थ्री गर्लफ्रैंड - भाग 8 Jitin Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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थ्री गर्लफ्रैंड - भाग 8

3 मार्च 2015

Time: 19:45

लगता हैं। सारी उम्र पलटा चलाते हुए गुजारने का इरादा है। तेरा, विकास बोलते हुए बड़े आराम से कुर्सी पर बैठ गया।

“लगता हैं। कोई आज ज्यादा ही खुश हैं।“, सुनील

‘किसी के दिल का बाबू बनना जो खुशी देता हैं। वो किसी सल्तनत का राजा बनने में भी नहीं हैं।, विकास

“ओह! अच्छा…तो किसके दिल के बाबू बन गए। ज़रा समझाओगे, सुनील दोनों हाथों को फैलाकर बोलते हुए

यूँ तो बस मैं, उसके नाम का पहला अक्षर बता दूं। तु इसी से समझ जाएगा। लेकिन इसमें मुझे ख़ुशी नहीं मिलेगी। क्योंकि मैं तेरे चेहरे पर बारह बजते हुए देखना चाहता हूँ। इसलिए फिर एक बार ज़रा दिल थाम के बैठ जाइए। मैं फिर एक बार फिलॉस्पिकल होने जा रहा हूँ।, विकास


हाँ, तो बर्थडे वाले दिन, मैं सुबह बिस्तर से सोकर भी नहीं उठा था। मेरे फोन पर एक अपरिचित नंबर से कॉल आया। पहले तो मैंने वो उठाना जरूरी नहीं समझा। लेकिन जब वो तीसरी बार बजा, तो मैंने उठाया। एक बार को विश्वास नहीं हुआ। ये क्या हो रहा हैं। क्योंकि उधर वो थी। जिसके मैसेज कभी मुझे ज़िन्दगी देते थे। जिसका देर से रिप्लाई करना मेरी भूख उड़ा देता था। अपनी सुरीली आवाज में बात करती हुई, मीनाक्षी------ वो अपना नाम बताते हुए। मुझे I love you बोले जा रही थी।

मैंने उससे पुछा कि क्या हो गया तुम्हें, "और मेरा नम्बर कहाँ से मिला

वो बोली, ये सब बातें ज़रूरी नहीं। और जो जरूरी हैं। वो बार-बार बता रही हूँ।

मैंने कहा, पुरी बात ना सही थोड़ी तो बता दो

उसने कहा, मुझे एहसास हो गया हैं। कि मुझे भी तुमसे प्यार हैं। और मैं जो ख्वाहिशों के बंद कमरों में अब तक कैद थी। उसकी चाभी तुम हो, तुमसे मिलकर मैंने जाना प्यार के एहसास को खुद में पनपने देना हमें वैसे ही आज़ाद कर देता हैं। मुझे तुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा। और एक आख़िरी बात मैं वाकई तुम्हारे प्यार में गिर गई।“

इतना कहकर उसने फ़ोन काट दिया।

थोड़ी देर तक मैं सोच में बैठा रहा। ये हुआ क्या मेरे साथ, क्या दोबारा कॉल लगाई जाए जैसा विचार भी मन में आया। लेकिन मैंने कॉल नहीं की; और इस बात की मेरे पास अब तक भी कोई स्पष्ट वजह नहीं हैं। क्योकि शायद उस दिन मेरी नियति मेरे लिए कुछ और चाहती थी।

बर्थडे वाले दिन सहसा हुई इस अचानक घटना के बाद, मुझे ध्यान आया। कि आज तो कोचिंग में नई बुक इलेक्ट्रोमैग्नेटिसम शुरू होने वाली हैं। और मुझे वहाँ भी जाना हैं। इसलिए मैं तैयार होकर पहली बार बाइक लेकर निकल गया। जब तक मैं कोचिंग पहुँचा सब आ चुके थे। वहाँ पर करीब दो महीने बाद मैं पहुँचा था। शायद इसलिए बच्चें पुरानी बातें भूल चुके थे। और उन्होंने मेरा एक अच्छा स्वागत किया।

