जिन्दगी सुहानी धुन Rajeev kumar द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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जिन्दगी सुहानी धुन

 

निःसंतान और बांझ जैसे ह्नदयविदीर्णक शब्द बार-बार, लम्बे समय तक सुनने के बाद राय दम्पति के घर पुत्र पैदा हुआ था। यह निराशा पर आशा की बहूत बड़ी विजय थी। बलवंत राय और संध्या राय खुशी से फुले नहीं समा रहे थे। सान्तवना और दिलासा देने वाले को भगवान पर बहूत बड़ा भरोषा हो गया था और निंदा और शिकायत करने वालों के जुबान पर ताला लग गया था मगर भगवान के चमत्कार पर भरोषा दस गुना हो गया था। खैर बच्चे की छठियारी में सांत्वना-दिलाशा देने वाले भी लड्डू गटक रहे थे तो वहीं निंदा-शिकायत करने वाले भी एक साथ दो लड्डू दबोच रहे थे।
छठियारी की जश्न में शामिल मेघनाथ जी ने बलवंत राय जी से पुछा ’’ राय साहब, आपके चेहरे पर खुशियों की लहर क्या पुरा समन्दर उमड़ पड़ा है, बेटे का नाम क्या रखा है ? ’’
बलवंत राय जी ने अपनी खुशी का पुरजोर प्रदर्शन करते हुए अपने बेटे से कहा ’’ तुझे सुरज कहुं या चंदा, तुझे दिपक कहूँ या तारा , मेरा नाम करेगा रौशन, जग में मेरा राज दुलारा। ’’
संध्या राय ने कोल्डड्रींक्स बढ़ाते हुए कहा ’’ समीर नाम रखा है हमने। ’’
घर-बाहर के सारे मेहमान विदा हुए।
टब में समीर को नहलाते हुए संध्या राय गुनगुना रही थी ’’ मेरा सुरज है तु, मेरा चंदा है तु, मेरी आँखों का तारा है तू। ’’
अपने व्यस्त दिनचर्या में से समय निकाल कर बलवंत राय अपनी पत्नी और बच्चे के साथ घुमने निकल जाते। मगर आज बलवंत राय अपने बेटा के साथ पार्क में गए। समीर ने तो पहले अपने पिता की पीठ पर बैठ कर घुड़सवारी की ’’ चल मेरे घोड़े, टीक टीक टीक। ’’ उसके बाद समीर को क्या सुझा, समीर कहीं छुप गया। मन के खराब हालत में बलवंत राय जी ने इधर-उधर ढुंढा, नहीं ढुंढ पाने की स्थिति में वो कहने लगे ’’ लुक छुप, लुक छुप जाओ न, मेरे मुन्ने मुझको सताओ न, ओ मेरे नन्हे-मुन्ने, प्यारे-प्यारे राजा, आ के गले लग जाओ न, अले आओ न। ’’
बेकरार बलवंत राय को करार तब मिला जब एक पेड़ की ओट में उन्होंने अपने समीर का नरम-मुलायम हाथ देख लिया।
विद्यालय में दौड़ प्रतियोगिता में हार चुके बेटे को ढाढस बंधाते हुए बलवंत राय जी ने कहा ’’ तेरे गिरने में भी तेरी हार नहीं, कि तु आदमी है अवतार नहीं। ’’
तरूणाई बिता कर जवानी की दहलीज में समीर का पहला कदम और तो और काॅलेज का पहला दिन था। समीर आज बहुत खुश है क्योंकि न युनिफाॅर्म की दबिश और न तो किताबों का भारी बोझ।
क्लास में अव्वल होने के कारण और अपने लक्ष्य में समर्पित समीर का ध्यान थोड़ा सा भटका और उसकी नज़र की तीर से नेहा घायल हो गयी। इग्नोर करने के बाद भी समीर और नेहा की नजदिकी बढ़ी और प्यार की कश्ती मे दोनों सवार हो चले।
