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कहानी प्यार कि - 62

" मनीष ये क्या किया तूने... ? " अखिल जी ने मनीष को डांटते हुए कहा..

" हाउ डेयर यू... मुझ पर हाथ उठाया तुमने..." वैशाली एक हाथ अपने गाल पर रखकर गुस्से से बोली..

" तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे बेटे के खिलाफ साजिश रचने की..."

" वो तुम्हारा बेटा नही है.. "

" वो मेरा ही बेटा है वैशाली.. तुमने उसे कभी अपना माना ही नही पर मेरे लिए वो बेटे से भी बढ़कर है समझी...."

" आई एम सोरी अनिरुद्ध... वैशाली ने जो किया इसके लिए... " मनीष हाथ जोड़ते हुए बोला..

" नही चाचू आप को माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं है..."

" नही अनिरुद्ध .माफी मांगने की जरूरत है... मैंने आप सब से एक बात छुपाई है..." मनीष ने सिर झुकाए हुए कहा...

मनीष की बात सुनकर सब हैरानी से उसे देखने लगे..

" अखिल भाई .. भाभी , मां.. में और वैशाली लंडन से यहां इसीलिए आ गए थे क्योंकि वहा पर हमारा घर जॉब सब चली गई थी.. वैशाली जिस कंपनी में थी उन्होंने फ्रॉड किया था हमारे साथ..." मनीष की आंखे बहने लगी थी...

" नही चाचू .. फ्रॉड कंपनी ने नही पर चाची ने आपके साथ किया था..." अनिरूद्ध ने धीरे से कहा..

वैशाली की घबराहट बढ़ गई थी.. उसका राज मनीष के सामने आने वाला था उसके हाथ पैर ध्रुजने लगे थे...

" क्या ? " मनीष हैरानी से बोला...

" चाची आप सब बताते है या फिर में ही सब को बता दू ..? "

" ये ये क्या बकवास कर रहे हो तुम अनिरुद्ध .. में में नही जानती की तुम किस बारे में बात कर रहे हो..." वैशाली घबराती हुई बोली..

" एक मिनिट..." अनिरूद्ध ने अपने फोन में डॉक्यूमेंट्स ओपन किए...

" ये देखिए चाचू... चाची ने खुद वो घर बेचा था... और यह सब इन्होंने क्यों किया ये में आपको बताता हु..."

" नही अनिरुद्ध .. प्लीज में में तुम्हे सब बताती हु की जगदीशचंद्र और उनका बेटा क्या करने वाले है .. "

" नही चाची.. वो तो आपको बताना ही पड़ेगा पर आपका सच अब और चाचू से नही छिपेगा.. "

" अनिरूद्ध तुम उसकी बात मत सुनो बताओ मुझे..."

" चाची जिस कंपनी में काम करती थी वो और किसकी नही पर मोनाली मैथ्यूज की थी.. मोनाली ने चाची को ऑफर दी थी की चाची मोनाली जो कहे वो करेगी तो वो उनको अथर्व मैथ्यूज के साथ काम करने का मौका देगी...आप तो जानते ही है अथर्व कितना बड़ा फैशन डिजाइनर है... "

अनिरूद्ध की बात सुनकर मनीष को याद आया की वैशाली कई बार अथर्व के साथ काम करने की इच्छा के बारे में जिक्र किया करती थी...

" और चाची ने ओफर मान ली.. आप नही जानते की मोनाली ने चाची से क्या क्या करवाया है.. हमारे बिजनेस शेयर्स खरीद ने के लिए उस मोनाली ने चाची को आप से पेपर्स साइन करवाने भी भेजा था... "

अखिल , अनुराधा और दादी यह सब सुनकर शॉक्ड थे उनके पीछे इतना सब हो गया था और वो अब तक इस बात से अनजान थे..

मनीष से अब आगे सुना नही जा रहा था..

" बस अनिरुद्ध... अब मुझसे नहीं होगा..." मनीष ने अपने कान बंध कर दिए...

" वैशाली तुम पैसे के लिए इतने हद तक गिर गईं की अपने ही परिवार से गद्दारी कर रही थी .. और अपने ही घर के बेटे को मारने की साजिश..? " अखिल जी की बात सुनकर वैशाली सिर झुकाए खड़ी रही..

