झोपड़ी - 14 - मेरी जान Shakti द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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झोपड़ी - 14 - मेरी जान

किसी की जान बहुत कीमती होती है। यह पता तभी चलता है जब खुद किसी अपने की जान पर बन आती है। दादाजी और मैं एक दिन जंगल में घूम रहे थे। जंगल को भी हम लोगों ने अपनी तरफ से सुंदर और सजीला बना रखा था। जंगल में एक हिरण का बच्चा हमें दिखा। हमें देखते ही वो लंगड़ा कर भागने लगा। लेकिन कुछ दूर जाकर वह गिर पड़ा और कातर नजरों से हमारी तरफ देखने लगा। शायद वह समझ गया था कि अब उसकी जिंदगी का अंत आ गया है। हम जैसे ही उसके पास पहुंचे। वह आत्मसमर्पण की सी मुद्रा में जमीन पर लेटा हुआ था। यह देखकर हमें उस पर बहुत दया आई। मैंने अपने पास से पानी की बोतल निकाली और उसके मुंह से सटा दी। हिरण पर एक बहुत बड़ा घाव लगा हुआ था। मैंने पानी से उसका घाव धोया और इससे हिरण के बच्चे को काफी सुकून महसूस हुआ। इसके बाद दादाजी ने कुछ जंगली पौधों की पत्तियां निकालकर हथेली से पीसी और उसे हिरण के घाव पर लगा दिया। इसके बाद मैंने अपनी नई कमीज उतार दी और उसे फाड़कर पट्टी सी बना ली और उसे हिरण के घाव के ऊपर लपेट दिया। अब हिरण का बच्चा काफी सुरक्षित था। काफी दिनों बाद जब हम फिर उसी रास्ते से निकले तो हमने देखा कि हिरण का वह बच्चा बहुत तेजी से उछल- कूद कर रहा है। वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया है और उसकी पट्टी भी निकल गई है। हम यह देखकर बड़े खुश हुए।


अब हम ने गांव में एक बहुत बड़ा पशु चिकित्सालय खोलने का मन बना लिया। हालांकि इस कार्य के लिए अगल -बगल से और गांव के संपन्न लोगों से काफी चंदा भी आया। जिससे हमारा कार्य और भी आसान हो गया। कुछ ही दिनों में एक बहुत बड़ा, सुंदर और आधुनिक पशु चिकित्सालय बनकर तैयार हो गया। इसमें विश्वस्तरीय सुविधाएं थी। अब हमने इसमें विश्वस्तरीय डॉक्टर और अन्य स्टाफ भी रखा। अब हमारे इलाके और दूर-दराज तक कोई पशु चाहे वह पालतू हो या जंगली इलाज के अभाव में मर नहीं सकता था। यह कार्य कर के हम बड़े खुश हुए। जैसे -जैसे समय व्यतीत होता गया वैसे-वैसे हमारे पास धन भी बढ़ता गया और साथ ही साथ इस धन का सही उपयोग कैसे किया जाए, वह कार्य भी सामने आते गए। अब हमने वह कार्य अपनी इच्छा अनुसार करके अपने धन का पूर्ण सदुपयोग किया।


जंगल में और गांव में पशुओं की संख्या नियंत्रित रहे, इसके लिए हमने आधुनिक साधनों का प्रयोग किया। जिससे कि उनके खानपान और विकास में अधिक जनसंख्या के कारण कोई कमी ना आने पाए। हमने जंगल और गांव के आधे से ज्यादा पशुओं की नसबंदी करवा दी। 90% बंदरों की भी नसबंदी करवा दी। इसी प्रकार हमने 99% नीलगायों की नसबंदी करवा दी। हमने किसी जानवर को मारा नहीं। लेकिन जो भी जानवर हमें नुकसान देने लगा। हमने उसकी नसबंदी करवा दी। इससे हमें पाप भी नहीं लगा और गांव और जंगल का माहौल भी सुरक्षित रहा। अधिक जनसंख्या बढ़ने से जो -जो खतरे आ सकते हैं। वह हमने पहले ही निपटा दिए।