समीर ने कहा ’’ हम लाख छुपाएं प्यार मगर, दुनिया को पता चल जाएगा। ’’
नेहा ने कहा ’’ लेकिन छुप छुप के मिलने से मिलने का मजा तो आएगा। ’’
दोनों को प्यार भरे गीत गुनगुनाते हुए एक महीना ही बिता था कि जालिम गर्मी की छुट्टी आ गयी। जिस गर्मी की छुट्टी को स्कुल के समय में हर साल इन्ज्वाय करता था, काॅलेज में वही गर्मी की छुट्टी बेरहम प्रतीत होने लगी।
नेहा ने कहा ’’ कल काॅलेज बंद हो जाएगा, तुम अपने घर को जाओगे।’’
समीर ने कहा ’’ फिर एक लड़का एक लड़की से मिल नहीं पाएगा। ’’
नेहा ने कहा ’’ बस एक महीने की ही बात होगी , फिर तो हर दिन मुलाकात होगी। ’’
समीर ने कहा ’’ एक पल बिन कटे न तुम्हारे, कब दिन होगा कब रात होगी। ’’
डिनर टेबल पर बलवंत राय और संध्या राय ने महसुस किया कि समीर कुछ खोया-खोया सा उदास लग रहा है। सात-आठ रोटियां खा लेने वाला मेरा बेटा दो रोटी भी खत्म नहीं कर पाया है। मना करने के बावजूद भी खाते समय बोलने वाला समीर आज चुप-चाप बैठा है। बलवंत राय और संध्या राय एक दुसरे का मूंह देख रहे हैं यह सोचकर कि आखिर क्या हो सकता है और किस प्रकार पुछा जाए कि आखिर माजरा क्या है।
पिता ने उसकी कुर्सी के पास वाली कुर्सी पर बैठ कर पुछा ’’ तुम्हारी तबियत तो ठीक है न, काॅलेज में किसी से कहा सुनी हुई क्या ? ’’
समीर कुछ भी नहीं बोला बस नेहा के ख्याल में खोया रहा।
समीर की दिल की गुमसुदगी का आलम यह रहा कि नींद मंे भी नेहा का नाम बड़बड़ता रहा और बेटा की परेशानी की चिंता में जाग रही संध्या राय ने सुन लिया।
सुबह संध्या राय ने अपनी पति से कहा ’’ जानते हैं क्या हुआ है समीर को ? न सर्दी खांसी न मलेरिया हुआ, वो गया उसको लव लव लव लवेरिया हुआ। ’’
बलवंत राय ने आश्चर्य से पुछा ’’ क्या यह सच है ? ’’ संध्या राय ने ’ हाँ ’ में सिर हिलाया।
उधर समीर की तरह ही नेहा का भी बुरा हाल था। नेहा खुद को कमरे में बंद करके खुद से कह रही है ’’ हार गया दिल फरियाद करके, हम रो रहे हैं तुम्हें याद करके। ’’
समीर ने मन में सोचा ’’ दिल पागल दिवाना है ये प्यार करेगा, ये कब डरा है दुनिया से जो अब डरेगा। ’’ औा वो चल पड़ा नेहा के घर की तरफ, बेकरार दिल को करार देने। मगर बेकरार गया था ,बेकरार ही लौटा। दुसरे दिन जाने पर नेहा के घर का पता चला लेकिन यह भी पता चला कि नेहा की शादी जल्दीबाजी मंे हो रही है, उसकी प्रेम कहानी का पर्दाफाश हो गया है।
बेटे की परेशानी देख कर बलवंत राय लड़की के घर गए तो मालूम हुआ कि नेहा मेरे जिगरी दोस्त घनश्याम राय की बेटी है।
दोस्ती का वास्ता बहूत काम आया और आज सुहाग की सेज पर समीर नेहा का घुंघट उठाते हुए कहा रहा है ’’ सुहाग रात है, घुंघट उठा रहा हुँ मैं। ’’

समाप्त