अतीत के पन्ने - भाग 30 RACHNA ROY द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अतीत के पन्ने - भाग 30

आलोक इन्तजार करते करते आंख कब लग गई पता नहीं चल पाया।।
और फिर अचानक छाया ने जगाया अरे बाबूजी उठो! देखो कौन आया है?
आलोक एकदम डर कर उठ गए और फिर अपने सामने जतिन को देखते ही बोलें अरे आलेख कहां है?
जतिन ने कहा अरे आलोक जी वही बताने आया हुं कि उनका बस खराब हो गया तो सब कहीं होटल में रुके हुए हैं कल सुबह सब निकलेंगे।।
आलोक ने कहा ओह ये बात है शुक्रिया आपका।।
जतिन ने कहा ना,जी ना। मुझे तो आना ही था।
सोचा कि रात आज हवेली में गुजार दुंगा आपके साथ।
आलोक ने कहा हां, ये तो बहुत अच्छा हुआ। चलिए पहले खाना खाते हैं आज तो आलेख की पसंद का बना था सब।।
फिर दोनों मिलकर कर बातें करते हुए खाना खाने बैठे।
बाहर तो सर्दी बेहतर है आज।
अलीगढ़ में दो डिग्री हुआ है।
आलोक ने कहा हां और क्या।।
जतिन ने पुछा और कोचिंग का काम कैसा चल रहा है?
आलोक ने कहा हां,सब अच्छा चल रहा है।।
फिर खाना खाने के बाद दोनों टहलने लगे और फिर छाया ने एक ही कमरे में बिस्तर लगा दिया और साथ में रजाईयां भी रख दिया।
जतिन ने कहा आज काव्या की याद बहुत आ रही है काश !आज वो यहां होती।
आलोक ने कहा हां, ठीक कहा आपने।
जतिन ने कहा हां, मैं हमेशा काव्या को एक देवी के रूप में देखता था पता नहीं उसके मुख मंडल में ऐसी आभा थी जो मेरे सारे काम आसानी से हो जाता था।
वो हमेशा कहा करती थी कि जब मैं ना रहुं तो अपनी पिया को हवेली में लक्ष्मी के रूप में देकर जाना।
आलोक ने कहा हां, ये तो सच है मुझे भी काव्या ने आकर कहा था।
फिर बातें करते करते आंख भर आई।
फिर दोनों ही सो गए।
सुबह उठते ही छाया ने अदरक वाली चाय पीने को दिया।
जतिन ने कहा वाह क्या बात है चाय मिल गया तो सब मिल गया।
कुछ देर बाद ही जतिन के मोबाइल पर पिया का फोन आया।।
जतिन ने फोन रखते हुए कहा कि बस अब वो लोग निकलने वाले हैं।
आलोक ने कहा हां, ठीक है चलिए नहाकर तैयार हो जाते हैं।
फिर जतिन को आलोक ने कुछ कपड़े पहनने को दे दिया।
फिर दोनों ही तैयार हो कर बैठक में आ कर बैठ गए।
कुछ देर बाद ही सारे मजदूर आ गए और वो अपने अपने काम में लग गए।
छाया ने जल्दी जल्दी नाश्ते में गोभी के पराठे और चुडा मटर बना दिया।
फिर दोनों ही नाश्ता करने लगें।
कुछ देर बाद ही आलेख का दोस्त शाम भी आ गया और वो दुकान की चाबी लेकर चला गया।
देखते देखते दोपहर हो गई और फिर आलोक और जतिन दोपहर का खाना खाने के बाद मजदूरों का काम देखने ऊपर पहुंच गए।
जतिन ने कहा अरे वाह सारी व्यवस्थाएं सुनिश्चित हो गई है। कम्प्यूटर लैब भी बनाया है।
आलोक ने कहा हां, काव्या चाहती थी कि यह सब कुछ हो।
जतिन ने कहा हां, काव्या का सपना अतीत में छुपा था जिसे आप ने और आलेख ने मिलकर एक नया रूप दिया।
काव्या जहां भी है बहुत खुश हो रही है।
आलोक ने कहा हां ठीक कहा।।।

फिर शाम हो गई और अब आलोक को चिंता सताने लगी।
अरे इतना समय हो गया अब तक वो नहीं आया आलेख।
जतिन ने कहा हां मुझे लगता है कि आज भी वापस नहीं आ पाएंगे।
सर्द हवाओं की वजह से नेटवर्क भी नहीं मिल रहा है। मैं वापस जाता हूं।
आलोक ने कहा हां, ठीक है छाया तुम जतिन जी को रात का खाना दे दो।
जतिन ने कहा अरे इसकी जरूरत नहीं थी पर आप बोल रहे हैं तो।।
छाया ने कहा हां, अभी लाती हूं।
फिर छाया में टिफिन बॉक्स में भर कर दे दिया।
जतिन अपने गाड़ी से चले गए।

रात हो गई थी अब आलोक को भय सा लग रहा था।
आखिर क्या हुआ आलेख के साथ??
रात को आलोक ठीक से खाना भी नहीं खा पाएं।
और फिर टहलने लगे फिर जाकर सो गए।

जब अचानक तन्द्रा टूट गई ।।
तो देखा कि घड़ी में तीन बजा था और यह क्या अभी तक आलेख नहीं आया?
और ना ही उसका फोन, कोई अनहोनी न हुआ।।
फिर इधर उधर टहलने के बाद फिर लेट गया।।

दूसरे दिन सुबह आलोक उठ कर फोन देखने लगें पर यह क्या कोई भी सन्देश नहीं।।
फिर कुछ देर बाद फोन भी किया पर कोई भी फोन नहीं उठाया।।
और फिर आलोक ने जतिन को फोन किया।।
जतिन ने कहा हां कोई खबर नहीं आई अब तक!
आलोक ने कहा हमें पुलिस में खबर करनी चाहिए।
जतिन ने कहा हां, सही कहा आपने मै बस निकल रहा हूं।
आलोक भी जल्दी से तैयार हो कर नीचे पहुंच गए और फिर एक आलेख की तस्वीर भी ले लिया और फिर कुछ देर बाद ही जतिन आ गए।
फिर दोनों जतिन की गाड़ी में बैठ कर निकल गए।
आलोक ने कहा कि मेरा मित्र हैं डी एस पी सिंह।
जतिन ने कहा हां ये तो अच्छा है।।
मुझे भी अब कुछ ठीक नहीं लग रहा है दोनों का फोन बंद बता रहा है।



क्रमशः