" ये बिजनेस, पैसा , जॉब वो आज है कल नही है .. पर परिवार.. हर वक्त तुम्हारे साथ रहता है .. पैसे हम कमाते किसके लिए है ? अपने परिवार के लिए ही ना ...? अगर परिवार ही नही होगा तो इतने पैसों का करोगी क्या.. ? अभी तुम्हे समझ नही आयेगा पर जब तुम्हारी उम्र हो जायेगी तब परिवार ही तुम्हारा सहारा बनेगा.. ये बिजनेस नहीं..." अनुराधा जी ने अपनी आंखो में आंसू के साथ कहा...

" हा चाची.. कई लोग है जो परिवार के लिए तरसते है , कई मां बाप अपने बच्चो के लिए तरसते है ... पर आपके पास इतना बड़ा , अच्छा परिवार है .. आप भले ही कितना भी बुरा अनिरुद्ध को कहती पर अगर आपने एक बार भी कुछ भी अनिरुद्ध के पास मांगा होता तो अनिरुद्ध बिना सोचे आप को वो दे देता ये मेरा विश्वास है .." संजना ने वैशाली के पास आते हुए कहा...

" यह सब कहने की बात है संजना .. अपना बच्चा ही हमें सहारा देता है.. जीजी आपका बेटा सौरभ , अनिरूद्ध यह बिजनेस चला रहे है आगे जाके इनके बच्चे होंगे वो बिजनेस चलाएंगे.. जीजी आपको और भाईसाब को या अनिरुद्ध , संजना , सौरभ तुम सब को सहारा देने वाले तुम्हारे संतान होंगे पर में इतनी बदनसीब हु की मेरी कोई संतान नहीं है ना ही होंगी.. में आप सब से पैसे मांगूंगी कैसा लगेगा ? में सिर्फ अपना आने वाला कल सिक्योर करना चाहती थी...." वैशाली बोलते हुए फुट फूट कर रोने लगी..

" चाची आपने एक बार सिर्फ एक बार हमे अपने बेटे की तरह माना होता तो हम आपको कभी बेटे की कमी नहीं खलने देते.. जैसे चाचू मेरे लिए है वैसे ही आप थी.. मैं कभी आपको उलटा जवाब नही देता था , आपके ताने चुपचाप सुनता था .. पर इस बार आपने मुझे बोलने के लिए मजबूर कर दिया था..."

" मुझे माफ़ करदो अनिरुद्ध...." वैशाली ने गिड़गिड़ाते हुए कहा

" तुम्हारे गुनाहों की सजा माफी नही है.. वैशाली.. अब जो फैसला करेगा वो कानून करेगा.. " बोलकर मनिष ने वैशाली का हाथ पकड़ लिया ..

" चलो .. पुलिस स्टेशन.. में अपने हाथो से तुम्हे पुलिस के हवाले करूंगा..." बोलते हुए मनीष वैशाली को ले जाने लगा..

" नही नही प्लीज मनीष मुझे माफ करदो .. मुझे जेल नही जाना है..." वैशाली रोती हुई मिन्नते कर रही थी पर मनीष उसकी एक बात नही सुन रहा था...

" प्लीज अनिरुद्ध रोको ना तुम्हारे चाचू को.. संजना.. तुम तो कुछ कहो.. भाईसाब, जीजी... "

" चुप आज में किसीकी भी सुनने नही वाला हु .."

वैशाली को अब गुस्सा आया और उसने जोर से मनीष को धक्का दिया और अपना हाथ छुड़वा लिया..

" अगर तुम मुझे पुलिस के पास ले गए तो में वो राज अनिरुद्ध को बता दूंगी जिसे तुम लोग आज तक छुपाते आए हो..." वैशाली चीखती हुई बोली..

यह सुनते ही अखिल और अनुराधा हील गए... दादी के हाथो से उनकी माला गिर गई... अनिरुद्ध आंखे फाड़े वैशाली को देखने लगा..

