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बिसायती बाबा

पीठ पर गठरी लादे, सफेद ट्रीम की हुई दाढ़ी वाला बाबा महीने में एक बार उस गांव में आ ही जाता था। जब भी आता था गांवभर की औरतें उसे घेर लेती और अपनी-अपनी पसंद का सामान पूछती थी उससे। पूरी बिसायत का सामान लिए वो बस गली-गली, मोहल्ला-मोहल्ला और गांव-गांव घूमता था। आज इस गांव कल उस गांव। यही उसकी ज़िन्दगी थी और इसी से था उसका गुजारा। आज एक बार फिर से वही दाढ़ी वाला बिसायती बाबा गांव में आया। गोटा, किनारी, सितारा, फूल, चूड़ी, मुंदड़ी, काज़ल, बिन्दी, लाली, रूज, पाउडर, कांखी, कंघा, कंघी, नेल पाॅलिश, बॉडी (ब्रा) ,चड्डी (पेन्टी) और भी न जाने क्या-क्या.......बस यह समझ लीजिए कि औरतों के काम की तमाम चीजें। जिसकी जो फ़रमाइश होती निकलता और थमां देता। कभी सुनहरी गोटा, कभी चाॅंदी जैसा झक सफेद चमकदार। किरण भी लाता था लूगड़ियों के लिए तभी मुन्नी ने पुछा:-

- बाबा आपके पास सोने का गोटा भी होता है।

- नहीं बिटिया वो बहुत महंगा होता है ना हम नहीं ला पाते हैं।

- इसका मतलब सोने का गोटा होता तो है ना।

- हाँ बिटिया होता तो है।

- तो जब मैं बड़ी हो जाऊंगी ना तो मेरी लूगड़ी के लिए सोने का गोटा लाकर दोगे ना बाबा।

- अरे हाँ बिटिया जरूर लाकर देंगे पर आपका नाम तो बताओ

- मुन्नी

- ओहो तो आप मुन्नी हैं

- हाँ क्यों आपके भी बेटी है कोई।

बस इतना पूछना था कि बिसायती बाबा की आँखें भर आई और वो बिना कोई जवाब दिये ही वहाँ से चल दिया। मुन्नी सोचती रही आखिर ऐसी कौन सी बात है जिसके कारण बिसायती बाबा बिना जवाब दिये ही चले गये। मैंने जब इतना सा पूछा कि आपके बेटी है तो बिसायती बाबा परेशान क्यों हो गया। कुछ बोला भी नहीं बस गठरी उठाई और चला गया भला ऐसा भी कोई करता है। मेरी बात का जवाब ही नहीं दिया पता नहीं कैसे हैं ये बिसायती बाबा। गंदे कहीं के। तभी उसके मन ने कहा

- नहीं गंदे तो नहीं हैं कितने अच्छे से मेरे को बोलते तो हैं कितना प्यार करते हैं जरूर इनके भी कोई बेटी होगी जो इनसे दूर है और मेरे पूछने पर उनको बेटी की याद आ गई होगी। हाॅंँ यही सच लगता है। तभी तो वो उदास होकर बिना जवाब दिये ही चले गये थे। अबकी बार बिसायती बाबा को आने दो मैं तो जिद कर लूंगी हाँ ...अबकी बार बिना बताये जाने ही नहीं दूंगी उनको।

