बहुत करीब मंजिल - भाग 4 Sunita Bishnolia द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बहुत करीब मंजिल - भाग 4

कभी लाल के साथ हरा तो कभी नीले के साथ पीला। इन सतरंगी धागों के मिलने से शाखों से बाहर निकलने लगती हैं कलियां और फूल-पत्तियों के झुरमुट। हर बार ये फूल अपनी हद में ही रहते हैं और जुड़े रहते हैं शाख से। पर इस बार जाने क्यों इस बार ये शाखें भी फूलों से इतनी लद गई है कि झुक गई है इनके बोझ से। ये फूल भी आमादा हैं खुद शाख से गिरने या शाखा को गिराने के लिए। भाग रहे हैं ये अपनी ही खुशबू के पीछे और बिखर रहे हैं आस-पास।
डिजाईन के हिसाब से धागों के कुछ रंग कम पड़ गए इसलिए दूसरे दिन तारा दुबारा सामान लेने बाजार गई। और वहाँ जाने पर तारा को वही व्यक्ति फिर मिल गया। वो फिर तारा से बात करने लगा और अबकी बार बातों ही बातों में उसने तारा को पूरी तरह अपने जाल में फँसा लिया और दूसरे दिन दोपहर तीन बजे आने को कहा।
तारा समझ नहीं पाई थी वो व्यक्ति उसे क्यों बुला रहा है पर फिर भी दूसरे दिन सामान लेने के बहाने बाजार आ ही गई। तारा बाजार पहुँची इससे पहले वो व्यक्ति तारा का इंतज़ार कर ही रहा था। उसने फटाफट तारा को कपड़े का एक लिफाफा दिया और कहा इस लिफाफे में मोबाइल रखा है। मैंने इसकी आवाज बंद कर दी है तुम किसी बटन को मत छेड़ना। रात के ग्यारह बजे मैं तुम्हें तुम्हें फोन करूँगा। तुम उठा लेना। पहले तो वो घबरा गई पर बाद में उसने वो थैला लिया और घर आ गई ।
रात को जल्दी-जल्दी माँ को रसोई का काम करवाने के बाद वो ऊपर अपने कमरे में आ गई। सबको पता है कि तारा देर तक काम करती है इसलिए कोई उसे परेशान नहीं करता सिर्फ छोटे भाई सूरज के अलावा, जिसे प्यार से सब नन्नू कहते हैं ।
बड़ी बहन चंदा को जैसे दीन-दुनिया से कोई खबर नहीं। वो तो बस अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहती थी क्योंकि पापा का सपना था कि उनकी बेटियाँ डाॅ बने। अब तारा से तो ये उम्मीद लगाना ही बेकार है। चंदा जाने कब पापा के सपने को अपना सपना मानकर पीछे पड़ गई उसे पूरा करने।
माँ-पिताजी और दादी को यकीन है कि चंदा जरूर डॉक्टर बनेगी। माँ और पिताजी उसे कोई काम नहीं कहते थे। वो तो सारे दिन अपना कमरा बंद करके पढ़ाई करती रहती थी।
तारा भी भाग - भागकर बहन का हर काम कर देती थी वो भी चाहती थी कि उसकी प्यारी जीजी डॉक्टर बने। बहुत प्यार था दोनों बहनों में। जरूरत पड़ने पर एक दूसरे के लिए जान भी हाजिर कर दें ।
जैसे तारा अपनी बहन चंदा के सपने को पूरा करने लिए उसका हर काम कर दिया करती थी वैसे ही चंदा को भी पता था कि तारा का मन पढ़ाई में कम ही लगता है इसलिए वो उसे सिलाई-कढ़ाई करने से कभी मना नहीं करती । दोनों बहनों के सपने अलग, रास्ते अलग थे इसलिए दोनों एक - दूसरे के काम में टोका-टाकी नहीं करती थी।
हाँ नन्नू जरूर तारा को तंग करता था पर वो उसे डांटती या पीट देती थी। पिटने के थोड़ी देर तक वो रोता और बहन तारा को फिर उस पर प्यार आ जाता और दे देती पाँच रूपए। पाँच रूपए देखते ही उसके आँसू सूख जाते और हाथ में आ जाती आइसक्रीम।
क्रमशः
सुनीता बिश्नोलिया