नए रोमांचक स्थान की खोज करने के शौख ने आज रोहन को मुश्किल में डाल दिया। आज रोहन खुद को कोस रहा है। उसको अपनी मम्मी-पापा और दोस्तों की सलाह कान में गुंजती सी प्रतीत हो रही है कि तुम्हारा यह फितूर एक दिन तुम्हारी जान लेकर रहेगा। रोहन को अचानक उस गार्ड की एक घंटा पहले की कही गई बात कान में गुंजने लगी कि ’’ इधर जंगल में कहाँ जा रहे हैं साहब, जंगल में मंगल करने तो बिल्कूल भी नहीं जा रहे होंगे, क्योंकि आप तो बिल्कूल भी अकेले हैं। ’’
कड़ी और घुरती आँख दिखाए जाने पर वो सन्न रह गया, उसका ठहाका बदल कर चेहरा सिरियस हो गया और गार्ड नें अपनी बात बदल कर कहा ’’ साहब मैं तो मजाक कर रहा था। जाइए अपना ख्याल रखिएगा और जंगल में बहूत अन्दर तक मत जाइएगा। ’’
सन्नाटा तो पुरा जंगल में पसरा हुआ था और अंधेरा भी था मगर खण्डहर पहूँचने से थोड़ी दुरी से ही भयंकर डरावनी आवाज कान में पड़ने लगी थी। दरअसल रोहन थोड़ा और थोड़ा और करते हुए खण्डहर में तब्दिल हो चुकी किला की मुख्य द्वार के पास चला आया था जहाँ प्रथम स्वागत चमगादड़ों की झुण्ड ने किया था। रोहन आँख मलते हुए गेट के अंदर प्रवेश किया और गेट बंद हो गया। तब से रोहन ठीठक कर खड़ी बीती हुई बात सोच रहा था और मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि काश की ये गेट खुल जाता तो आगे के बजाए पिछे कदम लौटाता। अचानक से रोने चिल्लाने की आवाज आने लगी, रोहन ने टाॅर्च जलाकर खुद को सन्तूष्ट किया कि वहाँ एक बिल्ली और एक कुत्ता है मगर आश्चर्यचकित हुआ यह देखकर कि न तो बिल्ली को कोई डर ही था और न तो कुत्ता को अपने शिकार पकड़ने की कोई बेताबी ही।
रोहन ने महसूस किया कि लकड़ी का दरवाजा खुलने की ’ चांय ’ की आवाज निकली और सैंडिल पहने पाँव के पटक कर चलने की आवाज तेज हो गई। इस बार रोने चिल्लाने की आवाज नहीं बल्कि किसी के ठहाका लगा कर हँसने की आवाज आने लगी। रोहन ने देखा कि गलियारे की तरफ से तीन चमकदार चीज उसकी तरफ आ रही है। दो चमकदार चीज तो एक ही आकार की थी और और लगभग एक ही जैसी चमक रही थी मगर तीसरी चमकदार चीज दोनों के मुकाबले काफी बड़ी थी और कभी मद्धिम तो कभी उच्च होकर चमक रही थी। रोहन पसीने से तरबतर था और कुछ भी सकारात्मक नहीं सोच पा रहा था। तीनों चमकदार चीज जब उसके सामने एका एक खड़ी हो गई तो रोहन को पता चला कि दो आँखें और हाथ में पकड़ी टाॅर्च चमक रही थी। रोहन के रोंगटे खड़े हो गए। रोहन के सामने घुंघराले बाल वाली बहूत ही सुन्दर लड़की खड़ी थी। आश्चर्य और भय से रोहन की ललाट पर बल पड़े हुए थे लेकिन सामने खड़ी लड़की के चेहरे पर किसी तरह की शिकन नहीं थी। उस लड़की के चेहरे पर आश्चर्य और भय की जगह मादक मुस्कान तैर रही थी। मगर दोनों ही एक टक एक दुसरे को निहार रहे थे। दोनों के हाथ में पड़े हुूए टाॅर्च एक दुसरे के चेहरा को उजाला किए हुए थे।
