अकेला‌ चिड़ा Yogesh Kanava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अकेला‌ चिड़ा

डाली सातवीं कक्षा की छात्रा, इस बार ही एक नया विषय सिलेबस में जुड़ा है आज उसी की कक्षा है। मैडम भी थोड़ी सी सोचती सी लड़कियों को इस विषय को बताने के लिए शुरू कहां से करूं। कुछ सोचते से मैडम ने सभी लड़कियों को कहा -

-देखो अब तुम सभी उस उम्र में आ गयी हो जहां पर यह सब जानना बेहद ज़रूरी है। आज जो मैं बताऊँगी वो ध्यान से समझो।

-और फिर मैडम ने उन सभी लड़कियों को मासिक धर्म से संबंधित जानकारियाँ देनी शुरू कर दी। मैडम बोलती जा रही थी।

-सेनिटेशन बेहद ज़रूरी है

-तभी डाॅली बोली जी मैडम यदि हम इस समय अपने अंगों की सफाई नहीं रखेंगे और यदि लम्बे समय तक एक ही नेपकीन या पैड लगाए रखेंगे तो कई तरह के इन्फेक्शन हो जाते हैं विशेषकर यूरिनरी ट्रेक्ट इनफेक्शन ।

-मैडम को घोर आश्चर्य हो रहा था ग्यारह साल से थोड़ी सी बड़ी डाॅली ये सब कैसे जानती है । इसकी उम्र की लड़कियों को ये सब तो बिल्कुल भी नहीं मालुम होता है और तो और कौन सा इन्फेक्शन होता है वो भी उसने डाॅली से कहा ।

-अच्छा बेटा ये बताओ तुम्हें कैसे मालूम है ये सब। मेरे पापा ने मुझे सब बता दिया है, बेड टच, गुड टच, पीरियड्स में देखभाल, सेनेटरी पैड सबके बारे में समझाया है ।

-डाॅली की ये बात सुनकर तो मैडम को जैसे कोई चार सो चालीस वॉल्ट का करेण्ट लगा हो वो आश्चर्य से बोली ।

-ये सब पापा ने बताया तुम्हें

-डाॅली ने हां भरी ।

-मैडम सोचने लगी जिस विषय पर इन लड़कियों को समझाने में संकोच कर रही थी वो इसके पापा ने समझाया है फिर इसकी मम्मी ने क्यों नहीं समझाया। उससे रहा न गया सो डाॅली से पूछ ही लिया ।

-ये सब बातें तुम्हें तुम्हारी मम्मी ने क्यों नहीं बताई ?

-मेरी मम्मी नहीं है, वो भगवान जी के पास है। पापा बताते हैं जब मैं डेढ साल की ही थी तभी मम्मी भगवान जी के पास चली गयी थी उसके बाद मेरी दादी मुझे कहीं छोड़कर पापा की शादी करना चाहती थी लेकिन मेरे पापा ने मुझे संभाल कर दादी का भी घर छोड़ दिया और यहां इस शहर में नौकरी कर ली।

-डाॅली की बातें मैडम ऐसे सुन रही थी मानो कोई पीर फक़ीर बोल रहा है। डाॅली की बातों में मगन मैडम को ध्यान नहीं रहा कि उसकी क्लास का टाइम कब का ही खत्म हो गया है और दरवाज़े पर दूसरी मैडम अपनी क्लास की बारी का इंतज़ार कर रही है। जब उसका ध्यान पड़ा तो दूसरी मैडम से केवल साॅरी बोला और चल दी क्लास से बाहर। क्लास के बाहर जाते समय भी उसके मन में एक ही बात लगातार ठक-ठक कर रही थी कि आखिर एक बाप अपनी लड़की को पीरियड्स से जुड़ी बाते, पैड कैसे लगाना है, सेनिटेशन जैसी सब बातें कैसे बता सकता है। कहीं इसका बाप इस लड़की के साथ।

