थ्री गर्लफ्रैंड - भाग 2 Jitin Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

थ्री गर्लफ्रैंड - भाग 2

कोचिंग वाली लड़की

बकरा ईद थी। उस दिन, वो दिन जिस दिन नालियों में पानी का रंग लाल होता हैं। ये वो दिन होता हैं। जिस दिन आस्था में विश्वास के लिए मासूमों को बेरहमी से काटा जाता हैं। पर मेरे लिए उस दिन इसके कुछ और मायने थे। मुझे आने वाले वक्त में जैसे कोई रास्ता मिल गया था। जिस पर मुझे चलना था। यूँ तो मैं उसे पिछले दो महीनों से लगातार देख रहा था। पर उस दिन उसको देखने में कुछ था।, कुछ ऐसा जो पहले नहीं था। कभी नहीं था। पर उस दिन तो मेरा पूरा जिस्म अपनी ही किस नज़र में कैद हो गया था। वो उस दिन थोड़ी बदली हुई थी। हर दिन से अलग या केवल मुझे लग रही थी। ये मैं नहीं जानता था। और ना जानना चाहता था। पर उस दिन मेरे लिए तो वो एक अप्सरा थी। जिस पर से मैं नज़र नहीं हटा पा रहा था।

वो लड़की उस दिन जो सूट पहन कर आई थी। उसके बारे में मुझे ज़रा भी पता नहीं था। पर कई दिन बाद जब गूगल किया तो पता चला वो कोई डिज़ाइनर पटियाला सूट था। उस सूट का रंग ऐसा था। जैसे किसी का ध्यान खींचने के लिए ही बनाया हो, वो पर्पल कलर था। और उस पर ताज़ा सूरजमुखी फूल के रंग की गुलाब की पंखुड़ियाँ जो हवा चलने पर सिकुड़कर जिस तरह का आकार ग्रहण कर लेती हैं। पूरे सूट पर बिखरी पड़ी थी। और वो उसकी चुन्नी जो पर्पल के साथ थोड़ा लाल का मिश्रण थी। उसकी उभरी हुई छाती के सीधे हिस्से को ढककर, लेकिन उल्टे हिस्से को जो उसके चलने से हिल-ढुल रहा था। उसे काबू में ना करते हुए पीछे की तरफ उसके नितम्बों को छूती हुई लहरा रही थी। चलने से याद आया उसकी वो सलवार बिना मोहरी की जो नीचे एड़ी तक चिपकी थी लेकिन ऊपर चढ़ते-चढ़ते ढीली होती चली गयी थी। पर उस सलवार से उस दिन उसका पीछे का हिस्सा उभरा हुआ लग रहा था। जो उसकी चाल को कामुक बना रहा था। उस दिन वो इतनी सुंदर लग रही थी। कि बस सारी उम्र इसे खुद की नज़रों के सामने ऐसी रखूँ। और बस उसे प्यार से निहारता रहूँ।

आने वाले कुछ दिन तक तो मैं, उसे यूँ ही रोजाना बस निहारता रहा था। कभी सड़क पर, कभी क्लास में, पर जैसे उसे इस बात का इल्म हो, कि मैं उसे देखता हूँ। वो दस-बारह दिन बाद खुद आकर मुझसे बोली, “तुम्हें कोई परेशानी हैं। क्या मुझसे, जो इन बटन सी आंखों को बस मुझ पर टिकाए रखते हो” उसके ऐसा कहने में, मैं तो बस उसके होंठ हिलते देखता रहा था। उसके होंठ जैसे माखन को होंठ के आकार में काट कर लगा दिया गया हो, इसलिये मैं चुप खड़ा रहा। पर अगले ही पल मेरी चुप्पी ने उसके लिए खीझ पैदा कर दी। और जिसकी प्रतिक्रिया मुझे मेरे गाल पर थप्पड़ के रूप में मिली थी। इस अचानक हुई क्रिया से आसपास के लोगों को लगा, मैंने उसे छेड़ा है। जिसके बदले में उसने मुझे मारा, इसलिए उन समाज के रक्षकों ने भी मुझे पीटना शुरू कर दिया था। पर मैं तो जैसे अपने कानों में बस उसकी आवाज़ को सुन रहा था। “कि तुम मुझे देखते क्यों हो?” वो लोग मुझे पीटे जा रहे थे। लेकिन मैं उसके ‘क्यों’ का जवाब सोच रहा था। जब वो लोग अपना आदर्शवाद खत्म करकर वहाँ से चले गए। तब मेरे दोस्तों द्वारा मुझे घर ले जाया गया। पर मेरी दुनिया तो उसके ‘क्यों’ पर रुक गयी थी। मुझे उसका जवाब ढूंढना था। क्योंकि अगली बार जब वो फिर क्यों पूछे तो उसे जवाब दे सकूँ।

