलिए बस यहीं टिकी रहती है, लेकिन यार हमारी तो मुश्किल खड़ी कर देती है अब ये काम करती है तो थोड़ा बहुत तो हमको भी करना ही पड़ेगा ना ?

कुछ इसी तरह की बातें हमेशा होती रहती थी दफ्तर की महिलाएं भी तरह-तरह की बातें करती रहती है लेकिन मैने कभी भी ध्यान नहीं दिया बस अपना काम निपटाया और बिना कुछ रियेक्ट किए चल देती थी । अब इनको क्या बताती कि अकेले होना या रहना कोई अपराध तो नहीं है । नहीं मिला मुझको मेरे मन का , तो क्या किसी भी पल्ले बंध जाती मैं, और पूरी ज़िन्दगी कुढ़ कुढ़ कर गुजार देती । मैं जो भी हूँ जैसी भी हूँ बस खुश हूँ । एक और भी चिड़ होती थी ज्यादातर महिलाओं को मुझसे और वो ये कि चालीस की उम्र में भी मैं एकदम छरहरी दिखती हूँ स्किन मे ग्लो है और ज्यादातर पुरूष अभी भी उन निगाहों से देखते हैं जैसे किसी बीस बाईस साल की लड़की को देखतें हैं । मुझे देखकर चाहत उमड़ती है उनके दिलों में लेकिन मुझे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता है । और कोई जमता भी नहीं है । हां शर्मा जी थोड़े से व्यवहार कुशल शालीन और सम्भ्रांत लगते हैं लेकिन उनका भी अपना परिवार है, सुन्दर बीवी है, बच्चे हैं फिर यह कैसे संभव है कि किसी के भी घर परिवार को ही डिस्टर्ब कर दो । मुझे भी ऊपरवाले को जवाब देना है ।

