आज संसार में चारों तरफ विलाप या रोनें का आंडबर है जिसे जहाँ मौका मिलता है वो अपना विलाप राग गाने लगता है आखिर यह कौन सा समाधान हम सबने ढूंढा है यह तो हम नहीं कह सकते है किंतु खुशियों के सागर से कोसो दूर चले गए है।
इन सब के बाबजूद एक परत चढ़ाया है समाज ने एक तरफ विलाप करते है दूसरे तरफ अपने दंभ मद से समाज को रौंदते है अपनी शान शौकत के तले यह मानव सभ्यता को किस किनारे पहुँचाएगा यह सोंच कर हीं रुह कांप उठता है।
यह जो हम कर रहे है
यह जो तुम कर रहे हो,
अपने हाथों से हीं
जीवन के आनंद का गला घोंट रहे हो।
लिंग का वर्गीकरण समाज को वर्गीकरण कर परिवार का वर्गीकरण कर कमजोर मजबूत का वर्गीकरण कर
आर्थिक वर्गीकरण कर जो बोया गया है इस संसार में वह सदियों तक आग उगलती रहेगी मानव सभ्यता पर और इतिहास गवाह है खानाबदोश से शुरुआत कर यहाँ तक पहुंचें है और भविष्य ग्वाह रहेगा यदि हम सभी न चेते तो बदनसीब बदहवास होकर यात्रा समाप्त करेंगें।
हम इंसान है इतने से किसी को खुशी नहीं हम पुरुष है हम महिला है हम ये जात है हम वो पात है हम ताकतवार है हम पैसे वाले है हम रसूखदार है इसमें हम खुश होते है आखिर किस दिशा में हम सभी जा रहे है जिसका न कोई ठौर है न ठिकाना है। और जो मैं महसूस करता हूँ वो यह है कि हम सभी खर पतवार है जो इस संसार के अनचाहे कृति है। जो सुंदर खलिआन(संसार) के सबसे बङे बाधक बन चूके है।
किसी दिन इस संसार का मालिक इस संसार को देखने आया की नहीं हम सब की जान आफत में आ जाएगी तब तक अपनी अपनी गाते रहिए राग विलापते रहिए क्योंकि आपने जो अपना संसार बनाया है वह रुदन के सागर में खुद ब खुद डूब जाएगा।
ऐसा वक्त आने से पहले स्वंय को खुशी के सांचे में ढाल ले जहाँ ना कोई दुख हो ना कोई उदासीनता का रंग ऐसे मंज़र से हीं जीवन सफल होते है एक हीं जीवन में कई जीवन जी लेते है यादों से दुख के तस्वीरें ओझल हो जाती है जीवन सुखमय और सुगंधित हो जाती है सारी परेशानियां बोझिल हो जाती है जीवन की अटकलें सुगम और निर्मल हो जाती है जीवन परिपूर्ण हो जाता है शुन्य ब्रह्म लगने लगता है ब्रह्म शुन्य लगने लगता है ना कोई आता है और ना कोई जाता है सब स्थिर और स्थित हो जाता है सब एक केन्द्र बिन्दु पर अवस्थित हो जाता है संसार स्वर्ग के भांती दिखता है जब संसार का कण-कण ह्दयस्थ हो जाता है।
दुख की तस्वीर
बनती नही बनाने से,
आँसू कम नही
समुंदर के खारे पानी से ।।
दिल ही दिल में
हजार जख्म उभरे हैं,
मन ही मन में
हजार सवाल कि लहरे है ।।
मेरे पास रंग ही नही
उदासीनता का,
आँसू है जो गमगीन
वो भी नही मेरे
किसी काम का ।।
हजार जख्म और अँधेरी कोठरी
किंतु वो भी मजबूर
जो चाह कर भी नहीं बना सकती
दुख से भरी एक तस्वीर ।।
#अनंत धीश अमन