गुड़हल के फूल Yogesh Kanava द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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गुड़हल के फूल

सरदार बलजिंदर सिंह के फार्म हाउस में पिछले 15 बरस में कभी कोई औरत नहीं आई थी । आज फार्म हाउस के गेट से एक गोरी सी मैम को आते हुए देख सरदार बलजिंदर सिंह थोड़ा सा चौकन्ना सा हुआ वो सोचने लगा चंडीगढ़ से 20 किलोमीटर दूर मेरे फार्म हाउस में ए गोरी मेम क्यों आई है , कौन है ? कई तरह के सवाल उसके मन में उमड़ रहे थे । वो सोच रहा था लेकिन उन सवालों का जवाब उसके पास नहीं था वह जवाब तो वह आने वाली महिला ही दे सकती थी। सरदार । कई रंग के गुड़हल उसने अपने फार्म हाउस में लगा रखे थे । लाल, गुलाबी, पीला ,सफेद ,केसरिया और इसके अलावा एक ही गुड़हल पर कई रंग के फूल उसने खुद ग्राफ्ट करके तैयार किए थे । वो अभी गुड़हल की ही सफाई कर रहा था, सुर्ख लाल गुड़हल के फूल मुस्कुरा रहे थे । बलजिंदर सिंह अपने हाथ झाड़ते से अपने फार्म हाउस के गेट पर खड़ा हुआ दूर से ही उस महिला ने सरदार जी को सत श्री अकाल कहा, जवाब में उसने भी सत श्री अकाल बोला और पूछ बैठा "जी आप कौन?" उसने जवाब दिया "जी मैं समायरा सिंह हूं जी एक सॉफ्टवेयर कंपनी में मैनेजर हूं कल मैं सेक्टर 17 में मकान ढूंढ रही थी तो मुझे किसी ने कहा कि यहां बहुत महंगे मिल रहे हैं आप थोड़ा बाहर देख लेंगे तो सस्ता पड़ेगा । मेरी भी यही इच्छा थी क्योंकि मेरे परिवार की दूसरी लायबिलिटीज हैं । फिर किसी ने मुझे आपके फार्म हाउस का पता दिया मैं नहीं जानती वह कौन था। पर मैंने आज तक किसी को किराए पर अपना मकान नहीं दिया" सरदार बलजिंदर सिंह बो। अजी आप पानी लेंगे ? उसने हामी भरी, बलजिंदर सिंह ने अपने नौकर गुरशरण को आवाज लगाइ। गुरुशरण पानी लेकर आया पानी पीने के बाद में वह बोली देखो जी मैं अकेली रहूंगी और मेरे दोस्त भी कोई नहीं है मैं अभी अभी चंडीगढ़ में आई हूं इससे पहले मैं पुणे थी । मैं रहने वाली औरंगाबाद की हूं और यहां मेरा कोई भी नहीं है कल एक सरदार जी ने आपका नाम लिया तो मैं ढूंढते ढूंढते आपके यहां आ गई हूं । आपसे बड़ी उम्मीद है!

" वह सब तो ठीक है जी लेकिन मैंने तो आज तक अभी किराए में दिया ही नहीं है और फिर मैं ठहरा फकत अकेला । कभी किसी को मैं किराए में नहीं देता हूं जी।" वह थोड़ी निराश हुई लेकिन उसने फिर कहा "कोई बात नहीं आप ने नहीं दिया है लेकिन सरदार जी अब तो आप दे सकते हैं ना मुझे जरूरत है और मैं बहुत ज्यादा पैसा नहीं दे सकती हूं मैं चाहती हूं कि मैं रह लूंगी ।" वह सब ठीक है जी अकेली जनानी और , "मैं अकेला आदमी और मैं किसी का दखल नहीं चाहता इसलिए मैं किसी को नहीं रख सकता , जी कोई और जगह देख लो।"

" सरदार जी मैं बहुत उम्मीदें लेकर आई हूं आपका घर ढूंढने में मुझे डेढ़ घंटा लग गया बहुत मुश्किल से पहुंची हूं यहां तक। आपको देख कर मन खुश हो गया मैं चाहती हूं कि आपके यहां पर मैं रहूं । आप जो भी किराए मांगेंगे मुझे मंजूर है आपकी जो भी मुझे शर्त हो मुझे मंजूर है , रहने दीजिए प्लीज । मैं आपको कभी डिस्टर्ब नहीं करूंगी ।"