मनीष गुस्से से वैशाली को घूरने लगा...
" अनिरूद्ध इसकी बात पर ध्यान मत दो .."
मनीष ने कहा और वो जबरदस्ती वैशाली को अपने साथ ले जाने लगा..

" सुनो अनिरुद्ध ... तुम्हारे मम्मी पापा का एक्सिडेंट कोई हादसा नही था .. बल्कि मर्डर था.." वैशाली चिल्लाई..

अनिरूद्ध की तो यह सुनकर जैसे पैरो तले जमीन खिसक गई थी...

" वैशाली प्लीज भगवान के लिए चुप हो जाओ.." दादी हाथ जोड़ते हुए बोली...

" नही दादी आज सब सामने आ ही जाए यही बेहतर होगा..." अखिल जी ने आगे आते हुए कहा..

अनिरूद्ध , संजना, सौरभ , मीरा सब अखिल जी को हैरानी से देख रहे थे...

अखिल जी धीरे धीरे अनिरुद्ध के पास आए और उसके कंधो पर हाथ रखा..
" बेटा .. बहुत सालो से इस राज ने मेरी रातों की नींद छीनकर रखी थी .. शायद आज के बाद में चेन की नींद तो सो पाऊंगा..."

" अंकल क्या चाची सच बोल रही है..? " अनिरूद्ध ने बोलते हुए अपनी आंखे और मुट्ठी कसली थी...

" हा..." सुनते ही अनिरुद्ध की आंखे खुल गई...

" अंकल कौन है वो ? जिसकी वजह से मेरे मोम डेड मुझसे दूर हो गए..." अनिरूद्ध ने भीगी पलकों के साथ पूछा..

" में..." अखिल जी ने सिर जुकाकर कहा...

" क्या ? " अनिरुद्ध ने हैरानी से पूछा...

" हा अनिरुद्ध वो में ही हु..."

" नही नही ये नही हो सकता है.. " अनिरुद्ध की आंखो से आंसू रुक ही नही रहे थे उसे अखिल जी पर भरोसा था की वो कभी ऐसा नहीं कर सकते थे..

" ऐसा ही है अनिरुद्ध...."
अनिरुद्ध यह सुनकर गिरने ही वाला था की सौरभ ने उसे पकड़ लिया..
" यह सब सुनकर मेरा सिर चकरा रहा है ..." अनिरूद्ध ने अपने माथे को जोर से दबाते हुए कहा..

सौरभ ने अनिरुद्ध को सहारा देकर सोफे पर बिठाया.. और पानी पिलाया..

" जब तुम पांच साल के थे तब ये ओब्रॉय मेंशन बहुत अलग था.. इतना बड़ा नही था पर खुशियां बहुत ज्यादा थी.. तुम्हारे पापा कार्तिक ने मुझे ओब्रॉय फार्मा कंपनी में साथ में काम करने का मौका दिया , हम दोस्त तो कॉलेज से ही थे , में और अनुराधा अक्सर तुम्हारे पापा कार्तिक और प्रेरणा से मिलने आया करते थे... , हमारा एक और दोस्त था तीर्थेश.. अग्निहोत्री... तुम्हारे पापा ने उसे भी इस बिजनेस में हिस्सा दे दिया...

पहले सब ठीक चल रहा था.. हम तीनो मिलकर अच्छे से काम करते थे....फिर तीर्थेष ने अपने रंग दिखाने शुरू किए... उसने हमारी गैर मौजूदगी में लाखो का फ्रॉड किया.. जिसके बारे में में और कार्तिक दोनो नही जानते थे.... एक दिन में ऑफिस में जब काम कर रहा था तब ये घोटाला मेरी नजर में आया ...उसके बाद मैने उस बारे में पता लगाने की कोशिश शुरू करदी... और फिर मुझे तीर्थेश के खिलाफ सबूत मिल गया...में तुरंत सबूत लेकर कार्तिक के घर जाने के लिए निकल गया...