किसी भी कोचिंग का एक नियम ये होता हैं। जब भी कोई नई बुक शुरू होती हैं। तो सब बच्चों पर वो बुक नहीं पायी जाती। उस दिन हमारी कोचिंग में भी यहीं नियम एक बार फिर लगा। जिसके एवज में सर ने सारी बुक इकट्ठा कर, तीन-तीन बच्चों के समूह बनाकर उन्हें एक-एक बुक दे दी। मेरी बुक किस ग्रुप पर गयी इसे जानने में मेरी कोई खास रुचि नहीं थी। क्योंकि जिस रुचि के लिए मैं कभी कोचिंग जाया करता था। उसने एक बार फिर मेरी तरफ देखना भी जरूरी नहीं समझा।

कोचिंग खत्म होने के बाद जब सब बाहर की तरह चलने को तैयार हुए, तब अमन शर्मा मेरे पास आया और बोला, उस दिन मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। हो सकें तो मुझे माफ कर देना’ इससे पहले कि मैं उससे कुछ पुछता वो इतना कहकर मुझसे नज़र बचाता हुआ चला गया।

कोचिंग से लोटकर उस दिन जब मैं घर आया तो बड़ी देर तक मेरे दिमाग में रुचि का चेहरा चलता रहा। कि ठीक हैं। वह मुझसे प्यार नहीं कर सकती पर इसका मतलब ये थोड़ी ना हैं कि वो अब बात भी ना करें। आखिरकार, हम कभी दोस्त हुआ करते थे।

पुरा दिन कभी रुचि के बारे में और कभी मीनाक्षी के बारे में सोचते हुए जन्मदिन की शाम कब हो गई एक बार फिर पता ही नहीं चला। लेकिन जैसे ही शाम हुई मेरे ख्यालों में राबिया ने भी अपनी जगह बनानी शुरू कर दी। उस शाम पता नहीं क्यों, मुझे राबिया के बारे में सोचने से डर लग रहा था। ऐसा पहली बार हो रहा था। मैं राबिया के बारे में कम और उसकी गुज़री ज़िन्दगी के बारे में ज्यादा सोच रहा था। मुझे एक अवसाद सा घेर रहा था। मुझे लग रहा था कि अगर मैंने राबिया के प्रपोज़ल का जवाब हाँ में दिया। तो उसके गुज़रा हुआ कल, मेरा आने वाला कल बन जाएगा। मैं थोड़ा सा पुरुष वाली सोच से ग्रसित हो चुका था। पर ये पुरुषात्मक सोच मुझे उसके अतीत से बचा रही थी। इसलिए पहली बार मैंने उसे अपने ऊपर इतना हावी कर लिया कि मैं जिम नहीं गया। और आने वाले दिनों में भी ना जाने का फैसला ले लिया। क्योंकि अगर मैं जाता और राबिया से मिलता। तो उसका दर्द मुझे उसके करीब ले जाता, जो मीनाक्षी के प्रपोजल के बाद मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता था।

यहाँ पर कोई भी मुझे गलत कह सकता हैं। कि मैंने एक लड़की को प्यार की उम्मीद देकर, उसे बीच में छोड़ दिया। पर सच कहूँ। तो इस बारे में, मैं सोचना भी नहीं चाहता। कि मैंने क्या किया? ज़ाहिर सी बात हैं। कोई हमसे प्यार करता हैं। तो जरूरी नहीं हम भी उससे करें। राबिया की ज़िंदगी में जो हुआ। वो सुनने में उसके प्रति मेरे मन में सहानुभूति जरूर जगा सकता हैं। पर सहानुभूति जगने का मतलब ये थोड़ी ना हैं। कि मैं आजीवन उसका हिस्सा बन जाऊं आखिर, मैं एक विज्ञान का विद्यार्थी हूँ। तर्कों के साथ ही चल सकता हूँ। भावनाओं के साथ नहीं।

अबे बकवास बन्द कर अपनी और ये बात गर्लफ्रैंड कौन बनी, सुनील गुस्से में चिल्ला कर बोलते हुए

हद हैं। तु, अभी तक नहीं समझा। इसलिए ही कहता हूँ। दिमाग के चक्षु खोलों, विकास खिल्ली उड़ाने के अंदाज़ में बोला

Wait, wait, wait, wait, wait one second you are saying. your girlfriend become Ruchi तो मीनाक्षी का क्या हुआ।, सुनील अचम्भित से भाव चेहरे पर लाकर बोलते हुए

