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झोपड़ी - 5 - मौसी जी का किया सम्मान

एक बार मैं शहर की झुग्गी- झोपड़ियों में घूम रहा था और झुग्गी -झोपड़ी वालों को खाना, वस्त्र, कंबल आदि प्रदान कर रहा था। तभी मुझे एक बहुत बूढ़ी औरत दिखाई दी। उसके साथ उसका 6 साल साल का एक पोता भी था। दोनों की शक्ल मुझे जानी पहचानी सी लगी। मैंने उन्हें भी खाना, कंबल और वस्त्र दिए। लेकिन उन्होंने नहीं लिए। मैं सोचने लग गया यह तो किसी बड़े घर के दिखाई देते हैं।


मैंने उनसे पूछताछ करनी शुरू की। उन्होंने बड़े प्रेम से मुझे चाय, नाश्ता आज कराया। बूढ़ी औरत ने कहा बेटा हम किसी से कुछ भी फ्री में नहीं लेते हैं। यह हमारी आदत है, कृपया बुरा मत मानना। मैंने कहा मौसी जी आप तो कुछ जानी- पहचानी सी लगती हैं। आप सेठ दीनदयाल की मां तो नहीं हैं। बूढ़ी औरत की आंखों में आंसू आ गये। वो बोली बेटा मैं सेठ दीनदयाल की ही मां हूं। पिछले वर्ष कोरोना के कारण उनकी मृत्यु हो चुकी थी। जिसके कारण उनका काम -धंधा ठप पड़ गया और हम पर बहुत सा कर्जा हो गया। कर्ज को चुकाने में हमारा सब कुछ चला गया। गाड़ी, बंगला, बैंक बैलेंस आदि सभी कुछ लोगों का कर्जा चुकाने में चला गया। तब से मैं अपने पोते के साथ यहां अकेली रहती हूं और किसी तरह अपना गुजारा करती हूं। सेठ दीनदयाल मेरे मित्रों में से थे और उनकी मां दूर के रिश्ते में मेरी मौसी लगती थी। मेरी आंखों में आंसू भर आए। बड़े घर के लोग देखो आज गरीबी में जी रहे हैं। मैंने मौसी को अपना परिचय दिया। मौसी मुझ पर बड़ी खुश हुई। मैं मौसी की मदद करना चाहता था। लेकिन मौसी बड़ी स्वाभिमानी थी। वह मुझसे बोली बेटा हम किसी का एहसान नहीं लेते हैं। चाहे हमें भूखा ही क्यूं ना सोना पड़े।


मैं बोला मौसी जी सेठ दीनदयाल के मुझ पर बहुत एहसान हैं। मैंने थोड़ा सा झूठ बोला कि मौसी मैंने सेठ से काफी कर्जा लिया था। उनकी मृत्यु होने के बाद मैंने आप लोगों को बहुत ढूंढा। लेकिन आप मिली नहीं। मैं उस कर्ज को चुकाना चाहता हूं। मौसी को मेरी बात पर पहले तो विश्वास नहीं हुआ। लेकिन मैंने झूठ -मूठ जरा अच्छे से एक्टिंग की तो मौसी को मुझ पर विश्वास हो गया। मौसी अब अपना थोड़ा सा सामान लेकर मेरे साथ चलने के लिए राजी हो गई। मैं मन ही मन बड़ा खुश हुआ। आखिर थोड़ा सा झूठ बोलकर मैंने किसी का भला करना चाहा तो यह पुण्य ही हुआ ना। किसी तरह मैं मौसी को बहला-फुसलाकर अपने साथ ले आया। अपनी चतुराई से मैं बड़ा प्रसन्न हुआ, क्योंकि मेरा इरादा नेक था।


