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सबक

 

सुबह की गुनगुनी धुप अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी थी। सुर्य की सुनहरी किरणें पत्तों के बीच से झांकती हुई सीधी आँखों में पड़ रही थी। मौसम सुहाना बना हुआ था। फिर भी धुप की चादर लपेटे रहने के बाद उब का एहसास हुआ और करमा ने धुप की चादर उतार फेंकी और चला गया चुल्हा के पास। हालांकि चुल्हे के चारो ओर कुछ इंच तक बला की गर्मी थी और उस गर्मी को झेलना उसकी मजबूरी थी।
करमा ने अपनी माँ से कहा ’’ जल्दी चाय मिले तो चारागाह तक जाउं। ’’ उसकी माँ सोच की सागर से बाहर निकली और थोड़ी झल्ला कर बोली ’’ मैंने भी अपने हाथ सिल नहीं रखे हैं, जिस प्रकार चाय का चटकारा तुमको चाहिए उसी प्रकार चाय की एक घुंट हमको भी चाहिए। ’’
करमा ने माँ की झल्लाहट का जवाब अपनी मुस्कराहट से दिया। चाय के साथ रात की बची हुई रोटी खाकर चल पड़ा वो चारागाह की तरफ, अपनी गाय और बकरी को लेकर। गाय और बकरी के गले में बंधी हुई घंटी टुन टुन और टन टन की मिश्रीत ध्वनि उत्पन्न कर रहे थे जिसके एहसास से सराबोर करमा अपनी मदमस्त चाल में चला जा रहा था।
पीछे से आवज आई ’’ अरे करमू, कौन चिन्ता फिकर भी आज है कि तु रधिया काकी की गाय ले जाना भूल गया। ’’
आवज पहचान कर करमा ने बिना पीछे मुड़े ही कहा ’’ कोनो चिन्ता फिकर नहीं है काकी मगर आप किस खुशिहाली में अपनी गाय खोलना भुल गए ? ’’ करमा की बात सुनकर रधिया काकी सन्न भी रह गयी और चुप भी।
घास की हरियाली से पूरा क्षेत्र भरा हुआ था। गाय और बकरी टुट पड़े मुलायम घास पर। अब उनके गले में बंधी घंटी की टुन टुन और टन टन की आवाज के साथ चपर चपर की आवाज भी आ रही थी।
करमा भी बैठ गया हरी हरी नरम मुलायम घास पर और कुछ गहरा सोचते-सोचते करमा लेटा और उसको नींद आने लगी। अपनी नींद को नज़रअंदाज करने के लिए करमा उठ बैठा तो देखा कि बकरी वहाँ नहीं है। अब तो उसको झटका लगा और पिता के द्वारा दी जाने वाली गाली की चैपाई उसके जेहन में तैर गई। करमा आगे बढ़ कर देखा कि बकरी खेत में फसल चर रही है। उसने मन ही मन सोचा कि ’’ ये तो भला हुआ कि बकरी इस तरफ आकर बूधन काका के खेत में गयी, अगर उस तरफ गई होती तो मुखिया जी का खेत पड़ता है, जीना मुश्किल कर देते वो। ’ हूर्र ’ की आवाज के साथ करमा अपनी बकरी को घास तक लाया तो दंग रह गया, अब गौमाता गायब थी। गाय उस तरफ जाकर मुखिया जी के खेत चर रही थी। दुर से ही मुखिया जी का नौकर कल्लन उसको आते दिखा। करमा झट से लपक कर गौमाता की गर्दन पकड़ कर वहाँ से निकाला और बड़ी बला टल गई। करमा को अब समझ में बात आयी कि काम के समय आना ही सिर्फ बुरा नहीं है बल्कि बैठे बैठे कहीं खो जाना भी बहूत खराब है।

समाप्त

 

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