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झोपड़ी - 7 - नया पंचांग

नया साल शुरू हो गया। इसलिए मैंने दादाजी के लिए एक सुंदर पंचांग खरीदने की सोची। दादा जी, मौसी जी और मैं पैदल ही घूमते -घूमते गांव के बाजार में पहुंचे। वहां हम पुस्तकों की दुकान पर पहुंचे। पुस्तकों की दुकान पर बड़ी सुंदर-सुंदर अच्छी-अच्छी पुस्तकें सजी हुई थी और अच्छे-अच्छे पंचांग भी थे। हमने दादाजी की मर्जी के अनुसार सुंदर-सुंदर 1-2 पंचांग खरीदे और कुछ पुस्तकें भी खरीदी। इसके बाद हमने वस्त्र मार्केट की ओर कदम बढ़ाए। वहां जाकर हमने सुंदर- सुंदर वस्त्र खरीदे। फिर हमने निराश्रित लोगों के लिए भी काफी मात्रा में वस्त्र, कंबल आदि खरीदे। इसके बाद हमने बर्तन आदि भी खरीदे। बाजार में हमने खूब खरीददारी की और इसके बाद 1-2 कुलियों को सब सामान सौंप दिया और उनके साथ अपने घर की तरफ चल दिए।


मौसी और दादा जी के ना -ना कहने पर भी सब सामान के पैसे जबरदस्ती और प्रेम से मैंने ही दिए थे। मौसी जी और दादा जी मेरे पैसे देने से बड़े प्रफुल्लित हुए। हम सब सामान लेकर दादा जी के घर पर पहुंचे। वहीं से मौसी जी ने अपना वाला सामान लिया और अपने घर चली गई और मैंने भी अपना सामान लिया और मैं भी अपने घर चला गया। अपने-अपने घर जाने से पहले हमने दादाजी से विदा ली। दादाजी ने हमें थोड़ा चाय, जलपान वगैरा करवाया। हम सब बड़े प्रफुल्लित मन से दादा जी के घर से अपने घर की तरफ चले। जाने से पहले मैंने कुलियों को उनकी ध्याड़ी से डबल पैसे दिए। कुली भी बड़े खुश हुए। गरीब को हमेशा उसकी मजदूरी से थोड़ा ज्यादा दो तो वह खुश हो जाता है और उसके किसी काम में वह पैसे लग भी जाते हैं। जिससे उसकी मुश्किलें थोड़ी आसान हो जाती हैं। ऐसा करके हम भगवान के उस पुत्र के प्रति अपनी थोड़ी विनम्रता और सदाशयता ही दर्शाते हैं। गरीब का पैसा कभी नहीं मारना चाहिए। बल्कि थोड़ा अपनी तरफ से उसे ज्यादा ही देना चाहिए।

अगली सुबह सुबह- सुबह घूमने का समय था। दादा जी मेरे घर आ गए थे। वह पंचांग में लिखी बातों का बड़ा जिक्र कर रहे थे। नया पंचांग लेकर वह बहुत खुश हो गए थे। वह दो-तीन वैरायटी के पंचांग मार्केट से लाए थे। 1-2 पंचांग उन्होंने मुझे भी पकड़ा दिये थे। हम दोनों पंचांग में लिखी हुई बातों पर तर्क- वितर्क करने लगे और साथ ही साथ सुबह -सुबह घूमने के लिए गांव के खेतों की तरफ चल दिए। गांव के खेतों में बहुत सुंदर मधुर खुशबूदार हवा बह रही थी। हमारा मन इस खुशबूदार हवा से बहुत ही अच्छा हो रहा था। दादाजी से बातें करके मुझे पंचांग के बारे में काफी और भी ज्यादा अनुभव और नॉलेज हो रहा था। हालांकि मुझे भी पंचांग देखना अच्छी तरह आता है। लेकिन इस फील्ड के दादाजी घुटे हुए खिलाड़ी थे। इसलिए उनके मुंह से नई-नई बातें सुनकर मेरा ज्ञान और भी सुंदर होता जा रहा था। सुबह का घूमने का समय घूमते -घूमते कब बीत गया। यह पता भी नहीं चला। इसके बाद दिनभर दादाजी पंचांग के बारे में ही बातें करते रहे। क्योंकि अधिकतर दादाजी मेरे साथ ही रहते थे और सारे दिन मुझसे बातें करते रहते थे। इस तरह हमारा सारे दिन का समय बहुत सुंदर व्यतीत हुआ। अपने अन्य कार्य करते- करते हम पंचांग के बारे में बातें करने लगे और इससे मेरी ज्ञान में बहुत वृद्धि हुई।