थोड़ा सोचकर मन ही मन बोले , अकेली लड़की को कैसे दे दूं जी कोई ऊंच-नीच हो गई तो, कोई किसी लड़के को साथ में लेकर आ गई तो मुश्किल हो जानी है । इतनी देर में गुरु शरण उनके लिए चाय लेकर आ गया ।

"लो जी तुसी चाय पियो पहले ।" चाय पीकर वो फिर बोली "प्लीज मुझे रख लीजिए। अनजान शहर में मैं किसी को नहीं जानती हूं और कोई भी मेरा नहीं है मैं एक बात पहले ही बता दूं मेरे साथ में ना कभी कोई ऐसा आएगा और ना ही मेरा कोई दोस्त यहां पर है जो यहां आए , हां कभी कोई लड़का तो बिल्कुल नहीं आएगा इसकी मैं आपको गारंटी देती हूं । मैं अपना चुपचाप आऊंगी और चुपचाप से खाना खाकर सो जाऊंगी आपको डिस्टर्ब बिल्कुल नहीं करूंगी , यह पक्की बात है।" और वो सरदार जी का चेहरा देखने लगी। सरदार जी ने ना में गर्दन हिलाई और बोले "वो बात बिल्कुल सब ठीक है जी लेकिन मैं किराए देता ही नहीं ।" सरदार जी की बात सुनकर क्यों न जाने क्यों उसकी बड़ी-बड़ी आंखों से दो मोती टपक गए और भर्राए से गले से बोली "कोई बात नहीं सरदार जी जैसी आपकी मर्जी , चलो कोई बात नहीं मैं कहीं और देखती हूं कहीं तो कोई ठोर ठिकाना मिल ही जाएगा । चाय आपकी बहुत अच्छी थी थैंक यू वेरी मच" और वह खड़ी होकर चलने लगी तभी सरदार जी बोले "गल सुन कुड़िए रो मत यह सच है कि मैं किसी को किराए नहीं देता लेकिन तुम मेरे ऊपर वाले पोर्शन में रह सकती हो । हां जो भी बात मेरे से करनी हो शाम 8:00 बजे पहले करना 8:00 बजे बाद मैं किसी को अपने पास अलाऊ नही करता हूं । मैं किसी से बात नहीं करता और हां किराया ₹10000 महीना खाना खुद बनाओगी और अगर मेरे यहां खाना है तो कुल 20 हजार 10,000 तुम्हारी खाने के , खाना तुम्हारे कमरे में ऊपर ही मिल जाएगा मेरे साथ नहीं खाओगे ।"

" सरदार जी मैं खाना आपके यहीं ही खाऊंगी और मैं 20000 दे दूंगी । आपका बहुत-बहुत धन्यवाद मेरा बहुत बड़ा टेंशन आपने कम कर दिया। अब आपका शुक्रिया अदा कैसे करूं ।" उस लड़की की उम्र 30-32 साल के करीब थी । सरदार बलजिंदर सिंह उम्र 55 के थे लेकिन दिखते थे केवल 40-45 के । एकदम स्वस्थ शरीर हट्टे कट्टे लेकिन अकेले रहते हैं। अकेले क्यों थे यह सवाल बार-बार उसके जहन में कोंध रहा था। कुछ समझ में नहीं आ रहा था , सरदार जी अकेले क्यों रहते हैं इनकी वाइफ , बच्चे ? पता नहीं चल छोड़ ना यार अपना काम बन गया अपने को रहने का ठिकाना मिल गया बाकी बातें बाद में देखेंगे। वैसे भी अपने को क्या लेना सरदार अकेला रहे चाहे किसी के साथ रहे अपने को जगह चाहिए थी मिल गई खाना भी मिल जाएगा टेंशन खत्म। वह सोफे पर थोड़ा मुस्कुरा कर बैठ गई थी तभी सरदार बलजिंदर सिंह ने कहा चलो जी तुसी जाकर रूम देख लो और गुरुशरण को आवाज लगाई । गुरुशरण मैडम को ऊपर लेकर ऊपर का पूरा पोर्शन दिखा । वापस आकर उसने कहा सरदार जी मैं आज शाम से ही आ जाऊं बलजिंदर सिंह बोले, जेडी तुहाड़ी मर्जी आ जाओ कोई गल नहीं । हाथ जोड़कर आभार व्यक्त करती थी वह चली गई।

   6:00 बजे होंगे अपना सामान एक टैक्सी में लेकर आ गई थी सामान बहुत ज्यादा नहीं था बस दो सूटकेस कपड़ों के , वैसे भी सामान की जरूरत कहां थी सरदार बलजिंदर सिंह का ऊपर का जो पोर्शन था वह पूरा फुली फर्निश्ड एसी फ्रिज और सारी सुविधाएं किसी तरह की सुविधा की एक्स्ट्रा जरूरत ही नहीं थी ।

   7:00 बजे के आसपास सरदार जी से वापस मिली , सरदार जी मैं अपना सामान जमा चुकी हूं। मैं आपका शुक्रिया अदा कैसे करूं मैं बहुत आभारी हूं आपकी । पंजाबी में सरदार बलजिंदर सिंह ने कहा तुसी पंजाबी जानते हो ? आहो जी , जी एक मेरी फ्रेंड सी पुणे विच , मैनू पंजाबी सिखाइ सी । मैं हूं तो मराठी लेकिन पंजाबी थोड़ी थोड़ी बोल लेती हूं आपसे मुझे अच्छा लगेगा पंजाबी में बात करके।           

   बात करते हैं करते करीब 7:30 हो गए अचानक सरदार बलजिंदर सिंह ने कहा कुड़िए 8:00 बजने वाले हैं 7:30 हुए हैं तुसी तुहाडे रूम विच जाओ , अब मैंनू डिस्टर्ब ना करना कल सुबह मिलेंगे गुड नाइट । इतना कहकर अपने कमरे के भीतर चले गए समायरा सोच रही थी कि आदमी फौज में था क्या पता नहीं 7:30 बजे नहीं और अंदर , कितना अजीब आदमी है कोई घर आया बात नहीं करता छोड़ो यार । ऊपर चली गई पहला दिन था मन नहीं लग रहा था उसे टीवी ऑन कर लिया कुछ सीरियल कुछ और तभी ठीक 8:00 बजे गुरु शरण में दरवाजा नोक किया मेम साहब जी खाना आ गया । मेम साहब जी खाना तैयार है तुसी खाना खा लो जी और उसका खाना उसके कमरे में ही गुरशरण ने दे दिया था 8:00 बजे थे खाने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं थी । आमतौर पर वह खाना 10:00 बजे के आस पास खाते थे। लेकिन अब फौजी से सरदार को कौन समझाए खाना ले लिया और रख दिया माइक्रोवेव में गर्म करके खा लूंगी । रात कोई ग्यारह बजे उसने खाना खाया और सो गई अनजान जगह नींद थोड़ी देर से आई लेकिन सो गई। सुबह 7:00 बजे के लगभग कोई दरवाजा खटखटा रहा था आंख मसलते से उठी गुरुशरण चाय की केतली हाथ में लिए खड़ा था ओ मैडम जी चाय ले लो ठीक 7:00 बजे चाय मिलेगी 8:30 बजे आपको ब्रेकफास्ट मिल जाएगा उसके बाद ब्रेकफास्ट नहीं होगा इसलिए 8:30 बजे तक आप ब्रेकफास्ट कर लेना । उसने पहले ही बोल दिया था कि लंच वह केवल छुट्टी के दिन ही यहां करेगी बाकी के टाइम ऑफिस में ही करेगी इसलिए लंच की बात गुरु शरण ने नहीं बोली चाय ली और चाय पीने लगी चाय के साथ अखबार भी दे गया था । अखबार के पन्ने पलट पलट कर वो नहाने चली गई । उसको समझ आ गया था कि यहां डिसिप्लिन में ही रहना है । नहा कर ठीक 8:30 बजे तैयार हो गई तभी गुरु शरण एकदम आकाशवाणी के समय की तरह दरवाज़ा खटखटाने लगा वो समझ गई थी । मैडम जी ब्रेकफास्ट आप बता दो आप वेज लेते हो कि नॉनवेज ? सब चलता है ठीक है जी ऑमलेट ब्रेड दे दूं जी या कॉर्न फ्लेक्स मिल्क। ऑमलेट ब्रेड दे दीजिए प्लीज।

