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झोपड़ी - 6 - राजपूत का प्यार

राजपुत्र शब्द का अपभ्रन्श राजपूत है। अभय सिंह एक राजपूत परिवार से है। वह एक लड़की निर्मला से प्यार करता है निर्मला भी उससे बहुत प्यार करती है। अभय सिंह एक छोटी- मोटी नौकरी करता है। दैव योग से अभय सिंह का एक्सीडेंट हो जाता है। उसकी प्राइवेट नौकरी भी छूट जाती है। वह दाने-दाने को मोहताज हो जाता है। निर्मला और अभय सिंह की शादी होने वाली थी। अभय सिंह शादी के लिए इंकार कर देता है। क्योंकि उसकी कंडीशन अपना परिवार पालने की और शरीर संभालने की नहीं रही।


लेकिन निर्मला को इससे कोई असर नहीं पड़ा। वह चाहती है कि वह खुद नौकरी करे और अपने परिवार को पाले। वो अभय सिंह से शादी करने पर अड़ी हुई है। जब समझाने से भी निर्मला पर कोई असर नहीं पड़ता तो अभय एक दिन चुपके से लाठी का सहारा लेकर अपने घर से चुपके से कहीं चला जाता है। इसके पीछे अभय सिंह की सोच ये है कि क्योंकि उसका आधा बदन बेकार हो चुका है, इसलिए वो निर्मला को पूरी ख़ुशी नहीं दे पाएगा और प्रेम का मतलब और शादी का मतलब केवल एक साथ रहना ही नहीं, प्यार का मतलब इससे भी बहुत आगे है।


प्यार में जिम्मेदारियों भी होती हैं और वो तो जिम्मेदारियों को निभा नहीं पाएगा। इसलिए निर्मला से शादी करना बेमानी ही होगी। इसलिए अभय सिंह घर छोड़ देता है। कुछ समय तक निर्मला अभय सिंह का इंतजार करती है। अब निर्मला को क्या करना चाहिए? अभय सिंह ने तो प्यार में भी राजपूत धर्म निभाया। राजपूत उसी को कहते हैं जो निर्बलों की रक्षा करता है और अपने कारण किसी पर कष्ट नहीं आने देता।


अभय सिंह घूमते- घूमते भ्रमण करता रहता है। धीरे-धीरे वह मेरे गांव के नजदीक पहुंचता है। मेरे गांव का वातावरण अच्छा और सुंदर देखकर उसका दिल यहीं रहने का हो जाता है। वह एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर गांव के किनारे पर रहने लगता है। वो पढ़ा -लिखा था। इसलिए गांव के कुछ बच्चों को ट्यूशन वगैरह भी पढ़ाने लगता है। जिससे थोड़ी सी इनकम जीविकोपार्जन लायक उसकी हो जाती है। वह एक टाइम का खाना खाता और समय गुजारता। एक दिन घूमते -घूमते मेरी नजर अभय सिंह पर पड़ी। उसके चेहरे को देखते ही मैं समझ गया कि यह कोई पढ़ा- लिखा व्यक्ति है। समय की मार ने इसे यहां फेंक दिया है। धीरे-धीरे मैं उसके बारे में जानकारियां जुटाने लगा। यह सब कार्य मैंने गुप्त रूप से किया। मैं समझ गया कि समाचार पत्रों में जिस अभय सिंह की चर्चा थी। वह यही है। अब मैंने अभय सिंह से दोस्ती करनी शुरू कर दी। वह मेरा अच्छा दोस्त बन गया और उसने मुझे अपने बारे में सब कुछ बता दिया। क्योंकि मुझे दादा जी के साथ रहते- रहते जड़ी- बूटियों का अच्छा ज्ञान हो गया था। इसलिए मैं उन जड़ी -बूटियों से अभय का उपचार करने लग गया। कुछ ही महीनों में अभय पहले जैसा ही सुंदर और स्वस्थ हो गया। अब मैंने गांव में ही अभय सिंह को कुछ जमीन और एक अच्छा सा पक्का मकान प्रदान किया। अभय सिंह वहीं रहकर पशुपालन और खेती करने लगा और अपने छोटे से मकान में आराम से रहने लगा। उसे नौकरी करने की कोई जरूरत नहीं थी। क्योंकि नौकरी से ज्यादा वह गांव में ही कमा रहा था। अब मैंने उसे निर्मला की याद दिलवाई। अभय सिंह के पास निर्मला का नंबर था। इसलिए मैंने अभय सिंह की तरफ से निर्मला से बातचीत की। कुछ ही दिनों बाद निर्मला अपने घर वालों के साथ वहां आ पहुंची। निर्मला अभय सिंह को देखकर बड़ी प्रसन्न हुई। दोनों प्रेमियों का मिलन हुआ और मेरे कहने पर दोनों ने शादी कर ली। निर्मला को भी मेरे गांव का माहौल पसंद आ गया। शादी के बाद वह अभय सिंह के साथ मेरे ही गांव में ही रहने लग गई। इस प्रकार इस प्रेम कथा का सुखद अंत हुआ। अभय सिंह ने भी राजपूती धर्म निभाया। निर्मला ने भी शादी से पहले ही पातिव्रत धर्म का पालन किया।