में गाड़ी लेकर जा ही रहा था की तीर्थेश आकर गाड़ी में बैठ गया... उसे नही पता था की में उसके खिलाफ सबूत लेकर कार्तिक के पास जा रहा हु.. मैने भी उससे कुछ कहा नहीं... हम ओब्रॉय मेंशन पहुंच ही रहे थे की तीर्थेश की नजर पेपर्स पर चली गई.. उसने मेरी जेब में से पेपर्स निकाल लिए और पढ़ने लगा...पढ़ते वक्त उसकी आंखे चौड़ी हो गई थी.. उसे अब सब समझ आ चुका था...वो कुछ करे उससे पहले ही मैंने पेपर्स उसके हाथ से छीन लिए...

उसी वक्त कार्तिक और प्रेरणा तुम्हारी स्कूल बस की राह में तुम्हारे और सौरभ के साथ बाहर खड़े थे... मुझे नही पता था की सौरभ भी वहा पर आया हुआ था.. गाड़ी में मेरे और तीर्थेश के बीच हाथापाई हो गई थी... उसकी वजह से में गाड़ी को कंट्रोल नही कर पा रहा था .... हमारा ध्यान सामने रास्ते की जगह वो पेपर्स पर ज्यादा था... स्कूल बस के आते ही तुम दोनो बस में चढ़ गए ... कार्तिक और प्रेरणा तुम दोनो को हाथ हिलाकर बाय बोल रहे थे और पीछे की साइड से हमारी गाड़ी फुल स्पीड में आ रही थी ... तीर्थेश ने एक जोर का मुक्का मेरे मुंह पर मारा और गाड़ी पर से मेरा पूरा कंट्रोल चला गया... कार्तिक और प्रेरणा दूसरी और मुड़ ही रहे थे की हमारी गाड़ी उनके इतने नजदीक पहुंच गई थी की वो अपनी जगह से हिल भी नहीं पाए और और...गाड़ी उन दोनो से टकरा गई... "
बोलते बोलते अखिल जी रो पड़े.... और जमीन पर बैठ गए...

" क्या मम्मा पापा उस पल में ही...? " अनिरूद्ध ने आंसुओ से भरी आंखों से पूछा...

" नही.. मैंने जोर से ब्रेक मारी और भागता हुआ उनके पास आया... तीर्थेश उसी वक्त मौका देखकर वहा से भाग गया पर कार्तिक और प्रेरणा दोनो को बहुत चोट लगी थी खून भी बहुत बह रहा था... पर दोनो की सांसे चल रही थी .. में उनको हॉस्पिटल ले गया... पर हॉस्पिटल पहुंचने तक हम तुम्हारी मां को नही बचा पाए... पर कार्तिक को डॉक्टर की ट्रीटमेंट के बाद होश आया था... मैने उसे जो हुआ था वो सब बताया... उससे माफी भी मांगी... पर उसके बदले में उसने सिर्फ इतना ही कहा की मेरे बेटे को उसके मम्मी पापा की कमी कभी मत ख़लने देना और मेरा बिज़नेस तुम संभाल लेना.... बस यही उसके आखरी शब्द थे और फिर उसने अपनी आंखे बंध कर ली..."

अखिल जी के साथ वहा पर खड़े सब लोगो की आंखो में आसू थे.. दर्द था, ये सच किसीको बर्दाश्त ही नही हो रहा था...

अनिरूद्ध अंदर से टूट चुका था... सौरभ और संजना दोनो इस वक्त अनिरुद्ध की हालात समझ रहे थे.. अनिरूद्ध खड़ा हुआ और वहा से जाने लगा.. उसके शरीर में जैसे प्राण ही नही बचे थे.. वो जिसे सबसे बढ़कर समझता था वही अखिल अंकल के हाथो उसके मम्मी पापा का एक्सिडेंट हुआ था यह बात उसे खाए जा रही थी उसे समझ नही आ रहा था की क्या सही है और क्या गलत..

" अनिरूद्ध प्लीज रुक जाओ..." अखिल जी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा..

पर अनिरुद्ध ने जैसे कुछ सुना ही नहीं था वो रुका नही और ऊपर अपने कमरे में चला गया..
अखिल जी जमीन पर बैठ गए...
" मैं ने सब खो दिया ... अपने अनिरुद्ध को भी खो दिया मैने...."

