युगांतर - भाग 17 Dr. Dilbag Singh Virk द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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युगांतर - भाग 17

यादवेन्द्र सोच रहा है कि उसे रमन के सामने अब बात रखनी ही होगी। इसकी भूमिका कैसे बाँधनी है, कैसे बात शुरू करनी है, रास्ते भर वह यही सोचता आया है। जब वह घर पहुँचा तो रमन साढ़े तीन वर्ष के यशवंत को अपने हाथों से खाना खिला रही है। यादवेन्द्र बेटे की पीठ पर हल्की सी चपत लगाते हुए बोला, "अब तो तुम बड़े हो गए हो, अपने हाथों से खाया करो बेटा।"
रमन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया होती न देख फिर बोला, "चलो यही कुछ दिन हैं प्यार मिलने के"
"क्यों, फिर क्या होने वाला है।" रमन ने हैरानी से पूछा।
"इसे पढ़ने के लिए स्कूल दाखिल नहीं करवाना क्या ?"
"स्कूल दाखिल तो करवाएँगे मगर इससे क्या होता है, स्कूल में कौन-सा दिन-रात रहना होता है।"
"मैं सोचता हैं इसे किसी बोर्डिंग स्कूल में भेजेंगे।"
"क्यों?"
"यहाँ रहकर तो यह मेरी तरह नालायक बन जाएगा।" फिर यशवंत को गोद में उठाते हुए बोले, "इसे तो मैं नालायक नहीं बनने दूँगा, इसके लिए ही कमाई की है। अब इसकी पढ़ाई देश के सबसे अच्छे स्कूल में होगी।"
"आप भी तो शहर के अच्छे स्कूल में पढ़े हैं।"
"शहर तो काफी बाद में गया था और तब तक सब खत्म हो गया था। जैसे मकान में नींव मजबूत चाहिए, वैसे ही पढ़ाई भी शुरू से ही अच्छे स्कूल में होनी चाहिए।"
"इसे तो हम शुरु में ही शहर के स्कूल में भेजेंगे।"
"हाँ, लेकिन मैं सोचता हूँ कि अगर इसे दिल्ली या देहरादून आदि कहीं भेजा जा सके तो ज्यादा अच्छा रहेगा। बड़े लोगों के बच्चों के साथ रहेगा तो अच्छी बातें सीखेगा। यहाँ स्कूल कितना भी अच्छा क्यों न हो, गाँवों के बच्चों का गाली-गलौच, शरारतें चलती ही रहती हैं।"
"नहीं, इससे तो मैं बिल्कुल अकेली हो जाऊँगी। आप भी रात को घर लौटते हो।"
"जब यह स्कूल जाएगा तो अकेली तो तुझे होना ही है।" - यादवेंद्र ने 'अकेली' शब्द पर विशेष जोर दिया। क्योंकि उसे लगता था कि जिस चीज से आदमी डरता है, उसे डराने के लिए उसी चीज का जिक्र बार-बार करना चाहिए और उसका ध्यान उसी चीज की तरफ लगाना चाहिए। अकेलापन रमन के डर का कारण है और वह उसे इसी से डराकर उसका अकेलापन दूर करने का उपाय करेगा।
यशवंत जो बाप की गोद में उकता चुका था, नीचे उतरने की कोशिश करने लगा। भला तीन-चार साल का बच्चा गोद में टिककर बैठ भी कैसे सकता है। यह उम्र तो उछलने-कूदने की है। यादवेन्द्र ने भी इस बात को समझा और उसे उतार दिया और वह उसी वक्त बाहर की और दौड़ा। यादवेंद्र पत्नी के पास ही बैठ गया।
"स्कूल तो वह कुछ घण्टों के लिए जाएगा। उतना समय तो घर के काम में निकल जाता है।" - रमन ने अपना तर्क रखा।
"इतना भी क्या काम है तुझे। भले ही इसे शहर के स्कूल में लगाएँ, अकेलेपन से तो तुझे लड़ना ही होगा।"
"हूँ... इसीलिए तो मैं कहती थी कि यशवंत का भाई-बहन होना चाहिए।" - रमन ने थोड़ा शर्माते हुए कहा।
"बहन का तो ठीक था, मगर भाई हो गया तो..."
"लोग तो बेटे के लिए मरते हैं और आप..."
"आजकल बेटा-बेटी एक बराबर हैं।"
"यह तो मैं भी मानती हूँ इसलिए चिंता क्या? बेटा हो या बेटी।"
"तुम समझती नहीं। लोग भी अक्सर कहते हैं कि अगर पहला बेटा पैदा हो जाए तो कोई दूसरे बच्चे की कोशिश नहीं करता, इसलिए लड़कियों की संख्या कम है। मेरा मानना है कि पहला बेटा होने के बाद कहीं दूसरा बेटा हो जाए, इस डर से लोग दूसरा बच्चा नहीं करते।"
"ऐसा तो आप ही कह रहे हैं, और तो किसी से नहीं सुना।"
"ये कहने की बात नहीं, समझने की बात है। दूसरा बेटा पैदा होने का अर्थ है, जमीन-जायदाद का दो हिस्सों में बंट जाना।"
"बेटियाँ भी अब बराबर की हक़दार हैं?"
"मानता हूँ कि कानून ऐसा ही कहता है, लेकिन हमारे समाज में बेटी को जमीन बाँटकर नहीं दी जाती। हाँ, उसकी शादी पर खर्च किया जाता है। सारी उम्र तीज-त्योहार के नाम पर दिया जाता है। इससे रिश्तों में प्यार बना रहता है।"
"ये क्या मतलब हुआ, जमीन के बराबर तो खर्च नहीं करते लोग।"
"हाँ, सही कहा तुमने। कुछ लोग तो शादी पर लड़की को दिए गए तोहफों-सामान को दहेज कहकर बुरा कहते हैं, लेकिन वास्तव में यह उसका हक है।"
"भले हक है, लेकिन इससे दहेज की गलत परंपरा तो चल पड़ी।"
"दहेज बुरा है जब माँगकर लिया जाए। शादी के बाद दहेज के लिए लड़की को सताना भी गलत है। जिन्होंने बेटी को पढ़ाने के लिए सारी पूँजी लगा दी हो, उनको अगर दहेज के कारण बेटी के लिए योग्य वर न मिले तो दहेज बुरा है, मगर हम जैसे लोगों के अगर बेटी हो और वह दहेज न दे तो वह कमीनापन है। बेटी को जमीन नहीं दे सकते। हाँ उसके हिस्से की जमीन की आधी कमाई भी अगर उसको दें तो भाई-बहन के रिश्ते जैसा कोई रिश्ता नहीं।"
"लेकिन आजकल दौर बदल रहा है, जब तक हमारे बच्चे बड़े होंगे तब तक हो सकता है बेटियाँ लड़कर जमीन बंटवा लें।"
"फिर भी नुकसान नहीं, बेटी जमीन ले जाएगी, बहु ले आएगी।"
"ऐसे तो दो बेटे हुए तो दो बहुएँ जमीन ले आएँगी।"
"पर मैं नहीं चाहता कि मेरी बहू अपने भाइयों से जमीन लेकर आए। इसलिए दूसरा बेटा भी हो सकता है, इसी डर के कारण मैं नहीं चाहता कि दूसरा बच्चा हो।
"चलो, फिर भुगत लूँगी अकेलापन, लेकिन मैं यशवंत को बोर्डिंग तो नहीं भेजने दूँगी। मैं खुद पढाऊँगी उसे।" - यह कहकर रमन रसोईघर में चली गई।

क्रमशः