पकडौवा - थोपी गयी दुल्हन - 8 Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पकडौवा - थोपी गयी दुल्हन - 8

"झूठ बिल्कुल झूठ,"छाया बोली,'तुम्हारी बात पर कौन यकीन करेगा?सब तुमसे यही पूछेंगे रिश्ता नही है तो साथ क्यो रह रहे हो?
"मुझे किसी को विश्वास दिलाने की जरूरत नही है।"अनुपम बोला,"मेरा तुम से कोई रिश्ता नही है।"
"चली तुम्हारी बात मान लेते है।हमारा कोई रिश्ता नही है।हम दोनों दोस्त तो बन ही सकते है।"
"मुझे तुम्हारी दोस्ती भी कबूल नही है।'
"दोस्त न सही तो दुश्मन ही सही,"छाया बोली,"कभी दुश्मन की बात भी मान लेनी चाहिए।"
"कभी नही,"और अनुपम फुर्ती से घर से बाहर निकलकर चला गया।
अनुपम सुबह निकलता तो कभी दोपहर में खाना खाने के लिए घर लौट आता।कभी अगर व्यस्त रहता तो अपने चपरासी रामु को भेजकर खाना मंगवा लेता।आज न वह दोपहर में आया न ही उसने खाना मंगवाया।
दोपहर को बूंदा बांदी होने लगी थी।जो कभी तेज कभी धीरे हो जाती।शाम को अनुपम बरसात में भीगते हुए घर लौटा था।घर मे कदम रखते ही उसे छींके आने लगी।
"अरे तुम तो पूरी तरह भीग गए,"छाया दौड़कर तौलिया ले आयी,"लाओ तुम्हारा सिर पोंछ दू"
"मैं पोंछ लूंगा।"अनुपम ने छाया के हाथ से तौलिया ले लिया।
"तुम कपड़े बदलो मै तुम्हारे लिए चाय बनाकर लाती हूँ।"
अनुपम कपड़े बदलकर बेडरूम में लेट गया।छाया मसाले वाली गर्म चाय बना लायी।वह अनुपम को चाय देते हुए बोली,"लो चाय पिलो।"
अनुपम का खाना रामदीन बनाता था।छाया ने यहाँ आते ही रसोई का काम हाथ मे लेना चाहा पर अनुपम ने उसके हाथ का खाना नही खाया।तब छाया ने इस काम से हाथ खींच लिए।पर आज अनुपम ने उसके हाथ की चाय पी ली थी।गर्म मसाले की चाय पीने से शरीर मे कुछ गर्मी आ गयी थी।लेकिन अनुपम इतना भीग चुका था कि उसे बार बार छींक आने लगी।1हाथ पैर और शरीर दुख रहा था।उसकी हालत देखकर छाया विक्स की शीशी ले आयी।उसने शीशी खोलकर अनुपम के सिर पर बाम लगानी चाही तो अनुपम ने उसका हाथ झटक दिया।
"चुपचाप लेटे रहो।,"छाया नाराज होते हुए बोली,"तबियत खराब होने पर भी सेवा नही करूंगी तो कब करूंगी?आखिर तुम्हारी पत्नी हूँ।"
"तुम मेरी पत्नी नही हो।"
"कोई बात नही।साथ रह रही हूँ तो एक साथी के नाते मेरा हक है।बीमारी में तुम्हारी सेवा करूँ",।
अनुपम ने विरोध करके छाया की रोकना चाहा।अपने से दूर करना चाहा।पर व्यर्थ।छाया न हटी।न उसकी एक सुनी।मजबूरन अनुपम को चुप रहना पड़ा।छाया ने उसके सिर,पीठ और गले पर बाम लगा दी।इससे उसे आराम मिला और उसे नींद आ गयी।
सुबह अनुपम बिस्तर से नही उठा।उसे बुखार आ गया था।
सुबह छाया, रामदीन से बोली,"डॉक्टर को बुला लो।"
"जी,"और रामदीन डॉक्टर को ले आया।डॉक्टर चेक करने के बाद तीन दिन की दवा देकर चला गया।अनुपम तीन दिन तक बिस्तर में पड़ा रहा।छाया ने उसकी पूरी देखभाल और सेवा की।अनुपम उसे बराबर फटकारता ,झिड़कता रहा।पर छाया ने उसकी बात पर ध्यान नही दिया।और तबियत सही होने पर अनुपम जंगल के दौरे पर निकलने लगा तब उसे तैयार होता देखकर छाया बोली,""आज और आराम कर लेते।"
"क्यो?'
"अभी बुखार से उठे हो।कमजोरी महसूस हो रही होगी।।"
"मैं अब ठीक हूँ।'
"तुम मानने वाले तो हो नहीं।ठीक है मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी।"
अनुपम बोला,"तुम क्या करोगी?"
अनुपम ने उसे रोकना चाहा।पर वह नही मानी।मना करने के बावजूद वह उसके साथ हो ली।अनुपम आगे वह उसके पीछे