ठीक है जी फिर शाम को चिकन बना लूंगा।

     इस तरीके से सरदार बलजिंदर सिंह के घर अपने पहले दिन की शुरुआत कर वो ऑफिस के लिए तैयार हो गई। वो ऑफिस की गाड़ी के लिए बोल चुकी थी इसलिए गेट पर गाड़ी आ गई थी। जल्दी से अपना समान उठाया और गाड़ी में जा बैठी।उसका ऑफिस चंडीगढ़ के सेक्टर १७ में था । सेक्टर १७ सबसे पोस इलाका चौबीसों घंटे यहां चला पहल रहती हैं।ड्राइवर गाड़ी को पार्क करके उतरा और समायरा के लिए गेट खोल दिया। गाड़ी से उतर कर सीधे अपने केबिन में गई , आज उसे काफी काम निपटाने थे इसलिए जल्दी से कुछ फाइलें देखी अपना कंप्यूटर ऑन किया फिर अपने सबॉर्डिनेट को बुला कर कुछ निर्देश दिए और मीटिंग में चली गई ।

   कोई छः महीने बीत गए बस वही क्रम ,एकदम फौजी स्टाइल का डिसिप्लीन । आज समायरा बहुत अपसेट थी , घर आ गई थी लेकिन मन उचट सा रहा था । अचानक न जाने उसे क्या सूझी वो सरदार बलजिंदर सिंह के बारे में सोचने लगी बंदा रात आठ बजे बाद किसी से क्यों नही मिलता है ।चलो आज मैं मिलूंगी। वैसे भी आज उसका भी मन कर रहा था कि एक या दो पैग व्हिस्की के ले ले ताकि मूड ठीक हो जाए । वो कभी कभी ले लिया करती थी । वो अपने कमरे से उतर कर नीचे आई और सरदार जी का दरवाजा नोक करने लगी।सरदार बलजिंदर सिंह अब तक दो पैग ले चुका था बस तीसरे पैग की सोच रहा था कि दरवाजे की नोक सुनकर बोला ओए कौन है इस टेम। समायरा ने सधा सा जवाब दिया, सरदार जी मैं हां समायरा।दरवाजा खोला देख कर सरदार जी बोले