तूने एक कहानी सुनी है। कि एक लड़का होता हैं। जो एक दिन दो लड़कियों के साथ नदी किनारे नहाने जाता हैं। जब वो नहा रहे होते हैं। तो पानी की एक तेज़ लहर के कारण वो दोनों लड़कियाँ डूबने लगती हैं। अब लड़के के सामने समस्या आ जाती हैं। कि वो दोनों में से किसे बचाएँ, उसे जिसे वो प्यार करता हैं। या उसे जो उससे प्यार करती हैं।

पता हैं।, उसने क्या किया? दोनों को मरने के लिए छोड़ दिया। और खुद नदी से बाहर निकल आया। और उसके पास चला गया। जिसे देखकर उसने प्यार करना सीखा था। यानी कि अपने पहले प्यार के पास।

बिल्कुल इसी कहानी के लड़के की तरह मैंने भी सोच लिया था। कि अगर रुचि मेरी गर्लफ्रैंड नहीं बनती हैं। तो मैं किसी को भी प्रपोज़ नहीं करूंगा। पर वो कहते हैं। प्यार की चिंगारी कब, आग में बदल जाए? क्या पता? बस यहीं रुचि के साथ हुआ। तुझे याद हैं। अभी थोड़ी देर पहले, मैंने एक बात बताई थी। कि किताबें कम पड़ने पर सर ने तीन-तीन बच्चों के ग्रुप बनाकर, उन्हें एक-एक किताब दे दी थी। तो बस उस दिन मेरी किताब रुचि वाले ग्रुप को मिली थी। जन्मदिन की रात को जब मैं, पढ़ने बैठा। तो किताब खोलते ही मुझे, उसमें एक लेटर दिखाई दिया। अब नई किताब में कोई कागज़ मिलेगा। तो जाहिर सी बात हैं। कोई भी उसे पढ़ने की कोशिश करेगा। बस मैंने भी यही किया। पर जैसे-जैसे उस लेटर को, मैं पढ़ता जा रहा था। लगा रहा था। मुझमें कोई और भी जुड़ता चला जा रहा हैं। मेरी साँसों को धड़कने का मकसद मिलता जा रहा था। वो लेटर रुचि का था। जो कुछ इस तरह था।

“कहाँ से शुरू करूँ? समझ नहीं आता। दोस्ती से, प्यार से या माफ़ी से, पर इससे क्या फर्क पड़ता हैं। कि कहाँ से शुरू करूँ। क्योंकि मुझे जहाँ पहुँचना हैं। वो तो तुम्हारा दिल हैं। ओफ्फो! कुछ भी बोले जा रही हूँ। लगता हैं। प्यार का बुखार मुझे भी चढ़ गया। सबसे पहले सॉरी उस हर चीज़ के लिए जिससे तुम्हें परेशानी हुई। मेरी उस हर ग़लती के लिए, जिसने मुझे तुमसे दूर कर दिया। और हर बार मेरे होठों से निकली उस ना के लिए जिसने हमारे बीच बेवजह के फासले बना दिये। देखा फिर एक बार मैं बहक गई। शायद तुम्हारे प्यार का नशा हो रहा हैं।………. और क्या कहूँ। बिल्कुल समझ नहीं आ रहा हैं। इसलिए वो ही कह देती हूँ। जिसे तुम हमेशा से सुनना चाहते थे। I am love with you vikas

कल जल्दी आ जाना मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगी वही पर जहाँ हम पहली बार मिले थे।“

उस लेटर को पढ़कर, मेरी बिल्कुल समझ नहीं आया। कि ये कैसे हुआ? जो लड़की कल तक ढंग से बात भी नहीं करती थी। वो अचानक से कैसे, एक बार को लगा कहीं किसी लड़के ने मज़ाक तो नहीं कर दिया। पर जब मैंने वो बार-बार पढ़ा। तो जैसे लेटर का लिखा हर शब्द मेरी ज़िंदगी बनता जा रहा था। उस रात मैं पुरी रात जागा। मेरे सब्र की सीमा खत्म हो गयी थी। लग रहा था जैसे दिन सदियों से नहीं निकला। पर अगले दिन जैसे ही सुबह हुई। मैं जल्दी से तैयार होकर कोचिंग के लिए निकल गया। वहाँ पहुँच कर देखा तो रुचि पहले से खड़ी थी। मेरा इंतज़ार करती हुई। इसलिए पहली बार बिना आसपास देखे, बिना किसी से डरें, सीधा उसके पास जा पहुँचा। और उससे बोला, “उम्मीद नहीं थी। तुमसे ऐसी कि तुम मुझे लेटर लिखोगी”