शादी के कुछ समय बाद उनका एक पुत्र उत्पन्न हुआ। देश की बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए उन्होंने यहीं पर विराम लगाने की सोची और उस एक पुत्र का ही पालन बड़े चाव से करने लगे। उनके इस इरादे की भनक मुझे लगी तो मैं भी बड़ा प्रसन्न हुआ। वास्तव में देश की जनसंख्या आज इतनी है कि लोग पहले तो शादी करे ना और अगर करे तो पुत्र -पुत्री उत्पन्न न करें। अगर करें भी उत्पन्न तो एक ही उत्पन्न करें। मेरा आपको यही संदेश है कि देश की बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाने के लिए मेरे इस व्रत का आप मनोयोग से पालन करें, तो देश का भला होगा और जनसंख्या स्थिर होगी। 10 पुत्रों से बढ़िया है एक ही पुत्र और उसका पालन पोषण और शिक्षा दीक्षा अच्छी तरीके से हो।


अभय सिंह और निर्मला अब मेरे गांव में रम चुके थे। अब मेरा गांव उनका गांव भी हो चुका था। उन्हें धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी। क्योंकि मेरे गांव की जमीन बहुत उपजाऊ थी और यहां उन्नत नस्ल के पशु थे। कृषि और पशुपालन से ही यहां कोई भी व्यक्ति थोड़ी सी मेहनत से ही अमीर बन सकता था। कुछ ही समय में निर्मला और अभय सिंह के पास गाड़ी, मोटर, नौकर -चाकर सब हो गए। उनका बच्चा भी अच्छे अंग्रेजी मीडियम के स्कूल में पढ़ने लग गया और बड़ा होकर वह डॉक्टर या इंजीनियर बने, यही सब की दुआ थी।

अक्सर लोग अभय से उसके बारे में पूछते तो अभय यही कहता कि राजपूतों का यही धर्म है कि उनके कारण किसी को कष्ट ना हो और जो राजपूत सक्षम है, तो जो कष्ट में पड़े हुए व्यक्ति हैं उनकी वह मदद करे। उनकी रक्षा करे। यही क्षत्रिय धर्म है। यही राजपूत का मुख्य कर्तव्य है। और राजपूतों का राजपूती धर्म ही देश धर्म है और राजपूतों का मुख्य उद्देश्य और धर्म देश और धर्म की रक्षा करना ही है। एक राजपूत सबसे पहले एक सच्चा मानव होता है। वह एक सच्चा भारतीय होता है। उसका मुख्य लक्ष्य मानवता और अपने देश की रक्षा करना होता है। किसी को दुख देना उसके स्वभाव के विपरीत होता है।

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