हमारे गांव में पालतू पशु कम संख्या में और अधिक दुधारू नस्ल के हो गये। जिससे उनकी जनसंख्या स्थिर हो गई और उनके लिए हरी घास, चारा, पर्याप्त मात्रा में हो गया। जिससे हमारे पालतू जानवरों की नस्ल धीरे-धीरे और विकसित होती गई। साथ ही जंगल के जानवर भी कम मात्रा में हो गये। जिसके कारण वह भी अधिक स्वस्थ अधिक अहिंसा वादी हो गये।


गांव में हमारे विचारों पर चलते हुए स्वयं गांव वासियों ने भी अपनी जनसंख्या स्थिर करने का प्रण किया और कम मात्रा में बच्चे उत्पन्न करने लगे। जिससे कुछ ही दिनों में गांव के मनुष्यों की जनसंख्या भी स्थिर हो गई। जिसके कारण अब हमारी ग्राम सभ्यता अधिक विकसित, अधिक विद्वान, हष्ट -पुष्ट, स्वस्थ और शक्तिशाली होने लगी।


जंगल में भी हमने बंजर जमीन को समतल करवा कर वहां अच्छी प्रजाति के फलदार, इमारती, फूलदार और घास वाले पेड़- पौधे रोपे और उनकी देखभाल की। इस तरह हमारा जंगल एक मिश्रित जंगल के रूप में विकसित हो गया। जिसके कारण अब हमारे इलाके में पहले से अधिक बारिश होने लगी और मौसम पहले से अच्छा बन गया। जिससे गांव वासियों और जानवरों के लिए मौसम और अधिक बढ़िया हो गया और हमारा क्षेत्र अधिक उपजाऊ, अधिक समृद्ध शाली, अधिक विकसित होने लगा।


दूर- दूर से लोग हमारे मिश्रित जंगल के मॉडल को देखने के लिए आने लगे। जैसे उत्तराखंड में जंगली जी का मिश्रित वन प्रसिद्ध है। उसी प्रकार हमारा वन भी जो कि मिश्रित ही था, दूर-दूर तक प्रसिद्ध होने लगा और देश -विदेश के लोग और विद्वान उसे देखने के लिए आने लगे। शोध छात्र-छात्राएं भी उस जंगल को देखने के लिए वहां आने लगे।


हमारे जंगल में विविध प्रजाति के पेड़ -पौधे हो गए। साथ ही जंगल में भिभिन्न प्रजाति के पशु -पक्षी भी हो गये। जिससे एक प्राकृतिक चेन यहां बन गई। जंगलों में घास आदि भी खूब उत्पन्न होने लगी। जिसे चरकर हमारी दुधारू पशु और भी दुधारु होते गए। जिससे गांव की दुग्ध संपदा भी बढ़ती चली गई और हमारे गांव का दूध दूर-दूर के इलाकों में प्रसिद्ध हो गया।


इस के कारण हमारे इलाके में ऑक्सीजन बहुत अधिक मात्रा में बढ़ गई। जिसके कारण हमारे इधर के पशु, पक्षी, जानवर मनुष्य आदि और भी अधिक लंबे- चौड़े और शक्तिशाली होने लगे। कहा जाता है कि डायनासोर के काल में ऑक्सीजन ज्यादा थी। इसी कारण डायनासोर प्रजाति के प्राणी लंबे -चौड़े अधिक होते थे। लगभग यही सिद्धांत हमारे यहां भी काम करने लग गया। अब हमारे गांव के लोग और पशु -पक्षी सतयुग की तर्ज पर अधिक लंबे -चौड़े और तगड़े होने लगे। जिसके कारण अपने देश की फौज में उनका चयन ज्यादा किया जाने लगा और हमारे देश की फौज उनके कारण और भी तगड़ी होती चली गई।

समय पर बारिश होने लगी। अनाज अच्छी मात्रा में होने लगा। दुधारू पशु अच्छी मात्रा में दूध देने लगे। फल, सब्जी, अनाज अधिक मात्रा में होने लगा। जिसके कारण स्वत: ही हमारा एरिया आध्यात्मिक और भौतिक प्रगति के नए सोपान तय करने लगा।