कहानी प्यार कि - 61 Dr Mehta Mansi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कहानी प्यार कि - 61

" मीरा तुझे आने की क्या जरूरत थी ? यहां सब है तो सही मेरा ख्याल रखने के लिए..."

" नही संजू.. तू आजकल ठीक से अपना ख्याल नही रख रही है.. अब में तेरे लिए नही आऊंगी तो फिर कोन आयेगा...? "

" मीरा तू अनिरुद्ध के जैसे क्यों बात कर रही है ? तू जानती है ना में लापरवाह नही हु.."

" हा पर फिर भी और ये मत भूल ये मेरा होने वाला ससुराल भी है .. में जब चाहे यहां रुक सकती हु..." मीरा ने हस्ते हुए कहा...

" हा बेटा तुम जब चाहे यहां हमारे साथ रुक सकती हो.. आखिर अब ये तेरा भी परिवार है..." अनुराधा जी ने मीरा और संजू के पास आते हुए कहा...

" देखा संजू...." मीरा ने कहा और अनुराधा जी के गले लग गई...

" हा हा मीरा मुझे भी अच्छा ही लगता है जब तू मेरे साथ होती है , पर में तुम्हे परेशान नहीं करना चाहती थी इसीलिए मैने ऐसा कहा..."

" इसमें परेशानी कैसी संजू...तुम जानती हो ना हम दोनो बेस्ट फ्रेंड है और दोस्ती में कोई तकलीफ नहीं होती समझी....! "

मीरा , संजना और अनुराधा जी बात कर ही रहे थे की वैशाली वहा पर आ गई..
" अभी शादी हुई नही और अभी से यहां डेरा जमा लिया है..." वैशाली ने मुंह बिगाड़ते हुए कहा...

वैशाली की बात सुनकर मीरा के चेहरे पर से हसी एक पल में गायब हो गई...

" वैशाली ये क्या बोल रही हो ?" अनुराधा जी गुस्से से बोले...

" अरे सही तो कहा मैंने .. ये ओब्रॉय मेंशन से ज्यादा धर्मशाला बन गई है हर कोई यहां पड़ा रहता है .. कभी किसी की बहन , कभी किसी के दोस्त या कभी रिश्तेदार.. "

" चाची.. आप भी तो बहुत दिनों से इसी धर्मशाला में ही तो रहती है है ना ? " संजू ने वैशाली को उल्टा जवाब देते हुए कहा..

" क्या में बाहर की हु ? में भी तो इसी घर का हिस्सा हु ना ? " वैशाली के शब्द लड़खड़ा रहे थे...

" हा , पर क्या है ना आप अक्सर जब लंडन से आती है तो ज्यादा देर इंडिया रुकती नहीं है इसीलिए मैने कहा.. मतलब इस बार तो ज्यादा महीने हो गए फिर भी आप यही है.. वापस लंडन गई नही , और वो आपके फैशन डिजाइनर की जॉब का क्या हुआ ? "

संजना ने अब तीर बिलकुल निशाने पर ताक दिया था..
वैशाली यह सुनकर बिलकुल चुप हो गई.. वो ये तो कह नही सकती थी की लंडन में अब ना ही उसका घर है और ना ही जॉब...

" जॉब ? वो तो शुरू ही है ... अब सब ऑनलाइन हो चुका है तो में भी यही से ऑनलाइन अपना काम कर लेती हु..." वैशाली ने जूठी हसी हस्ते हुए कहा... तभी उसका फोन बजने लगा...

" लो हमारे बॉस का ही फोन है .. मुझे उनको कुछ डिजाइन भेजनी है में अभी आती हु ..." वैशाली ने कहा और वो वहा से चली गई...

संजना के चहेरे पर मुसकुराहट आ गई..
" चाची कब तक हम सब को बेवकूफ बनायेगी आप ...? " संजना ने मन में कहा और फिर मीरा की और देखा तो मीरा वहा पर नही थी...

" अरे ! ये कहा चली है ? " संजना हैरानी के साथ आसपास देखने लगी...

मीरा मौका देखकर वैशाली के कमरे में जाकर छुप गई थी...
वैशाली कमरे में आई...
" हा बोलो कहा आना है मुझे? "

" ओके पास वाले गार्डन में .. ठीक है में अभी आती हु पर ध्यान से कोई तुम्हे वहा देख ना ले..." वैशाली बोली और फोन काट दिया..

मीरा परदे के पीछे छिपकर वैशाली की बात सुन रही थी...
वैशाली कुछ सामान लेकर रूम से बाहर चली गई..

