झोपड़ी - 13 - जात -पात छोड़ो Shakti द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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झोपड़ी - 13 - जात -पात छोड़ो

रमेश प्रसाद एक उच्च कुल की ब्राह्मण हैं। बचपन में ही उनके माता- पिता की मृत्यु हो चुकी थी। उनके तीन -चार भाई-बहन और थे। रमेश ने अपनी पूरी जिंदगी अपने भाई -बहनों के पीछे लगा दी। उन्हें अच्छी शिक्षा दी। उनकी शादी वगैरह की और उन्हें अच्छी तरह जीवन में स्थापित किया। अब उनके सभी भाई-बहन अपने -अपने परिवारों में खुश थे। पर रमेश आज अकेले रह गए।


समय पर उनकी शादी भी नहीं हुई। आज वह 55 बरस के हो चुके हैं। अकेलेपन से घबरा कर उन्होंने शादी करने की सोची। लेकिन उनकी उम्र को देखते हुए किसी ने उन्हें अपनी लड़की न दी। आखिर उन्होंने एक दलित समाज की लड़की से शादी कर ली। इस तरह से उन्होंने अपना घर बसा लिया और जात -पात भी तोड़ दी।


कुछ समय बाद उनके दो पुत्र हुए। यह सभी लंबे- चौड़े और बड़े बुद्धिमान थे। पंडित जी ने अपना सारा ज्ञान अपने बच्चों को सिखाया। हालांकि समाज में कुछ लोगों ने उनकी शादी का विरोध भी किया। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ सब इस बात को भूल गए। पंडित जी के दोनों पुत्र काफी बड़े हो गए थे। पंडित जी भी अब काफी वृद्ध हो गए थे। लेकिन गांव के स्वच्छ वातावरण में रहने के कारण वे हट्टे -कट्टे और स्वस्थ थे। यह दोनों पुत्र काफी विद्वान थे। इसलिए मैंने अपने गुरुकुल में आचार्य पद पर इन्हें नियुक्त कर दिया। दादाजी भी मेरे इस निर्णय से बड़े खुश हुए और क्योंकि मेरे गांव वाले बड़े उदार विचारों के और महान व्यक्तित्व के थे। इसलिए उन्होंने भी इस कदम की बहुत -बहुत सराहना की।

मैंने रमेश जी के पुत्रों को अच्छी सैलरी देकर काम पर रखा था। उन्होंने भी अपना काम अच्छी तरह संभाला। यह देखकर मैं उनसे काफी प्रसन्न था और मैंने उनकी सैलरी थोड़ी और बढ़ा दी। इस तरह से हमारा गांव जाति -पाति के बंधनो को भी तोड़ कर आगे विकास की दौड़ में बढ़ा चला जा रहा था। आसपास के गांव वाले भी मेरे इस कदम से खुश हुए और उन्होंने भी मेरे इस कदम की बड़ी सराहना की और अपने गांव में भी मेरे इस काम की नकल करके जात- पात तोड़ने का काम किया।


रमेश ने अपने पुत्रों की अच्छा घर देखकर शादी करवा दी। इस तरह रमेश का वंश भी आगे बढ़ने लगा। यह देख कर रमेश प्रसाद बड़े प्रसन्न हुये। उन्होंने जात -पात छोड़कर समाज को एक नई दिशा दी थी। उनके पुत्रों ने इस परंपरा को आगे बनाए रखा। उनके पुत्र अच्छे योग्य निकले। वह लंबे -चौड़े, गोरे- चिट्टे और पढ़े -लिखे थे। नौकरी भी उन्हें अच्छी लगी थी। इस तरह से रमेश का परिवार अच्छी तरह से प्रगति करने लगा। कुछ समय बाद रमेश के पोते और पोतियां आदि उत्पन्न हो गए। यह सब देख कर रमेश बड़े प्रसन्न हुये। गांव वाले और अगल-बगल के लोग भी इस घटना से पूरे प्रसन्न हुये।


