विश्वास - कहानी दो दोस्तों की - 8 सीमा बी. द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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विश्वास - कहानी दो दोस्तों की - 8

विश्वास (भाग --8)

सरला जी के जाने के बाद दादी पोती की खामोशी से एक दूसरे से बातें करने लगी।
अक्सर ऐसा ही होता था, जब टीना दुखी होती तो दादी चुप हो जाती थी क्योंकि वो जानती थी, अभी उसको कुछ कहना मतलब दुखी करना है।

रोज की तरह ठीक समय पर नर्स टीना को सैशन के लिए लेने आ गयी। 45 मिनट का सैशन होता है पर आज टाइम ज्यादा लग रहा था। आज डॉ. साहब ने टीना को कुछ कसरत करने का तरीका बताया जो उसको अपने आप बैठे -बैठे करने की कोशिश करनी है, दिन में 2-3 बार।

उसके बाद टीना की स्पीच थैरेपी की जरूरत है या नहीं की जाँच भी की गयी तो उनको बताया गया कि, "धीरे धीरे कोशिश करेगी बोलने की तो बोल पाएगी, अंदर के जख्म बिलकुल ठीक हो चुके हैं"। सुन दादी पोती दोनों के चेहरों पर थोड़ी सी मुस्कान आयी देख नर्स ने भी मुस्करा कर कहा, "अब टीना खुश हो ना", टीना ने मुस्कान होठों से होते हुए आँखो में तैर गयी।

अपने कमरे में वापिस आ कर उमा जी ने टीना की मम्मी को अच्छी खबर सुनायी। वो जानती हैं कि मीनल और उमेश जो बेटी की हालत देख कर टूट चुके हैं, वो इस बात से बहुत खुश होंगे। टीना दादी की खुशी देख कर मुस्करा रही थी। उसने कुछ कहने के लिए बोलने की कोशिश की पर नही बोल पायी तो उसको आँखो में आँसू आ गए।

"टीना बेटा अपना दिल मत छोटा कर, तू हमारी बहादुर बच्ची है ना , हौसला रख कोशिश करते रहना है"। टीना की आँखों में आँसू देख दादी ने हौसला बढाते हुए कहा। टीना को दादी के शब्दों से हिम्मत मिली।

हॉस्पिटल में रहने से इंसान समय का पाबंद हो जाता है, फिर टीना और उसकी दादी तो काफी दिनों से हैं तो थोड़ी जान पहचान भी हो गयी है। शाम ढल रही थी, टीना के लिए सूप आ गया था। नर्स ने पूछने पर बताया कि साथ वाले रूम के मरीज को उनके कमरे में शिफ्ट कर दिया है।

समय पर टीना के बड़े चाचा चाची खाना ले कर आ गये। ट्रैफिक में समय ज्यादा लग जाता है तो 15-20 मिनट के बाद ही उमा जी ने घर जाने को कहा। उमा जी व्यवहारिक हैं, वो जानती हैं कि सब काम अपने समय पर जिम्मेदारियाँ बाँट कर ही हो पाते हैं।

उमा जी ने फोन पर सरलाजी से उनके पति का हाचाल पूछ खाना खाने को बुलाया। सरला ने बताया कि," अभी उनके पति सो रहे हैं, भुवन भी आ गया है। मैं आती हूँ"। टीना का खाना भी आ गया था, हमेशा कि तरह दादी के साथ खाने के लिए बैठी रहती। फिर आज तो और लोग भी थे तो वो भी इंतजार में थी।

कुछ मिनटों के बाद सरला जी अकेले ही आयी तो उमा जी ने भुवन के लिए पूछा तो बोली की वो कह रहा है," मैं सर के पास बैठा हूँ, आप खा कर आओ चाची"। "ठीक है, हम खाते हैं फिर उनको भेज देना या आप ले जाना वो अगर यहाँ आने से शरमा रहे हैं तो वहीं खा लेंगे"। कह उमा जी खाना लगाने लगी तो सरला जी भी प्लेटस लगाने लगी।
क्रमश: