इसी को प्यार कहते हैं ? Rajeev kumar द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इसी को प्यार कहते हैं ?

 

दिल में कसक उठते ही यादोें की एक किताब खुल जाती और किताब का एक-एक पन्ना मानस पटल पर पारदर्शी हो जाता और उस पन्ना पर लिखा एक-एक वाक्य, एक-एक शब्द जीवंत होकर खलबली मचा देते जैसे कि सदियों से मृत ज्वालामूखी का लावा बरस का कहर का सैलाव में परिणत हो जाता है।
खट्टी यादें तो डकार के रूप में बाहर निकल जाती है, कड़वी यादों से भी कुछ खासा खतरा नहीं होता है। उस बात को तो दिमाग में उमड़ते-घुमड़ते ही इतना समय लग जाता है कि उसकी शक्ति क्षीण होने लगती है और दिल तक आते-आते मृतप्राय हो जाती है।
सबसे ज्यादा खतरा तो मिठी यादों के एहसास से होता है, उसका एक-एक तीर दिल को छलनी करने की ताकत रखता है। तीर चलाने वाला काफी दुर होने के बावजूद उसका निशाना अचुक होता है।
किसी के साथ बीताया गया एक-एक मीठा पल, उसकी एक-एक मिठी बातें, रोम-रोम में किसी के प्रेम का मीठा एहसास, यह सब एक-एक चीज प्रियतम से बिछड़ने के बाद घातक हो जाती है।
यही सब एहसास सलोनी को हो रहा था। वो इतनी मजबूर हो चूकी थी कि वैभव को जितना भूलाने की कोशिश करती वो उतना ही याद आता। हालांकि वैभव को उसकी जिन्दगी से गए हुए दो वर्ष हो गए है, मगर सलोनी याद करके इस प्रकार तड़प उठती है जैसे कि आज ही की बात हो। वैभव की यादों में खो जाना सलोनी की मजबूरी है, इस पर सलोनी का कोई वश नहीं चलता है।
यादों के सागर में डुब कर सलोनी ने कुछ वाक्या निकाला कि झुठ तो वैभव अक्सर ही बोला करता था मगर उसकी बात पर यकीन करना नादानी थी, शोक था, मजबूरी थी और उन सब से भी बढ़ कर अन्धा प्रेम।
सलोनी ने कलाई घड़ी दिखा कर कहा ’’ आज अपने प्रेम मिलन का पहला दिन है, और आज से ही इन्तजार करवाना शुरू, आगे क्या करोगे। ’’ वैभव बात को हंसी में उड़ा कर चुम्बन लेने को आतूर था।
किसी और दिन न मिलने आने का कारण पुछा तो, वैभव ने कहा ’’ कल छोटी बहन को लेकर अस्पताल गया था। ’’ वैभव की बांहों की पकड़ के आगे सलोनी की शंका और शिकवा की पकड़ नतमस्तक हो गयी थी।
बहार में प्रेम का एहसास कराना, खुशबूओं में भी प्रेम के होने का एहसास कराना, वो आँख मिचैली खेलना, मुझको अपनी सहेलियों से दुर कर देना, दिन में कई बार प्यार की कसमें खाना-खिलाना और तो और शादी के बाद बच्चों के सुन्दर नाम का चयन करवाना, सब छलावा साबित हुआ।
उसने कहा था ’’ साल भर के लिए बाहर जा रहा हूं। ’’ अपने प्रेमी से इतन लम्बे समय के लिए बिछुड़ने के नाम से ही दिल थर्राया था, आँखें भर आई थीं और दिलो दिमाग खोखला महसूस होने लगा था। मगर प्रेम की महानता और सुन्दरता सिर्फ सलोनी के दिल पर हाबी रही, वैभव के दिल पे इसका कोई असर नहीं हुआ और वो छाया के साथ, जिन्दगी से हमेशा के लिए चला गया।
सोच के सागर से बाहर निकल कर सलोनी अपना अस्तित्व तलाशने की कोशिश करती है और फिर अपना अस्तित्व वैभव के झुठे प्रेम की यादों पे न्योछावर कर देती है और सिर में भीषण पीड़ा महसूस कर पसर जाती है विस्तर पर, जहाँ सपना में भी वैभव ही होता है।
समाप्त