इतना सा ख़्याल आते ही वो खुद ही जवाब देने लगी। मैं भी क्या-क्या सोचने लगती हूँ कभी कोई बाप अपनी ही बेटी के साथ भी कोई गलत हरकत कर सकता है क्या भला, वास्तव में पागल ही हूँ मैं भी ना । लेकिन हां ये तो मैं डाॅली से ज़रूर पूछूंगी कि उसके बाप ने उसे पैड लगाना किस तरह बताया, यदि इस लड़की को खुद के साथ समझाया है तो फिर तो ---

-बस वो इस प्रकार ही कई बाते सोचती रही, स्कूल का टाइम खत्म हो गया था। छुट्टी हो गई थी उसका मन कर रहा था कि वो अभी डाॅली को रोक कर अभी पूछ ले लेकिन उसने सोचा कल ही पूछूंगी। अगले दिन डाॅली के स्कूल आते ही मैडम ने उसे अकेले ही स्टाफ रूम में बुलाया, किस्मत से उस समय स्टाफ रूम में कोई नहीं था सो उसने डाॅली से पूछा तेरे पापा तेरे को तंग तो नहीं करते आइ मीन ---। वो तपाक से बोली - नो मेम मेरे पापा दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं। वो तो कहते हैं वो मेरी मम्मी भी है और पापा भी। मैडम जब मैं डेढ़ साल की थी ना --- ।

-हां वो तुमने बताया था लेकिन ---- । डाॅली फिर से बोली मैम मेरे पापा ने मेरे डेढ़ साल की उम्र से ही पूरे परिवार से खिलाफ होकर पाला है। अपने मां बाप को भी छोड़ दिया और इस शहर में आ गए। नौकरी करने लगे थे। मुझे अपने दफ्तर साथ ही लेकर जाते थे औरतों के लिए तो दफ्तर में बच्चों को दूध पिलाने और रखने का अलग कमरा था लेकिन कहते हैं मर्दों के लिए ऐसा नहीं था। पापा अपनी चेयर की बगल में ही तोलिए का झूला बना कुर्सी के हत्थे में मुझे लटका कर अपने पास रखते थे। मैं बड़ी हो गयी तो थोड़ा सा समझने लगी। कई बार मैंने ना पापा को रात में मम्मी को फोटो लेकर रोते भी देखा है। लेकिन मेरे सामने वो कभी भी नहीं रोते हैं। मेरे कारण पापा को कई नौकरियां छोड़नी पड़ी थी। हर बार एक ही बात थी दफ्तर में बच्ची को लेकर नहीं आ सकते हैं। पापा रिक्वेस्ट करते थे नहीं मानने पर नौकरी छोड़ देते थे। लेकिन मुझे अपने साथ ही रखा है। मैडम बोली बेटा वो पापा ने पैड लगान कैसे सिखाया तुम्हें ।

-मैम मेरी डाॅल को अण्डरवियर पहनाकर पापा ने मुझे उसमें पैड लगाना सिखाया था। वैसी भी एक बात बोलूं मैम बिना मां की बेटी बहुत कुछ तो अपने आप ही सीख लेती है और मेरे पापा तो आनली वन इन हाॅल वल्र्ड। मैडम बोली - अपने पापा से मिलवाओगी मुझे ।

-जी मेम

-बस इसके बाद मैडम ने उसे क्लास में भेज दिया। डाली सीधी लड़की है वो सोचती रही। एक पुरूष इतना बड़ा कदम उठा सकता है अपनी बेटी के लिए, दूसरी शादी भी कर सकता था, फिर उसने क्यों नहीं की --- शायद अपनी मरहूम बीवी से बेहद प्यार करता है। उसकी सोच की कड़ियाँ टूटी जब मिसेज वर्मा ने आकर उसे कहा - अरे यार तुम यहां बैठी हो ---- क्या हुआ। जवाब मिला ---- नहीं कुछ नहीं बस यूं ही

-क्यों किसी की याद आ रही है क्या, वैसे एक बात बोलूं अब पैंतीस पार की हो गई है यार किसी को पकड़कर शादी कर लो।

