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विश्वास - कहानी दो दोस्तों की - 27

विश्वास (भाग -27)

बाजार से आकर टीना ने जो खरीदी वो सब दिखाया। उमा जी तो बस पोती को पहले की तरह हँसते खिलखिलाते देख खुश थी। सरला जी टीना के लिए अपने हाथों से सिल कर एक कुरती लायी थी। रंग बिरंगी कुरती टीना को बहुत सुंदर लगी। "दीदी ये शॉल आपके लिए लाई हूँ"। "ये तो बहुत सुंदर है आँटी जी, टीना ने शॉल देखते ही कहा और यह जरूर बाहर से कोई दीदी लायी होंगी आपके लिए"।

"हाँ बेटा तेरी दीदी ही लायी थी जब पापा को देखने आयी"। "सरला यह तुम रखो, मेरे लिए अगली बार मँगवा लेना। बच्चों का तोहफा अनमोल होता है"। उमा जी ने कहा तो सरला बोली," दीदी यह बात गलत है, आप भी उसकी माँ समान हों अब मेरी खुशी के लिए ही रख लो और कुछ मत कहिए"।

"अच्छा ठीक है नाराज मत हो मैं रख लेती हूँ", जब पहनूँगी तो फोटो भेजूँगी। "माँ खाना लगवा दो फिर टीना और दादी को बैलगाड़ी में खेतो में घूमा लाता हूँ"। "भुवन बेटा मैंने खेत -खलिहान, बैलगाडी, घोडागाडी और ट्रैक्टर सबकी सवारी की हुई है। तुम बस इस को घूमा लाओ। हम लोग तो घर पर ही बैठेंगे"। दादी ने कहा।

भुवन के पापा भी आ गए तो सब ने खाना खाया। खाने के बाद टीना अभी आ रही हूँ कह कर कमरे में चली गयी। भुवन के पापा ने उसको अपने कमरे में बुला कर उमा जी ने स्कूल को जो 50,000 की रकम दान दी है बताया । "पापा मुझे पता नही इस बारे में टीना ने भी कुछ नहीं बताया। अब वापिस देना तो ठीक नहीं लगता"।

"वो तो तुम ठीक कह रहे हो। आगे से कभी देना चाहे तो लेना मत। शहरी लोग हैं कहीं तुम्हारी दोस्ती न बिगड़ जाए"। "आप चिंता मत करो पापा मुझे बिना बताए दिया है तो इसका मतलब आप भी समझते हैं। अच्छे लोग हैं। बच्चों की मदद करना चाहते होंगे बस यही बात है, मैं तो इनके परिवार से मिल चुका हूँ। शहर में रहते हुए भी साफ दिल के लोग हैं। दिखावा लेशमात्र नही है"।

"तुझसे बात करके तसल्ली हो गयी है बेटा। लोग तो मुझे भी अच्छे लग रहे हैं। बस अपनो से धोखा खाया बैठा हूँ , तो डरता हूँ कि मेरे बच्चे मेरी जैसी गलती न कर बैठें। अब जा घूमा ला लड़की को जग्गू बैलगाडी ले कर आता ही होगा"। ठीक है पापा आप जग्गू को एक बार और फोन करके याद दिलवा दीजिए।

भुवन के जाने के बाद जग्गू को फोन किया तो वो बोला की मालिक 2 मिनट में पहुँच रहा हूँ। बैलगाडी के आते ही दोनो घूमने चले गए। सरला जी जब घंटो घर नही गयी तो उनके मास्टर जी भी यहीं आ गए। एक बार फिर बातों की महफिल सज गयी, जिसमें सब अपने अपने बच्चों की बातें कर रहे थे।

"माँ जी आपके आने से हम सब को लग रहा है कि हमारे घर में माँ आ गयी है। आप ने बहुत अच्छा किया यहाँ आ कर", क्यों भुवन की माँ ठीक कह रहा हूँ न?? " बिल्कुल ठीक कहा आपने, हमारे सब बच्चे भी खुश हो गए आप दोनों से मिल कर"।

"भाई साहब आपके भुवन की जितनी तारीफ करूँ कम है, मेरा पूरा परिवार भुवन का एहसानमंद है, वरना हमें तो लग रहा था कि हमारी टीना बीमारी के सामने हार मान ली है। आपके बेटे की दोस्ती और उसके विश्वास ने टीना को फिर से पैरों पर खड़ा कर दिया है"। भुवन के मम्मी पापा के लिए अपने बेटे की इतनी तारीफ गर्व का कारण थी।

"माँ जी रवि और भुवन कभी दोस्त बनाते ही नही, हम दोनो अब तक कहते रहे हैं कि दोस्त होने चाहिए, पर सिर्फ औपचारिकता से आगे बढ़ कर दोस्ती किसी से नहीं की। आप भुवन का जो पहलू हमें बता रही हैं , हमारे लिए नया है। बस खुश हैं कि टीना ने भुवन को दोस्ती करना तो सिखाया"। यह सब उमा जी के लिए नयी था।

"संध्या भी तो दोस्त है न भुवन की, दोनो एक दूसरे को पसंद करते हैं, तभी आप लोग शादी करवा रहे हो"। उमा जी ने पूछा तो सब मुस्करा दिए। "क्या हुआ आप सब मुस्करा क्यों रहे हैं"? उमा जी थोडी हैरान हो रही थीं।

माँ जी संध्या की माँ का स्वर्गवास काफी पहले हो गया था, तब वो 7 साल की थी, उसके पिता हमारे खेतों में काम करते थे, बीमारी की हालत में वो एक दिन हमारे घर अपनी बेटी को ले कर आयी और बोली "मुखिया जी मेरी बेटी की जिम्मेदारी आपको सौंप रही हूँ ,जो इसके लिए ठीक लगे वही करना"। मैंने भी कहा," ठीक है, मैं इसको खूब पढाऊँगा और सही समय आने पर शादी भी कर दूँगा, तुम चिंता मत करो"।

"मुखिया जी मुझे पता है कि आपने जो कहा वो जरूर करोगे, अगर आप वादा करो कि सही वक्त आने पर आप इसको अपनी बहु बनाओगे तो मैं चिंतामुक्त हो कर मर सकूँगी नही तो मरने के बाद भी चैन नही मिलेगा"।

"ये वादा मैं नहीं करना चाहता था क्योंकि बड़े हो कर बच्चे मेरी माने या नही ऐसे वचन झूठा पड़ जाएगा। मैं सोच ही रहा था कि क्या बोलूँ। भुवन जो पास ही खेल रहा था, वो संध्या से 3-4 साल बड़ा तो है ही, वो समझ रहा था कि काकी बीमार है। पापा आप काकी को बोल दो," भुवन शादी करेगा उनकी संधु से"।

"भुवन की बात मान मैंने संध्या की माँ से वादा कर दिया। मुझसे वादा ले कर कुछ घंटो बाद ही उसकी मौत हो गयी। बस भुवन अपना किया हुआ वादा पूरा कर रहा है"। "भुवन तो वो पारस है , जिसको छूता है वो भी सोना बन जाता है। आप दोनो बहुत भाग्यशाली हो"। उमा जी ने कहा तो सरला ने भी," हाँ जी दीदी सच कहा आपने, कह अपनी सहमति जताई"।

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