मैंने दादाजी को मजाक में कहा दादा जी आप अकेले रहते हो। 100 वर्ष से ज्यादा आपकी उम्र हो गई है। अब आप भी शादी कर लो। अभी तो आप को कई वर्ष और जीना है। दादा जी हंसकर मेरी बात टाल जाते। गांव वाले भी इस मजाक में मेरा साथ देते।


इस तरह समय गुजरता गया। हमने विज्ञान के क्षेत्र में अपने गांव में काफी उन्नति कर ली। हमारे गांव वाले अब संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी आदि भाषाओं के विद्वान बन गये। अब सरकार ने हम से अनुरोध किया कि हम अपने गांव के विद्वानों को देश के अलग-अलग क्षेत्रों में उनके स्कूलों में पढ़ाने के लिए भेजे। हमने सरकार की बात मान ली और हमारे विद्वान पूरे देश को गौरवान्वित करके देश की सेवा करने लगे।


हमारी विद्वानों ने पूरे देश में जात- पात निर्मूलन का काम किया। जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने की दिशा में काम किया। देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में काम किया। विदेशी कर्जे को कैसे चुकाये और देश में रोजगार कैसे बढ़ाएं इस का ध्यान दिया और इस पर ठोस प्रैक्टिकल कार्य किया। इस तरह से देश को आगे बढ़ाने में और जनता को खुशहाल बनाने में हमारे विद्वानों ने जमीनी स्तर पर कार्य किया। इस तरह से हमने देश के विकास में बहुत योगदान दिया। हमने प्राचीन और नवीन दोनों ज्ञानों का मिश्रण करके देश को दुनिया में विश्व गुरु बनाने की दिशा में पूरा प्रयास किया।


हमारे विद्वानों के प्रयासों से देश की अर्थ-व्यवस्था, धार्मिक व्यवस्था पर काफी प्रभाव पड़ा और हमारे विद्वानों ने देश में एक अच्छे उत्प्रेरक की भूमिका निभाई। धीरे-धीरे हमारा देश अन्य देशों से कई बातों में आगे हो गया और फिर से हमारा देश सोने की चिड़िया बनने की कगार पर आ खड़ा हुआ। यह देखकर हम लोग बड़े प्रसन्न हुए और पत्र- पत्रिकाओं, समाचार पत्रों और टीवी आदि पर भी हमारे इन प्रयासों की बड़ी सराहना हुई। यह देखकर हमारा जोश और बढ़ गया और हमने और जोर -शोर से देश के विकास में अपना योगदान जारी रखा। गरीब बच्चों और गरीबों के लिए भी हमने बहुत कुछ किया। आर्थिक, शारीरिक, मानसिक तीनों शक्तियों से हमने इस पर कार्य किया।


हमारे इस कार्य को देखकर देश के राष्ट्रपति ने हमें कई बड़े-बड़े पुरस्कार दिए। हम यह देख कर बड़ी प्रसन्न हुये। हालांकि हमने पुरस्कारों के लिए काम नहीं किया था। हमने अपने मन की शांति और अपने देश और समाज के उत्थान के लिए कार्य किया था। लेकिन पुरस्कारों को प्राप्त कर हमें यह लगा कि वाकई कोई तो हमारे काम की कदर करता है। कोई तो हमें उत्साहित करता है और हम इस सब से बहुत ज्यादा उत्साहित हो गए और जी जान से अपने कार्य में जुट गये।


प्रिय पाठकों आपको क्या लगता है? हमें और क्या-क्या करना चाहिए और कैसे हम अपने मानव जीवन का सदुपयोग करके मानव और अन्य जीवों के जीवन को और भी सुगम, सरल और खुशहाल बना सकते हैं। कैसे हम यह करके परमात्मा के और करीब जा सकते हैं। आखिर परमात्मा के लिये सभी जीवधारी चाहे मनुष्य हो या पशु अपने ही हैं। उनके ही पुत्र हैं। इसलिए उनकी सेवा करने से वे जरूर प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को बहुत-बहुत आशीष और वरदान देते हैं।