गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 61 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 61

भाग 60 जीवन सूत्र 68 धरातल पर आधारित नेतृत्व स्थायी


गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-


यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।

स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।3/21।।

इसका अर्थ है, हे अर्जुन!श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करता है, अन्य लोग भी वैसा ही अनुकरण करते हैं;वह पुरुष अपने कार्यों से जो कुछ स्थापित कर देता है,लोग भी उसका अनुसरण करते हैं।

वास्तव में घर परिवार से लेकर शासन और समाज तक शीर्ष स्थान पर रहकर नेतृत्व करने वाले व्यक्ति के ऊपर एक बड़ी जिम्मेदारी होती है।वे जैसा करते हैं,अन्य लोग भी उनका अनुसरण करते हैं।ऐसे व्यक्ति अपने आचरण से लोगों के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। उनका किया गया हर एक कार्य महत्व, उपयोगिता और औचित्य की कसौटी पर जांचा परखा जाता है। ऐसा हो भी क्यों ना?उन्होंने समुदाय और समाज को दिशा देने की महती जिम्मेदारी स्वयं ली हुई है।

स्वामी रामतीर्थ ने कहा है कि वही मनुष्य नेता बनने के योग्य होता है जो अपने सहायकों की मूर्खता, अपने अनुयायियों के विश्वासघात, मानव जाति की कृतघ्नता और जनता की गुण- ग्रहणहीनता की कभी शिकायत नहीं करता।

नेतृत्व करने वाले व्यक्ति को सबको साथ लेकर चलना पड़ता है।तुलसीदास जी के कहे हुए वाक्य 'मुखिया मुख सो चाहिए खान पान को एक' की तरह स्वयं से संबंधित प्रत्येक व्यक्ति से समान व्यवहार करते हुए उनकी जिम्मेदारियों को पूरा करना होता है।

किसी ने नेतृत्वकर्ता की विशेषताओं के बारे में ये तीन गुण बताए हैं-आत्मप्रतीति:दृढ़ता विरक्ति रिति त्रयम।

इसका अर्थ है,आत्मविश्वास,दृढ़ता तथा वैराग्य की तीन बातें जो अपने में धारण करता है,वही समस्त श्रेष्ठ गुणों का आश्रय होने के कारण संपूर्ण प्रजाओं का नेता है।

नेतृत्वकर्ता में धैर्य,संतुलन, सूझबूझ और दूरदर्शिता होती है।उसे अपनी शीर्ष स्थिति से कोई मोह भी नहीं होता। अगर शिखर से उतरने और किसी दूसरे व्यक्ति के शिखर पर काबिज होने की स्थिति आती है,तो वह बिना एक क्षण की देरी किए वहां से उतरने और नए नेतृत्वकर्ता को सहयोग देने को तैयार हो जाता है।आखिर शिखर पर कितनी देर तक ठहरा जा सकता है?आखिर आना तो सभी को धरातल पर ही है और रहना भी धरातल पर ही है।


भगवान कृष्ण की इस दिव्य वाणी से हम "बड़ों और नेतृत्वकर्ताओं द्वारा श्रेष्ठ आचरण करने" इस ध्येय वाले वाक्यांश को एक सूत्र के रूप में लेते हैं। वास्तव में नेतृत्व करने वाला एक जहाज के कप्तान की तरह होता है,जिस पर अपनी टीम के साथ श्रेष्ठ प्रदर्शन करने की ज़िम्मेदारी तो होती ही है,वहीं इस टीम के साथ स्वयं आगे बढ़कर कार्य करने व स्वयं उदाहरण प्रस्तुत करने का भी नैतिक दायित्व होता है।एक उदाहरण इसरो के निदेशक प्रोफेसर सतीश धवन का लेते हैं। उन्होंने एस.एल.वी.3 रॉकेट विकसित करने वाले प्रोजेक्ट का प्रमुख डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को बनाया। देश का पहला सेटेलाइट आर्यभट बनाने वाले प्रोजेक्ट का प्रमुख उन्होंने प्रो.यू. आर.राव को बनाया।जब एस.एल.वी.3 रॉकेट का पहला प्रयोगात्मक परीक्षा अगस्त 1979 में असफल रहा तो बड़ी जिम्मेदारी लेते हुए प्रेस कांफ्रेंस को स्वयं प्रोफेसर सतीश धवन ने संबोधित किया।प्रमुख टीम लीडर के रूप में उन्होंने आश्वस्त भी किया कि अनेक प्रौद्योगिकी के प्रयोग अभी सफल होने बाकी हैं, जिन्हें आगामी दिनों में पूर्ण कर लिया जाएगा। अगले साल जुलाई 1980 में एस.एल.वी.3 को लॉन्च करने में सफलता मिली और रोहिणी उपग्रह को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक भेजा गया।इस बार श्रेय उन्होंने दिया डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को और उन्होंने कहा कि प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिम्मेदारी आप संभालिए। डॉक्टर कलाम के अनुसार वे असफलता की ज़िम्मेदारी लेते थे लेकिन सफलता का श्रेय अपने सहयोगियों को देते थे।

नेतृत्व का काम अगर केवल आदेश देने और दूसरों पर जिम्मेदारियां थोप देने तक ही सीमित रहा तो फिर सफलता नहीं मिल पाती है। इसीलिए नेतृत्व करने वाले को मार्गदर्शन देने और योजना बनाने में प्रमुख भूमिका निभाने के साथ-साथ स्वयं आगे बढ़ कर जमीनी स्तर पर भी अपना योगदान करना होता है ताकि सहयोगियों में उत्साह और प्रेरणा का संचार हो सके। साथ ही यह भी उतना ही सच है कि बड़े जो कार्य करते हैं,उनका अनुसरण छोटे करते हैं।


योगेंद्र