मीरा ने तुरंत अनिरुद्ध को फोन लगाया..
" हा मीरा बोलो..."

" अभी अभी वैशाली चाची के फोन पर किसका फोन आया था उसने उनको पास वाले गार्डन में मिलने को बुलाया है.. "

" तुम एक काम करो मीरा.. चाची के पीछे जाओ.. और पता लगा ने की कोशिश करो की वो किससे मिलने जा रही है "

" ठीक है " बोलकर मीरा भी पीछे के दरवाजे से बाहर निकल गई और वैशाली के पीछे जाने लगी...

अनिरुद्ध इस वक्त जय के साथ था...
" अनिरूद्ध ये देखो... जगदीशचंद्र और हरदेव की लोकेशन मिल गई है .. ये दोनो जेल से छूटने के बाद होटल ब्लू प्लाजा में ही रुके हुए है.. "

" हम.. तो चाची उनसे ही मिलने होटल गई थी.."

" हा .. ये देखो सीसीटीवी फुटेज ... ये औरत जिसने शाल ओढी है वही तुम्हारी वैशाली चाची है... " जय ने वीडियो को स्टॉप करके अनिरुद्ध को दिखाया..

" जय एक काम करो इन दोनो पर कड़ी नजर रखो.. ये कहा जाते है किससे बात करते है .. "

" ठीक है अनिरुद्ध में अभी अपने ऑफिसर को भेज देता हु.. "

" आज जरूर वैशाली चाची इन दोनो मैं से किसी एक को मिलने जा रही होगी... मुझे भी पार्क में जाना चाहिए.. में मीरा को अकेले नही छोड़ सकता .. मुझे उस हरदेव पर जरा सा भी विश्वास नहीं है... " अनिरूद्ध मन ही मन सोच रहा था..

वो तुरंत पार्क के लिए निकल गया...

वहा पर वैशाली और हरदेव आमने सामने खड़े हुए थे.. मीरा कुछ दूर पेड़ के पीछे से उन दोनो का वीडियो बना रही थी..

" ये लो ये वो लोगो की फोटो है जिसे तुम्हे पार्टी में अंदर लाने के लिए हमारी मदद करनी है"

" ठीक है में अपना काम कर दूंगी पर बदले में अनिरुद्ध बचना नही चाहिए..."

" तुम फिक्र मत करो.. उसका सारा इंतजाम हमने कर दिया है..." हरदेव ने शैतानी मुसकुराहट के साथ कहा..

" बस एक दिन और फिर ये बिजनेस, ये प्रॉपर्टी सब में अपने नाम करवा लूंगी.. "

" और संजना और उसका बच्चा हमेशा के लिए मेरा हो जायेगा.. " दोनो एक दूसरे की और देखकर हसने लगे..

मीरा यह सब रिकॉर्ड कर रही थी तभी उसके हाथ पर मधुमक्खी ने काट लिया
" आउच..." मीरा अंजाने में जोर से बोली..

इस आवाज से हरदेव की नजर तुरंत उस पेड़ की और गई..
हरदेव धीरे धीरे उस और आने लगा... तभी किसीने जोर से पत्थर हरदेव के पास वाले डस्टबिन पर मारा....
हरदेव का ध्यान तुरंत उस डस्टबिन की और चला गया..
पत्थर के ऊपर कागज लपेटा हुआ था.. हरदेव अब उस कागज को देखने जाने लगा तभी अनिरुद्ध ने मीरा को हाथ पकड़कर खींच लिया...

" चलो यहां से..." अनिरूद्ध धीरे से बोला... और मीरा को अपने साथ लेकर चला गया...
हरदेव ने कागज देखा तो वो पूरा कोरा था.. उसमे कुछ नही था...
हरदेव ने गुस्से से वो कागज फेंक दिया और चला गया..

" मीरा क्या पता चला ? " अनिरूद्ध ने गाड़ी चलाते हुए मीरा से कहा..

पर मीरा चुप थी और डरी हुई लग रही थी..

" क्या हुआ मीरा ? "

मीरा ने कांपते हुए हाथो से फोन अनिरुद्ध को दिया..

अनिरूद्ध ने एक और गाड़ी रोक दी और फोन खोलकर वो वीडियो ऑन किया...

वीडियो देखकर अनिरुद्ध की आंखे लाल हो चुकी थी.. साथ में उसकी आंखो से आंसू निकल आए थे..

" चाची आप इतना कैसे गिर सकती है ? " अनिरुद्ध ने गुस्से से कहा..

" अनिरूद्ध कंट्रोल...."

" नही .. आज चाची ने सारी हदें पार कर दी है.. आज में चुप नहीं रहूंगा.. " अनिरुद्ध गुस्से में बोला और गाड़ी तेज चलाने लगा..

मीरा को अनिरुद्ध का गुस्सा देखकर टेंशन होने लगी थी.. उसने तुरंत सौरभ को टेक्स्ट कर दिया.. और वीडियो भी सेंड कर दिया...

अनिरुद्ध ने घर आते ही गाड़ी रोकी और गुस्से में तेजी से अंदर की और चला गया..मीरा भी उसके पीछे चली गई..

वैशाली अभी घर पहुंची नही थी.. अनिरूद्ध सोफे पर बैठकर वैशाली के आने का इन्तजार कर रहा था..

कुछ ही देर में वैशाली आ गई...

वैशाली ने अनिरुद्ध को बैठे हुए देखा और फिर अपने कमरे की और जाने लगी..

" रुको चाची...." अनिरूद्ध ने चाची को पीछे से टोकते हुए कहा..

वैशाली के कदम वही रूक गए...

" कहा गई थी आप ? " अनिरूद्ध कड़क आवाज में बोला...

" में बस यही टहलने गई थी..."

" जूठ... सच सच बताइए चाची .. की आप किससे मिलने गई थी " अनिरूद्ध फिर से जोर से चिल्लाया...

वैशाली अनिरुद्ध के गुस्से से कांपने लगी...

अनिरूद्ध की आवाज़ सुनकर सब होल में आ गए.. संजना भी हैरानी के साथ वहा पर आ गई..
पर अनिरुद्ध का ध्यान सिर्फ वैशाली पर था.. उसे उसके गुस्से के अलावा अभी कोई दिख नही रहा था..

" में में..." वैशाली हकलाने लगी...

" में आपको बताता हु की आप कहा गई थी... "

" आप परमेश्वर पार्क गई थी वो भी हरदेव जगदीशचंद्र त्रिपाठी से मिलने और इतना ही नहीं कल भी आप होटल में उन दोनो से मिलने गई थी... हा और ना...?." अनिरुद्ध चिल्लाया..

" हा हा...." वैशाली ने घबराते हुए कहा.

संजना हैरान थी जगदीशचंद्र और हरदेव के बारे में सुनकर... उसकी आंखो से आंसू बहने लगे... और उसके हाथ भी कांपने लगे..

" अनिरुद्ध शांत... शांत हो जा.." सौरभ ने अनिरुद्ध के पास आकर कहा..

" नही सौरभ आज नही आज मुझे कोई नही रोकेगा.. इतने साल में चुप रहा पर आज नही..." अनिरूद्ध ने सौरभ का हाथ हटा दिया..

" अनिरूद्ध संजना....." सौरभ ने उसे संजना की और घुमा कर कहा...

अनिरूद्ध ने संजना की और देखा ... उसकी डरी हुई आंखे.. उसके आंसू से एक पल में अनिरुद्ध का गुस्सा गायब हो गया.. वो भूल ही गया था की उसने ही कहा था की जगदीशचंद्र और हरदेव की बात संजना को पता नही चलनी चाहिए और आज उसने ही खुद संजना के सामने सब बोल दिया था..

वो धीरे धीरे संजू के पास गया..

" आई एम सोरी संजू.. ये सच है कि जगदीशचंद्र और हरदेव छुट चुके है .. में तुम्हे परेशान नहीं करना चहता था इसीलिए मैने कुछ नही कहा तुमसे..."

" में ठीक हु अनिरुद्ध .. तुम जाओ अपनी बात पूरी करो.." संजना ने अपने आंसू पौछते हुए कहा..

अनिरूद्ध वैशाली के पास गया...
" जवाब नही देगी आप सबको की आप उनसे मिलने क्यों गए थे ? "

वैशाली कुछ बोली नहीं..
ये देखिए ये वीडियो... अनिरूद्ध ने वो वीडियो सब को दिखाई... वैशाली को भी...
" अब आपका क्या कहना है चाची...? "

वैशाली यह सब देखकर जोर जोर से रोने लगी...

मनीष को उसके ऊपर बहुत गुस्सा आया और मनीष ने आकर वैशाली के गाल पर जोर से एक थप्पड़ मारा...

सब मनीष चाचू के रिएक्शन से शॉक्ड रह चुके थे...

क्रमश: