Jhopadi - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

झोपड़ी - 3 - बंजर जमीन

हमारे देश में जंगल बहुत तेजी से खत्म हो रहे हैं और अनाज की भी थोड़ा बहुत कमी है। इसलिए मैंने सोचा कि कहीं बहुत ज्यादा बंजर जमीन मिल जाए तो उसको ठीक करके मैं वहां हरियाली उगाऊंगा और साथ ही पशुपालन और खेती भी करूंगा। भगवान की कृपा से मुझे एक जगह बहुत सस्ते में बहुत ही ज्यादा बंजर जमीन मिल गई। मैंने वह जमीन खरीद ली। उस जमीन को मैंने समतल किया और जमीन के चारों और बाउंड्री करवाई। उस जमीन का मैंने जैविक उपचार कराया। धीरे-धीरे वो जमीन शस्य श्यामला हो गई और वहां हरियाली छा गई। जमीन के एक कोने में एक बहुत खूबसूरत पुराना सा महल था। उस महल को मैंने रिपेयरिंग करवा कर और सजा संवार कर बहुत ही सुंदर बना दिया। महल के बगीचे को भी मैंने पुनर्जीवित किया और महल और उसका बगीचा बिल्कुल अपने शुरुआती निर्माण के दौर से भी ज्यादा सुंदर दिखाई देने लगा।


जमीन के कुछ हिस्से पर मैंने सुंदर उपवन बनाया। कुछ हिस्से पर खेती करवाई और कुछ हिस्से को पशुओं के लिए चरागाह बना दिया। अब मैंने अपने आसपास के गांव के और शहरों के सभी आवारा पशु जमा करवाएं और उस चरागाह में छोड़ दिए। इस विस्तृत लंबे -चौड़े चरागाह में आकर वह पशु बड़े खुश हुए और धीरे-धीरे स्वस्थ, सुंदर और खुश रहने लगे। इस तरह मैंने आसपास के इलाके से आवारा पशुओं के आतंक का भी सफाया कर दिया और आवारा पशुओं को एक खुली अच्छी जगह जीवन यापन के लिए उपलब्ध करवा दी। साथ ही साथ मैंने अपने बहुत बड़े से फार्म हाउस में मछलियां, बत्तख, मुर्गियां, मोर आदि कई किस्म के पशु -पक्षी और जानवर आदि पाले। मैंने यहां मधुमक्खियों भी पाली। इस फार्म में ऑर्गेनिक तरीके से खेती करवाई। इससे बहुत सुंदर उपज पैदा हुई। अपनी जरूरत की उपज मैंने अपने पास रख कर बाकी मार्केट में भेज दी। मार्केट में भी उन्नत नस्ल के इस अनाज की बहुत मांग हुई। धीरे-धीरे देश विदेश से भी इसके लिए मांग आने लगी। अब मैंने अपने फार्म में कुछ जगह चाइना की तरह बहुमंजिला खेती करवाई और ध्यान रखा कि ऑर्गेनिक खेती ही हो। अब दूर-दूर के देशों तक मेरे फार्म हाउस की उपज जाने लगी और मुझे इसके अच्छे दाम मिलने लगे। फार्म हाउस ने अपनी कीमत कुछ ही वर्षों में मुझे वापस दे दी और साथ में बहुत सा मुनाफा भी दिया। आवारा पशु फार्म हाउस में खुशहाल जिंदगी जी रहे थे। उनके लिए मैंने बहुत अच्छा वातावरण उपलब्ध कराया था। अब मैंने आवारा पशुओं के गोबर से अगर बत्तियां और धूप बनवाने का कार्य शुरू किया और इसे जापान आदि देशों में बेचा। इससे भी मुझे काफी फायदा हुआ। साथ ही फालतू बचे गोबर को मैंने खेती में उपयोग में ले लिया। जिससे खेती और अच्छी होने लगी। अब मैंने फालतू आवारा पशुओं से एक अच्छा लाभ और उठाने की सोची। मैंने आवारा पशुओं में से कुछ अच्छे-अच्छे पशु चुन कर अलग रख लिए और उन्हें और बेहतर वातावरण और घास आदि उपलब्ध करवाया। इसके बाद मैंने एक बहुत ही उन्नत नस्ल का सीमेन मंगवाया और इसी सीमेन से इनका गर्भाधान करवाया। अब यह पशु उन्नत मात्रा में दूध भी देते थे और उनके बच्चे और भी उन्नत नस्ल के होते थे। जिन्हें अच्छी कीमत में महंगे दामों पर मैं बेचने भी लगा। लोग दूध पीने के लिए इनको ले जाने लगे। जिससे फार्म हाउस की इनकम बहुत बढ़ने लगी।