चुप्पी तोड़ते हुए उस लड़की ने पुछा ’’ तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रही हो ? ’’ रोहन तो ऐसा लग रहा था कि जैसे कि उसको सांप सुंघ गया हो। उस लड़की ने रोहन के आगे अपने हाथ लहरा कर उसको होश में लाते हुए कहा ’’ चलो मैं ही पहले अपने बारे में बताती हूँ, फिर शायद तुम अपने बारे में कुछ बता सको। मेरा नाम संगीता है और मुझको एक अजब से सौख ने यहाँ फंसा दिया है, पता है कि मेरे मम्मी पापा और मेरी सहेलियां अक्सर मुझसे कहती थी कि ’’ देखना रोमांचक जगह को खोजने के शौख के कारण तू बहूत बुरी तरह से फंसेगी। ’’
अपने जैसा ही हाल सुन कर रोहन को बहूत बड़ा झटका लगा और रोहन नाॅर्मल हुआ, फिर भी उसके चेहरे पर शंका की रेखा स्पष्ट तौर पर उभरी हुई थी। संगीता ने कहा ’’ पता है मैं कितनी ईडियट हुँ, जंगल में प्रवेश करने के पहले उस गार्ड की हवस भरी नज़र को मैंने महसूस तो किया मगर उसकी बात अगर मान लेती तो यहाँ कभी भी नहीं फंसती, उसने कहा था ’’ मैंडम इस जंगल में तो कपल्स लोग जाते हैं, आप अकेली कैसी इन्जवाॅय करेंगे, खैर बेस्ट आॅफ लक। ’’
अब रोहन को लगने लगा कि अपनी बात भी इसको बता ही देना चाहिए।
रोहन ने कहा ’’ मेरा नाम रोहन है और कमाल की बात है कि जैसा तुम्हारे साथ हुआ, ठीक वैसा ही मेरे साथ भी हुआ। ’’
रोहन ने फिर कहा ’’ देखो देखो दोनों एक ही शौख के कारण यहाँ फंसे हैं और दोनों को मिलकर यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता ढुंढना चाहिए। ’’
संगीता ने कहा ’’ मैं तो अन्दर तक गई थी मगर बाहर निकलने का दुसरा दरवाजा न पाकर फिर यहीं आ गई। ’’
’’ तुमको काफी देर यहाँ आए हुए हो गए क्या ? ’’
संगीता ने जवाब में कहा ’’ हाँ, बहूत समय से यहाँ भटक रही हूँ। चलो थोड़ी दुर पे मैंने उजाला सा देखा है। ’’ रोहन और संगीता गलियारा होते हुए अन्दर की ओर जाने लगे। रोहन टाॅर्च की रौशनी में इधर-उधर उपर-नीचे देखने लगता और अन्तिम तौर पर उसका टाॅर्च संगीता के चेहरे की तरफ पड़ जाता और बहूत खुबसूरत चेहरा देखकर उसका दिल बाग-बाग हो जाता।
विशाल कमरा के पास आकर संगीता ठीठक गई और उसने रोहन का हाथ पकड़ कर पीछे की तरफ खिंचते हुए कहा ’’ यहाँ तो सिर्फ उजाला था, यहाँ तो कोई भी नहीं था, ये लोग यहाँ कैसे आ गए। ’’
रोहन ने मजाक करने के लहजे में कहा ’’ तुमने ठीक ही कहा था कि तुम ईडियट हो, अरे बाबा जब रौशनी है तो लोग भी तो होंगे न ? अब कोई भुतनी उजाला करके थोड़े ही गई होगी। ’’