ओए कुड़िए की हुयाँ मैं मना किता सी ना । हां सरदारजी वो ठीक है पर आज मैं बहुत अपसेट हूं अब आप ही बताओ इस घर में आप और मैं अभी दो ही बंदे तो हैं अब मुझे कोई प्राब्लम होगी तो आपसे बोलूंगी न । वो तो ठीक है जी , चलो धसो की है? वो सरदार जी आप बुरा मत मानो जी पर क्या बताऊं आज मन बहुत उदास है जी, सोचा थोड़ा सा आपके पास ही बैठ जाऊं , सो आ गई और थोड़ा सा रास्ता बनाती सी वो अंदर घुस गई। लाओ जी आपका पैग मैं बना देती हूं और बिना पूछे ही वो पैग बनाने लगी। बलजिंदर सिंह उसको मना करता इससे पहले ही उसने पैग सरदार जी को थमा सा दिया। भौंचक्का सा सरदार बलजिंदर सिंह कुछ भी नहीं कह पाया। वो उठी और किचन से एक और ग्लास लेकर आ गई अपने लिए भी एक लार्ज पैग बना दिया। पैग हाथ में लेकर चीयर्स बोली और होठों से लगा लिया। एक ही सांस में उसने पहला पैग खत्म किया । बलजिंदर सिंह आश्चर्य से उसे देखता रहा। वो बोली सरदारजी होण धसो तुसी उदास क्यों रहंदे हो। तुहाड़ी वोटी दा की हुया। कुड़ी तुसी तुहड़ा पैग लो ता ऊपर जाओ मैनू लगादा है तुहानु चढ़ गई है । ओए दारजी छड्डो जी , मैं तीन पैग लेन दी हां , आज मैं सच जान के ही रहना है जी। देख कुड़िए ज़िद ना कर। और फिर अचानक वो उठी और सरदार जी के ठीक सामने जाकर खड़ी हो गई। उसे सामने देख कर सरदार टूट गया सुर्ख आंखों से दो मोती टपक गए । समायरा ने अपना आंचल लिया और आंचल मे वो मोती समेट लिए। सरदार बलजिंदर सिंह कुछ नहीं बोल पाए वह बस समायरा की तरफ देखते रहे और समायरा ने खुद के लिए एक पैग और बनाया सरदार जी का बिल्कुल छोटा सा पैग और खुद के लिए मीडियम पैग। उठी और धीरे से फ्रीज में से कुछ खाने का सामान निकाल कर लाई और बोली सरदार जी दारू के साथ कुछ ना कुछ खाना जरूरी होता है नहीं खाओगे तो सेहत बिगड़ जाएगी । लो जी लो गुरशरण सिंह आपके लिए चिकन कबाब बना कर गया है दारू के साथ यह लो और प्लेट उसने सरदार बलजिंदर सिंह के आगे कर दी । वो सरदार बलजिंदर सिंह जो कभी किसी की नहीं सुनता था सब लोग उससे डरते थे कुछ भी बोल नहीं पा रहा था बस चुपचाप उसकी तरफ देखे जा रहा था उसने एक टुकड़ा कबाब उठाया अपने खा । धीरे-धीरे करते हुए दोनों बड़ी देर तक ऐसे ही बैठे रहे एक बार फिर से समायरा ने पूछा सरदार जी आपकी पत्नी के बारे में बताओ ना इस बार सरदार बलजिंदर सिंह संयत होते हुए से बोले क्या बताऊं कुड़िये वो 15 साल पहले मैं बलजिंदर को लेकर अपने बुलेट मोटरसाइकिल पर घुमा रहा था अचानक एक खोते दा पुत्तर कोई ट्रक लेकर आ गया और हम टकरा गए बस उसी में मेरी बलजिंदर चल बसी । वो दिन है जी और आज का दिन है बस मैं और मेरी बलजिंदर दोनों एक दूसरे की यादों में रहते हैं । इतना मेरे को पता है जी मुझे बहुत याद करती है मैं उसके बिना कुछ नहीं , एकदम अधूरा हूं जी , इसीलिए मैं रात होते ही पीता हूं , उसकी याद में पीता हूं और सो जाता हूं। इतना बड़ा मेरा खेत और सारे नौकर चाकर लेकिन कमी बलजिंदर की है । मैं कुछ कर भी नहीं सकता एक बार फिर उसकी आंखें भर आई बल्कि यह कहो जी कि उसकी आंखों से दो मोती टपक गए थे इस बार उसने अपने आंचल से आंसू नहीं पोंछे । वह चाहती थी की सरदार जी अपने दुख को बाहर निकाले । कुछ देर बाद वो उनके पास जाकर बोली सरदार जी जो चले जाते हैं वह लोट कर नहीं आते । आप मुझसे बड़े हैं समझदार हैं इस तरह से जो चले जाते हैं उनके लिए पूरी जिंदगी भर रोया तो नहीं जाता है ना । और फिर सरदार जी को खाना खिला कर अपने कमरे में चली गई । अब हर दूसरे तीसरे दिन का यही क्रम होता था समायरा सरदार बलजिंदर सिंह के साथ बैठकर दो तीन पेग लेती उसको खाना खिलाती और सुला कर अपने कमरे में चली जाती धीरे-धीरे उसके मन में भी कुछ आने लगा, वो भी एकदम अकेली थी माता-पिता दोनों वृद्ध और उनकी पूरी देखभाल की जिम्मेदारी उसने एक नौकर के भरोसे छोड़ रखी थी क्योंकि वह तो नौकरी कर रही थी । उसके मन में उमंगे करवटें लेने लगी थी , वह सोचने लगी यार मुझ से 20 साल बड़ा है तो क्या हुआ कोई बात नहीं लेकिन आदमी भला है और मैं भी अभी कहीं सेटल नहीं हो पाई , सरदार जी के साथ क्यों न सैटल हो लिया जाए । अपने मन की बात धीरे से शराब के बीच सरदार बलजिंदर सिंह के सामने रख दी। सरदार एक दम चौंक पड़े , तमक पड़े और चिल्ला कर बोले तुम अपने कमरे में जाओ और दोबारा मेरे से किसी भी तरह , इस तरह बात नहीं करना । समायरा सचमुच सहम गई थी डर गई थी । वो चुपचाप उठी और अपने कमरे में चली गई, उस रात वो खूब रोई । अगली सुबह सरदार बलजिंदर खुद उसके कमरे में गए और बोले कुड़िए सॉरी मैं कल कुछ ज्यादा बोल गया था, लेकिन तुमने भी बिल्कुल गलत बात की थी। अगर ऐसा होता तो मैं कब का किसी भी के साथ दोबारा शादी कर लेता लेकिन मैं बलजिंदर को नहीं भूल सकता हूं बलजिंदर मेरी रग रग में बसी है । तुम अच्छी हो और मेरे से बहुत छोटी भी हो इसलिए कोई अच्छा सा लड़का देख कर तुम शादी कर लो। समायरा धीरे से उठी उसकी आंखों में दो आंसू छलक पड़े थे। उसने पता नहीं क्या सोचा और सरदार जी के सीने से लग गई । सरदार बलजिंदर सिंह उसको अलग नहीं कर पाया था और कहीं ना कहीं एक कोपल समायरा के मन में फूट चुकी थी। समायरा दिन में अपने ऑफिस चली गई लेकिन ऑफिस में उसका मन नहीं लग रहा था वह आज अनमनी सी बस यूं ही इधर-उधर का काम करती रही और इंतजार कर रही थी कि कब 5:00 बजे और कब वह अपने घर वापस पहुंचे। घर पहुंची जल्दी से और नहा धोकर आज थोड़ा सा तैयार हुई और इंतजार करने लगी कि कब गुरुशरण खाना बनाकर चला जाए । वो सरदार बलजिंदर सिंह के साथ बैठकर आज और बातें करना चाहती थी। ठीक 8:00 बजे गुरुशरण उसके कमरे में खाना दे गया और चला गया वह उठी और इस बात से आश्वस्त होना चाहती थी किगुरु शरण चला गया है। सरदार बलजिंदर सिंह ने मेन गेट का ताला लगा दिया था। वो सरदार बलजिंदर सिंह के कमरे में चली गई बलजिंदर सिंह को इस बात की उम्मीद थी कि समायरा जरूर आएगी। आज उसने पैग नहीं बनाए थे बल्कि वह इंतजार कर रहा था कि समायरा ही बनाएगी । समायरा आई रैक से बोतल निकाली और दो पैग बना लिए फ्रीज से कबाब निकालकर माइक्रोवेव में गर्म किया और सामने रखती है । दोनों ने पहली बार कुछ प्रेम भरी निगाहों से दूसरे को देख कर चीयर्स किया और फिर पीने लगे । सरदार बलजिंदर सिंह आज तीन पैग लेने के बाद भी उसको लग रहा था कि मैं थोड़ा और पी लूंगा और वह नहीं माना और एक पैग और बना लिया साथ साथ खाना भी खाते जा रहे थे । आज सरदार बलजिंदर सिंह को काफी ज्यादा चढ़ गई थी कुर्सी से उठकर बिस्तर तक जाना काफी मुश्किल था इसलिए समायरा ने ही सहारा देकर उसने सरदार जी का हाथ अपने कंधे पर लिया और सहारा देकर बिस्तर तक नहीं गई। धीरे-धीरे सरदार जी को बिस्तर पर लिटाया और खुद भी बिस्तर पर बैठ गई । बलजिंदर सिंह बोले समायरा बैठ जाओ अभी मत जाओ और फिर धीरे धीरे न जाने समायरा को क्या सुरूर आया कि वह सरदार बलजिंदर सिंह के चिपक के बैठ गई और फिर रात में वह सब हुआ जिसकी सोच दोनों की ही नहीं थी। दोनों एक हो चुके थे सुबह जब सरदार बलजिंदर सिंह की आंखें खुली एकदम भौचक्का रह गया यह क्या कर डाला इतने वर्षों की तपस्या मैंने तोड़ दी अब कुछ नहीं हो सकता था जो होना था वह हो चुका । सरदार बलजिंदर सिंह ने एक दृढ़ निश्चय किया आज ही गुरद्वारा जाकर मैंने इसके साथ शादी कर लेनी है। और दिन में फिर वाकई दोनों ने शादी कर ली। समायरा अब समायरा सिंह से मिसेज समायरा सिंह हो चुकी थी । अपना सामान नीचे लेकर आई और अब घर तथा सरदार बलजिंदर सिंह दोनो को संभालने लगी थी।