-मिसेज वर्मा की बातें सुनकर वो अपने ही ख़्यालों में खो गई। वो भी तो चाहती है किसी की होना लेकिन आज तक उसके मन का कोई मिला ही नहीं उसे। ख़्यालों में ही न जाने वो कितनी देर और स्टाफ रूम में ही बैठी रही। अगले दिन इत्तफाकन डाॅली के पापा डाॅली के साथ ही स्कूल छोड़ने आए थे शायद आज स्कूल की वैन छूट गयी थी उसकी, पहले भी कई बार वो आते थे लेकिन कभी ध्यान नहीं दिया था किन्तु आज तो वो डाॅली के पापा को लगातार देखे जा रही थी तभी डाॅली ने आकर कहा मैम मेरे पापा, कल आपने कहा था आप पापा से मिलना चाह रही थी। वो लगातार अभी भी देखे ही जा रही थी तभी डाॅली के पापा ने उसको नमस्ते किया उसने झेंपते से नमस्ते का जवाब दिया और बोली आपकी बेटी बहुत समझदार है वो बोली ।

-जी मैडम सब आप लोगों से सीखती है। उसकी सरल और सहज बोली सुनकर मैडम मंत्रमुग्ध सी हो गयी। एक मदहोशी सी छाने लगी थी उस पर। थोड़ा सा संभलती सी बोली, साॅरी सर मेरी क्लास का टाइम हो गया है। ओ.के. डाॅली बेटा बाय। बाय तो कर दिया लेकिन लगातार सोचे जा रही थी बस डाॅली के पापा के बारे में, उसने भी कितने ही मर्दों को देखा था लेकिन आज पहली बार कोई उसके दिल तक हलचल मचा रहा था जिसको वो पूरी शिद्दत से महसूस कर रही थी। हवा में गुनगुना रही थी घटाएं ढोल बजा रही थी। इस आकर्षण की खुशी में, तभी एक बिजली कौंधी। ये मैं क्या सोच रही हूँ। आज मेरा खुद पर काबू क्यों नहीं है। नहीं मैं शायद बहक रही हूँ, तभी मन ने कहा यही तो पहली नज़र का पहला प्यार है।

 


मैडम चली गय । डाॅली के पापा ने भी कोई खास नोटिस नहीं किया और अपनी गाड़ी स्टार्ट की और चल दिया अपने दफ्तर।

जाने कितनी तेजी से पंख लगाकर उड़ जाता है तरूणाई अब पूर्ण यौवन में बदल चुकी थी। आम्रवल्लारियों से पे्रम को किला अपना पे्रम राग गाने लगी थी, हां डाॅली पूरे बाइस वर्ष की हो गयी थी। एम.बी.ए का इम्तिहान पास कर लिया था और उसे एक मल्टीनेशनल कम्पनी में एच.आर. मैनेजर का पद भी मिल गया था। तरूणी से युवती बनी डाॅली अब प्रेम के स्वपनिल सागर में गोते लगाती सी, हां उस का ना सागर ही था। एम.बी.ए. की पढ़ाई के दौरान ही उसकी मुलाक़ात हुई थी सागर से। वास्तव में सागर सी गहराई उसकी आंखों में और विचारों में, बासन्ती बयार से सरकते दुपट्टे को देख सागर ने कहा था डाॅली ये प्रेम बयार है मेरा साथ दोगी पूरे जीवन के लिए। डाॅली कोई जवाब नहीं दे पायी थी। उसके आंखों के सामने पापा का चेहरा आ गया। बिना कोई जवाब दिए ही डाॅली वहां से चली गयी। धीरे-धीरे एक दूसरे के करीब आते गए और इतने करीब की अब एक दूसरे के बिना रह पाना मुश्किल लगता था तभी डाॅली ने कहा - सागर आज मैं तुम्हारी बात का जवाब देती हूँ। तुमने पूछा था ना कि क्या मैं जीवन भर के लिए तुम्हारे साथ चल सकती हूँ तो मेरा जवाब है हां लेकिन एक शर्त है।

