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युद्ध से बुद्ध तक का सफर

जीवन का आखिरी रास्ता युद्ध नहीं होता है बल्कि जीवन का प्रथम पथ युद्ध है आप जीवन को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो युद्ध से भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि संघर्ष का एक चरण युद्ध है।

युद्ध से आपके अंदर नेतृत्व की क्षमता बढ़ती है और जिसके अंदर नेतृत्व की क्षमता नहीं वह दास की भांति जीवन व्यतीत करता है और अपने परिवार समाज राष्ट्र को कमजोर एवं कायर बनाता है।

युद्ध के बगैर बुद्ध का कोई अर्थ ही नहीं है
बुद्ध का अर्थ चेतना है चेतना अध्यात्म का मार्ग प्रशस्त करता है जहां सुख शांति कांति वैभव त्याग तब और तपस्या है जो जीवन को उत्थान के उत्कर्ष के शिखर पर पहुंचाता है।

किंतु जो स्वतंत्र नहीं और जिसने दासता को जीवन का अंग बना लिया हो वह किसी भी तरह के आत्मिक अध्यात्मिक उत्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता है जिसका जीवन भयमुक्त ना हो वह अध्यात्मिकता के उत्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता है।

इसी कारण युद्ध आवश्यक है युद्ध से ही आप भय मुक्त होते हैं और जीवन को अध्यात्मिक उत्कर्ष प्रदान करते हैं युद्ध का तात्पर्य अन्याय कदापि नहीं हो सकता है अन्याय के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी जाती है वह युद्ध है अन्याय का प्रतिकार है युद्ध है।
जिसने अन्याय को जीवन का अंग बना लिया है उससे युद्ध करना धर्म के मार्ग का बाधा कैसे हो सकता है इसलिए युद्ध के लिए सदैव तत्पर तैयार रहना चाहिए जिससे आपका मन और तन दोनों निर्भय रहे और आप सुख शांति कांति वैभव त्याग तप और तपस्या के लिए आपके जीवन में भरपूर रिक्त स्थान रहे।
जिससे आपके जीवन में आत्मिक और अध्यात्मिक विकास होता रहे जिससे परिवार, समाज, राष्ट्र एंव विश्व सुरक्षित एवं संरक्षित होता रहे ऐसा जीवन हीं सर्व कल्याणकारी होता है और ऐसे हीं जीवन की तलाश में मन सदैव चिंतन और मनन करता है महापुरुषों का।

जीवन जय हो या जीवन मरण हो आपके अंदर जो उर्जा है वही सत्य है वही चैतन्य है और इसी उर्जा से यह संसार ऊर्जावान और प्रकाश पुंज आदिकाल से बना है जिससे यह प्रकृति प्रकाशित हो रहीं है।

हम सब में यह उर्जा तरंग रुप में प्रवाह हो रही है सिर्फ केन्द्रित करने की आवश्यकता है जिससे हमारे अंदर सामर्थ्य और सहजता का विकास होगा और यह संसार भयमुक्त अंधकार मुक्त होगा।

युद्ध और बुद्ध एक हीं जीवन के दो पहलू हो सकते है किंतु वास्तव में यह जीवन के दोनों आयाम है जिसपर तरह नदी के दो किनारे होते है जो नदी को बांधे रखते है उसी प्रकार युद्ध और बुद्ध जीवन के दो किनारे है जो जीवन को भयमुक्त और चैतन्य युक्त बनता है।

युद्ध हिंसा का पर्याय नहीं है बुद्ध सिर्फ चैतन्य का प्रतीक नहीं है युद्ध जिस प्रकार भयमुक्त करता है चैतन्य उसी प्रकार आपका अध्यात्मिक विकास करता है दोनों के जीवन में रहने से हीं आप जीवन को उन्नत कर सकते है और दूसरों के जीवन में सदाचार का मार्ग प्रशस्त कर सकते है।

युद्ध से बुद्ध तक का सफर हीं विश्व को संबल करता है विष को जो पान कर सकता है वही अमृत को दूसरे को प्रदान करना सकता है।

जय युद्ध जय बुद्ध

अनंत धीश अमन

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