धीरे-धीरे मेरे पास फार्म हाउस के द्वारा बहुत सा धन एकत्रित होने लगा। उस धन के कुछ भाग को मैं बैंक में जमा करने लगा और कुछ भाग को वापस फार्म हाउस को अपडेट कराने में लगाने लगा। क्योंकि फार्म बहुत लंबा- चौड़ा, विशाल था और इसमें कई तरह की कार्य मैंने शुरू करवाए थे। इसलिए पर्यावरण पर भी इस फार्म हाउस का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा। अब पर्यावरण फार्म हाउस के कारण बहुत ही अच्छा हो गया। उस इलाके में अब समय से बारिश होने लगी। लोग ज्यादा खुशहाल होने लगे। मैंने अपने फार्म हाउस में कई लोगों को भी रोजगार दिया। मैं ध्यान रखता था कि सभी लोगों को उचित और बराबर मात्रा में मेरे द्वारा रोजगार दिया जाए। ताकि कोई भी उस एरिया में भूखा न सोए और अभावों में ना जिए। इस तरह मेरे कार्यों से वह स्थान अच्छे पर्यावरण, अच्छे धार्मिक स्थल और अच्छे आर्थिक स्थल में बदल गया।


वो एरिया अब बहुत ही ज्यादा समृद्ध हो गया और मेरे पास भी बहुत सारा धन जमा हो गया। उस धन का उपयोग मैं समाज उपयोगी कार्य, जनता की भलाई और गरीबों के उत्थान में करने लगा। यह सब करने पर मुझे बहुत ही ज्यादा मानसिक शांति मिलती थी और मैं सोचता था शायद इस मुकाम पर ऊपर वाले ने मुझे इसलिए पहुंचाया है ताकि मैं उसके कार्य में थोड़ा सा अंशदान कर सकूं और यह सब सोच- विचार कर मेरा मन बहुत प्रसन्न हो जाता था कि भगवान ने मुझे इस कार्य के लिए उपयुक्त समझा। और मेरे कितने बड़े भाग्य हैं।


इस तरह मैंने अपने दिमाग और परिश्रम से और धन की मदद से उस विशाल बंजर स्थान को एक स्वच्छ निर्मल और हरियाली से भरे स्थान में बदल दिया। जो स्थान पहले बंजर और निर्जन था, अब वहां फूल खिलने लगे। हजारों व्यक्तियों को रोजगार मिलने लगा। हजारों आवारा जानवरों को आश्रय मिला। यह सब उस परमपिता परमेश्वर की लीला ही थी कि उसने मुझे माध्यम बनाकर यह कार्य किया।


अब मैं अक्सर दादा जी के साथ अपने उस फार्म हाउस का निरीक्षण करने जाता। इस कार्य के लिए मैंने एक नई मॉडल की थार गाड़ी भी ली। थार गाड़ी के आने से मुझे अगल-बगल घूमने और फार्म हाउस का निरीक्षण करने में बहुत सहूलियत होती थी। लेकिन निरीक्षण का कार्य में हफ्ते में एक दिन ही करता था। अक्सर में दादा जी के साथ उनकी उसी पूर्व कुटिया में बैठकर ज्ञान अर्जित करता और उनके साथ और गांव वालों के साथ प्रकृति की गोद में, जंगलों का और खेतों का भ्रमण करता और जिंदगी का निर्दोष और निर्मल आनंद लेता। यह सब करके मुझे बहुत आनंद मिलता और इससे मेरा मन, हृदय और शरीर और भी ज्यादा स्वच्छ और निर्मल होता जाता।

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