कोई छः महीने निकल गए थे । गुरुशरण पहले की तरह ही मैनेजर कम केयर टेकर का काम करता था । हां उसे कई बार समायरा पर संदेह होता था लेकिन कह नहीं पाता था । एक सुबह जब वो फार्म हाउस आया तो देखा कि समायरा रो रही थी सरदार जी बेसुध पड़े थे । उसको देख कर समायरा बोली जल्दी करो सरदार जी को हॉस्पिटल ले चलो , पता नही क्या हुआ है । रात भले चंगे सोए थे अब उठ ही नहीं रहे हैं। गुरुशरण जल्दी से गाड़ी स्टार्ट करके सरदारजी को पी जी आई चंडीगढ़ लेकर गया। डॉक्टर देख कर कहा बहुत देर कर दी , ही इज नो मोर। सुन कर गुरुशरण के होश उड़ गए।वो बार बार डॉक्टर से कह रहा था ठीक से देखो जी। पर अब कुछ नहीं हो सकता था तभी अचानक गुरुशरण ने डॉक्टर को धीरे से कुछ कहा और डॉक्टर ने एम एल सी कैसे मान कर बॉडी को मोर्चरी में रखवाया। समायरा परेशान थी की क्या करे , कोई दो बजे पोस्टमार्टम के बाद बॉडी मिली।अंतिम संस्कार समायरा ने किया । लेकिन गुरुशरण को अभी भी कुछ संदेह था । उसने पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के आधार पर हत्या का केस दाखिल करवा दिया समायरा के खिलाफ । पोस्ट मॉर्टम की रिपोर्ट में अधिक शराब पीने और दम घुटने के कारण मौत होना बताया गया । गुरुशरण का कहना था कि सरदार जी पहले भी इतनी ही शराब पीते थे लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि उनका दम घुट जाए। समायरा ने उसे फार्म हाउस से निकाल दिया । संदेह के आधार पर समायरा को अरेस्ट कर लिया गया। अदालत में चालान पेश किया गया , उसे जमानत नही मिली ज्यूडिशियल कस्टडी में जेल भेज दिया गया । केस को चलते कोई डेड साल हो गया था आज फैसले की घड़ी भी आ गई थी । पुलिस ने अपनी छानबीन में बेहद सनसनीखेज रहस्य उजागर किया था जिस पर भरोसा ही नहीं होता है कि कोई इंसान ऐसा भी कर सकता है । फैसला सुनाते हुए जज ने कहा कि ये पुलिस की छानबीन और तथ्यों को सही से पेश करने का उत्कृष्ट उदाहरण है । इसे एक नज़ीर की तरह से मना जाए। समायरा सरदार बलजिंदर सिंह के घर में अनायास ही नहीं आई थी बल्कि एक मिशन के तहत आई थी और इस मिशन का सूत्रधार समायरा का बाप है । मिशन था सरदार बलजिंदर सिंह की प्रॉपर्टी को हथियाना और ये तभी संभव था जब कानूनी तौर पर वो उसकी पत्नी बनती। ऐसा ही किया अपने से दो गुनी से भी ज्यादा उम्र के सरदार बलजिंदर सिंह से शादी इसी लालच में की गई थी । इसलिए ये अदालत समयारा को ताउम्र कैद ए बामुस्साकत की सजा सुनाती है और इसके पिता को साजिश रचने और दूसरे गुनाहों में शरीक होने के कारण सात साल की कैद का फैसला देती है । फैसला सुनकर आज गुरुशरण सिंह खुश था और इधर गुड़हल के फूल सरदार बलजिंदर सिंह की जुदाई में दहकने लगे थे हां वही सुर्ख गुड़हल दहक रहा था ।