हमेशा याद आने वाला शहर नाडियाद Anant Dhish Aman द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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हमेशा याद आने वाला शहर नाडियाद

तपोभूमि, किडनी अस्पताल वल्लभभाई पटेल से सरदार वल्लभभाई पटेल, स्वतंत्रता आंदोलन की अहम भूमिका निभाने वाली पावन भूमि "नाडियाद"

गुजरात प्रदेश के खेदा जिला का मुख्यालय नाडियाद शहर में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रुप में मेरे लिए आनंद का विषय रहा।
अध्यात्मिक तपोभूमि जिसकी गाथा संतराम मंदिर के रुप में निरंतर प्रज्वलित है और यहाँ पर रहने वाले और आने वाले लोग के लिए प्रकाशमान है।
प्रथम संतराम महाराज अवधूत कोटि के संत थे। वह गिरनार से नडियाद आए थे, इसलिए उसे गिरनारी बावा, विदेही बावा या सुखा-सागरजी भी कहा जाता था। वे संवत 1872 में यहाँ आए, 15 वर्षों तक लोगों की आध्यात्मिक भलाई के लिए रहे, और संवत 1887 के माघ मास की पूर्णिमा के दिन जीवत-समाधि ली। नडियाद मंदिर के वर्तमान महंत, श्री रामदासजी मंदिर की गढ़ी पर नौवें महंत हैं।
आप जब यहाँ जाएंगे के तो अद्भुत अध्यात्मिक शांति की प्राप्ति होगी निराकार भाव की यह तपोभूमि गुरु के प्रति श्रद्धा और विश्वास का अटूट केन्द्र है जहाँ पहुंचकर आपके अंतस के अधयात्म को महासागर से मिलना होगा और इनके सेवा कार्यों को देखकर "नर सेवा नारायण सेवा" के भाव को संबलता प्रदान करती है।

इस अध्यात्मिक तपोभूमि पर स्वतंत्रता संग्राम का अद्भुत छाप है यह सरदार वल्लभ भाई पटेल की पावन जन्मभूमि भी है और खेदा सत्याग्रह का केन्द्र बिन्दु भी है अहिंसा के भाव की जागृत स्थली भी है।
नाडियाद को लेकर महात्मा गांधी जी का एक खास लगाव भी था। 1918 में खेड़ा सत्याग्रह के दौरान एक रिश्ता यहां से जुड़ गया था। गांव, खेती-किसानी को लेकर महात्मा अगर किसी की बात पर सबसे ज्यादा यकीन करते थे तो वो सरदार पटेल थे,और सरदार को सरदार खेड़ा सत्याग्रह ने ही बनाया था।

सरदार पटेल की जन्मस्थली नडियाद ने महात्मा की आवाज में कई बार आवाज मिलाई। मंदिर से कुछ दूर शहर के अंदर जाकर ही सरदार पटेल की जन्मस्थली है। सरदार पटेल का इस शहर में ननिहाल है और गुजरात में परंपरागत तौर पर पहले बच्चे के जन्म के वक्त महिलाएं अपने मायके में आती है। इसीलिए वल्लभभाई पटेल की माता ने अपने पिता जी के घर में थी। बाद में किसानों के लिए लड़ाई लड़ते हुए सरदार ने इस इलाके में काफी काम किया था।
1918 के बाद गांधी जी के लिए भी ये इलाका जाना पहचाना था। दांडी यात्रा को मिल रहे जन समर्थन के बाद महात्मा को इस जिले से अपार सहयोग मिलने में कोई संदेह नहीं था।
महात्मा गांधी के मार्च में शामिल हर आदमी का नाम और काम तमाम लोग जानते थे। लेकिन इसी दस्ते में एक शख्स को लेकर मीडिया और आम आदमी जो भी इस दस्तें के लोगों से परिचित थे उनमें काफी उत्सुकता थी और वो नाम था खड्गबहादुर गिरि।

खड्गबहादुर को लेकर मीडिया की उत्सुकता देखते हुए महात्मा ने खुद लिखा है कि खड्गबहादुर को शामिल करने को लेकर कई चीजें थी। खड्ग बहादुर का परिचय देते हुए कहा कि एक व्याभिचारी के व्याभिचार को सहन न करते हुए उन्होंने उसका खून किया है और फिर कानून को समर्पण किया है। गिरि इससे पहले भी आश्रम में रहे है आश्रम के तमाम नियमों का पालन किया है। इस मार्च में शामिल होने के लिए उन्होंने कई चिट्टिय़ां लिखी है मैंने उनका जवाब नहीं दिया था। वो अपनी गाड़ी छूट जाने की वजह से पहले शामिल नहीं हो पाएं थे और एक दिन देरी से आश्रम पहुंचे, फिर मेरी अनुमति न मिलने से वो आश्रम में इंतजार कर रहे थे और अब वो इस दस्ते में शामिल हो रहे है।
खड्गबहादुर का नाम देने का अर्थ सिर्फ ये है कि वो भी दूसरों का प्रायश्चित करने के लिए शामिल हुए है। संभव है कि इन कारणों से पाठक इस युद्ध के बारे में और समझ पाएं कि सत्याग्रह क्या चीज है ये भलीभांति जान सकेगे।