तभी संजना ने सौरभ को इशारा किया , वो दोनो अखिल जी के पास आए और अखिल जी को सहारा देकर खड़ा किया..

" नही अंकल .. इस वक्त अनिरुद्ध सदमे में है.. पर वो आपसे दूर नही हो सकता है.. ये सिर्फ हादसा था.. कोई मर्डर नही.. और इसमें आपकी कोई गलती नही थी.. अंकल.. आप खुद को दोष मत दीजिए... में जानती हु अनिरुद्ध भी यह समझेगा.. पर अभी हमे उसे कुछ वक्त देना चाहिए.. " संजना ने प्यार से समझाते हुए कहा..

" हा पापा .. मुझे या किसीको आपसे कोई शिकायत नहीं है... " सौरभ ने कहा और अखिल जी के गले लग गया..

मनीष भी आंखो में आंसू के साथ वही खड़ा था.. वैशाली भी हैरान थी क्योंकि वो भी पूरा सच नही जानती थी.. उसे भी उसकी गलती समझ आ रही थी .. की वो जिसे मर्डर का नाम दे रही थी वो मर्डर नही था..

मनीष भी वैशाली की और बिना देखे वहा से चला गया.. अनिरूद्ध अपने कमरे में एक कोने में बैठा हुआ था..

संजना अनिरुद्ध के पास आई.. और उसके पास बैठने ही जा रही थी की अनिरुद्ध ने रोक लिया.
" जमीन पर क्यों बैठ रही हो संजू..! ये ठीक नही है तुम्हारे लिए..."

" इस हालात में भी तुम्हे मेरी फिक्र है.. " संजना मन में ही बोली...

अनिरूद्ध खड़ा हुआ और संजू को धीरे से बेड पर बिठा दिया... और जाने लगा पर संजना ने उसका हाथ पकड़ लिया..
" मेरे पास बैठो..."
संजना के कहने पर अनिरुद्ध बैठ गया..

" देखो अनिरुद्ध में समझ रही हू की तुम अभी क्या महसूस कर रहे हो.. में बस इतना कहना चाहती हू की पास्ट में जो हो गया उसे तो हम चेंज नहीं कर पाएंगे,.. तुम भी जानते हो और में भी की अखिल अंकल की कोई गलती नही थी.. उन्होंने कोई मर्डर नही किया था.. वो बस एक हादसा था.. तुम प्लीज उन्हें गुनहगार मत समझना..."

" नही संजू.. मैने ऐसा बिलकुल नहीं सोचा है.. में जानता हु की अंकल कभी कुछ गलत नही कर सकते.. पर में उनसे इसीलिए नाराज हु की उन्होंने इतने सालो तक यह बात मुझसे छिपाई.. क्या मेरा हक नही था सच जानने का ? "

" पर अनिरुद्ध वो डरते थे की कही तुम सच जानने के बाद उनसे दूर ना होजाओ.. वो डरते थे तुम्हे खोने से..."

" संजू क्या उन्हे मेरा प्यार इतना कमजोर लगा था ? मैंने अपने मम्मा पापा से भी बढ़कर उन्हें माना है क्या वो मुझ पर इतना भी भरोसा नही कर सकते थे ? "

संजना के पास अनिरुद्ध की बात का कोई जवाब नही था...

" अनिरूद्ध जो हुआ वो भूल जाओ.. और आगे क्या करना है ये सोचो.. हरदेव और जगदीशचंद्र क्या प्लान कर रहे है ये सोचो.. हम पास्ट के चक्कर में अपना आज और अपना फ्यूचर नही बरबाद कर सकते है ..कितनी मुश्किलों के बाद हम एक हुए है अब में तुम्हे खोना नही चाहती हू..." बोलती हुई संजना अनिरुद्ध के कंधे पर सिर रखकर रोने लगी...

अनिरूद्ध अब समझ गया था की उसे क्या करना था .. वो खड़ा हुआ.. और जैसे ही बाहर जाने के लिए मुड़ा ही था की सामने वैशाली को देखकर रुक गया..
संजना भी वैशाली को देखकर खड़ी हो गई...
वैशाली आंखो में आंसू के साथ दरवाजे पर खड़ी थी..

क्रमश:

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