इरादा तो मेरा कुछ ऐसा ही था। लेटर नहीं लिखने का, पर फिर सोचा, तुमने मुझे पिछले दो महीनों में बहुत ज्यादा परेशान किया था। कोचिंग ना आकर….तो इसलिए तुम्हारी थोड़ी नींद उड़ा दूँ।

परेशान मैंने किया….. कब-- ज़रा और बताओगी इस बारे में

अब तुम्हारी ही तो हूँ। फिर कभी सुन लेना, इस बारे में

वैसे, तुम तो अमन के साथ थी।, मैंने बड़ा डरते हुए कहा था

अमन के साथ थी। ये तुम्हें लगता हैं। मुझे नहीं, उसने बड़ी सफाई से मेरे सवाल का कचरा कर दिया

पर मैं भी इतनी जल्दी कहाँ मानने वाला था, मैंने सवाल दूसरी तरह से पूछा, “कल किसी और के सामने मेरे लिए भी ये ही कहोगी”

नहीं कहूँगी। क्योंकि जो थप्पड़ खाकर भी आँखों में प्यार लिए खड़ा हो, उससे प्यार किया जाता हैं। उसे छोड़ा नहीं जाता। और रही बात अमन की वो तुम्हारे जैसा नहीं था।

मैंने कहा, ‘बस एक कारण दो, उसे छोड़ने का और कोई नहीं

वो किस करते वक़्त होंठ पर काट लेता था।

मैंने कहा, “लगता हैं। तुम्हारे होंठ ज्यादा ही पसंद थे। उसे

जोक अच्छा था। वैसे मैं तुम्हें बता दूँ। मैंने काफी कोशिश की थी। उससे प्यार करने की, पर नहीं कर पाई। पता हैं। क्यों, जिस दिल में, मैं उसे जगह देना चाहती थी। उसमें पहले से ही तुम अपनी जगह बना चुके थे।

मैंने कहा, “जब प्यार करने ही लगी हो, तो कुछ मांग लूँ

अरे बाबा अब तुम्हारी ही हूँ। पुरी तरह से, इतनी भी इजाज़त की जरूरत नहीं हैं।

मैंने कहा, “सच….तो फिर अपना नंबर दे दों

फोन नंबर देने से मेरे प्यार पर यकीन होगा

मैंने कहा, “हाँ या शायद नहीं, पर नंबर मिलने पर तुम्हें किसी और की होने के मौके बहुत कम दूंगा।

इस बात को कहने के बाद मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर चूम लिया।

तो फिर तुने मीनाक्षी से क्या कहा, सुनील

इतनी रोमांटिक बातें बताने पर भी तेरा ध्यान मीनाक्षी पर अटका पड़ा हैं। कहीं तुझे तो प्यार नहीं हो गया उससे, विकास

अरे नहीं…. मुझे जानना हैं। उसे कैसे मना किया तुने या फिर राबिया की तरह जब से उसने तुझे प्रपोज़ किया हैं। उससे भी बात नहीं की, सुनील

ऐसी बात नहीं हैं। बात की, और इतना कहा कि अब मैं किसी और का हो गया हूँ। अगर दोस्ती रखना चाहती हो, तो ठीक हैं। पर इससे ज्यादा मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकता।

उसने कुछ नहीं कहा, सुनील

कहती क्या, दरअशल मीनाक्षी जैसी लड़कियों की एक परेशानी ये होती हैं। कि ये समझदार बनने की कोशिश करती रहती हैं। लेकिन प्यार की पहली शर्त होती हैं। समझदारी को दूर रख देना। इसलिए अगर तुम समझदार हो, तो तुम अपने रिश्ते में केवल समझौता कर सकते हो, प्यार नहीं। क्योंकि प्यार तो बेवकूफियों से भरा वो एहसास हैं। जो किसी भी समझदार को अगर ढंग से हो जाय तो उसे भी पागल कर देता हैं।

खैर अब, मैं चलता हूँ रुचि की कॉल आने वाली होगी। आखिर, नया-नया प्यार हैं। ऊपर से अभी शुरुआत में ही हैं। तो याद ज्यादा आती हैं।