बस यही कुछ सोच रही थी मुन्नी, तभी मम्मी की आवाज़ से मुन्नी की तन्द्रा टूटी और वो घर के भीतर चली गई। भीतर मां ने रसोई के बर्तन जमाने के लिए कहा और खुद मां चली गई भैंस को चारा डालने। मुन्नी इतनी छोटी भी नहीं थी पूरे 11 बरस की थी वो। लेकिन अभी उसकी बाल सुलभ बातें सबको भांति थी। पूरे घर में उछलती, धमाचौकड़ी करती। वो अभी भी लगता था मानो चार पाॅंँच साल की हो। कई बार मां तो उसे कह देती थी तेरी उम्र में मेरी सगाई हो गई थी तेरे बापू के साथ। तेरे दादाजी ने मुझे देखा और मांग लिया था मेरे बापू से। तब मुझे नहीं मालूम था कि सगाई क्या होती है। हाँ ये जरूर था कि मेरे सासरे से आए शक्करपारे बड़े चाव से खाये थे मैंने। अब तू भी बड़ी हो गई है मुन्नी घर का काम भी कर लिया कर नहीं तो तेरे सासरे वाले कहेंगे कि माँ ने कुछ भी नहीं सिखाया इसको। नहीं मां अभी तो मुझे बहुत पढ़ाई करनी है और बड़ा बनना है। जब बड़ी हो जाऊंगी ना तब मेरी शादी कर देना।

इधर कई दिन हो गये वो बिसायती बाबा नहीं आया था कोई दो-तीन महीने ना उसकी कोई खबर और ना ही किसी को फिक्र। बस कभी-कभी मुन्नी जरूर मां से पूछ लेती थी कि वो बिसायता बाबा आजकल क्यूं नहीं आता है और मेरी लूगड़ी के लिए सोने का गोटा भी लाकर देंगे ना मां - जब मेरी शादी होगी ना तब। एक दिन अचानक ही वो बिसायती बाबा गांव में आया लेकिन इस बार उसके पास बिसायत की गठरी पीठ पर नहीं थी। लोग उसे देख रहे थे कि आज बिसायत का सामान उसकी पीठ पर नहीं है। एक आध् जगह पर औरतों ने उससे पूछा भी कि आज सामान नहीं लाए कितने दिनों से वो सब उसकी राह देख रहीं हैं लेकिन बिना किसी को कोई जवाब दिए वो सीधा मुन्नी के घर ही गया और इधर-उधर देखने लगा, सोच रहा था कि आवाज लगाऊं कि नहीं। बड़ी जोर की प्यास लगी थी हलक सूखा जा रहा था। वो धम्म से वहीं जमीन पर बैठ गया। इतनी ही देर में मुन्नी धमाचौकड़ी करती कहीं से आ गई। अरे बिसायती बाबा क्या इस बार आप बहुत दिनों बाद आए हो और गठरी भी नहीं है। मेरे को तो चूड़ी लेनी थी पर आपकी तबीयत ठीक नहीं है क्या? क्या हुआ है आपको

कुछ नहीं बिटिया थोड़ा सा पानी मिल जाएगा।

हाँ अभी लाई

और वो दौड़कर एक लोटा पानी ले आई और लोटा बाबा की तरफ कर कहा

लो बाबा पानी

नहीं बेटा मुझे ऊपर से पिला दो हम मुसलमान हैं ना लोटा अपवित्र हो जाएगा

क्यों बाबा आपके घर में लोटा नहीं होता है क्या और ये मुसलमान क्या होता है बाबा

तभी मुन्नी के पिताजी आ गए

अरे रहमान भाई और बताओ कैसे हो बड़े दिनों के बाद आए हो अबकी बार

पहले थोड़ा पानी पिला दो

हाॅं मुन्नी ला लोटा दे

नहीं बिसायती बाबा खुद ही लोटे से पानी पीएंगे

हाॅं...हाॅं....पी लो ना भाई

लेकिन मैं.......बस इसके आगे वो कुछ नहीं बोल पाया और बेहोश हो गया। पानी के छींटे देकर उसे होश में लाने की कोशिश करने लगे। मुन्नी एक तरफ कोने में खड़ी सुबकने लगी। क्या हुआ बिसायती बाबा को तभी उसे होश आ गया। वो बोला

कुछ नहीं आप घबराइये नहीं मैं ठीक हूँ ।

उसने पानी पिया और अपनी जेब से एक थैली निकालकर मुन्नी की तरफ बढ़ा दी। ले बिटिया तेरे लिए असली सोने का गोटा