आने वाले पंद्रह दिन तक चोट लगने के बाद मैं कोचिंग नहीं गया। पर दोस्तों से फ़ोन करकर मैं ये लगातार पूछ रहा था ‘वो ठीक तो हैं।‘

वो मुझे बताते रहे शायद तेरे साथ जो हुआ, उसके अवसाद में हैं। मैं उसके अवसाद को दूर करने के तरीके खोजता रहा। वो मुझे हर दिन कुछ न कुछ बताते रहे थे। और मैं हर दिन उस कुछ न कुछ को दूर करने के लिए कुछ करता रहा था।

मैं पूरी तरह ठीक होकर जब दीवाली के बाद दोबारा कोचिंग के लिए गया तो उस दिन वहाँ कुछ नए बच्चें आए थे। उनमें से एक था। अमन शर्मा, उसे देखकर उस दिन लगा नहीं था। कि ये मेरा प्यार छीनने के लिए आया हैं। पर वो आया था। इसी काम के लिए, उस अमन शर्मा ने सबसे पहले आकर मुझसे ही दोस्ती की और पहला सवाल ये ही पुछा, ‘इसका नाम क्या हैं। जो बालों में मेहंदी लगाए हुए हैं।‘

पहले लगा वो बस नाम जानना चाहता था। पर जैसे ही मैंने अमन को उसका नाम रुचि शर्मा बताया,

तो उसने तुरंत कहा कि पूरी क्लास में दो ही शर्मा हैं।

मैंने पुछा, ‘क्यों’

उसने कहा, ‘इस मेहंदी वाली को गर्लफ्रैंड बनाने की सोच रहा हूँ।‘

मैंने कहा, ‘तु दावे से कैसे कह सकता हैं। उसे गर्लफ्रैंड बनाने के लिए’

उसने कहा, ‘बस दिल से आवाज़ आई ये मेरे लिए ही बनी हैं। और मैं इसके लिए’

पूरी कोचिंग में, मैं एक लंबे सोच में डूब रहा। कि ऐसा तो मुझे भी लगा था। पर बदले में क्या मिला। लेकिन रुचि को बस स्टॉप पर अकेले खड़े देखते ही, मैंने झट से अपने दिमाग को वर्तमान में स्थिर किया और हिम्मत बांधकर रुचि के पास जा पहुँचा था। उसके ‘क्यों’ का जवाब देने के लिए--

उसके पास जाकर अबकी बार मैंने सबसे पहले आसपास के लोगों से अपनी दूरी को देखा। और जब भरोसा हो गया। कि कोई परेशानी नहीं हैं। तो उससे कहा, “तुम्हें देखना मुझे अच्छा लगता हैं। तुम्हें देखकर ऐसा लगता हैं। जैसे मुझे तुमसे पहली नज़र वाला प्यार हो गया हैं। और उस प्यार की खातिर मैं उम्र भर तुम्हारे साथ रह सकता हूँ।“

इस बात को सुनकर उसने पहले तो अपनी खींसे निपोरी फिर मुझे बड़े ध्यान से देखा और बोली, “उस दिन के लिए एम सॉरी जो तुम्हारे साथ हुआ। वो मैं नहीं चाहती थी। पर काफी बार चीजे हो जाती हैं। वो हमारे हाथ में नहीं होती और उनसे खुद को बचाने के लिए हम मूकदर्शक बन जाते हैं। पर दोबारा मेरी वज़ह से तो ऐसा नहीं होगा। मैं वादा कर सकती हूँ। और तुमने मेरी वजह से जो उस दिन पिटाई खाई। उसके लिए मैं तुम्हारी दोस्त बन सकती हूँ। पर तुमसे प्यार करने का इरादा अभी तो मेरा बिल्कुल नहीं हैं। और वैसे भी मैं प्यार ऐसे करना नहीं चाहती। कि कोई अचानक से आए और मुझे प्रपोज़ करें। और मैं दोनों गालों पर हाथ रखकर चिल्लाते हुए उसे ‘हाँ’ करदूँ। बल्कि मैं तो हाँ करने से पहले अपने प्यार के लिए सपने बुनना चाहती हूँ। ये प्रपोज़ शब्द कितना रोमानी हो सकता हैं। इसके ख्वाब सजाना चाहती हूँ। यानि कि एक लड़के को ये बताने के लिए की मुझे उससे प्यार हैं। इससे पहले मैं अपनी फैंटेसी ऑफ लव की दुनिया में जीना चाहती हूँ।

उसकी बात सुनकर मैंने उससे कहा, ‘तुमने ये फैंटेसी ऑफ लव की दुनिया अभी तक बिल्कुल नहीं बनाई।‘

उसने कहा, ‘मुझे अब तक कोई मिला ही नहीं जिसके बारे में, मैं ये सब कर सकूँ।‘

इतना कहते ही उसकी बस आ गयी और वो उसमें चली गई मैं वहीं खड़ा दोस्ती से प्यार तक के ख्याल बुनता रहा था।