झोपड़ी - 11 - प्राचीन तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय की पुस्तकें Shakti द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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झोपड़ी - 11 - प्राचीन तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय की पुस्तकें

नालंदा विश्वविद्यालय में हजारों पुस्तकें थी। जो बख्तियार खिलजी ने आग लगाकर नष्ट कर दी थी और यह आग कई महीनों तक जलती रही थी। तक्षशिला महाविद्यालय कुछ ऐसे ही धवंस हुआ होगा। मुझे ऐसे ही इतिहास की जानकारी थी। लेकिन मेरा मन मचलने लगा कि इन विश्वविद्यालयों में कई पुस्तकें होंगी जो शायद इस समय नहीं हैं। अगर इन पुस्तकों को मैं प्राप्त कर लूं तो कैसे रहेगा? ये शायद एक बचकानी सोच थी। क्योंकि वह पुस्तकें तो हजारों साल पहले जल गई थी, खत्म हो गई थी। मैं इनको कैसे प्राप्त कर सकता था? तभी मेरे गुरुकुल के वैज्ञानिकों ने मुझे सूचना दी कि मैं इन पुस्तकों को पुनः प्राप्त कर सकता हूं, अगर मेरे पास भूत प्रतिलिपि यंत्र हो। मैंने वैज्ञानिकों से पूछा ये यंत्र क्या है? वे बोले कोई भी वस्तु किसी भी समय उपस्थित है तो उसकी एक परछाई बन जाती है। हम एक यंत्र बनाकर उस परछाई को प्राप्त कर सकते हैं। अगर हम इस यंत्र के द्वारा नष्ट हुई पुस्तकों की प्रतिलिपि बना ले तो हम उन पुस्तकों को पुन: प्राप्त कर सकते हैं और उनमें लिखे गए ज्ञान के द्वारा मानव समाज और अपने देश का उत्थान कर सकते हैं।


मैंने अपने वैज्ञानिकों को भूत प्रतिलिपि यंत्र पर अनुसंधान करने के लिए कहा। मैंने उन्हें सब साधन देने की व्यवस्था की। मेरे वैज्ञानिक यंत्र को बनाने में जुट गए। अब देखना ये है कि क्या वे इसमें सफल हो पाते हैं या नहीं और अगर सफल होते हैं तो कितने दिनों में।


मैंने अपनी वैज्ञानिकों को सभी साधन उपलब्ध कराए। यह साधन दूर-दूर देशों से भी आयात करके मंगवाए गए थे। इस पर काफी पैसा खर्च हुआ और वैज्ञानिकों ने भी काफी मेहनत की। काफी दिनों तक कोशिश करने के बाद आखिर वैज्ञानिक भूत प्रतिलिपि यंत्र बनाने में सफल हुये। इस यंत्र की मदद से उन्होंने प्राचीन नष्ट विश्वविद्यालयों में उपलब्ध सभी पुस्तकों की प्रतिलिपियां बना ली और उन्हें एक चिप में स्टोर कर लिया। चिप की एक कॉपी उन्होंने मुझे भी प्रदान की। मैंने चिप का अवलोकन किया और मैं बड़ा खुश हुआ। फिर मैंने वैज्ञानिकों से इस काम को ले लिया और आचार्यों को दे दिया। आचार्यगण को मैंने चिप में उपलब्ध सभी पुस्तकों को सही ढंग से क्रमबद्ध करने के लिए कहा और वैज्ञानिकों की सहायता से चिप में सभी पुस्तकों को क्रमवार तरीके से रखा गया। इससे हमारे ज्ञान में बहुत वृद्धि हुई और कई प्राचीन विद्याओं की जानकारी भी हमें हुई।


कई गुप्त विद्याओं की भी हमें जानकारी हुई। हमने यह सब जानकारी सरकार से साझा की। जिससे हमारा देश और देशों से कई पीढ़ियों आगे वैज्ञानिक रूप से विकास कर सके। इस तरह से हमने अपनी कोशिश से अपने देश को साहित्यिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रूप से दुनिया में बहुत आगे तक ले जाने की सोची।