’’ मत बोलो ऐसा, बहुत डर लग रहा है। ’’ ये बोलकर संगीता ने रोहन को कस के जकड़ लिया। रोहन की जिन्दगी में ऐसी बात आज से पहले कभी भी नहीं हुई थी। उसको एहसास हो आया कि आज तक किसी काली कलूटी लड़की ने भी पिछे मुड कर नहीं देखा और आज इतनी खुबसूरत लड़की हमको दबोचे खड़ी है, इसलिए रोहन ने भी संगीता की पकड़ से छुटने की जल्दबाजी नहीं दिखाई और रोहन की अँगूकलियां संगीता की पीठ पर फिसलती रही। रोहन महसुस करने लगा कि मैं किसी दुसरी ही दुनिया में आ गया हूँ।
संगीता ने झकझोर कर पुछा ’’ कहाँ खो गए, यहाँ ये बाहर नहीं निकलना है ? ’’
रोहन ने मन ही मन कहा ’’ कौन कम्बख्त होगा जो अब यहाँ ये बाहर निकलना चाहेगा। ’’
संगीता ने कहा ’’ चलो न चलकर देखते हैं। ’’
रोहन और संगीता के वहाँ भवन में पहूँचते ही सारे लोग संगीता और रोहन की आवाभगत करने लगे। दोनों को मलमल के सोफे पर बिठाया गया। खाने के लिए एक से एक लजीज खाना पड़ोसा गया। नौकर-नौकरानी फौरन उनका हुक्म बजाने में जूटे हूए थे। रोहन के चेहरे पर आश्चर्य पसरा हुआ था और संगीता के चेहरे पर खुशी।
रोहन ने संगीता के कान में फुसफसा कर कहा ’’तुमको तो किसी रियासत की राजकुमारी समझ रहे हैं, इनसे पुछो न कि बाहर जाने का रास्ता कहाँ है। ’’
संगीता ने अपनी मुंह पर अंगूली रखकर चुप रहने का इशारा कर कहा ’’ कोई सुन लेगा, मैं बड़ी ही चालाकी से बाहर निकलने का रास्ता पुछ लुंगी और हमलोग बाहर निकल जाएंगे। ’’
रोहन ने मन ही मन सोचा कि इसी तरह इस जगह को इन्जवाॅय कर लंूगा और मम्मी-पापा का चेहरा भी याद आ गया।
संगीता और रोहन मखमली घास पर नंगे पाँव चलने लगे और मुर्तियों की नक्काशी भी अपनी आँखों के कैमरे में कैद करते चले। संगीता तो एकदम सीधी देख रही थी मगर थोड़ी थोड़ीर देर पर रोहन की नज़र संगीता के चिकने सून्दर चेहरे पर फीसल जाती।
अचानक से संगीता ने रोहन का हाथ पकड़ कर पुछा ’’ तुम मुझे लाइन मार रहे हो न ? ’’
’’ नहीं तो, बिल्कूल भी नहीं। ’’
’’ तो क्या, मेरे चेहरे पर हीरा मोती जड़ा है जो तुम बार-बार देख रहे हो ? ’’ संगीता ने पुछा।
संगीता ने फिर कहा ’’अगर यहाँ से बाहर निकलना चाहते हो तो मन में जो भी है कह दो। हमको चाहते हो न ? ’’
रोहन ने कहा ’’हाँ संगीता, मगर इतनी सुन्दर लड़की के आगे जुबान ही नहीं खुली। आई लव यु संगीता। ’’
दोनों के दिल ने हामी भरी। नर्म मुलायम घास पर दोनों बैठ गए। रोहन ने अपना सिर संगीता की गोद में रख दिया। संगीता रोहन के बाल पर अंगूलियां फिराने लगी। रोहन को महसूस हुआ कि मेरा सिर उसकी जांघ पर नहीं बल्कि हवा में लटका हुआ है और उसकी अंगूली हवा की छुवन जैसी लग रही है मगर वो इग्नोर कर गया। संगीता और रोहन चुप चाप एक दुसरे को देखते रहे। रोहन को एहसास हो आया कि वो अलग ही दुनिया में ंहै जहाँ प्यार ही प्यार है।