अब मैं स्वयं को बहुत बड़ा ज्योतिषी समझने लगा। दादा जी बोले बेटा इस हमारे क्षेत्र में दो पंचांग ज्यादा मशहूर हैं। पहला तो वाणी भूषण पंचांग बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है। यह पंचांग संस्कृत भाषा में है। हालांकि थोड़ा बहुत इसमें हिंदी का भी प्रयोग है और दूसरा श्री गंगा पंचांग है। यह भी हमारे क्षेत्र में बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। यह तो बिल्कुल साधारण भाषा में ही है और यह बहुत अच्छी सुंदर हिंदी में लिखा गया है और यह एक कैलेंडर की शक्ल में है। मुझे तो यह दोनों पंचांग अच्छे लगे। इसलिए तुम्हारे और मौसी दोनों के लिए भी यह पंचांग खरीद लिए। मैंने कहा धन्यवाद दादा जी। आपने हमारा इतना ध्यान रखा।

इसके बाद हमने मौसी जी को भी अपने साथ लिया और हम तीनों ने कुछ मजदूरों को लिया और उनके कंधों पर बांटने के लिए वस्त्र और कंबल रखवा दिए और उसके बाद हम घर-घर फिरने लगे और जिसको भी वस्त्र या कंबल की जरूरत थी। उसे निशुल्क प्रदान करने लगे। गांव के बाहर कुछ गरीब परिवार बसे हुए थे। अधिकतर वस्त्र, कंबल हमने वहीं प्रदान किये। हम देखते कि किसी व्यक्ति को वस्त्र, कम्बलों की जरूरत है तो उसे थोड़ी ज्यादा मात्रा में प्रदान कर देते।


इस तरह घूमते- घूमते और गरीबों को कंबल, वस्त्र दान दे दे कर हमारा पूरा दिन बीता। हमने शाम का जलपान भी किसी गरीब की झोपड़ी में करने का निश्चय किया। हालांकि कई गरीब लोग हमें जलपान कराने के लिए उत्सुक दिखे। लेकिन हम ने एक सबसे ज्यादा गरीब की झोपड़ी को चिन्हित कर रखा था। आखिर में घूम फिर कर वापस आते समय हमने वहीं पर थोड़ी देर विश्राम किया और बचे हुए सभी कंबल और वस्त्रों को उसी गरीब को प्रदान कर दिया। गरीब और उसके परिवार वाले बड़े खुश हुए। हमने उसी गरीब की झोपड़ी में थोड़ा सा जलपान और नाश्ता किया। आते समय हमने उस गरीब को अपनी तरफ से 1-1 लाख के चेक भी प्रदान किये। इस तरह उस गरीब परिवार के पास हम तीनों द्वारा 1-1 लाख आ गये और कुल रकम उसके पास नगद ₹3 लाख आ गई। यह पैसे हमने उसकी पत्नी के हाथ में दिए। क्योंकि गृहणी घर की लक्ष्मी होती है और वह पैसे का कभी भी दुरुपयोग नहीं करती है।


इस तरह सारा दिन हम भगवान और भगवान के पुत्रों की सेवा में गुजार कर और आनंदित मन से भ्रमण कर अपने घर की तरह वापस चल पड़े। हमारा मन तो उन्हीं गरीबों की बस्ती में उन्हीं के साथ रहने का हो रहा था। लेकिन मजबूरी थी कि हमें अपने घर आना ही पड़ा। हमारे कदमों में खुशी थी कि हमने कुछ अच्छा कार्य किया है। आपको हमारा यह कार्य कैसे लगा। अगर बढ़िया लगा तो मुझे स्टीकर प्रदान करें और अच्छे-अच्छे कमेंट भी कीजिए। धन्यवाद।




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