वैज्ञानिकों और आचार्य को मैंने इस कार्य के लिए अच्छा खासा पेमेंट दिया और उन्हें अच्छा खासा बोनस भी दिया। इससे वे भी बड़े प्रसन्न हुए और सराहना करने लगे उस ईश्वर की जिसके कारण उन्हें इतना अच्छा गुरुकुल मिला और मैं सराहना करने लगा उस ईश्वर की, उस परमपिता की जिसके कारण मुझे ऐसी बुद्धि मिली कि मैंने ऐसे वैज्ञानिकों और आचार्यों का चयन किया और अपने भाग्य पर मुझे खुद जलन महसूस हुई कि इतने अच्छे वैज्ञानिक और आचार्य मेरे पास हैं।


अब अपने आचार्यों और वैज्ञानिकों के सहयोग से मैंने कई नए यंत्रों का आविष्कार किया। कई नए साहित्य की रचना की। वैज्ञानिकों और आचार्यों ने भी चिप में मौजूद सभी पुस्तकों को क्रमबद्ध रूप में रखा। वैज्ञानिकों ने उन पुस्तकों में बताई गई बातों पर अनुसंधान किया और आचार्यों ने पुस्तकों में लिखी बातों का सरल भाषा में अनुवाद करके एक दूसरी चिप में वैज्ञानिकों की मदद से मुझे दी।

इन पुस्तकों के कारण मुझे कीमिया गिरि, अमृत, सोमरस आदि के बारे में भी कई नई जानकारियां मिली। मैं बहुत दिनों से इन जानकारियों के चक्कर में था। इन जानकारियों को पाकर मै बड़ा खुश हुआ। मुझे आध्यात्म के बारे में भी नई-नई चीजें मिली। जिससे ईश्वर तक पहुंचने का मेरा रास्ता काफी हद तक क्लियर हो गया। इससे मैं बड़ा प्रसन्न हुआ। हालांकि काफी जानकारियां गुप्त रखी गई। लेकिन काफी जानकारियां पुस्तकों के रूप में जनसाधारण को उपलब्ध कराई गई।


हमारे वैज्ञानिकों ने इन पुस्तकों की सहायता से कई बड़े-बड़े आविष्कार किये। जिससे दुनिया के बड़े-बड़े देश भी जलने लगे और वह आविष्कारों को हमसे हथियाने की कोशिश करने लगे। यह देखकर हमने अपनी लैब और गुरुकुल की सिक्योरिटी बहुत ज्यादा बढ़ा दी। इस काम में सरकार ने भी हमारी मदद की और हमें जेड प्लस सिक्योरिटी सुविधा भी दी।

अब हमने इस ज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए कई मेधावी छात्रों का चयन किया। ताकि उन के माध्यम से यह ज्ञान भावी पीढ़ियों तक सरलता से पहुंच जाए और यह ज्ञान पहले की तरह फिर से लुप्त ना हो जाए। इससे कई रोजगार के नए अवसर भी खुले और धीरे-धीरे हमारा देश विदेशी कर्ज के जाल से मुक्त होने लगा और हमारा देश फिर से सोने की चिड़िया बनने की राह पर बड़ी तेजी से अग्रसर हो गया।


इस भूत प्रतिलिपि यंत्र की मदद से हमने फिर अन्य कई नष्ट विश्वविद्यालयों, मंदिरों की पुस्तकों और भित्ति चित्रों, पुराने समय के इतिहास के बारे में सफल जानकारियां प्राप्त करनी शुरू कर दी। यह एक रोमांचक और मजेदार कार्य था। इसमें हमें बड़ा मजा आया और इस छुपे हुए ज्ञान को प्राप्त करने से शायद देश और समाज की बहुत बड़ी उन्नति होने वाली थी।


आप लोगों को मेरा यह कार्य कैसे लगा? कृपया मेरे कार्य की विवेचना करें और मुझे अपने कार्य में कैसे और सुधार लाना चाहिए। इसके बारे में अपने सुझाव मुझे प्रदान करें। आप लोगों के सुझाव से मुझे कार्य करने में और अपने जीवन के लक्ष्य को हासिल करने में बहुत ज्यादा सरलता महसूस होती है।


फेसबुक, व्हाट्सएप आदि डिजिटल संचार माध्यमों से भी मेरे जानने वालों और मेरे फॉलोअर्स ने मुझे कई सुझाव दिए। जिन पर अमल करते हुए मैंने कई नए -नए कार्य शुरू कर दिए। दादाजी और गांव वालों ने भी मेरे इन महान कार्यों में मेरा बहुत बहुत सहयोग किया।