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झोपड़ी - 10 - बनारस के पंडित

हमारे गांव के गुरुकुल में बहुत अच्छी व्यवस्था चल रही थी। एक बार दादा जी, मैं और मौसी एक गाड़ी बुक करके बनारस घूमने गये। यह गाड़ी एक बड़ी बस थी। यह अच्छी शानदार बस थी। हम तीनों के साथ गांव के कई लोग थे। पूरी बस भरी हुई थी। बस में एक कुक, एक ड्राइवर, एक कंडक्टर, 1-2 नौकर चाकर आदि थे। हमने पूरे भारत का भ्रमण किया। इस क्रम में हम बनारस में घूमने के लिए गए। हमने बनारस के घाटों की यात्रा की। बनारस की सुंदरता को देखकर हम बड़े प्रसन्न हुए। इस दौरान मुझे बनारस के पंडितों के ज्ञान का पता चला। तो मैंने आगामी महीने में होने वाले अपने गांव के बड़े से हवन में बनारस के पंडितों को भी हाथों-हाथ निमंत्रित कर दिया।

बनारस के पंडितों ने भी हवन में आकर अपना रोल निभाया। बनारस के पंडितों के ज्ञान से हम गांव वाले बड़े प्रसन्न हुए और हमने उन्हें अच्छी -खासी सैलरी पर अपने यहां गुरुकुल में पढ़ाने के लिए मनाया। उनमें से कुछ पंडित इस बात को मान गए। उनके रहने, खाने, पीने की व्यवस्था हमने अपने गांव में की और उन्हें अच्छी सैलरी देने का वायदा भी किया और कुछ नगद धनराशि भी एडवांस के रूप में दी। बनारस के कुछ पंडितों के हमारे गुरुकुल में आने से हमारा गुरुकुल और भी ज्यादा एडवांस हो गया। अब हमारे गुरुकुल में संस्कृत विषय और अन्य विषयों पर बहुत गहन चिंतन के साथ अध्ययन व अध्यापन होने लगा।


इस तरह भारत के श्रेष्ठ पंडितों और ज्ञानियों को हमने अपने गांव में जमा करना शुरू कर दिया। इन्होंने सारे भारत वर्ष और सारे विश्व के ज्ञान का निचोड़ निकालना शुरू किया और नए- नए अनुसंधान करने शुरू किये और यह विज्ञान और अनुसंधान एक ऑप्शनल विषय के रूप में गुरुकुल और स्कूल के छात्र छात्राओं को पढ़ाया जाने लगा। जिससे हमारे छात्र ज्ञान के मामले में विश्व में सबसे एडवांस हो गए। इस तरह हमने मां सरस्वती की शुद्ध दिल से आराधना शुरू कर दी। यह देखकर मां सरस्वती भी हमसे अत्यंत प्रसन्न हो गई और हमारे गांव से बड़े -बड़े अफसर, बड़े -बड़े ज्ञानी, बड़े-बड़े पंडित, बड़े -बड़े वैज्ञानिक निकलने लग गये। जो बड़े होकर अपने देश की सेवा मे प्रण -प्राण से जुड़ने लगे।


हमारे गुरुकुल में ज्ञान- विज्ञान की प्राचीन और आधुनिक टैक्निक की शिक्षा भी दी जाने लगी। साथ ही अंतरिक्ष विज्ञान, इंजीनियरिंग, डॉक्टरी आदि की शिक्षा भी एडवांस लेवल पर दी जाने लगी। क्योंकि हमने अपना गुरुकुल और अपने विद्यालय गांव से थोड़ी दूर एकांत में बसाये थे। इसलिए हमारे पास उनका विस्तार करने के लिए काफी जमीन थी। इस प्रकार हमने गांव के साथ ही विश्वविद्यालय और स्कूल के रूप में एक आधुनिक नगर ही बसा दिया था। जहां दूर-दूर से सारे विश्व से और सारे देश से ही मेधावी छात्र- छात्राएं पढ़ने के लिए आने लगे। हमारा सपना था हमारे गांव की शिक्षण संस्थाएं नालंदा और तक्षशिला महाविद्यालय से भी आगे निकल जाए और शायद मां सरस्वती भी यही चाहती थी।


हमने अपने गांव में प्राचीन धनुर्विद्या पर गुप्त रूप से अनुसंधान किया और योग्य छात्र-छात्राओं को ही इनका ज्ञान बांटा। मैंने ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र, ब्रह्मास्त्र और आग्नेयास्त्र आदि पर भी शोध करने की अनुमति अपने विद्वानों को दी। यह ज्ञान भविष्य में हमारे और हमारे देश के बहुत काम आ सकता था।


हमने वेद, महाभारत, रामायण आदि ग्रंथों का अनुसरण करके धनुर्वेद का पुनरुत्थान करने की सोची। मेरे आग्रह पर दादाजी ने गुरुकुल में धनुर्वेद का एक अलग विभाग बनाने की संस्तुति दी और कुछ ही दिनों में यह विभाग बनकर तैयार हो गया। इस विभाग का कार्य धनुर्वेद से संबंधित बातों पर ज्ञान अर्जित करना और अनुसंधान करना ही था। हम धनुर्वेद की कई बातों का प्रैक्टिकल करने में सफल हुए। यह हमारी बहुत बड़ी उपलब्धि थी। इन सभी बातों को दादाजी के कहने पर एक ग्रंथ की शक्ल में सुरक्षित रखा गया, ताकि भावी पीढ़ी को भी ये ज्ञान आसानी से पहुंचाया जा सके।


इसी प्रकार हमने ज्ञान की अलग-अलग विधाओं के अलग-अलग विभाग स्थापित करवाए और इस ज्ञान को लिपिबद्ध करवाकर सुरक्षित रखवा दिया। इस तरह से हम मानवता की बहुत सेवा कर रहे थे। हमने सोमरस और अमृत पर भी कई अनुसंधान किये। मनुष्य के बूढ़ा होने की प्रक्रिया, उसे रोकना। मनुष्य के मरने की प्रक्रिया, उसे रोकना आदि पर भी हमने गहन अनुसंधान करवाए। क्योंकि यह बहुत संवेदनशील विषय थे। इसलिए महाविद्यालय परिसर की रक्षा के लिए हमने सिक्योरिटी गार्डों की भी व्यवस्था की और महाविद्यालय परिसर की विश्व स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की।


धीरे-धीरे मेरे गांव के अगल-बगल हमारे प्रयास से स्मार्ट विश्वस्तरीय नगर उग आए। लेकिन हमने इस बात का ध्यान रखा कि यह नगर प्रदूषण और भ्रष्टाचार से रहित हों। साथ ही हमारे गांव की मौलिक पहचान भी बरकरार रहे और यह सब कहीं प्रदूषण की भेंट न चढ़ जाए।


इसके साथ- साथ हमने ओजोन परत के बारे में भी अनुसंधान किये और उसको सुरक्षित रखने की दिशा में भी काफी प्रयास किए। साथ ही हमने अपने क्षेत्र, अपने देश और विश्व की अर्थव्यवस्था का गहन प्रैक्टिकल अध्ययन भी करवाया और इस पर नवीन अनुसंधान भी किये। जिससे कुछ ही दिनों में ओजोन परत में उल्लेखनीय सुधार आने लगा और हमारा देश कर्ज के जाल से भी धीरे-धीरे निकलने लगा और जो ब्याज के रूप में बड़ी रकम विदेशों को जाती थी, वह भी बचने लगी। जिससे हमारे देश के युवाओं को अधिक रोजगार मिलने लगा। क्योंकि ब्याज के रूप में दी जाने वाली रकम से कई लोगों को अच्छा रोजगार मिल सकता है।

प्रिय पाठकों, प्रिय मित्रों आपको क्या लगता है? हमने क्या गलत किया? क्या सही किया? कृपया अपने विचारों से हमें अवगत जरूर कराएं और आपके विचार में हमें और क्या-क्या करने की जरूरत है? विद्वान और मननशील पाठकों के धैर्य पूर्वक विचारों का हम अपने जीवन में जरूर इस्तेमाल करते हैं। ताकि हमारा जीवन और हमारा परिवेश और भी उत्तम और और भी पर्यावरण के निकट आ सके और हम उस परम सत्ता उस परमपिता परमेश्वर के और भी ज्यादा नजदीक आ सके। धर्म और विज्ञान की एक साथ उन्नति हो। क्योंकि धर्म और विज्ञान उस एक परम सत्ता, उस परम परमेश्वर के दो पुत्र हैं।

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