खैर छोड़ो, तो मैं बता रही थी कि फाइलों का ढेर अब आउट ट्रे में लग गया है । उस महत्वपूर्ण फाइल को खोलती हूँ । ये क्या ये फाइल तो शर्मा जी की ही है । उनके खिलाफ वर्क प्लेस सैक्सुअल हैरेशमेन्ट की । कामिनी तो खुद ही कम नहीं है वो ही सबको छेड़ दे , फिर शर्मा जी भला कामिनी को क्यों छेड़ने लगे । चलो देखती हूँ पूरी फाइल पढ़ती हूँ । वीमेन सैल की चेयर पर्सन ने भी टिप्पणी की है । ------- ओह तो ये बात है, शर्मा जी को फंसाने की पूरी तैयारी कर रखी है लेकिन अब शर्मा जी को कैसे बचाया जाए यही सवाल मेरे जहन में कौंध रहा था, एक ओर बात बाॅस ने यह फाइल मुझे क्यों दी है जबकि निर्णय तो खुद उनको ही लेना है, एक एक टिप्पणी को ग़ौर से पढ़ने लगी । कामिनी के अपने ही बयानों में काफी विरोधाभास था जिसे शायद नज़रअंदाज कर दिया गया था । बस यहीं से मुझे कुछ क्ल्यू मिला और आगे सोचने लगी । मुझे आज समझ आया कि शर्मा जी पिछले कई दिन से क्यों परेशान थे । वैसे दफ्तर में महिलाओं की गासिप का हिस्सा जरूर थी यह बात लेकिन ना तो मैं गासिप करती हूँ और ना ही महिला मण्डली का हिस्सा हूँ इसलिए मुझ कुछ पता नहीं था मुझे इस प्रकरण की कोई जानकारी नहीं थी । शायद इसका कारण यह भी होगा कि आम तौर पर मैं अपने आप में ही मस्त रहती हूँ और अपना काम निपटाया और मस्त । कोई गासिप नहीं । मैं फाइल देख ही रही थी कि कई दिनो के बाद आज कामिनी मेरे कमरे में आ गयी शायद उसे भनक हो कि फाइल मेरे पास है । वैसे भी कई दफ्तरों में कुछ लोगों की आदत होती है कि कौनसी फाइल किसके पास पहुँची उसने उस पर क्या टिपपणी की है । मानो अब वो ही इस का निपटारा करने वाले हो । कामिनी का आना मुझे भी कुछ इसी तरह का लगा शायद वो मेरी राय लेने या यह जानने आई हो कि क्या हो रहा है अब इस प्रकरण का । वो आकर बैठ गयी मैने जानबूझकर फाइल बन्द नहीं की सोचने लगी इसको देखने दो शायद कुछ रियेक्ट करे । मेरी सोच सही थी वो तुरन्त बोली अरे यार देख इन मर्दो को सबक सिखाने का ये सबसे अच्छा मौका है । तू देख तेरे कदमों मे भी गिर जाएगा ये शर्मा का बच्चा । मैं खामोश थी, चाहती थी कि कामिनी अपनी पूर भडास निकाल ले । पूरी भडास निकालने के बाद बोली कुछ तो बोलो तुम । मैं अब भी शान्त थी बस उसकी ओर देखने लगी वो बोली क्या देख रही हो ऐसे ? कुछ नहीं बस देख रही हूँ कि क्या वाकई शर्मा जी छेड़ा है क्या ? वो नज़रें चुराने लगी, मैने मौका देख सवाल दाग दिया, कामिनी क्यों किया ऐसा, क्यों लगाया एक झूठा आरोप, क्या मिल जाएगा तुम्हें ऐसा करके । ---- वो पहले तो भड़की लेकिन मेरी दृृढ़ता देखकर आंखे नम कर बोली क्या बताऊं वो मुझे बहुत अच्छा लगता है लेकिन कभी भी मेरी तरफ ना तो देखता है और ना ही कभी मेरी तारीफ करता है बस मैने उसे सबक सिखाने के लिये यह सब ---- । ओर वो रोने लगी । देखो कामिनी उसका भी घर परिवार है बच्चे है, बीवी है ज़ाहिर सी बात है वो वहीं इन्वोल्व रहता होगा या फिर हो सकता है वो किसी ओर को चाहता हो लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं होता है ना कि हम झूठा आरोप ही लगा दें । औरत को भगवान ने कुछ अलग बनाया है । सहनशीलता दी है, साथ अप्रतिम सौंदर्य , शक्ति दी है वो चाहे तो किसी भी मर्द को अपने कदमों में झुका सकती है लेकिन केवल अपने प्रेम के बल पर । हमे अपनी स्त्री होने का इस तरह तो फायदा नहीं उठाना चाहिए ना । हाँ यदि वास्तव में कोई छेड़छाड़ हो तो कभी चुप नहीं बैठना चाहिए, आगे आकर ऐसे लोगों को सबक सिखाना चाहिए लेकिन इस तरह से झूठा आरोप कभी नहीं । इससे हमारी ही इज़्जत गिरती है । आइ एम साॅरी, वो फिर से रोने लगी, मैं अपनी सीट से उठी और उसको अपने सीने से लगा लिया । अब वो बिल्कुल निर्मल सी एकदम सच्ची सी मेरे सामने खड़ी थी । अगले ही पल वो मेरे कमरे से बिना कुछ बोले निकली सीधी बाॅस के पास गई । मेरे पास बाॅस का फोन आया फाइल लेकर बुलाया था । मैं मन्द मन्द कदमों से बाॅस के कमरे की ओर चल दी । जब बाॅस के कमरे में पहुँची तो कामिनी पहले से ही वहां पर बैठी थी अपनी नज़रें झुकाए । मुझे देखकर वो इस बार फफक फफक कर रोने लगी । बस इतना ही बोला आज मुझे पहली बार अपने स्त्री होने और स्त्री की शक्ति का भान हुआ है । मैने वाकई भूल की है मुझे इस तरह का झूठा आरोप नहीं लगाना चाहिए था । वो बोलती जा रही थी और बाॅस मेरे तरफ देखकर मन्द मनद मुस्कान के साथ मेरी तारीफ कर रहे थे मानो कह रहे हों । केवल तुम ही थी जो इसे सुलझा सकती थाी इसलिए फाइल मैने तुम्हारे पास भेजी थी और मैं शान्त गंभीर बैठी दोनो को देखती रही ।

 

योगेश कानवा,