इस मार्च में गिरि के शामिल होने की चर्चा ने शायद बहुत दूर का सफर तय किया था। कत्ल करने के बाद सजा काट कर अपनी जिंदगी गांधीवादी रास्ते पर नाम करने वाले खड्ग बहादुर।

उचित हिंसा को गांधी ने भी समर्थन कर यह स्पष्ट कर दिया था की उनका सत्याग्रह का मूल उद्देश्य क्या है और सत्याग्रह की सफलता ने अंग्रेजी हुकूमत के होश उड़ा दिए यह स्वतंत्रता संग्राम की कहानी में नाडियाद की भूमिका का भी अहम योगदान है जो वलूलभ भाई पटेल को सरदार पटेल बनने की अद्भुत यात्रा है।


"स्वास्थ्य सेवाओं के मुलजी भाई पटेल हास्पीटल सेवा भाव लिए अडिग अटल है" जिसे आम जनमानस ने किडनी अस्पताल से व्याख्यात कर रखा है।

नडियाद में मूलजीभाई पटेल अस्पताल
नडियाद में स्वास्थ्य परिदृश्य देश में सर्वश्रेष्ठ में से एक है। इसकी पुष्टि नडियाद में मुलजीभाई पटेल यूरोलॉजिकल अस्पताल की उपस्थिति से की जा सकती है।

यह एशिया में अपनी तरह का पहला अस्पताल है जो पूरी तरह से नेफ्रोलॉजी और यूरोलॉजी को समर्पित है। यह देश के सर्वश्रेष्ठ किडनी प्रत्यारोपण अस्पतालों में से एक है जिसे इस क्षेत्र में किए गए पथ-प्रदर्शक कार्य के लिए असंख्य पुरस्कार प्राप्त किया हैं।
नडियाद में मुलजीभाई पटेल यूरोलॉजिकल अस्पताल एक 140 बिस्तरों वाला विशेष अस्पताल है जो "हर जीवन विश्व स्तर की देखभाल का हकदार है" के अपने मिशन के अनुसार विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने पर जोर देता है। इसने 1978 में अपनी यात्रा शुरू की और तब से एक लंबा सफर तय किया है और देश में एक प्रमुख स्वास्थ्य संस्थान के रूप में खुद को स्थापित किया है। अस्पताल गुणवत्ता प्रदान करने में विश्वास रखता है और नेफ्रोलॉजी, यूरोलॉजी और एनेस्थीसिया के क्षेत्र में अग्रणी क्लिनिकल अनुसंधान की दिशा में प्रयास करता है।

यहाँ जब आप पहुंचेगे तो इस जगह के व्यवस्था को देखकर चकित हो जाएंगे डाक्टर से लेकर मेडिकल स्टाफ तक सभी का व्यवहार आपके परेशानी को हल करते दिखेगा और साथ हीं एक मंद मुस्कान से आपका स्वागत करते मिलेगा स्वच्छता ऐसी की आपको यह एहसास हीं नहीं होगा की आप अस्पताल में है और यह एहसास आपको स्वच्छता से बेहतर स्वास्थ्य की दिशा की कङी को जोङता मिलेगा।
सर्जन डाक्टर अभिषेक सिंह सिंह से जब मेरी मुलाकात हुई और उन्होंने यह बताया वह बिहार से है तो मन हर्षित हो उठा जैसे संकोच का पूर्ण विश्वास मिल गया हो उनके बात व्यवहार में और इस अस्पताल में उन्होंने अपने कार्यक्षेत्र की दक्षता से बेहतरीन मुकाम बना रखा है।

जब इस अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर कर्नल डाक्टर अजय गंगोली से मिला तो जो कुछ दिखा अस्पताल में उन्हें बताया तो उनकी मंद मुस्कान से अनुमान लगा सकता हूँ की वह प्रफुल्लित महसूस कर रहे थे फिर साहित्यक और राजनैतिक गतिविधियों पर चर्चा होने लगी और उन्होंने कहा की बिहार के लोग काफी मेहनती होती है वह देखने को और उनसे सीखने का मौका मिलता है। उनकी सरलता और सहजता को देखकर मैं भी प्रसन्नता से प्रफुल्लित हो उठा था और कहा कि यह से सुनहरी यादों का तोहफा और बहुत कुछ सीख कर जा रहा हूँ जिसे बिहार के डाक्टर और अस्पताल में बताने का काम करुँगा।

इस शहर के इतिहास वर्तमान का अवलोकन करते हुए बहुत कुछ पाया नाडियाद तुम सदैव मन के स्मृति बन रहोगे लौह पुरुष संतराम मंदिर और किडनी अस्पताल के एहसासों को मेरे अंदर सदैव जीवित रखोगे।

और हाँ आने के पहले थोङा असमंजस में था इस शहर में किंतु गुजरात विधानसभा अध्यक्ष शंकर चौधरी भाई साहब जी से जब बात हुई थी उन्होंने कहा था अनंत भाई जो भी बन पङेगा मदद होगा जरुर करुँगा यह विश्वास हीं उनका मुझे इसी तपोभूमि पर दस दिनों तक खींच लाया लगभग नौ साल बाद उनसे बात हुई मगर उनका बडप्पन की एहसास हीं नहीं होने दिया की इतने साल के बाद उनसे बात हुई आप अपने कार्य क्षेत्र में नई उंचाईयों को हासिल करे यही प्रार्थना रहेगी।

अनंत धीश अमन