लेकिन आप तो कह रहे थे बहुत महंगा होता है

मैं ले आया बिटिया

और भावुक हो गया।

मेरी भी एक बेटी थी, बिल्कुल तेरी ही उम्र की होती अब। लेकिन अल्लाह की मर्जी

क्या हुआ था उसको

कुछ नहीं बिटिया उसकी आंखों में आंसू आ गए

आप रो क्यों रहे हैं बाबा

कहा ना कुछ नहीं बिटिया

नहीं मेरे को बताओ क्या हुआ था

क्या बताऊँ बिटिया तुम नहीं समझ पाओगी

नहीं मुझे बताओ

उसने एक लम्बी सांस ली और कुछ सोचने लगा

हमारी बिटिया भी बस तुम्हारी तरह बातें करती थी पूरे घर में उछलती-कूदती रहती थी, सारा घर उसी से रोशन था। मैं और मेरी बीबी तो उसे देख कर ही जी रहे थे।

फिर उसके क्या हुआ बाबा

क्या बताएं बिटिया वो बलवे की भेंट चढ़ गयी वो ही क्या मेरा पूरा परिवार........

बलवा क्या होता है बाबा

बिटिया किसी मंदिर में किसी बदमाश ने मांस के टुकड़े डाल दिये थे। बस फिर क्या था पूरे गांव में दंगे हो गये थे। एक-एक को पकड़ कर मारा था, उसी में मेरा पूरा परिवार खत्म हो गया। मैं फेरी पर गया था सो बच गया। बस इसी दहशतगर्दी की भेंट चढ़ गई थी मेरी बिटिया, मेरी बिटिया ही क्या, मेरी बीबी, घर, परिवार और गांव के ज्यादातर मुसलमान।

लेकिन क्यों मारा बाबा

बेटा ये तो मैं क्या बताऊं लेकिन वो इंसान ही थे केवल हैवानियत थी उनके सिर पर और कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। पता नहीं क्यों हम मजहब के नाम पर, जात के नाम पर, धर्म के नाम पर इतने बंट गये हैं कि इनसानियत का धर्म तो भूल गये और केवल दिखावे का व्यापार करने लग गये। खैर छोड़ो बिटिया मैं भी क्या सुनाने लग गया। तुम्हें समझ नहीं आएगा ये सब अभी

नहीं बाबा बताओ ना क्या हुआ था

अरे बिटिया हमारे गांव में दंगे हो गये थे और दहशतगर्दों ने मेरी बेटी और मेरी घरवाली को मार डाला था। जब मैं वापस आया तो सब कुछ उजड़ चुका था।

वो रोने लगा था। मुन्नी ने धीरे से पानी का लोटा फिर उसकी ओर बढ़ा दिया। धीरे से लौटा थाम पानी पीने लगा और मुस्कुरा कर मुन्नी को प्यार से अपनी गोद में बिठा लिया। मेरी बिटिया मुन्नी बिटिया। तुमने उस दिन सोने का गोटा मांगा तो लगा मेरी ही गुड़िया मुझसे गोटा मांग रही है। मुझसे रहा नहीं गया। इतने दिन मैं लगातार फेरी लगाकर कमा सकता था कमाया कल मैंने अपनी पूरी गांठ भी बेच दी और बस ये सोने का तार जड़ा गोटा मेरी मुन्नी बिटिया के लिए ले आया। देख ना मुन्नी अच्छा है ना, मेरी मुन्नी बिटिया की लूगड़ी में कितना अच्छा लगेगा।

बस तू ओढ़ेगी तो लगेगा मेरी बिटिया ने ओढ़ा है। तुझमें मेरे को मेरी गुड़िया ही दिखती है।

बस इतना कहा और वो बेहोश हो गया। मुन्नी ने अपनी मम्मी को आवाज लगाई सब आ गए लेकिन तब तक वो जा चुका था बहुत दूर जहां से कोई लौट कर नहीं आता। लेकिन जाने से पहले सबको इनसानियत की सीख दे गया वो बिसायती बाबा।

 


योगेश कानवा

 

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