दानी की कहानी - 35 Pranava Bharti द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दानी की कहानी - 35

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दानी को बिलकुल पसंद नहीं था कि छोटे बच्चे चाय पीएँ | उनका कहना था कि आज का व्यवहार ऐसा हो गया है कि जब हम मित्रों या रिश्तेदारों के घर जाते हैं अब सब लोग ही अधिकतर चाय या कॉफ़ी पिलाते हैं | 

आजकल छोटे बच्चों को भी चाय पिलाने लगे हैं जबकि उन्हें चाय पिलाने की कोई ज़रूरत नहीं है | उनके विकास के दिन होते हैं और उन्हें कैल्शियम की बहुत ज़रूरत होती है इसलिए उन्हें दूध देना चाहिए | 

"तुम लोगों को पता है, हमारे जमाने में तो चाय-वाय होती ही नहीं थी बल्कि तुम लोगों के मम्मी-पापा के जमाने में भी उनके बचपन में उन्हें दूध दिया जाता था | गर्मियों में जब सारे बच्चे एक ही जगह इकट्ठा होते तब सुबह दूध, नाश्ता, दोपहर में लस्सी या ठंडाई और रात में फिर दूध ! चाय का तो नामोनिशान ही नहीं था | 

"एक बार हमारी बेटी ने अपनी किसी पंजाबी सहेली के घर चाय पी ली, बस उसे शुक चढ़ गया कि उसे चाय पीनी है | हमारे यहाँ तब तक चाय-कॉफ़ी कोई नहीं पीता था | सर्दियों में सुबह के समय में बदाम-खसखस का गरम दूध बनता, कढ़ाई में औटता रहता और सब बड़े शौक से पीते लेकिन जब ये चाय शुरू हुई, लोगों ने इसको फैशन में ले लिया | धीरे-धीरे सब लोगों में चाय का फैशन शुरू हो गया लेकिन हमारे परिवार के बड़े बच्चों को चाय पिलाने के फ़ेवर में कभी भी नहीं थे | " दानी ने बताया, थोड़ी देर बाद फिर बोलीं ;

"एक बार गोलू के पापा यानि हमारे बेटे चाय का पैकेट ले आए लेकिन बड़ी दादी जी ने बनाने ही नहीं दी | हरिद्वार में गुरुकुल काँगड़ी थी, वहाँ चाय के आयुरवैदिक गुलाबी रंग के ब्लोटिंग पेपर जैसे मोटे कागज़ के पैकेट्स होते थे | बड़ी दादी जी वे चाय के पैकेट्स मँगवा लिए थे और पूरे दूध में डालकर उबालकर, चीनी डालकर सबको पिलाया तो किसीको उसका स्वाद पसंद ही नहीं आया | वह चाय सबको एक भूसा सी लगती थी | बस, सबने चाय पीना बंद कर दिया | "

"अब तो सब पीते हैं दानी --"नन्ही पारी बोली | 

"बेटा ! अब तो वे सब बड़े हो गए न और चाय का प्रचलन भी बहुत हो गया ---"

"हूँ, " गपपू जी ने बड़ों की तरह मुँह हिलाकर कहा जैसे वह बहुत समझदार हों | 

"पर--दानी , चाय तो अब पूरे भारत में पी जाती है न ?" अंशुल बड़ा था, समझदार भी !

"हाँ, ठीक कह रहे हो बेटा --"दानी ने समझाते हुए कहा | 

"चीनी और चाय का रिश्ता अटूट है । बिना चीनी के फीकी चाय, चाय नहीं लगती । पता नहीं चीनी की बीमारी वाले (डायबिटीज़ )ये बिना चीनी की चाय कैसे पीते होंगे !"नंदन ने कहा | 

चाय भारत का लगभग राष्ट्रीय पेय बन चुका है।

"चा, च्या, चाया, चहा, चाय, चाई, चायी, चाय के लिए ऐसे देशज-प्रांतीय भाषाओं में प्रयुक्त की जाते हैं | इनके उच्चरण अलग हैं मे लेकिन " चाय " शब्द ही इन सब शब्दों का मूल है।

चाय को हिंदी में चाय के अलावा कोई दूसरा सार्थक नाम होगा यह बात असंभव सी लगती है यह शब्द 'चाय' इस कदर हिंदी भाषा ने अपना लिया है कि चाय शब्द अब तो हिंदी ही हो गया है।

"शुद्ध यानि संस्कृतनिष्ठ हिंदी को प्रयोग करने वाले  इसे 'शामल पेय' या 'कषाय पेय' नाम देते हैं लेकिन इस शब्द में घी जैसी शुद्धता की बू आती है और असल चाय का सारा मजा ही किरकिरा हो जाता है ।" नंदन तो काफी बड़ा था, कॉलेज में पढ़ता था | उसे नई चीज़ें जानने का बहुत शौक था | 

"चाय पेय की खोज भी चीनी है और चाय शब्द भी चीनी- चीन की ही देन है ।चाय शब्द चीनी भाषा के "चा " शब्द से लिया गया है।हैं न दानी ?" अपूर्व बोल उठा | उसने कहीं पढ़ा था| 

"पता है दानी, चाय को हिंदी में "दूध जल मिश्रित शर्करा युक्त पर्वतीय बूटी" भी कहते है । और पता है संस्कृत में कहते हैं ;

" दुग्धशर्करामिश्रितोत्साहवर्धकस्फूर्तिदायकश्यामलपेय ।।" नंदन बोलकर हँस पड़ा | 

"कैसा रहा यह चाय का नाम ? हाँ न दानी?!"

"मुझे तो ये नाम नहीं, चाय का श्लोक लगता है ---"दानी ज़ोर से हँस पड़ीं | 

उनके साथ सारे बच्चे ठठाकर हँस पड़े | 

इस सबमें एक बात यह बहुत अच्छी होती थी कि खेल-खेल में बच्चे बहुत कुछ नया सीख जाते थे | 

 

डॉ. प्रणव भारती