-सागर ने कहा यार ये शर्ते वर्ते बिल्कुल नहीं बस साथ चलना है इट्स आलराइट।

-नो सागर, इट्स नाट आल राइट, मैं शादी उसी आदमी से करूंगी जिसको यह मंजूर हो कि वो मेरे पापा को साथ रख सकता है उनकी पूरी जिम्मेदारी सहित। यदि मंजूर है तो हां नहीं तो ना। अब बोलो तुम्हारा क्या जवाब है।

-डाॅली तुमने ये कैसे सोच लिया कि मैं मना करूंगा।

-नहीं सागर यह कहना बहुत आसान होता है लेकिन यर्थाथ का धरातल बहुत पथरीला होता है उम्मीदों के परिंदे इस पर आते ही लहूलुहान हो जाते हैं और छटापहट ताउम्र रहती है यह निर्णय किसी भावावेश या ज़ल्दबाजी का नहीं हो सकता है। बल्कि समय लेकर सोचने समझने का है उसके बाद ही अपना निर्णय बताना ।

-नही डाॅली मैने तुमसे प्यार किया है बस यही काफी है इसलिए पूरी तरह से मेरी हां है । तुम्हे मालुम है ना सागर मेरे लिए मेरे पापा है और पापा के लिए केवल मै ही हूँ । मेरे लिए तुम और बच्चे भी रहोगे लेकिन पापा के लिए तो केवल मैं ही रहूँगी ना । पता है जब मैं डेड़ साल की थी तभी मम्मी हमें छोड़कर भगवान जी के पास चली गयी थी तभी से पापा ने मुझे मां और बाप दोनों की तरह पाला है। मेरे अलावा उनका इस दुनिया में कोई नहीं है।

-नहीं डाॅली आज से मैं भी हूँ उनका ही।

-अपनी इन्हीं पुरानी यादों में खोई डाली अपनी सवा साल की बेटी की पोटी साफ करते करते ही ना जाने इस तरह से गुम हो गयी थी। अपनी बेटी में वो अपना बचपन देख रही थी और खुद में अपने पापा को। वो महसूस कर रही थी डेढ़ साल की डाॅली की पोटी उसके पापा कितनी शिद्दत से साफ कर रहे हैं। उसे अपनी सीने से लगा मां का प्यार दे रहे हैं। इसी तरह से ख़्यालों में उसने अपनी बेटी को अपनी सीने से लगा चिपका सा लिया मानो उस ऊष्मा को महसूसना चाहती थी जो उस समय उसके पापा से मिली थी अपनी डेढ़ साल की उम्र में।

-दिनों के भी न जाने कौन से पंख होते हैं पता ही नहीं चलता कितनी जल्दी उड़ते जाते हैं। डाॅली की बेटी कोई चार साल की हो गयी थी। बाहर लाॅन में एक पेड़ पर चिड़िया और चिड़ा अपना घोंसला बनाने में व्यस्त थे। छोटी सी गुड़िया रोज़ाना देखती थी एक दिन किसी दुर्घटना में चिड़िया मर गयी थी उसी दिन से वो चिड़ा बिल्कुल गुमसुम सा रहता था, कोई उछल कूद नहीं। उसने अपने नाना से पूछ ही लिया -

-नानू इसकी चिड़िया तो मर गयी अब ये क्या करेगा ।

-कुछ नहीं बेटा कुछ दिन उदास रहेगा फिर शायद दूसरी चिड़िया से दोस्ती कर लेगा ।

-सहज सा जवाब नाना ने अपने नातिन को दिया

डाॅली भी कुछ ही दूरी पर खड़ी दोनों की बातें सुन रही थी तभी गुड़िया के एक और सवाल ने निरूत्तर सा कर दिया था नाना को

-तो फिर नानू आपने दूसरी नानी से दोस्ती क्यों नहीं की। आप भी तो अकेले ही है ना आपको नानी नहीं चाहिए।

-गुड़िया की बात का कोई जवाब नहीं दे पाया था वो तत्काल बस आंखें छलक आयी थी फिर थोड़ा सा संभल कर बोले

-नहीं बेटा मैं अकेला कहां हूँ मेरे पास गुड़िया है और गुड़िया की मम्मी है उसके पापा है । सब तो हैं।

-हां सब तो है लेकिन नानी नहीं है ना इसीलिए आप उदास रहते हैं चलो आपके लिए एक नई नानी ढूंढकर लाएंगे ।

-डाॅली ने गुड़िया को डांटते हुए कहा क्या बेकार की बातें करती रहती है। चलो अपना होमवर्क कर लो और हां इतनी जबान मत चलाया कर।

-डाॅली ने गुड़िया को तो डांट दिया लेकिन आज पहली बार उसे भी लगा कि एक साथी के बिना कितना अधूरा रहता है आदमी, पापा ने मेरे लिए अपना पूरा जीवन होम कर दिया, पापा को भी तो कोई सहारा चाहिए ना, कुछ तो करना ही चाहिए ।

-शाम हो गयी थी डाॅली की हिम्मत नहीं हो रही थी पापा के सामने जाने की पता नहीं क्यों आज उसे भीतर ही भीतर बात कचोटती जा रही थी जो गुड़िया ने अपने भोलेपन में ही कही थी ।

-सागर के आते ही डाॅली ने सारी बात कह डाली ज्यूं की त्यूं। सागर को भी लगा गुड़िया ने एकदम सही बात कही है बुढ़ापे का सहारा तो चाहिए वरना आदमी अपने आप में ही घुटता रहता है। कैसे कहे और क्या कहे ।

-गुड़िया मम्मी पापा की बातें सुन रही थी चुपचाप उसे डर भी लग रहा था कि अब तो डांट पडे़गी लेकिन हिम्मत करके फिर बोली -

-पापा मैंने ग़लत कहा क्या, नाना को नानी नहीं चाहिए क्या, वो देखो ना वो, उस पेड़ पर है ना, वो चिड़ा और चिड़िया अपना घर बना रहे थे, पता है कल उसकी चिड़िया मर गयी थी और वो ना --- वो चिड़ा है ना उदास हो रहा था नाना भी तो नानी के बिना उदास होते होंगे ना ।

-छोटी से गुड़िया की मासूम बातें सुनकर सागर सोच में पड़ गया तभी वो फिर से बोली-

अरे आप दोनों इतना सोचो मत मैंने नाना के लिए नानी ढूंढ भी ली है। वो है ना पार्क में वो नहीं आती है जिनको मैं नानी बोलती हूँ बस उन्हीं को नाना की नानी बना लेते हैं, नाना भी खुश, नानी भी खुश, वो भी तो अकेली ही है ना, और हां नाना के साथ वो खूब मजाक भी करती है दोनों की जोड़ी खूब जमेगी ।

-चुप गुड़िया पता नहीं क्या-क्या बोले जाती है अब एक शब्द भी और निकाला तो थप्पड़ मारूंगी ।

-डाॅली ने गुड़िया को डांटते से कहा लेकिन तभी सागर बोला यार डाॅली सुनो गुड़िया गलत नहीं कह रही है।

-तुम्हें पता भी है वो कौन है मुसलमान है ज़रीना आंटी।

-तो क्या हुआ, हम लोग बात तो कर ही सकते हैं।

-तभी डाली तपाक से फिर बोली

-पापा एक बात और बताऊँ नाना भी नानी को ना प्यार से देखते हैं रोज़ाना और हां खूब बातें भी करते हैं ।

-तू फिर बोली - इस बार हाथ उठाते से डाॅली बोली लेकिन न जाने क्या सोचकर थप्पड़ नहीं मार सकी । कुछ पल रूकी और फिर सीधी चल दी ज़रीना आंटी के घर ।