डाकिया अब डाक नहीं लाता Anant Dhish Aman द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • ऑफ्टर लव - 26

                         जैसे हर कहानी में एक विलेन होता है,वैसा...

  • Revenge Love - Part 3

    हा बाबा उतने में ही वापस आ जायेंगे .. चलो न अब मेरे साथ .. आ...

  • साथिया - 125

    उधर ईशान के कमरे मे"छोड़ो ना मुझे  इशू देखो सुबह हो गई है। स...

  • मैं, तुम और हमारी कहानियाँ

    सबसे समर्थ और सबसे सच्चा साथीएक छोटे से गाँव में एक व्यक्ति...

  • नफ़रत-ए-इश्क - 4

    तपस्या के बारेमे सोच कर विराट एक डेवल स्माइल लिऐ बालकनी से न...

श्रेणी
शेयर करे

डाकिया अब डाक नहीं लाता

सुनहरी भावनाओं का संगम अब हमारे दर पर नहीं आता, हां अब कोई चिट्ठी या खत हमारे घर नहीं आता ।। 

हिमालय की वादियों को उकेरते, बसंत के फूलों को संजोते, एवं मरु हृदय के खबर वाला खत अब हमारे या आपके घर नहीं आता।।  जिसमें अलंकार श्रृंगार छंद बंध रास रंग प्यास अंग शेरों शायरी हुआ करती थी वो वाला ख़त जिसमें लिखने वाले व्यक्ति का सिर्फ संवेदना हीं नहीं अपितु उसकी तस्वीर भी हमारी नजरों में उतर आती थी वह खत चिट्ठी अब डाकिया नहीं लाता जिसके इंतजार में कितने खत और लिख डालते थे ।। वो सुनहरी चमक इंतजार का अब आंखों में नज़र नहीं आता "हां डाकिया अब डाक नहीं लाता ।।

घर में वो मेज या टेबुल भी नजर नहीं आता जिसपर टेबुल लैंप या  दीपक हुआ करता था जिसके प्रकाश से सिर्फ शब्द हीं नहीं बल्कि संवेदना उकेरी जाती थी ।। तमस के अंधेरे में जाग जाग कर संवेदना की रोशनी की शहनाई बजाई जाती थी और आंखें जिससे नई चमक पाती थी वो अब नजर नहीं आता वो मेज़ लैंप दीपक कुछ भी स्टोर रुम में भी नजर नहीं आता ‌।।  जहां मोर पंख या स्याह की शीशी और कलम दवात का भंडार हुआ करता था।। जिसके रंग से शब्द सिर्फ लिखें हीं नहीं अपितु तराशें जाती थी ।। वह कुछ अब नज़र नहीं आता हां डाकिया अब डाक नहीं लाता ।।
प्रेम उत्साह उमंग व्यंग्य खबर दर खबर का अब संचार नहीं होता शब्द कितने भी लिखें हो संवेदना का अब विस्तार नहीं होता अब आंखों में किसी खत का इंतजार नहीं होता ।। हां डाकिया अब डाक नहीं लाता ढहती बहती संवेदना का कोई प्रतिकार नहीं होता हां अब शब्दों में कोई कलाकार नहीं होता ।।
हाँ कुछ तकनीकी रिश्ते और तकनीकी साधन का विस्तार जरुर हुआ है किंतु उनमें वो धैर्य ललक और इंतजार का सार नजर नहीं आता हर कुछ भी हो वो अपनापन का संसार नजर नहीं आता। अश्लीलता और नंगापन के प्रहार से सबकुछ व्यापार नजर आता है ।। 
ईमेल फेसबुक वाट्स का संसार जिस कदर हमें बहुआयामी व्यक्तित्व बनाने का काम किया है ठीक उसी प्रकार कुछ व्यापारी वर्ग राजनीति वर्ग और नंगेपन का फैलाव करने वाला वर्ग हमारी भावनाओं का छलने का काम जरुर किया है ।।अपने मुनाफे हेतु समाज को तोङने का काम किया है एक हवा बहती है और आग पुरे समाज में लग जाती है कभी-कभी तो इसका प्रभाव इतना चरम सीमा तक बढ जाता है कि कई कई दिनों तक इसकी सेवा को अवरुद्ध कर दिया जाता है ।। 

तकनीक उपयोग से ज्यादा दुरुपयोग में आ रहे है जिसके फलस्वरूप घंटो घंटो तक क्या बच्चे क्या बुढ़े क्या ज़वान सभी का समय इन तकनीकी साधनों ने ले लिया विचार करने और लिखने की और स्मरण रखने की क्षमता में भारी गिरावट आई है ।। 
जो की एक स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मस्तिष्क भी समाज से दूर कर दिया तकनीक पर हमें पंगु बना कर रख दिया है ।। 

हाँ खत इसलिए तू बहुत याद आती है कुछ लिखने कुछ पढने का मौका हमें देती थी समाज में धैर्य की बीज रूपांतरित करती थी अब आने वाले भविष्य में तू बहुत याद आएगी हमारे बच्चे में वो धैर्य शालीनता और ठहराव का विकास कैसे होगा डाकिया अब डाक कहाँ लाएगा ।।

#अनंत