मौसी को और उनके पोते को मैंने रास्ते में एक होटल में अच्छा खाना खिलाया। एक कपड़ों की दुकान में अच्छे कपड़े दिलवाए और उन्हें नहला- धुलाकर, उनके बाल आदि ठीक करवा कर, अच्छे कपड़े पहना कर अपने साथ अपने गांव में ले आया। अब मैंने गांव में मौसी को एक सुंदर सा घर खरीद कर दे दिया। इसके साथ मैंने मौसी को एक अच्छी नस्ल की गाय और कुछ जमीन भी दी और मौसी के खाते में मैंने 40-50 लाख रुपए जमा कर दिए और इन्हें एमआईएस स्कीम के तहत रख दिया। जिससे मौसी को हर महीने 20- ₹25000 ब्याज के मिलने लगे। मौसी का काम अब आसान हो गया और मौसी बड़ी खुश हो गई। मौसी को यह विश्वास हो गया था कि मैंने उनके बेटे से कभी कुछ कर्ज लिया था। उसी का मैं भुगतान कर रहा हूं। इस प्रकार मैंने मौसी के स्वाभिमान को चोट नहीं लगने दी और मौसी के रहने की अच्छी व्यवस्था कर दी। मौसी के नए मकान में मैंने जरूरत की सभी चीजें रखवा दी और उनकी गाय के लिए सुंदर सी गौशाला भी बनवा दी। मौसी के मकान को मैंने सभी आवश्यक सुविधाओं से परिपूर्ण कर दिया। इसके बाद मैं मौसी से विदा लेकर अपने घर वापस आ गया। मौसी ने उनके पोते की अच्छी व्यवस्था कर पोते का स्कूल में एडमिशन करवा दिया और वे अब आराम से रहने लगे। अब मौसी और उनके पोते का समय अच्छा कटने लगा। उन्हें और उनके पोते को कोई कमी ना रही।


यह काम करके मेरे दिल को बड़ी शांति पहुंची। मेरा थोड़ा सा धन किसी की जिंदगी संवारने में काम आ गया। इससे बड़ी बात क्या हो सकती है। मैंने उस परमपिता परमेश्वर को बार- बार धन्यवाद दिया कि उसने मेरे हाथों किसी का भला करवाया। मेरे हाथों से कोई अच्छा काम और करवाया। मेरा दिल खुशी से पागल हो उठा और मौसी भी बड़ी खुश हो गई थी और उनके स्वाभिमान को जरा भी चोट नहीं लगी। मैंने जरा सा झूठ बोला था। शायद झूठ बोलना गलत है। लेकिन मेरा यह झूठ एक नेक मकसद के लिए था। इसलिए परमपिता परमेश्वर ने मुझे शायद माफ़ कर दिया और मेरे झूठ को भी शायद पुण्य का दर्जा दे दिया।


मौसी और उनका पोता अब बड़े शान से अपने घर में रहने लगे। उन्होंने अपनी हेल्प के लिए एक नौकरानी भी रख ली। उसे वे थोड़ा -बहुत सैलरी दे देते। नौकरानी उनके घर के कामों में, उनके पोते की देखरेख में और गाय की सेवा करने में थोड़ा बहुत मदद कर देती। इस प्रकार नौकरानी को भी एक अन्य आय का स्रोत मिल गया और नौकरानी का घर भी पहले से अधिक अच्छा चलने लग गया।


मौसी और उनके पोते को गांव का सुंदर प्रदूषण हीन वातावरण बहुत अच्छा लगा उन दोनों की सेहत बड़ी तेजी से सुधरने लगी और धीरे-धीरे वह गांव के माहौल में ढल गए। आपको बता दें हमारा गांव पढ़े-लिखे लोगों का गांव है। इसलिए मौसी और उनके पोते को यहां कोई कष्ट महसूस नहीं हुआ और उन्हें पढ़ाई -लिखाई, हॉस्पिटल, आवागमन आदि की सुविधाएं भरपूर मिलती रही। मौसी और उनका पोता दोनों का मिलाजुला परिवार बहुत अच्छे तरीके से हमारे गांव में रहने लगा और वह दोनों यहां आकर बड़ी खुश रहे। मौसी का पोता पढ़ने में काफी तेज था। इसलिए वह धीरे-धीरे अपनी कक्षा में अच्छी पोजिशन हासिल करने लग गया। दिखने में वह अपने पिताजी जितना लंबा -चौड़ा, गोरा- चिट्टा और स्मार्ट था। खेलकूद में भी उसे काफी रुचि थी। वो अक्सर मुझे गांव की गलियों में आता- जाता मिलता तो विनम्रता से मेरा अभिवादन करता। उसे देख कर मेरा दिल अंदर ही अंदर बहुत खुश हो जाता।

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