रोहन ने संगीता की गोद से उठ कर संगीता का सिर अपनी गोद में रख लिया, उसको एहसास हुआ कि संगीता का सिर हवा इतन हल्का है, रोहन के शरीर में एक सिरहन पैदा हुई मगर वो इसको भी इग्नोर कर दिया।
रोहन ने कहा ’’ कुछ अपने बारे में भी बताओ, कहाँ रहती हो, हमलोग फिर कहाँ मिलेेगे और प्यार भरी बातें करेंगे या हम दोनों कि पहली और अन्तिम मुलाकात हो। ’’
संगीता ने रोहन के मुंह पर अंगूली रख कर कहा ’’ ऐसा मत कहो, अब हम दोनों को कोई जुदा नहीं कर सकता है। मैं तो यहीं रहती हूँ, बगल के गाँव में, अपनी माँ-बाबू जी के साथ। ’’
रोहन की आँखें अचानक चैकन्नी हो गई और उसका मन-मस्तिष्क बाहर निकलने का रास्ता तलाशने लगा। उसने संगीता कहा ’’ मम्मी-पापा परेशान हो रहे होंगे। चलो न उनलोगों से बाहर निकलने का रास्ता पुछते हैं। ’’
संगीता ने कहा ’’ मैं भी तो यही सोच रही थी, यहाँ तो कोई नज़र भी नहीं आ रहा है। ’’ थोड़ी ही देर के बाद दस साल का बच्चा वहाँ अचानक प्रकट हुआ। संगीता ने उस बच्चे को बुला कर पुछा ’’ यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता तुमको पता है ? ’’
उस बच्चे ने कहा ’’ दीदी आपको रास्ता पता नहीं है ? ’’ बोल कर मुस्करा कर वहाँ से भाग गया।
रोहन ने पुछा ’’ आश्चर्य है यार, ये बच्चा अचानक जादू की तरह हाजिर हुआ और बिना रास्ता बताए ही भाग गया। और तुमको दीदी क्यों बोल रहा था ? ’’
संगीता ने कहा ’’ कमाल करते हो तुम भी, हमको दीदी नहीं बोलेगा तो क्या आंटी बोलेगा ? ’’
इतने में रोहन ने देखा कि बच्चा आगे-आगे और आवाभगत करने वाले लोग पीछे-पीछे चले आ रहे हैं। उनमें से एक ने रोहन से पुछा ’’ आपको हमलोगों का आदर-सम्मान पसंद नहीं आया ? ’’
रोहन ने मुस्करा कर कहा ’’ अच्छा तो बहूत लगा लेकिन जाना भी तो हैं। ’’ संगीता को केहूनी मार कर कहा ’’ बोलो न कि घर जाना है। ’’
संगीता ने रोहन की नम हो चुकी आँखों से उसके दिल के दर्द को एहसास किया। अब उनलोगो ने संगीता से पुछा ’’ बेटी तुमको भी हम लोगो का आदर-सत्कार पसंद नहीं आया ? ’’ संगीता ने अपनी आँखें नम कर इशारे से कहा ’’ जाने दीजिए इनको। ’’
खण्डहर से बाहर निकलकर रोहन बहूत खुश था मगर संगीता का मन बहूत उदास था।
रोहन से फिर मिलने का वादा करके संगीता अपने घर जाने की तरफ मुड़ी और अचानक बरगद के पेड़ पर सरसरा कर चढ़ कर गायब हो गई।
रोहन की आप बीती सुनते ही उसकी माँ ने कहा ’’ बहूत बड़े भुतहा खेल से तु बच गया, अब तुमको कभी अकेले बाहर नहीं जाने दुंगी आज ही तान्त्रिक बाबा को बूलवाती हूँ। ’’
रोहन उठते जागते संगीता की रट लगाए रहा, दिल की पुकार सुन कर संगीता भी आई थी मगर तान्त्रिक ने पुरे घर को मंत्र से बांध दिया था।
एक आत्मा और एक शरीर का मिलन कभी नहीं हो पाया।
समाप्त
राजीव कुमार
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